सीहोर 9 जनवरी । स्वतंत्रता संग्राम के गौरवमयी इतिहास में पूरे मध्य भारत का सबसे समृध्द इतिहास यदि किसी क्षेत्र का है तो वह सीहोर है। यहाँ अंग्रेज सैनिकों की छावनी थी। सन् 1857 के इतिहास के पन्नों में सीहोर में हुई सैनिक क्रांति दर्ज तो है लेकिन आज तक इसे स्थानीय स्तर पर ही शासन द्वारा महत्व नहीं मिल सका। अनेक ऐतिहासिक पुस्तकों में सीहोर के इतिहास की दास्तां लिखी है। सिपाही बहादुर सरकार के गठन से लेकर उसकेजाबांज 356 सैनिकों के जनरल ह्यूरोज द्वारा कराये गये सामुहिक हत्याकाण्ड तक का घटनाक्रम हम कैसे भूल जायें.....अपने इतिहास से सीहोर अनजान रह गया।
इन शहीदों की समाधियाँ जीर्ण-शीर्ण शेष रह गई हैं जिसके आसपास जमीन पर कब्जा कर लोग अपनी खेती बाड़ी कर रहे हैं। लेकिन इनकी तरफ मध्य प्रदेश शासन और स्थानीय जिला प्रशासन व पुरातत्व विभाग का कोई ध्यान नहीं है।
देश की स्वतंत्रता के 60 साल बीत जाने के बाद भी सीहोर का गौरवमयी स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास धूल की पर्तो में दबा हुआ है। हम कैसे भूल जायें कि सीहोर की वीर धरती पर भारत का पहला स्वतंत्रता आंदोलन सबसे दमदारी के साथ लड़ा गया था। हम कैसे भुला दें कि 6 अगस्त 1857 से लेकर 14 जनवरी 1858 तक पूरे 6 माह हम पूरे सीहोरवासी देश में एकमात्र स्वतंत्र थे इस गौरव को हम कैसे भूल सकते हैं....? हम कैसे भूल जायें कि यहाँ अंग्रेजों की छावनी में ही भारतीयों ने सारे अंग्रेजों को खदेड़कर भगा दिया था और सीहोर आजाद करा लिया था....? हम कैसे भूल जायें कि महावीर कोठ नामक क्रांतिकारी के नाम पर सीहोर में छ: माह तक महावीर कौंसिल के नाम से शासन हुआ और अंग्रेजों के झण्डे को उतारकर निशाने मोहम्मदी व निशाने महावीरी नामक दो झण्डे पूरे 6 माह तक हर दिन स्वतंत्रता की गौरवगाथा गाते हुए लहराते रहे....।
हम कैसे भूल जायें कि सीहोर में सिपाही बहादुर सरकार महावीर कौंसिल के संस्थापकों ने अंग्रेजों को मार-मारकर खदेड दिया था, मुगल सल्तनत व अंग्रेजों के झण्डे उखाड़ दिये थे...उन वीरों का स्मरण करना क्या आज भारतीयों का, हमारा कर्तव्य नहीं है।
14 जनवरी 1858 के कुछ दिनों पूर्व जनरल ह्यूरोज (जिसने झांसी की रानी लक्ष्मी से युध्द किया था) ने सीहोर आकर यहाँ की सिपाही बहादुर सरकार के वीर सिपाहियों को चारों तरफ घेर लिया था। उन्हे भोपाल की सिकन्दर जहाँ बेगम (खूनी बेगम)की सहायता से बंदी बना लिया गया और अंतत: उन्हे कैद में डाल दिया गया। फिर मांफी मांगने को कहा गया....।
लेकिन किसी भी वीर क्रांतिकारी ने अंग्रेजो से माफी नहीं मांगी। यह क्रांतिकारी कोई 3-4 या 10-12 नहीं थे वरन पूरे 356 से अधिक थे जिन्होने एक साथ कह दिया कि चाहे इस भारत माँ की गोद में सो जायेंगे लेकिन माफी नहीं मागेंगे....अपने धर्म से विमुख नहीं होंगे....(मांस लगे कारतूसों के खिलाफ) और क्रांतिकारियों ने सामुहिक रुप से माफी लिखकर नहीं मांगी अंतत: मजबूर होकर ह्यूरोज ने इतने अधिक लोगों को एक साथ मारने का फैसला करते हुए 14 जनवरी 1858 को 356 क्रांतिकारियों को गोलियों से भुनवा दिया.....। पूरे भारत में इससे बड़ा हत्याकाण्ड कभी नहीं घटा था।
कहा जाता है कि कुछ लोगों को सामुहिक रुप से फांसी भी दी गई क्योंकि ह्यूरोज को फांसी पर लटके क्रांतिकारियों के शव देखने में मजा आता था। एक साथ 356 सैनिकों के शवों का अंतिम संस्कार सीहोर की जनता ने फिर यहीं सीवन नदी के किनारे अलग-अलग स्थान पर करते हुए उनकी समाधियाँ बना दी। यही समाधियाँ आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में स्थित हैं।
उन वीर सपूतों की शहादत को भूल गया है सीहोर। आजादी के बाद आये शासन ने स्वतंत्रता संग्राम के इन वीरों को सम्मान देने, उनका स्मरण करने की जहमत नहीं उठाई। हालांकि मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग, स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा सिपाही बहादुर के नाम से सीहोर की आजादी का स्वर्णिम इतिहास प्रकाशित कराया गया है लेकिन इसके बावजूद शासन ने इस तरफ गंभीरता से ध्यान नहीं दिया।
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