सलीम दिलीप कुमार अभी जिंदा हैं,
कहीं आशुतोष गोवारीकर को लेने के देने न पड़ जायें
जोधा-अकबर एक ऐतिहासिक फिल्म है। हिन्दुस्तान के शक्तिशाली सम्राट अकबर पर बनी यह फिल्म है। लेकिन इन्ही खूबियो में ही छिपा है इस फिल्म का विवादो के पचड़े में पड़ना। दरअसल जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर एक रियल लाईफ करैक्टर है। मरने के सैकड़ो साल बाद भी लोग उसकी धर्मनिरेपक्षता को याद करते है। धर्मनिरेपक्षता-सभी धर्मो को एक समान दृष्टि से देखना-ही क्यों, उसकी हिन्दुस्तान को एक धागे में पिरोकर रखने की क्षमता, महिलाओ को बराबरी का अधिकार, उसकी प्रशासनिक व्यवस्था, मनसबदारी, भूमि सुधार, जैसे उसके कदम ऐसे हैं जो आनी वाली पीढ़ी, राजाओ और व्यवस्था के लिये मील के पत्थर साबित हुये। भारतीय इतिहास में (चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर 21 वी सदी तक) सम्राट अशोक को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा राजा होगा जो किसी भी मायने में अकबर का मुकाबला कर सकता हो। असल में जोधाबाई, अकबर की पत्नी नही पुत्रवधु है। जबकि लोग 'मुगल-ए-आजम' फिल्म में दिखाई गई कहानी को ही हकीकत मानते थे। लेकिन जैसे-जैसे इतिहास पढ़ते गये, ये बात समझ में आ गई कि जोधा, अकबर के बेटे जहांगीर उर्फ सलीम की पत्नी थी। अरे भाई जब ऐश्वर्या, रितिक रोशन की नहीं हुई तो फिर जोधाबाई, अकबर की कैसे हो सकती हैं। सलीम दिलीप कुमार अभी जिंदा हैं कहीं अपनी जोधा के लिये वह आशुतोष गोवारीकर पर नाराज न हो जायें वरना उन्हे लेने के देने पड़ जायेंगे ।
क्या फतेहपुर के गाइड जिम्मेदार हैं.....
जब आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा-अकबर रिलीज होने वाली थी तब जरुर आश्चर्य हुआ कि एक बार जो गलती हो गई थी-मुगल-ए-आजम-के वक्त उसे क्यो दुहराया जा रहा है। जानकारो का मानना है कि इस गड़बड़-झाले के पीछे फतेहपुर सीकरी के गाईड़ जिम्मेदार है। दरअसल फतेहपुर सीकरी (आगरा के करीब वो शहर जो कभी अकबर की राजधानी हुआ करता था) में अकबर का किला है। इस किले का एक हिस्सा जोधा-महल के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस महल में मुगल राजाओ की हिंदु रानियां रहा करती थी। शायद, जहांगीर की पत्नी जोधा भी इसी महल में रहती होगी और इस महल का नाम जोधा-महल पड़ गया। फिर क्या था यहां के गाईडस ने जोधा को अकबर की पत्नी बताना शुरू कर दिया।
इस फिल्म का नाम 'हरका-अकबर' होना चाहिये था। जानते है क्यो ?आमेर (जयपुर) के कछवाहा राजपूत, राजा भारमल की बेटी थी हरका। मुगल सत्ता पर काबिज होने के करीब छह साल बाद (यानि 1562 में) अकबर एकबार अपने लावो-लश्कर के साथ अजमेर की दरगाह शरीफ से लौट रहा था। रास्ते में उसकी मुलाकात राजा भारमल से हुई। भारमल ने शिकायत की मेवात का मुगल हाकिम (गर्वनर) उन्हे आये-दिन परेशान करता रहता है। उनसे मनमाना चौथ वसूलता है। कहते है, अकबर ने भारमल को अपने ही मुलाजिम से मुक्ति दिलाने के लिये दो शर्ते रखी। पहली, राजा भारमल खुद उसके कैंप पर आकर अपनी बात (मिन्नत करे) रखे। दूसरा ये कि वो अपनी बेटी हरका की शादी उससे कर दे। उस वक्त अकबर की उम्र महज़ बीस साल थी।
हरका से शादी के बाद तो अकबर ने कई राजपूत राजकुमारियों से शादी रचाई। बीकानेर के राजा की बेटी, काहन, जोधपुर की एक राजकुमारी से, एक रोहिगा राजकुमारी रुकमावती...। राजपूत घराने में शादी रचाने की परपंरा अकबर के बेटे सलीम उर्फ जहांगीर ने भी जारी रखी। खुद अकबर ने ही अपने बेटे सलीम की शादी जोधपुर के राजघराने की बेटी जगत गोसाई (जो असलियत में जोधाबाई का नाम था) से बड़ी धूम-धाम से कराई थी। लेकिन ऐसा नही है कि हिंदुस्तान में अकबर पहला मुस्लिम राजा था जिसने हिंदु लड़कियो से शादी रचाई थी। उससे पहले अलाउद्दीन खिलजी, दक्षिण के बाहमनी राजा फिरोज शाह, गुजरात के मुहम्मद शाह सहित कई मुस्लिम राजाओ ने हिंदु रानियों से विवाह किया था। लेकिन अकबर ने हिंदु (खासतौर से राजपूत) राजघराने में शादी को अपनी राज-नीति बनाया था।
राजपूत राजा देते थे मुँह तोड़ जबाव
इन शादियों से अकबर एक बड़े साम्राज्य को एक सूत्र में बांधने में कामयाब हो पाया। शादी करने से एक तो इन राजपूत राजाओ से रिश्ते बन जाते थे, यानि उनके विद्रोह की संभावना लगभग ना के बराबर हो जाती थी। राजस्थान के छोटे-छोटे राजपूत राजा दिल्ली (या आगरा) के उन राजाओ को मुंह तोड़ जबाब देते थे जो उनकी सरजमीं की तरफ आंख उठाकर देखने की जुर्रत करते थे। दूसरा ये कि राजपूत अपनी वफादारी के लिये जाने जाते थे। आड़े वक्त में वही अकबर का साथ देते थे। मरते वक्त अकबर के अब्बा, हुंमायू ने उसे हिंदुस्तान में राज करने का मूल-मंत्र दिया था। उसने अकबर को सीख दी थी कि, राजपूत कौम का हमेशा ध्यान रखना, क्योकि ना तो वे (राजपूत) कभी कानून तोड़ते है और ना ही कभी आज्ञा का उल्लंघन करते है। वे तो सिर्फ आज्ञा का पालन करते है और अपना फर्ज (वफादारी का) निभाते है। गुजरात को कूच करते वक्त तो अकबर ने आमेर के राजा मान सिंह को ही आगरा (सत्ता का केंद्रबिंदु) की गद्दी का रखवाला घोषित कर दिया था। यहां तक की मान सिंह को और उनके परिवार के दूसरे सदस्यो को हरम (राजघराने की रानियों की रहने की जगह) की भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी-जो कभी भी किसी मर्द के हवाले नहीं की जाती थी। दूर-दराज के कई विद्रोह कुचलने में भी राजपूत राजाओ ने अह्म भूमिका निभाई थी। अकबर का साम्राज्य काफी बड़ा था। इसलिये आये-दिन दूर-दराज के हाकिम अपने को स्वतंत्र घोषित कर देते थे। ऐसे में अकबर, राजपूतो के सिवाय किसी पर विश्वास नही कर पाता था। यहां तक की अपने बेटे सलीम पर भी वो इतना भरोसा नही करता था क्योकि खुद सलीम ने भी एक बार अपने पिता के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया था।
वीर महाराणा प्रताण
राजपूत घरानो से रिश्ते बनाकर अकबर अपने प्रजा में एक सदेंश देना चाहता था। वो दिखाना चाहता था कि क्या हिंदु और क्या मुसलमान, उसके लिये सभी बराबर है। राजपूत राजाओ के लिये भी ये घाटे का सौदा नही था। राजस्थान के मेवाड़ राज्य के महाराणा प्रताप को छोड़कर हरेक राजा अकबर के सामने नत-मस्तक हो चुके थे।
1562 में अकबर का आमेर जयपुर के राजा भारमल कछवाहा की बेटी हीराकुंवर या हरखबाई से ब्याह हुआ । धर्म परिवर्तन करके उनका नाम मरियम उामानी रखा गया। वे मेधावी और धर्म सम्पन्न थीं। उन्होने अपने महल में कृष्ण की मूर्ति स्थापित की और हिन्दु धर्म के विधि विधानों का जीवन भर पालन किया। जहांगीर उनके ही बेटे थे और नूरजहां के प्रभावी हो जाने तक दरबार पर उनका पूरा प्रभाव रहा। बाबर सुन्नी थे, पर भाईयों और शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारियों से निबटने में हुमायूं की मदद फारस के शाह तस्मास्प ने उन्हे शिया बनाकर ही दी थी। लिहाजा कोई सुन्नी प्रतिरोध न हो, इसलिये हीराकुंवरी या हरखबाई का नाम हमेशा मरियम उामानी ही लिखा गया। इसलिये भी कि हिन्दू रानी का बेटा बादशाह बन रहा है, इस बात को भी मुगल सल्तनत को किसी प्रतिरोध से बचाना था। बाद में हीराकुंवरी ने अपने बेटे से अपनी भतीजी मानमती की भी शादी कराई जिससे खुसरु पैदा हुए। जहांगीर की एक शादी जोधपुर के राज परिवार की जगत गोसाईन से भी हुई। उससे खुर्रम यानी शाहजहां पैदा हुए। जोधपुर की होने से उन्ही का नाम जोधबाई पड़ गया था। मुगल इतिहास में अकबर की बेगम को कहीं भी जोधा बाई नहीं कहा गया। कर्नल टाड नामक लेखक ने अवश्य नामों का गड्ड-मड्ड करके अकबर की बेगम जोधाबाई लिख डाला था जिसे मुगलेआजम फिल्म ने पुख्ता कर दिया।
पर बात नाम के बदल जाने की नहीं है। उससे इतिहास की मूलधारा पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मूलधारा में फर्क पड़ने की बात दूसरी है। इसकी कि यह शादी कैसे और किस कारण हुई? पहले अकबर के जन्म को देख लें, शेरशाह से हारकर हुमायूं जब ईरान की और भाग रहे थे, तो छोटे भाई हिंदाल के खेमे में उन्होने चौदस साल की एक शिया लडक़ी हमीदा बानो को देखा और उस पर मुग्ध हो गये। हुमायूं को योतिष पर यकीन था । उनका ज्ञान और मन दोनो यह कहने लगे कि इस लड़की से पैदा हुआ लड़का बादशाह बनेगा। उन्होने दबाव डालकर शादी की। पर शरण कहां ले? भाई विरोध कर रहे थे। पास में सैनिक और सम्पत्ति भी नहीं थी, ऐसे में सिंध के राजपूत राजा ने उन्हे शरण दी। अमरकोट में राजपूत राजा की छांव में ही अकबर का जन्म हुआ।
बाद में परिवार को साथ लेकर हुमायूं सहायता पाने के लिये ईरान की और बढ़े तो भाई असकरी ने हमला कर दिया। 14 महिने के बच्चे को वहीं सैनिक शिविर में ही अपनी एक पुरानी बेगम के साथ छोड़ वे ईरान की और भागे। असकरी ने भतीजे का मारा नहीं, वह उसे काबुल ले गया। दूसरे भाई कामरान ने उसे इसलिये भी रख लिया ताकि बेटा उसके कब्जे में रहने से हुमायूं ईरान की मदद पाकर भी काबुल पर हमला नहीं कर सक ता। ईरान के शाह ने हुमायूं को शरण तो दी पर नसीहत भी दी कि पठानों से लड़ रहे हो तो फिर राजपूतों से शादी-ब्याह के संबंध बनाओ, तभी तो राज कर पाओगे। तब शिया बन जाने की शर्त मान लिये जाने पर उन्होने हुमायूं को सैनिक मदद दी और काबुल हुमायु के कब्जे में आ गया।
काबुल में उन्हे तीन साल का हो गया अपना बेटा अकबर मिला पर अब आगे हिन्दुस्तान पर हमला करना था और बेटे को साथ नहीं ले जाया जा सकता था। इसलिये सुरक्षा के लिये अकबर को मध्य प्रदेश के रीवा राजघराने में पलने-बढ़ने के लिये पहुँचा दिया गया। शेरशाह ने अपने अंतिम दिनों में कलिंजर के किले का घेरा डाला था वहाँ रीवा के राजा से ही चल रही लड़ाई में हुए विस्फोट में शेरशाह मारा गया।
अकबर को रीवा महाराज ने अपने बेटे रामसिंह की तरह ही पाला। अकबर बादशाह बने तो रीवा ने उन्हे ग्वालियर के तानसेन और सीधी के बीरबल ये दो रत्न उपहार में दिये। हुमायू ने भी मरने से पहले अकबर को वही किया कि राजपूतो से संबंध रखना। 18 साल की उम्र होते-होते जब अकबर बैरम खां और अपनी धाय मां माहम अमका के दबदबे से मुक्त हुए तो उन्होने संबंध के लिये राजपूतों की और देखा। जयपुर सबसे नजदीक था, इसलिये उन्होने लड़की लेने और देने का प्रस्ताव वहाँ रखा। लेकिन राजपूत घरानों ने लड़की देकर धर्म बचाना मुनासिफ समझा ना की मुस्लिम लकड़ी लाकर पूरे घर को मुस्लिम बनाना उचित। इसलिये वह मुस्लिम राजकन्याएं नहीं लाये। ( उल्लेख संस्कृति के चार अध्याय-रामधारी सिंह दिनकर)
इतिहास का मर्म इस बात में है कि जिन राजपूत राजाओं को मुगल शाहजादों-बादशाहों को अपनी बेटियां देनी पड़ी थीं, उन्होने या इस देश ने इस पर जश् नहीं मनाया था, हंसते हुए नहीं, रोते हुए बेटी बिदा की थी। और बेटे भी ऐसे ही विदा किये थे पश्चिम की और आक्रमण पर जाना पड़ता तो खुद न जाकर किसी बेटे को भेजा जाता। इसलिये कि पश्चिम जाने का अर्थ है धर्म का चला जाना (संस्कृति के चार अध्याय)
इतिहास का जो बाजारुपन, दुख और सुख में बदल दे, रुदन को उल्लास में बदल दे, कुर्बानी को उपलब्धि में बदल दे, इतिहास की सारी भावना को ही बदल दे, इसलिये कि उसे एक कल्पिन प्रेमकथा बेचनी है, तो इसे क्या कहेंगे ? देश और राष्ट्र के अपमान के सिवा इसे और क्या कहेंगे ? हजारों किताबें हैं, हजार दस्तावेज हैं जो मुगल इतिहास को सामने रखते हैं और सब जांचा हुआ भी है यह क्यों भूल जाते हैं फिल्म निर्माता कि हीराकुंवरी के व्याह के साथ ही जयपुर से कई राजपूत घरानों ने शाद-व्याह के रिश्ते इस तरह तोड़ दिये थे कि वह फिर वर्षों टूटे रहे।