Monday, October 6, 2008

गरबा महोत्सव में संदलपुर के दल ने दर्शकों का मन मोहा

सीहोर 5 अक्टूबर (नि.सं.)। स्वामी विवेकानंद यूथ क्लब द्वारा नवरात्री पर्व के अन्तर्गत गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी मानस भवन में गरबा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसका शुभारंभ माँ अम्बे के चित्र के सामने कांग्रेस नेता श्रीराजमल सेठी, पत्रकार नरेन्द्र गंगवाल, सुशील संचेती, रऊफ लाला, कपड़ा व्यापारी संघ के संरक्षक रविन्द्र रांका, युवा कांग्रेस नेता घनश्याम जांगड़ा, प्रदेश युवा कांग्रेस के सचिव एवं क्लब अध्यक्ष हरपाल ठाकुर, पत्रकार अबरार अली ने दीप प्रवलित कर रंगारंग गरबा प्रति. का शुभारंभ किया।
उक्त प्रतियोगिता में संदलपुर एवं आष्टा के गरबा दल ने रंगारंग गरबा प्रस्तुत कर एक और जहाँ माता की भक्ति की वहीं रंग बिरंगी राजस्थानी एवं गुजराती गरबा ड्रेस तथा गरबा की प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया। गरबा प्रति. सम्पन्न होने के बाद पुरुस्कारों की घोषणा हुई। जिसमें संदलपुर के प्रसिध्द दल को युवा नेता घनश्याम जांगड़ा, धर्मेन्द्र गौतम, ग्रीन फील्ड हायर सेकेण्डरी स्कूल के सौजन्य से 11111 रुपये की राशि भेंट की। द्वितीय पुरुस्कार संदलपुर की ही द्वितीय टीम को विश्राम सिंह ठाकुर ने सौजन्य भेंट 5555 रुपये का नगद पुरुस्कार भेंट की। तृतीय पुरुस्कार विजेन्द्र ठाकुर एसीसी सीमेंट की और से 3333 रुपये व ट्राफी प्रदान की। उक्त गरबा प्रति. में गरबा दल के अलावा आष्टा की दो उभरती प्रतिभाओं वैभव कल्याणी एवं लविना ने शानदार प्रस्तुति दी। इसके पश्चात शास्त्रीय संगीत पर दिव्या उपाध्याय ने शानदार प्रस्तुति प्रस्तुत कर दर्शकों का वाहवाही लूटी। कार्यक्रम समापन पर मुख्य अतिथि नगर निरीक्षक हनुमंत सिंह, पत्रकार सुधीर पाठक, प्रकाश पोरवाल, नरेन्द्र गंगवाल, संजय जैन, सुशील संचेती, बाबु पांचाल आदि का विवेकानंद यूथ क्लब की और से अध्यक्ष रोहित बेदमूथा, जितेन्द्र शोभाखेड़ी, अमजद पठान, पुनीत तिवारी आदि ने स्वागत किया। कार्यक्रम संचालन अमित तिवारी कपड़ा व्यापारी संघ अध्यक्ष ने किया।

करंट से एक मृत एक घायल, कुएं में डूबने से मृत्यु

आष्टा 5 अक्टूबर (नि.प्र.) कल पारदीखेड़ी निवासी दिनेश आत्मज श्यामलाल की कुंए में डूबसे मृत्यु हो गई उसका शब ग्राम के तालाब वाले कुएं में मिला।

मारुती की टक्कर से दो घायल
आष्टा 5 अक्टूबर। देवास से माताजी के दर्शन कर सीहोर का एक परिवार अपनी मारुति क्रमांक एमपी 04 बीए 2614 में देवास से सीहोर आ रहे थे तभी विपरीत दिशा से आ रही पगारिया घाटी पर एक मोटर साईकिल एमपी 37 बीए 0321 को उक्त मारुती से टक्कर हो गई। जिसमें मोटर साईकिल सवार उमराव सिंह निवासी बड़लिया बरामद एवं लखन घायल हो गये। इन्हे इलाज के लिये भर्ती किया है।

करंट से एक मृत एक घायल

आष्टा 5 अक्टूबर (नि.सं.)। आज शाम को ग्राम भटोनी में तेज हवा के साथ पानी बरसा। तेज हवाएं चलने के कारण करंट फैल गया। विद्युत तार में करंट फैलने से खेत से आ रही एक महिला सुमन बाई पत्नि स्व. बापूलाल परमार उम्र 55 वर्ष ग्राम भटोनी की करंट से मृत्यु हो गई। इसे बचाने गये एक युवक कांतिलाल पुत्र दिलीप सिंह उम्र 20 वर्ष गंभीर रुप से घायल हो गया जो आष्टा में इलाज के लिये भर्ती है।

महिषासुर मर्दिनी माता के कई चमत्कार हैं...

जावर 5 अक्टूबर (नि.प्र.)। नगर के मध्य भाग को रेखांकित करने वाले मुख्य बाजार में स्थित मां महिषासुर मर्दिनी का अद्भुत ऐसा चमत्कारिक मंदिर नवरात्री में जनआस्थाओं तथा श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। नवरात्रि में यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है तथा सुसाित माता रानी का सच्चा दरबार विशेष रूप से श्रृगांरिक कर, विशेष साा आकर्षण का केन्द्र बनी रहती है। मन में मुरादे, आस्था की ज्योति लेकर जो भी श्रद्धालू माता के दरबार में नतमस्तक होता है मां महिषासुर मर्दिनी उनकी मनोकामनाओं की पूर्ण करती है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो माता का अद्भुत इतिहास रोचक तथ्यों तथा अद्भुत चमत्कारो की क्विदंतियों से पटा पड़ा है। दिन में तीन रूपों को धारण करने वाली माता जी की प्रतिमा स्वयं अपनी भक्ति का बखान करती है। विशेष कलाकृति से निर्मित मंदिर माता के दरबार का गुणगान स्वयं ही करता है।
ऐसा कहा जाता है कि जहां पर आज जावर नगर की संरचना है यहां पर घना जंगल हुआ करता था पेड़ों की झुरमुट तथा जंगली जानवरों का भय इस भू-भाग की विशेषता थी अनेकानेक वर्षो पूर्व सेंधव समाज के लोग बैलगाड़ियों से राहगीरों की तरह यहां से गूजरे तो रात्रि का अधिक समय होने के कारण यहां पर रात्रि विश्राम के लिये रुके ये मध्यरात्रि को सेंधव समाज के इस काफिले के पटेल की स्वप् में माता के दर्शन दिये यहां पर मंदिर का निर्माण करो तथा यहां पर निवास कर गांव बस लो सुबह जब यह बात उन्होंने अपने काफिले के साथियों को बताई तो सभी ने यहां पर रुककर गांव बयाने का निर्णय लिया तथा जावर नगर यहां पर बस गया पेड़ों के झुरमुट के बीच से माता महिषासुर मर्दिनी की अदभुत तथा चमत्कारिक प्रतिमा भी वहां से मिली थी मंदिर का निर्माण हुआ तथा खुदाई में मिले पत्थरों की नक्काशी तथा पाषाण कला के अवशेष इस मंदिर के पौराणिक होने के किस्से स्वयं बयां कर रहे थे। तभी से जावर नगर बस गया तथा धीरे-धीरे यहां माता के भक्त आकर निवासित होने लगे आज वर्तमान समय में माँ महिषासुर मर्दिनी का भव्य मंदिर यहां पर बना दिया गया है कलात्मक मंदिर भव्य तथा आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। मंदिर में उमड़ती भक्तों की भीड़ तथा पूरी होती मनोकामनाऐं भक्तों को स्वयं माता के दरबार में आकर्षित कर लेती है। एक वरिष्ठ साहित्यकार के मतानुसार चीन के धर्मगुरु फाययान जब भारत यात्रा पर आये थे तो उन्होंने अपनी भारत माता की विर्णत किताब में जावर नगर के प्राचीन इतिहास का वर्णन भी किया है क्योंकि वह भी दो दिवस तक जावर में रुके थे तथा यहां के प्राचीन मंदिरों तथा नगर के भौगोलिक वातावरण का अध्ययन भी किया गया।
खैर यहां मंदिर में स्थित मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर की अद्भुत प्रतिमा दिन में तीन, पहर में तीन रूपों को धारण करती है सुबह मां का वाल्यरूप, दोपहर में रोद्र तथा ढलती शाम को सौम्य रूप के दर्शन होते है। नवरात्रि में माता के विशेष श्रृंगार किये जाते है तथा आकर्षक पोशाकों तथा वेशभूषा से श्रृंगारित किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर वर्षो पूर्व ग्राम कुंडिया के दरबार प्रतिवर्ष पाड़े की बलि चढ़ाते थे परन्तु समय के परिवर्तन के बाद उन्होंने यह बलि बंद कर दी आज भी नवरात्रि की नवमी को मध्य रात्रि में अनेक बकरों की बलि यहां पर चढ़ाकर लोग अपनी-अपनी मन्नते र्पूण् करते है। इस दिन प्रशासन विशेष रूप से चौकस रहकर बलि प्रथा के कार्य को पूर्ण करवाता है।
जावर नगर तथा क्षेत्र पूर्णतया माता के चमत्कार तथा शक्ति पर पूर्ण विश्वास करते है माता रानी नगर तथा क्षेत्र की स्वयं रक्षा करते है। प्राकृतिक सक्कट हो या अवर्षा की स्थिति तथा कोई भी आकस्मिक संकट हो लोग मां महिषासुर मर्दिनी की चरणों में भावनात्मक समर्पण अर्पित कर आस्था के पुष्प चढ़ातेत है तो संकट का त्वरित निराकरण हो जाता है तथा मां अपने चमत्कार से प्रत्येक संकट हरण कर लेती है। माता के अद्भुत चमत्कारों के सैकड़ों किस्से आज भी नगर में प्रचलित है।
खैर नवरात्रि में माता के दरबार में भक्तों की काफी भीड़ है तथा लोग मां के दर्शनों का लाभ उठाकर मन्नते मानते है तथा श्रद्धा पुष्प समर्पित कर माता की प्रतिदिन की आरती में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है। जावर नगर यूं भी आस्था की नगरी है हमेशा माता के दरबार में कन्या भोजन दीपदान सहित अनेक आयोजन समय-सय पर होते रहते है।

बहादुर शाह जफर के जमाने का ईद उल जुहा

भारत के अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के राज्यकाल में बकरीद के अवसर पर गाय, भैंस, बैल और बछड़ों की कुर्बानी कानूनी रूप से प्रतिबन्धित थी और उन दिनों अगर कोई व्यक्ति इनकी जिबह करता हुआ पाया जाता था तो उसे तोपसे उड़ा देने का प्रावधान था-इस तथ्य से क्या आप परिचित हैं ? अंग्रेजों द्वारा प्रकाशित 'प्रेस लिस्ट ऑफ म्यूटिनी पेपर्स' में ही नहीं, बल्कि 'तारीखे उरुजे-सल्तनते-इंग्लीशिया'- जैसे विश्वसनीय इतिहास-ग्रंथों में भी बार-बार इस बात का उल्लेख आता है कि बहादुरशाह के शासनकाल में बकरीद के आस-पास गो हत्या करने वाले व्यक्तियों को बगैर मुकदमा चलाये मृत्युदण्ड दिया जाता था। इस दिशा में इन पुस्तकों में उद्धत आदेश-निर्देश इस बात के सूचक हैं कि बादशाह गोवध के प्रति हिन्दू जनमानस की अदम्य निष्ठा का कितना सम्मान करते थे।
'तारीखे-उरुजे-सल्तनते इंग्लीशिया' नामक ग्रन्थ के पृष्ठ 688 पर स्पष्ट रूप से अंकित है कि सुप्रसिद्ध विद्वान् मौलाना फजले-हक खैराबादी ने बहादुरशाह के प्रशासन के लिये जो संविधान तैयार तैयार किया था, उसकी प्रथम धारा यही थी कि बादशाह के राज्य में कहीं भी गाय जिबह न की जाय। इसी तरह उस काल के सुप्रसिद्ध खबरनवीस जीवनलाल ने अपनी बहुचर्चित डायरी में दिनांक 28 जुलाई सन् 1857 ई. के अन्तर्गत लिखा था-बादशाह ने हुक्म दिया कि जनरल तथा फौज के दूसरे आला अफसरान के पास हिदायती खत भेजे जायं कि ईद के मौके पर कोई गाय जिबह न की जाय और खबरदार किया कि अगर कोई मुसलमान ऐसा करते हुए पाया जाता है तो उसे तोप से उड़ा दिया जाय। यही नहीं, किसी मुसलमान ने गायकी कुर्बानी देने के लिये अगर किसी को कोई मशवरा दिया तो उसे भी सजा-ए-मौत दी जाय।
जीवनलाल ने अपनी डायरी में आगे लिखा था-दरबार में मौजूद हकीम एहसानुल्लाह ने जब इस हुक्म की मुखालिफत करते हुए सलाह दी कि उसे शाया करने के पहले उसके बारे में मौलवी-मुल्लाओं से सलाह-मशवरा करना जरूरी है तो बादशाह को बहुत गुस्सा आ गया और दरबार खत्म करते हुए वे फौरन अपने महल में चले गये।
'प्रेस लिस्ट ऑफ म्यूटिनी पेपर्स' 3 एस (31)-के अनुसार बादशाह के आदेश का पालन करते हुए उसी दिन अर्थात् दिनांक 28 जुलाई सन् 1857 ई. को सेनापति ने घोषणा की थी-बहादुर शहर कोतवाल को मालूम हो कि शाहंशाह के हुक्म के मुताबिक हर खासो आम को इत्तिला दी जाती है कि कोई भी मुसलमान शहर में ईद-उल-जुहा के अवसर पर गायकी कुर्बानी हरगिज न दें और अगर कोई इस हुक्म की उदूली करके गाय की जिबह करता हुआ पाया जाएगा तो उसे सजा-ए-मौत भुगतनी पड़ेगी।
इसी दिन जारी की गयी एक दूसरी घोषणा में कहा गया था-'खल्क खुदाका, मुल्क बादशाह का, हुक्म फौज के आला अफसर का'-जो कोई इस मौसम में बकरीद या उसके आगे-पीछे गाय, बैल, बछड़ा, बछड़ी, भैंस या भैंसा छिपाकर अपनी घर में जिबह और कुर्बानी करेगा, वह आदमी हुजूर शाहगंज का जानी दुश्मन समझा जायगा ओर उसको मौत की सजा होगी तथा जो कोई किसी पर इस बात की तोहमत एवं झूठा इल्जाम लगायेगा तो हुजूर की तरफ से उसकी जांच की जायगी, यानी अगर तोहमत का जुर्म साबित होगा तो उसको सजा होगी, नहीं तो जिसने उसकी तोहमत लगायी होगी उसको सजा मिलेगी और इसमें जिसका जुर्म एवं कुसूर साबित होगा, वह बेशक तोप से बांधकर उड़वा दिया जाएगा। ('प्रेस लिस्ट ऑफ म्यूटिनी पेपर्स',3 एस (31))
उसी पृष्ठ पर अन्यत्र अंकित है 'खल्क खुदाका, मुल्क बादशाह का, हुक्म फौज के आला अफसर का'-जो कोई ईद के आगे-पीछे, दिन में या रात में अथवा चुराकर घर में गाय, बैल, बछड़ा, बछड़ी, भैंस या भैंसा जिबह करेगा, वह बादशाह का दुश्मन होगा और तोपसे उड़ा दिया जायगा और जो शख्स झूठ कहेगा कि किसी ने चुराकर जिबह किया है तो उसकी रोकथाम की जायगी।
सेनापति द्वारा दिये गये इस आदेश का पालर करते हुए तत्कालीन शहर कोतवाल मुबारकशाह खां ने नगर भर में उसका ढिंढोरा पिटवा दिया था। उसके इस कृत्य पर सेनापति ने उसे पुन: लिखा था-बहादुर मुबारकशाह खां शहर कोतवाली को मालूम हो-क्योंकि तुमने कल शाही खत मिलते ही पूरे शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया था और गाय की जिबह तथा कुर्बानी पर बंदिश लगा दी थी, इससे अब तुम्हें लिखा जाता है कि शहर के फाटकों पर इस तरह का मुकम्मल इंतजाम करो कि कोई भी गाय का व्यापारी आज से बकरीद के तीन दिन तक शहर में गाय या भैंस बेचने के लिये न ला सके और जिन मुसलमानों के घरों में गाय पली हों, उन्हें लेकर कोतवाली में बंधवा दिया जाय और गायों की पूरी हिफाजत की जाय, अगर कोई आदमी खुल्लमखुल्ला या छिपाकर गायों की अपने घरों में कुर्बानी करेगा तो यह बात उसकी मौत की वजह बनेगी।
ईद-उल-जुहा के अवसर पर गो वध के बारे में इस तरह का इंतजाम हो कि गाय बिकने के लिये भी शहर में न जाने पाये और पली हुई गायों का भी जिबह न हो। कोतवाली की ओर से इस बारे में जितनी भी कोशिशें की जायेंगी, वे हमारी खुशी की वजह बनेंगी, ज्यादा लिखने की जरुरत नहीं। ('प्रेस लिस्ट ऑफ म्यूटिनी पेपर्स, 61, संख्या 245')
इस पत्र के उत्तर में शहर कोतवाल ने हजारत जहांपनाह की सेवा में निवेदन करते हुए लिखा था-शहंशाहे-आलम की खिदमत में अर्ज है कि उन मुसलमानों के लिये जिनके घरो में गाय बंधी हैं, जो यह हुक्म दिया गया है कि उन्हें मंगवाकर ईद-उल-जुहा के खत्म होने तक कोतवाली में बंधवा दिया जाय, तो कोतवाली में इतनी जगह नहीं है कि चालीस-पचास गायें भी वहां खड़ी हो सकें। अगर शहर के सभी मुसलमानों के घरों की पली हुई गायें मंगायी जायेंगी तो उनके लिये जगह नहीं हो पायेगी। इस काम के लिये कोई बहुत बड़ी जगह या हाता होना चाहिये कि वहां वे छ:-सात दिनों तक बंद रहें, तो इस नमकख्वार की जानकारी में कोई ऐसी जगह नहीं है। गायों का मंगाया जाना उनके मालिकान के लिये भी ठीक या फायदेमंद नहीं साबित होगा, इसलिये कि अकलमंद और बेवकूद सभी तरह के लोग होते हैं। इसमें गाय के मालिकों की बगावत भी डर है और कहीं किसी दूसरी तरह की बात खड़ी न हो जाय। इसलिये अगर हुक्म हो तो थानेदार अपने इलाके के मुसलमानों से जिन-जिन लोगों के पाय गायें हों मुचलके पर ले लें। जैसा हुक्म होगा वैसा किया जायगा। परवरदिगार खुदा आप पर हमेशा मेहरबान रहे ओर सूरज-जैसी आपकी चमक में हरदम बढ़ोतरी करता रहे-फिदवी सैयिद मुबारकशाह खां कोतवाली, 7 जिलाहि अर्थात् दिनांक 26 जुलाई सन् 1857 ई. ('प्रेस लिस्ट ऑफ म्यूटिनी पेपर्स', 3 एस, संख्या 44)
शहर कोतवाल के इस पत्र के संदर्भ में उसे हिदायत देते हुए बादशाह की ओर से उसे सूचित किया गया था-उन मुसलमानों के, जिनके घरों में गायें हों, नाम लिख लिये जायं और फिर उनसे यह मुचलके लिखवा लिये जायें कि वे न खुल्लमखुल्ला ओर न चोरी से गोवध करेंगे। जिन घरों में गाये बंधी हों, वहां उसी तरह बंधी रहें। उन्हें तीन घरों में गाये बंधी हों, वहां उसी तरह बंधी रहें। उन्हें तीन दिन तक दाना-चारा उसी जगह पर खिलाया जाय और उन्हें चरने के लिये हरगिज न छोड़ा जाय। उनके मालिकान को अच्छी तरह यह बात समझ लेनी चाहिये कि तीन दिन बाद अगर एक भी गाय गायब मिली या अगर किसी ने छिपाकर उनकी कुर्बानी की तो वह सजा का हकदार होगा और जान से मार डाला जायगा। इस बात में बहुत खबरदार रहने की जरुरत है। क्योंकि कोतवाली में बंधवाने या उनके लिये अलग किसी जगह के इंतजाम करने की अब कोई जरुरत नहीं-दिनांक 26 जुलाई सन् 1857 ई.।
टिप्पणी-सभी थानेदारों को हिदायत दी गयी-दिनांक 30 जुलाई सन् 1857 ई.। स्मरणीय है कि यह सब पत्र-व्यहवहार मात्र एक दिन की अवधि सीमा में किया गया था। आज के युग में जब संचार-व्यवस्था लाख गुनी अच्छी हो गयी है, किसी भी सरकारी आदेश-निर्देश सम्बंधी उत्तर-प्रत्युत्तर में महीनों का समय लग जाता है और तब भी पूरी तरह उसका कार्यान्वयन नहीं हो पाता।
बहादुरशाह का राज्य धर्मनिरपेक्ष नहीं था, उसके आधारस्तम्भ हमेशा शरीयत के कानून रहे। इस तथ्य के बावजूद हिन्दू-विश्वास और मान्यताओं की रक्षा करने में वह जिस ईमानदारी के साथ निरन्तर सन्नद्ध रहा, उसकी आज के कथित धर्मनिरपेक्ष राजनेता कल्पना भी नहीं कर सकते। आज देश में हर रोज हजारों गाय और भैंसों की हत्या की जाती है, परंतु सरकार के बड़े से बड़े मंत्री में भी यह हिम्मत नहीं कि वह उसके विरोध में कोई कदम उठा सके।
संकीर्ण असाम्प्रदायिकता की अपेक्षा विराट् साम्पदायिकता अपने देश जन की भावनाओं का कितना ख्याल रख सकती है, यह बहादुरशाह के इन फरमानों से स्वत: सिद्ध है।