सीहोर 20 नवम्बर (विशेष प्रति.)। विधानसभा चुनाव 2008 में पहली बार ऐसा हो रहा है कि भाजपा के खिलाफ एक लहर-सी बनी हुई है और यह लहर संभवत: सत्ता के विरोध की लहर है। सत्ता के विरोध की लहर बन जाना एक आम बात है और इसका भरपूर लाभ सीहोर में कांग्रेस और जनशक्ति उठाने को जी-जान से लगे हुए हैं। लेकिन जहाँ कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा के खिलाफ कुछ भी बोलने से बच-छुप रहे हैं वहीं जनशक्ति खुलकर भाजपा का विरोध कर रही हैं। लेकिन मतदाता इससे भी दो कदम आगे हैं। भाजपा का वह विरोधी मतदाता जो ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों में निवास करता है उसने तय कर रखा है कि वह अपना मत किसी भी तरह बेकार नहीं जाने देगा और उसे ही मत देगा जो जीत रहा होगा। यही हालत कांग्रेस के विरोधी मतदाता की भी है। कुल मिलाकर हर एक मतदाता मौन है और गंभीर रुप से विचार मुद्रा में नजर आ रहा है।
सीहोर विधानसभा क्षेत्र भाजपा का लम्बे समय से गढ़ माना जाता है जहाँ भाजपा के पारम्परिक मतदाताओं की गिनती बहुत अधिक है। इसलिये प्रतिद्वंदी पार्टी कांग्रेस को हमेशा यहाँ कई गुना मेहनत करके आगे बढ़ने के प्रयास करने पड़ते हैं। लेकिन हर बार कांग्रेस किसी ना किसी निर्दलीय या बागी के कारण परेशान रहती है और भाजपा जीत जाती है। लेकिन इस बार कांग्रेस की बजाय उल्टे भाजपा को सर्वाधिक दिक्कत आती हुई नजर आ रही है। यहाँ भाजपा पहली बार अपने ही मतदाताओं के विरोध का सामना कर रही है। राजधानी के सबसे यादा करीब होने के बावजूद कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का अनवरत क्रम सत्ता में होते हुए भाजपा में जारी रहा और भाजपा कार्यकर्ताओं को खुश नहीं रख सकी, कई मोर्चो व पदो की घोषणाएं पूरे पाँच साल तक अटकी रहीं।
विरोध की यह स्थिति शहरी क्षेत्र में नगर पालिका चुनाव के समय ही सामने आ गई थी लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह स्थिति है इसकी चर्चाएं लम्बे समय से विद्यमान है। पहली बार लम्बे समय बाद भाजपा विधायक श्री सक्सेना के भतीजे देवेन्द्र सक्सेना राजनीतिक रुप से जनपद पंचायत अध्यक्ष बने जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में देवेन्द्र के प्रति जो अपेक्षा बढ़ गई थी वह भी यह अपने स्वभाव के कारण पूरी नहीं कर सके। संभवत: यह भी एक कारण रहा जो ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा का इन पाँच वर्षों में विरोध फूटने लगा।
इसलिये करीब एक साल पूर्व से ही यह माना जा रहा था कि इस बार सीहोर विधानसभा क्षेत्र से जो भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में दमदारी से उतरेगा और खुलकर भाजपा का विरोध करेगा उसे भाजपा से दुखी व सताये हुए मतों का एक बड़ा बंडल आफर सुरक्षित रुप से मिल जायेगा। यहाँ तक माना जा रहा था कि विधान सभा चुनाव 2008 में सीहोर से कोई आम व्यक्ति भी यदि कांग्रेस खड़ा कर देगी तो उसे भाजपा के विरोधी मत बहुतायत में मिलेंगे। यह बात भाजपा भी बखूवी समझ रही थी उसने अपनी रणनीति और चुनावी समीकरण बैठाने बहुत पहले से शुरु कर दिये थे।
इधर जैसे ही चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ हुई भाजपा का अंत:विरोध खुलकर सामने आ गया और महाजन तथा त्यागी गुट ने एक साथ मिलकर जहाँ विरोध शुरु कर दिया वहीं अब चुनाव में महाजन गुट के प्रत्याशी सन्नी महाजन तो मैदान में ही आ गये हैं जबकि त्यागी गुट अभी तटस्थ हो गया है। इस सीहोर विधानसभा में त्यागी समाज के मतदाताओं की संख्या भी प्रभावी है, और वह अब तक भाजपा के ही पक्ष में रहते थे आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता।
कुल मिलाकर भाजपा का विरोध खुद भाजपाईयों ने कर दिया, बल्कि सन्नी महाजन ने व उनके समर्थकों ने तो खुलकर भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ तीखा बोलना शुरु कर दिया। स्थिति यह बन गई कि भाजपा के विरोध में जो आंशिक लहर सी बन रही थी वह सन्नी महाजन के समर्थन में नजर आने लगी।
इधर कांग्रेस ने अपना प्रचार शुरु करने के साथ ही कांग्रेस को एकजुट तो कर लिया लेकिन वह भाजपा के खिलाफ आक्रामक शैली में प्रचार-प्रसार नहीं कर सकी।
भाजपा ने अपनी कुशल रणनीति के तहत कांग्रेस में विद्रोह की शुरुआत करवा दी। स्थिति यह बनी कि कांग्रेस प्रारंभ के दो दिनों तक अपने वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का आक्रोश झेलती रही फिर वह सब संगठित हुए तो चुनाव प्रचार शुरु होने के बाद कांग्रेस का एक नेता भाजपा में चला गया। कुल मिलाकर कांग्रेस में भी विरोध पैदा करने के भाजपाई प्रयास अभी तक जारी हैं।
भाजपा की कुशल राजनीति का ही परिणाम है कि कांग्रेस अभी तक बजाय भाजपा पर आक्रामक शैली से बार करती वह खुद के घर को सुरक्षित करने और अपने स्थायी वोट बैंक को और बढ़ाने में लगी रही। उधर भाजपा के विरोधी मत बहुतायत में अभी सन्नी की बात करते नजर आते हैं।
लेकिन विधानसभा चुनाव में जैसा की पूर्व में भी देखा गया है कि मतदाता उसे ही अपना समर्थन दिया करते हैं जिसकी जीत सुनिश्चित होती है। तो कुछ ऐसी ही स्थिति इस बार भी नजर आ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों के अनेक ग्रामीणों, सरपंचों, प्रमुखों से लेकर शहरी क्षेत्र के उन मतदाताओं से जब चर्चा होती हैतो वह यही कहते हैं कि जो जीत रहा होगा हम उसे ही अपना मतदान देंगे ताकि हमारा वोट फालतू नहीं जाये।
ज्ञातव्य है कि पिछले ही चुनाव 2003 में जब कांग्रेस और भाजपा ने जोरदार ढंग से चुनाव लड़ा था तब कांग्रेस के निर्दलीय प्रत्याशी जसपाल सिंह अरोरा को बहुत ही कम मत प्राप्त हुए थे। जबकि ऊपरी रुप से समझा जा रहा था कि कांग्रेस प्रत्याशी का जबर्दस्त विरोध है और भाजपा में भी हल्की-फुल्की विरोध वाली बात है इसका बड़ा लाभ निर्दलीय प्रत्याशी को भी मिलेगा। लेकिन मत पेटियाँ खुलने के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि मतदाता बहुत समझदार है और जो जीत रहा होता है वह उसे ही अपना मत देकर मजबूत करता और यह अहसास भी कराता है कि हमने सहयोग दिया। हालांकि यह बात मुस्लिम मतदाताओं के लिये ही कही ही जाती है लेकिन जिस प्रकार से मतदात के परिणाम आते हैं उससे लगता है कि बहुतायत में हर धर्म जाति के मतदाता अपने मत का उपयोग करते हैं और जीत रहे व्यक्ति को ही मतदान करते हैं। सीहोर में अव्वल तो किसी के लिये भी यह कहना गलत होगा कि वह जीत रहा है या हार रहा है क्योंकि आज की स्थिति में मतदाता मौन होता जा रहा है और वह सारे प्रत्याशियों का स्वागत भी कर रहा है लेकिन निर्णय उसने अपने मन में बना लिया है। यह निर्णय अब आगामी पाँच दिनों में पूर्णत: अंतिम रुप से तय भी हो जायेगा। मतदाता मौन पर वो चुनेगा कौन यह कहना अभी मुश्किल है। हालांकि विरोधी वोट का लाभ उठाने जुटी कांग्रेस और जनशक्ति में कौन भारी है इस कहने की आवश्यकता नहीं है लेकिन भाजपा की पूर्ववर्ती विजयी श्रृंखला के होते हुए निर्णय क्या होगा, अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
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