सीहोर 18 फरवरी (फुरसत)। गरीबों को उचित मूल्य की दुकानों से मिलने वाला केरोसिन तेल खाद्य अधिकारी और उचित मूल्य दुकानों और फ्रीसेल के नाम जमाखोरों की मिली भगत से शनै:-शनै: उनकी पहुँच से दूर जाने लगा है और उपभोक्ताओं को तरह-तरह के बहाने बनाकर उपभोक्ता भंडारों के संचालक उन्हे टरकाने लगे हैं। आज गरीब चूल्हा जलाने के लिये बूंद-बूंद केरोसिन के लिये भटकने को मजबूर होने लगा है।
उपभोक्ता भंडारों पर जो केरोसिन आबंटित होता है उसका लाभ गरीबों को कम और जमाखोरों को यादा होता है। निर्धारित दिन जिस दिन केरोसिन बांटा जाता है उस दिन केरोसिन के लिये भीड़ भाड़ और डब्बों की लंबी-लंबी कतारें सहज रुप से देखी जा सकती है। पहले केरोसिन की प्राप्ति के लिये झगड़ा और मारामारी आम हो चुकी है।
शासन प्रत्येक उपभोक्ता भंडारों पर सभी प्रकार के राशन कार्डों पर 4 लीटर प्रति कार्ड के हिसाब से केरोसिन का आवंटन करता है लेकिन दुकान संचालक अपनी मनमर्जी से कार्ड धारियों को केरोसिन उपलब्ध कराता है और यदि कोई उपभोक्ता आपत्ति दर्ज कराता है तो उसे दुकान संचालक और उसके कर्मचारियों के अभद्र व्यवहार से रुबरु होना पड़ता है। कहने का तात्पर्य यही है कि सीहोर नगरीय क्षेत्र में स्थित शासकिय उचित मूल्य की दुकानों पर ही तेल आवंटन में भेदभाव करता जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी संबंधित विभाग को नहीं हो उन्हे भी इन स्थितियों की पूरी जानकारी है। बावजूद इसके मनमानी कर रहे इन उपभोक्ता भंडारों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। इसका खामियाजा गरीब उपभोक्ताओं को केरोसिन से वंचित होकर उठाना पड़ रहा है।
शासन के आदेशानुसार अभी तक सफेद, पीले और नीले राशन कार्डों पर प्रतिकार्ड 4 लीटर केरोसिन दिये जाने की व्यवस्था थी और शहर भर की शासकिय उचित मूल्य दुकानों से यह वितरित भी किया जा रहा था लेकिन इस माह से एपीएल और वीपीएल कार्डधारियों को 4 लीटर और सफेद कार्ड धारियों को मात्र ढाई लीटर तेल उपलब्ध कराया जा रहा है जबकि सरकार से सीहोर नगरीय क्षेत्र के लिये पुरानी व्यवस्था अनुसार ही कोटा उपलब्ध कराया गया है। फिर ऐसी कौन-सी बात हो गई कि केरोसिन वितरण में उपभोक्ताओं के बीच इतना अधिक अंतर कर दिया गया है।
खाद्य अधिकारियों की लापरवाही संचालकों से सांठगांठ से केरोसिन की कालाबाजारी से लाखों रुपये की चपत सीहोर शहर में प्रतिमाह लगाई जा रही है। खाद्य विभाग की अफलातूनी का ही नमूना है कि केरोसिन के साथ-साथ शासकिय उचित मूल्य की दुकानों पर आने वाला निबाला भी उनके मुँह से छीनकर भारी कीमत लेकर जमा खोर व्यापारियों तक पहुँचा दिया। नीला केरोसिन राशन कार्डधारियों को 10 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मुहैया कराया जाता है जबकि यही नीला केरोसिन खुले आम 20 से 25 प्रति लीटर के हिसाब से ब्लेक में बिकता रहता है। जब नीला केरोसिन कार्डधारियों के लिये है तो इस नीले केरोसिन का उपयोग होटल व्यवसायी कैसे कर रहे हैं यह जांच का विषय है कि आखिर यह नीला केरोसिन उन तक बडी मात्रा में पहुँचता कैसे है। sehore fursat
उपभोक्ता भंडारों पर जो केरोसिन आबंटित होता है उसका लाभ गरीबों को कम और जमाखोरों को यादा होता है। निर्धारित दिन जिस दिन केरोसिन बांटा जाता है उस दिन केरोसिन के लिये भीड़ भाड़ और डब्बों की लंबी-लंबी कतारें सहज रुप से देखी जा सकती है। पहले केरोसिन की प्राप्ति के लिये झगड़ा और मारामारी आम हो चुकी है।
शासन प्रत्येक उपभोक्ता भंडारों पर सभी प्रकार के राशन कार्डों पर 4 लीटर प्रति कार्ड के हिसाब से केरोसिन का आवंटन करता है लेकिन दुकान संचालक अपनी मनमर्जी से कार्ड धारियों को केरोसिन उपलब्ध कराता है और यदि कोई उपभोक्ता आपत्ति दर्ज कराता है तो उसे दुकान संचालक और उसके कर्मचारियों के अभद्र व्यवहार से रुबरु होना पड़ता है। कहने का तात्पर्य यही है कि सीहोर नगरीय क्षेत्र में स्थित शासकिय उचित मूल्य की दुकानों पर ही तेल आवंटन में भेदभाव करता जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी संबंधित विभाग को नहीं हो उन्हे भी इन स्थितियों की पूरी जानकारी है। बावजूद इसके मनमानी कर रहे इन उपभोक्ता भंडारों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। इसका खामियाजा गरीब उपभोक्ताओं को केरोसिन से वंचित होकर उठाना पड़ रहा है।
शासन के आदेशानुसार अभी तक सफेद, पीले और नीले राशन कार्डों पर प्रतिकार्ड 4 लीटर केरोसिन दिये जाने की व्यवस्था थी और शहर भर की शासकिय उचित मूल्य दुकानों से यह वितरित भी किया जा रहा था लेकिन इस माह से एपीएल और वीपीएल कार्डधारियों को 4 लीटर और सफेद कार्ड धारियों को मात्र ढाई लीटर तेल उपलब्ध कराया जा रहा है जबकि सरकार से सीहोर नगरीय क्षेत्र के लिये पुरानी व्यवस्था अनुसार ही कोटा उपलब्ध कराया गया है। फिर ऐसी कौन-सी बात हो गई कि केरोसिन वितरण में उपभोक्ताओं के बीच इतना अधिक अंतर कर दिया गया है।
खाद्य अधिकारियों की लापरवाही संचालकों से सांठगांठ से केरोसिन की कालाबाजारी से लाखों रुपये की चपत सीहोर शहर में प्रतिमाह लगाई जा रही है। खाद्य विभाग की अफलातूनी का ही नमूना है कि केरोसिन के साथ-साथ शासकिय उचित मूल्य की दुकानों पर आने वाला निबाला भी उनके मुँह से छीनकर भारी कीमत लेकर जमा खोर व्यापारियों तक पहुँचा दिया। नीला केरोसिन राशन कार्डधारियों को 10 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मुहैया कराया जाता है जबकि यही नीला केरोसिन खुले आम 20 से 25 प्रति लीटर के हिसाब से ब्लेक में बिकता रहता है। जब नीला केरोसिन कार्डधारियों के लिये है तो इस नीले केरोसिन का उपयोग होटल व्यवसायी कैसे कर रहे हैं यह जांच का विषय है कि आखिर यह नीला केरोसिन उन तक बडी मात्रा में पहुँचता कैसे है। sehore fursat