भारत माँ हम सभी भारतीयों की पूज्यनीय है। गर ऐसा ना होता तो हम अंग्रेजों के शासन में भी रह सकते थे लेकिन हमारी भारत माता परतंत्र हो यह हमें गवारा नहीं था...हमारा देश स्वतंत्र हो इसके लिये भारत माता के लालों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। अपने प्राणों का बलिदान उन्होने भारत माता पर ही तो किया है....माता की गोद में हंसते-हसंते सो जाने का उन्हे जरा मलाल नहीं था....सीना चौड़ा कर गोलियाँ खा लेते थे इसी भारत माता के लिये.....हजारों नहीं लाखों लोग 1857 के महासंग्राम में और फिर 1947 तक शहीद हुए तो सिर्फ इसी भारत माता की स्वतंत्रता के लिये....। जंजीरों में जकड़ी हमारी भारत भूमि स्वतंत्र हो उसे आजाद कराने के लिये भले ही हमें अपना सर्वस्व, अपने प्राण ही क्यों न गंवाने पड़ जाये लेकिन माता की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है ऐसी भावनाएं कूट-कूटकर भरी थी देश के उन लाखों शहीदों में.....।
आज इसी हमारी भारत माता का एक मंदिर का सीहोर में भी निर्माण होना शुरु हो रहा है जिसके के लिये प्रथम चरण के रुप में संस्कार भारती संस्था द्वारा 1857 के स्वातंत्र्य समर में शहीद हुए शहीद स्थलों की मिट्टी संग्रह का कार्यक्रम रखा गया है। सीहोर में न्यायालय परिसर के पीछे स्थित वैशाली नगर के नागरिक इस पुण्य कार्य को करने का सौभाग्य प्राप्त करने जा रहे हैं। इस कार्य से जुड़े सभी पुण्यात्माओं को बारम्बार नमन है।
लेकिन शर्म आनी चाहिऐ सीहोर के उन क थित बुध्दिजीवियो को जो स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए क्रांतिकारियों और अमर शहीदों पर भी अपनी ओछी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे....शर्म आनी चाहिऐ उन लोगों को जो छद्म लाभ के लिये शहीदों को अपना निशाना बनाने में जुट गये हैं...। कहाँ तो हजारों लोगों ने इस बात की परवाह किये बिना, की देश की आजादी में यदि वह शहीद हो भी गये तो क्या उनका नाम होगा या नहीं ? वह समर में कूद गये और सबसे आगे बढ़कर शहीद हुए। और एक आज के वह लोग हैं जो बिना अंगूली कटाये ही शहीद होने के लिये लालायित हैं और उस पर गंदी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे। लेकिन उन्हे यह नहीं मालूम की उनकी यह जरा-सी नादानी उन लाखों शहीदों के प्रति और इस भारत माता के प्रति किया गया जघन्यतम अपराध है।
असल मेरा मुद्दा यह है कि देश की आजादी के बाद उन लाखों ज्ञात-अज्ञात शहीदों की स्मृति में देश भर में जगह-जगह जय स्तंभ स्थापित किये गये थे और मुख्यत: ऐसे स्तंभ शासकिय विद्यालय या महाविद्यालयों के प्रांगण में बनाये गये थे कुछ शहरों में इन्हे प्रमुख चौराहों पर भी बनाया गया है ताकि उन्हे देखकर नई युवा पीढ़ी में राष्ट्रवादी सोच विकसित कर सके। लेकिन सीहोर में इस साल अचानक इस स्तंभ के साथ राजनीति खेलते हुए भोपाल से प्रकाशित एक अखबार ने जानबूझकर बिना किसी ऐतिहासिक साक्ष्य या संदर्भ के यह समाचार प्रकाशित कर दिया कि शा.स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रांगण में 1857 में 100 शहीदों को मार दिया गया था.....। यहीं से इतिहास के साथ खिलवाड़ करने का घिनौना खेल शुरु हुआ और नगर के आम जन को दिगभ्रमित करने का कुत्सित प्रयास किया गया। बात यहीं खत्म नहीं हुई फिर बढ़कर नगर के कुछेक तत्वों द्वारा मौखिक प्रचार के रुप में बताया जाने लगा कि इसी स्थान पर बहुत बड़ी संख्या में लोग शहीद हुए थे। जबकि इसका ना तो कोई प्रमाण है, न उल्लेख है, न पूर्व वर्ष तक इसको लेकर कभी किसी पूर्वज या सीहोर के नागरिकों ने इस संबंध में कोई जानकारी दी ..... लेकिन अब ऐसा झूठा प्रचार किस निजी स्वार्थ के लिये किया और कराया जा रहा है? नगर के बुध्दीजीवियों को यह अच्छी तरह मालूम है कि इतिहास के साथ खिलवाड़ करने की इस परम्परा का सूत्रधार कौन है ? वह लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं। नगर में भारत माता का मंदिर निर्माण होने जा रहा है जिसका भूमि पूजन संस्कार भारती के बेनर तले 26 जनवरी गणतंत्रता दिवस पर किया जायेगा। साथ ही कल 23 जनवरी को चूंकि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती है इसलिये भारत माता के वीर सपूत नेताजी की जयंती का लाभ उठाकर कल सीहोर में हुए शहीदों के शहीद स्थलों से मिट्टी संग्रह का कार्यक्रम भी किया जाना है। इस राष्ट्रीयता से ओतप्रोत कार्यक्रम में मिट्टी का संग्रह उपरोक्त दुष्प्रचार के कारण महाविद्यालय प्रांगण में बने स्तंभ से किया जाने वाला था। यदि ऐसा हो जाता तो निश्चित ही भारत माता के प्रति आस्थावान नगर वासियों के साथ इस प्रकार के दुराग्राही दुष्प्रचारकों द्वारा किया गया यह बड़ा अपराध होता। हे भारत माता इन लोगों को सद्बुध्दी प्रदान करें और सीहोर की इस धरा को नई ऊँचाईयाँ प्रदान करने का आशीर्वाद प्रदान करे।
Tuesday, January 22, 2008
जनार्दन शर्मा काव्यांजलि समारोह संपन्न
सीहोर 21 जनवरी (फुरसत)। तीस बरस तक लगातार शहरवासी किसी ऐसे व्यक्ति की याद को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए कार्यक्रम आयोजित करें जो इस शहर का ही नही है नि:संदेह ऐसा आयोजन अद्भूत और अनोखा है । यह विचार माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अच्युतानंद मिश्र ने यशस्वी जनकवि पं. जनार्दन शर्मा की 30वीं पुण्य तिथि पर स्थानीय ब्ल्यू बर्ड स्कूल के सभागार में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए व्यक्त किए । समारोह में पुलिस महानिरीक्षक पवन जैन को शाल, श्रीफल, सम्मान निधि तथा सम्मान पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया। साथ ही जिले के युवा कवि केशव चौहान चिन्तक को जनार्दन शर्मा स्मृति युवा पुरस्कार से नवाजा गया ।
गत रात शहर के रचनाकारों ने पं. जनार्दन शर्मा को पूरी शिद्दत से याद करते हुए उन्हें काव्याजंलि अर्पित की । गरिमा और सादगी पूर्ण आयोजित इस समारोह में विख्यात समालोचक डा. विजय बहादूर सिंह, माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान भोपाल की निदेशक डा. मंगला अनुजा, स्थानीय विधायक रमेश सक्सेना, पूर्व विधायक एवं आंचलिक पत्रकार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकरलाल साबू विशेष अतिथि के रूप में मौजूद थे ।
जिले की प्रतिष्ठित संस्था प्रज्ञा भारती द्वारा स्व. श्रीमति चन्द्रकातां कुइया स्मृति न्यास तथा श्रीमति जमुना देवी देवी मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी के सहयोग से आयोजित इस 30 वे सुकवि पं. जनार्दन शर्मा स्मृति कार्यक्रम को संबोधित करते हुए क्षैत्रीय विधायक रमेश सक्सेना ने कवि जनार्दन शर्मा का पुण्य स्मरण किया और उनकी याद में विगत 29 वर्षो से लगातार आयोजित किए जाते रहे इस पुण्य स्मरण कार्यक्रम की निरन्तरता को सीहोर नगर की विशिष्ट उपलब्धि बताया
कार्यक्रम में सम्मानित किए गए कवि पवन जैन ने अपनी सशक्त रचनाओं का पाठ किया और श्रोताओं की जी भरकर दाद बटोरी, जनार्दन शर्मा स्मृति युवा पुरूस्कार से सम्मानित युवा कवि केशव चौहान चिन्तक ने भी कार्यक्रम को संबोधित कर स्वरचित व्यंग रचना सुनाकर तालियां बटोरी। अंबादत्त भारतीय ने पं. जनार्दन शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्य पर प्रकाश डाला
आयोजन की शुरूआत में सभी अतिथियों ने ज्ञान दात्री मां सरस्वती देवी की प्रतिमा और सुकवि पं. जनार्दन शर्मा के चित्र पर पुष्प मालायें अर्पित कर ज्ञान दीप प्रज्वलित किया।
ब्लू वर्ड स्कूल की छात्रा कु. जया मेवाड़ा ने सस्वर सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की और कु . सोहनी पालीवाल ने देश भक्ति गीत की सुमधुर प्रस्तुति दी । स्व. जनार्दन शर्मा की गजल का पाठ यूसुफ परवेज सीहोरी ने किया । कार्यक्रम का सफल संचालन बसंत दासवानी ने किया और आभार प्रदर्शन प्रज्ञा भारती के अध्यक्ष जयंत शाह ने किया।
गत रात शहर के रचनाकारों ने पं. जनार्दन शर्मा को पूरी शिद्दत से याद करते हुए उन्हें काव्याजंलि अर्पित की । गरिमा और सादगी पूर्ण आयोजित इस समारोह में विख्यात समालोचक डा. विजय बहादूर सिंह, माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान भोपाल की निदेशक डा. मंगला अनुजा, स्थानीय विधायक रमेश सक्सेना, पूर्व विधायक एवं आंचलिक पत्रकार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकरलाल साबू विशेष अतिथि के रूप में मौजूद थे ।
जिले की प्रतिष्ठित संस्था प्रज्ञा भारती द्वारा स्व. श्रीमति चन्द्रकातां कुइया स्मृति न्यास तथा श्रीमति जमुना देवी देवी मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी के सहयोग से आयोजित इस 30 वे सुकवि पं. जनार्दन शर्मा स्मृति कार्यक्रम को संबोधित करते हुए क्षैत्रीय विधायक रमेश सक्सेना ने कवि जनार्दन शर्मा का पुण्य स्मरण किया और उनकी याद में विगत 29 वर्षो से लगातार आयोजित किए जाते रहे इस पुण्य स्मरण कार्यक्रम की निरन्तरता को सीहोर नगर की विशिष्ट उपलब्धि बताया
कार्यक्रम में सम्मानित किए गए कवि पवन जैन ने अपनी सशक्त रचनाओं का पाठ किया और श्रोताओं की जी भरकर दाद बटोरी, जनार्दन शर्मा स्मृति युवा पुरूस्कार से सम्मानित युवा कवि केशव चौहान चिन्तक ने भी कार्यक्रम को संबोधित कर स्वरचित व्यंग रचना सुनाकर तालियां बटोरी। अंबादत्त भारतीय ने पं. जनार्दन शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्य पर प्रकाश डाला
आयोजन की शुरूआत में सभी अतिथियों ने ज्ञान दात्री मां सरस्वती देवी की प्रतिमा और सुकवि पं. जनार्दन शर्मा के चित्र पर पुष्प मालायें अर्पित कर ज्ञान दीप प्रज्वलित किया।
ब्लू वर्ड स्कूल की छात्रा कु. जया मेवाड़ा ने सस्वर सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की और कु . सोहनी पालीवाल ने देश भक्ति गीत की सुमधुर प्रस्तुति दी । स्व. जनार्दन शर्मा की गजल का पाठ यूसुफ परवेज सीहोरी ने किया । कार्यक्रम का सफल संचालन बसंत दासवानी ने किया और आभार प्रदर्शन प्रज्ञा भारती के अध्यक्ष जयंत शाह ने किया।
ताजियों का विशाल विसर्जन जुलुस निकला
आष्टा 21 जनवरी (फुरसत)। आज आष्टा नगर में मोहर्रम कमेटी जुम्मापुरा एवं काजीपुरा का ताजियों का विशाल विसर्जन जुलुस प्रात: 12 बजे पुराना बस स्टेण्ड से प्रारंभ हुआ जो पुरानी सब्जी मंडी, बड़ा बाजार, सिकन्दर बाजार, गांधी चौक, गल चौराह, बुधवारा, परदेशीपुरा होता हुआ पार्वती नदी पर पहुंचा। यहां पर ताजियों का विसर्जन किया गया । मोहर्रम कमेटी जुम्मापुरा का जुलुस शहजानी मस्जिद पहुंचा इस जुलुस में काजीपुरा का जुलुस शामिल होकर आगे दोनो का जुलुस आगे बड़ा मोहर्रम पर आज ताजियों के निकले विशाल विसर्जन जुलुस में शामिल विभिन्न अखाड़ो के कलाकारों के स्थान-स्थान पर अपनी शानदार कला का अखाड़ों के माध्यम से प्रदर्शन किया विसर्जन जुलुस में अखाडे, बैन्ड, डी.जे. ताशापार्टी ताजिये आदि शामिल थे । विसर्जन जुलुस शाम को पार्वती नदी पर पहुंचा यहां पर ताजियों का विसर्जन किया गया । जुलुस में पुलिस एवं स्थानीय प्रशासन के अधिकारी अधिनस्थों के साथ सुरक्षा व्यवस्था में लगे हुए थे ।
यात्री बस पलटने से चार घायल
सीहोर 21 जनवरी (फुरसत)। श्यामपुर-कुरावर राजमार्ग पर रविवार को एक यात्री बस के अनियंत्रित होकर पलट जाने से चार लोग घायल हो गए वही अन्य सड़क हादसों में तीन लोग घायल हो गए ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अनुबंधित बस क्रं. एमपी-04-एच-9065 रविवार को भोपाल से यात्री लेकर कुरावर की तरफ जा रही थी । बताया जाता है कि बस का चालक वाहन को तेजगति व लापरवाही पूर्वक चलाकर ले जा रहा था कि तभी बस सोठी जोड़ के समीप अनियंत्रित होकर पलट गई। परिणाम स्वरूप इसमें सवार आर.देवचंद आ. भंवरलाल, रामहित शाक्य, ब्रजलाल आ. मंगल प्रसाद, दुर्गा प्रसाद आ. भंवरलाल घायल हो गए जिन्हें प्राथमिक उपचार हेतू श्यामपुर अस्पताल में दाखिल कराया गया। बस चालक घटना के बाद से फरार हो गया। उधर आष्टा थाना क्षैत्र के मेवाड़ा कालोनी निवासी दौलत सिंह रविवार को पैदल रोड क्रास कर रहा था । अदालत के समीप मोटर सायकल क्र.एमपी-09-एनबी-3012 के चालक ने उसे टक्कर मारकर घायल कर दिया। इधर कोतवाली थाना अंतर्गत लसूडिया परिहार वायपास मार्ग पर ग्राम भैसाखेड़ी निवासी महेश मेवाड़ा की मोटर सायकल क्र. एमपी-37-एमबी-3735 में पीछे से अज्ञात सफेद रंग की इण्डिका के चालक ने लापरवाही पूर्वक वाहन चलाकर पीछे से टक्कर मार दी जिससे महेश एवं उसके भाई बृजमोहन घायल हो गये ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अनुबंधित बस क्रं. एमपी-04-एच-9065 रविवार को भोपाल से यात्री लेकर कुरावर की तरफ जा रही थी । बताया जाता है कि बस का चालक वाहन को तेजगति व लापरवाही पूर्वक चलाकर ले जा रहा था कि तभी बस सोठी जोड़ के समीप अनियंत्रित होकर पलट गई। परिणाम स्वरूप इसमें सवार आर.देवचंद आ. भंवरलाल, रामहित शाक्य, ब्रजलाल आ. मंगल प्रसाद, दुर्गा प्रसाद आ. भंवरलाल घायल हो गए जिन्हें प्राथमिक उपचार हेतू श्यामपुर अस्पताल में दाखिल कराया गया। बस चालक घटना के बाद से फरार हो गया। उधर आष्टा थाना क्षैत्र के मेवाड़ा कालोनी निवासी दौलत सिंह रविवार को पैदल रोड क्रास कर रहा था । अदालत के समीप मोटर सायकल क्र.एमपी-09-एनबी-3012 के चालक ने उसे टक्कर मारकर घायल कर दिया। इधर कोतवाली थाना अंतर्गत लसूडिया परिहार वायपास मार्ग पर ग्राम भैसाखेड़ी निवासी महेश मेवाड़ा की मोटर सायकल क्र. एमपी-37-एमबी-3735 में पीछे से अज्ञात सफेद रंग की इण्डिका के चालक ने लापरवाही पूर्वक वाहन चलाकर पीछे से टक्कर मार दी जिससे महेश एवं उसके भाई बृजमोहन घायल हो गये ।
शेयर बाजार की भारी गिरावट ने सीहोर में भी उथल-फुथल कर डाली लाखों का नुकसान हुआ जिले में
सीहोर 21 जनवरी (फुरसत)। शेयर बाजार में आज हुई ऐतिहासिक गिरावट ने सीहोर में भी शेयर खरीददारों को झटका दे दिया है। यहाँ हुई भारी गिरावट के चलते अनुमान लगाया जा रहा है कि करीब करोड़ रुपये तक का नुकसान सीहोर में हुआ है। लेकिन इससे छोटे शेयर खरीददारों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
सोमवार को मुम्बई शेयर बाजार रिकार्ड गिरावट के साथ बंद हुआ है। इसके पूर्व कभी शेयर बाजार ने गिरावट का इतना बड़ा गोता नहीं लगाया था लेकिन इस गोते ने यहाँ कईयों को लुढ़का दिया है। सोमवार को सेंसेक्स में 1400 से अधिक की गिरावट दर्ज की गई और सेंसेक्स 17605 के अंक पर बंद हुआ है। सीहोर में शेयर बाजार के लिये खुले अनेक टर्मिनलों पर भी स्थिति आज विचित्र हो गई थी। भारी गिरावट के कारण कुछेक टर्मिनल के बड़े भोपाल के कार्यालयों से उन्हे आगामी शेयर खरीदने की स्वीकृति बंद कर दी गई थी। हालांकि ऐसा सामान्यत: होता नहीं है लेकिन जब किसी का खाता गड़बड़ होता है तो फिर इस संबंध में यादा सावधानी बरती जाती है।
एक तरफ तो अचानक आई गिरावट का लाभ उठाने के लिये कई लोग भिड़ गये थे और टर्मिनलों के चक्कर काट रहे थे ताकि इस गिरावट के दौर में वह माल खरीद लें और शेयर बाजार में वापस स्थिरता आने पर इसे बेचकर अच्छा लाभ उठा लेते। लेकिन ऐसे शेयर खरीदने वालों को टर्मिनलों पर शेयर खरीदने की सहूलियत नहीं मिल पाई। कुछ टर्मिनलों को ऊपर से ही शेयर खरीदने की स्वीकृति बंद कर दी गई थी जिससे सीहोर वालों को दिक्कत आई।
आज आई गिरावट के कारण सीहोर के उन शेयर खरीदने वालों को झटका लग गया जो बहुत कम पूंजी से इस काम को करने का प्रयास करते हैं। जबकि बड़े लोगों को भी बड़े झटके लग गये। उदाहरण स्वरुप आरकाम का फ्यूचर सुबह 673 रुपये था जिसका एक लाट 350 शेयर है लेकिन अचानक दोपहर बाद इसके भाव सीधे 567 रुपये पर आ गये इस प्रकार इस लाट को खरीद चुके कई लोगों को करीब 35 से 40 हजार रुपये का झटका लगा। यह तो एक उदाहरण है लेकिन इसी प्रकार अनेक शेयरों में आई गिरावट ने आज शेयर बाजार से जुड़े लोगों के चेहरों पर तनाव की स्थिति पैदा कर दी थी। दिनभर शेयर वालों की अपनी चर्चाएं चलती रहीं।
सोमवार को मुम्बई शेयर बाजार रिकार्ड गिरावट के साथ बंद हुआ है। इसके पूर्व कभी शेयर बाजार ने गिरावट का इतना बड़ा गोता नहीं लगाया था लेकिन इस गोते ने यहाँ कईयों को लुढ़का दिया है। सोमवार को सेंसेक्स में 1400 से अधिक की गिरावट दर्ज की गई और सेंसेक्स 17605 के अंक पर बंद हुआ है। सीहोर में शेयर बाजार के लिये खुले अनेक टर्मिनलों पर भी स्थिति आज विचित्र हो गई थी। भारी गिरावट के कारण कुछेक टर्मिनल के बड़े भोपाल के कार्यालयों से उन्हे आगामी शेयर खरीदने की स्वीकृति बंद कर दी गई थी। हालांकि ऐसा सामान्यत: होता नहीं है लेकिन जब किसी का खाता गड़बड़ होता है तो फिर इस संबंध में यादा सावधानी बरती जाती है।
एक तरफ तो अचानक आई गिरावट का लाभ उठाने के लिये कई लोग भिड़ गये थे और टर्मिनलों के चक्कर काट रहे थे ताकि इस गिरावट के दौर में वह माल खरीद लें और शेयर बाजार में वापस स्थिरता आने पर इसे बेचकर अच्छा लाभ उठा लेते। लेकिन ऐसे शेयर खरीदने वालों को टर्मिनलों पर शेयर खरीदने की सहूलियत नहीं मिल पाई। कुछ टर्मिनलों को ऊपर से ही शेयर खरीदने की स्वीकृति बंद कर दी गई थी जिससे सीहोर वालों को दिक्कत आई।
आज आई गिरावट के कारण सीहोर के उन शेयर खरीदने वालों को झटका लग गया जो बहुत कम पूंजी से इस काम को करने का प्रयास करते हैं। जबकि बड़े लोगों को भी बड़े झटके लग गये। उदाहरण स्वरुप आरकाम का फ्यूचर सुबह 673 रुपये था जिसका एक लाट 350 शेयर है लेकिन अचानक दोपहर बाद इसके भाव सीधे 567 रुपये पर आ गये इस प्रकार इस लाट को खरीद चुके कई लोगों को करीब 35 से 40 हजार रुपये का झटका लगा। यह तो एक उदाहरण है लेकिन इसी प्रकार अनेक शेयरों में आई गिरावट ने आज शेयर बाजार से जुड़े लोगों के चेहरों पर तनाव की स्थिति पैदा कर दी थी। दिनभर शेयर वालों की अपनी चर्चाएं चलती रहीं।
गद्दारों ने हरवाया था सन् 57 में इंकलाबियों को
देश के लिए इस महान संग्राम और उसके शहीदों को याद करना गौरव की बात है। लेकिन इस मौके पर यह सवाल पूछा जाना जरूरी है कि भारत जैसे विशाल देश, जिसके चप्पे-चप्पे पर लोगों ने फि रंगी सरकार के खिलाफ दो साल से भी ज्यादा लगातार विद्रोह किया था, केवल 10 से 15 हजार गोरों से कैसे मात खा गया? अंगरेजों के चाटुकार इतिहासकार, जिनमें कई हिंदुस्तानी भी रहे हैं, जीत का कारण उनकी रणकौशलता, बहादुरी, हिम्मत और उनके पास उपलब्ध उच्च कोटि के जंगी साज-सामान को मानते हैं। उदाहरण के लिए, भारत के एक प्रसिध्द इतिहासकार आर सी मजुमदार और 1857 के प्रत्यक्षदर्शी सैयद अहमद खान का (जिन्हें सर सैयद के तौर पर ज्यादा जाना जाता है) कहना था कि 1857 का विद्रोह न राष्ट्रीय था, न देश की स्वतंत्रता से इसका कोई संबंध था और न ही इसे लोगों का समर्थन प्राप्त था।
यह इतिहासकार कहते हैं कि अंगरेजों ने 1857 में और उसके बाद 'विद्रोहियों' पर बहुत आसानी से जीत हासिल कर ली, क्योंकि 'विद्रोही' सेना की हिम्मत पस्त थी, वे असंगठित थे और उनमें रण-कौशल नहीं था। यह कितना बड़ा झूठ है, इसका अंदाजा दिल्ली पर हमला बोलने वाली अंगरेजी सेना के एक वरिष्ठ अफ सर हॅडसन की डायरी में लिखे इस वक्तव्य से होता है, 'शहर की सीमा पर जबरदस्त विरोध का सामना करने के बाद हमारी फोजें शहर में दाखिल हुईं, तो जिस हिम्मत और दृढ़ता के साथ विद्रोहियों और हथियारबंद योध्दाओं ने जंग लड़ी, वह सब हमारी सोच से बाहर था।'
सवाल उठता है कि अगर इंकलाबी हर तरह से तैयार थे, उनमें जज्बा था और अपने वतन को कंपनी के शिकंजे से आजाद कराने के लिए वे हर कीमत चुकाने को तैयार थे, तो हिंदुस्तान यह संग्राम क्यों हार गया? इसका जवाब खोजना जरा भी मुश्किल नहीं है। अंगरेज हुक्मरां षडयंत्र रचने में माहिर थे। उन्होंने जो युध्द जीते, वे अपनी बहादुरी और रणकौशलता की वजह से नहीं, बल्कि षडयंत्रों, जासूसों और हिंदुस्तानी दलालों की मदद के बल पर। प्लासी के युध्द में मीर जाफर जैसा गद्दार न होता, तो सिराजुद्दौला का हारना असंभव था। टीपू सुल्तान इसलिए हारे, क्योंकि मीर सादिक, मीर गुलाम अली, कासिम अली और दीवान पूरनिया जैसे गद्दार अंगरेजों के कुकर्मों में हिस्सेदार बन गए थे। इतिहासकार जॉन विलियम ने, जो उस दौर की घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी थे, 1868 में छपी अपनी पुस्तक सिपॉय वार इन इंडिया में माना, 'सच तो यह है कि हिंदुस्तान में हमारी सत्ता की पुनर्स्थापना का सेहरा हमारे हिंदुस्तानी समर्थकों के सिर है, जिनकी हिम्मत और बहादुरी ने हिंदुस्तान को अपने हमवतनों से छीनकर हमारे हवाले कर दिया। स्वाधीनता के पहले संग्राम के बारे में हमारे इतिहास की पाठयपुस्तकों में जो जानकारी मिलती है, वह अधूरी है। इस संग्राम का सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतना बड़ा देश मुट्ठी भर अंगरेज फौजियों से आखिर कैसे हार गया?
' विलियम रसल लंदन से छपने वाले अखबार द टाइम्स के युध्द संवाददाता के तौर पर युध्द का हाल बताने के लिए भारत भेजे गए थे। रसल ने 9 मई, 1857 को भेजी अपनी एक रपट में लिखा, 'दिल्ली की हमारी घेराबंदी बिल्कुल नामुमकिन होती, अगर पटियाला और जींद के राजा हमारे मित्र नहीं होते और अगर सिखों ने हमारी बटालियनों के लिए भरती नहीं की होती...।' रसल ने अपनी कई रपटों में इस सचाई को भी स्वीकारा कि अगर लखनऊ और दिल्ली के मोरचों पर नेपाल के राजा के गोरखा सैनिक नहीं पहुंचते, तो अंगरेजों की जीत असंभव थी।
यह संग्राम किस वजह से हारा गया, इसका मार्मिक वर्णन इस संग्राम के एक प्रमुख सेनापति नाना साहब के उस अंतिम पत्र में मिलता है, जो उन्होंने 1858 में देशवासियों के नाम लिखा था। 'यह पराजय मेरे अकेले की नहीं, बल्कि पूरे देश की है। इस पराजय का मुंह हमें गोरखों, सिखों और राजाओं की सेनाओं की वजह से देखना पड़ा। मैं जीवन भर देश की आजादी के लिए लड़ा और लड़ता रहूंगा। शैतान रजवाड़ों ने अपने स्वार्थ के लिए इस देश को अंगरेजों के हवाले कर दिया, जबकि अंगरेजों की हमारे सामने कोई हैसियत नहीं थी।' यहां यह याद रखना जरूरी है कि रसल और नाना साहब जब सिखों की बात करते हैं, तो उसका मतलब आम सिख नहीं, बल्कि सिख रजवाड़े हैं। सिख किसानों ने तो इस संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और दिल्ली को अंगरेजों से बचाने में सैकड़ों सिख इंकलाबी सैनिकों ने अपनी जानें कुरबान की थीं।
20 सितंबर, 1857 को अंगरेज दिल्ली शहर पर एक बार फिर कब्जा करने में सफ ल हुए। फि रंगी उन हिंदुस्तानी गद्दारों की वजह से सफ ल हो सके, जो चांदी के चंद टुकड़ों के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। इन गद्दारों की एक लंबी सूची है। इनके द्वारा अंगरेज आकाओं को लिखे पत्रों से इस सचाई का पता लगता है कि जिस समय दिल्ली के मोरचे पर इंकलाबी सैनिक अंगरेज सेनाओं के दांत खट्टे कर रहे थे, उसी दौरान 7 अगस्त, 1857 को इंकलाबियों के एक बहुत बडे बारूद के जखीरे में आग लग गई। उस विस्फोट में 500 से ज्यादा इंकलाबी शहीद हुए और इंकलाबियों को गोला-बारू द के लाले पड़ गए। यह कारनामा दरअसल रजबअली का था, जो न केवल बादशाह की परामर्शदात्री समिति का सदस्य बनने में सफल हुआ था, बल्कि बारूदखाने का दरोगा भी बन बैठा था।
एक और गद्दार मुंशी जीवनलाल, जिसे 'रायबहादुर' की उपाधि भी मिली, कंपनी में मुख्य मुंशी था और बहादुरशाह जफर और उनके परिवार पर चलाए गए मुकदमे में अंगरेजों के पक्ष में मुख्य भूमिका निभाने वाला रहा। कंपनी के एक इतिहासकार केव ब्राउन ने अपनी किताब पंजाब ऐंड देहली इन 1857 में इसकी चर्चा करते हुए लिखा, 'वे दिल्ली के बीचोंबीच रहते हुए शहर में मौजूद विद्रोहियों से संबंधित हर वह सूचना, जिसका जानना हमारे लिए जरूरी था, कागज की परचियों पर लिखकर चपातियों की परतों में, जूतों के तलों में, पगड़ियों की तहों में, सिखों के बालों के जूड़ों में छिपा-छिपाकर हम तक पहुंचाते रहे।'
'अंगरेजों को मध्य भारत में इंकलाबी सेनाओं के हाथों बार-बार पराजय का सामना करना पड़ा था।' मध्य भारत के अंगरेज मुख्य प्रशासक ने अपने संस्मरणों में यह लिखा है। दिल्ली और लखनऊ पर अंगरेजों का कब्जा करवाने में कश्मीर और पटियाला के महाराजाओं की सेनाओं ने जबरदस्त मदद की थी। ये राजपरिवार आजादी के बाद भी सत्ता में रहे। जिन विद्रोही राजपरिवारों का इस संग्राम में हिस्सेदारी की वजह से विनाश हुआ था, उनको न आजादी के समय और न ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शत वार्षिकी पर इंसाफ मिल सका था। कितना अच्छा हो, अगर इस महान संग्राम की 150वीं वर्षगांठ पर मुल्क के लिए मर मिट जाने वाले वीरों की मौजूदा पीढ़ियों को इंसाफ और सम्मान मिल सके।
यह इतिहासकार कहते हैं कि अंगरेजों ने 1857 में और उसके बाद 'विद्रोहियों' पर बहुत आसानी से जीत हासिल कर ली, क्योंकि 'विद्रोही' सेना की हिम्मत पस्त थी, वे असंगठित थे और उनमें रण-कौशल नहीं था। यह कितना बड़ा झूठ है, इसका अंदाजा दिल्ली पर हमला बोलने वाली अंगरेजी सेना के एक वरिष्ठ अफ सर हॅडसन की डायरी में लिखे इस वक्तव्य से होता है, 'शहर की सीमा पर जबरदस्त विरोध का सामना करने के बाद हमारी फोजें शहर में दाखिल हुईं, तो जिस हिम्मत और दृढ़ता के साथ विद्रोहियों और हथियारबंद योध्दाओं ने जंग लड़ी, वह सब हमारी सोच से बाहर था।'
सवाल उठता है कि अगर इंकलाबी हर तरह से तैयार थे, उनमें जज्बा था और अपने वतन को कंपनी के शिकंजे से आजाद कराने के लिए वे हर कीमत चुकाने को तैयार थे, तो हिंदुस्तान यह संग्राम क्यों हार गया? इसका जवाब खोजना जरा भी मुश्किल नहीं है। अंगरेज हुक्मरां षडयंत्र रचने में माहिर थे। उन्होंने जो युध्द जीते, वे अपनी बहादुरी और रणकौशलता की वजह से नहीं, बल्कि षडयंत्रों, जासूसों और हिंदुस्तानी दलालों की मदद के बल पर। प्लासी के युध्द में मीर जाफर जैसा गद्दार न होता, तो सिराजुद्दौला का हारना असंभव था। टीपू सुल्तान इसलिए हारे, क्योंकि मीर सादिक, मीर गुलाम अली, कासिम अली और दीवान पूरनिया जैसे गद्दार अंगरेजों के कुकर्मों में हिस्सेदार बन गए थे। इतिहासकार जॉन विलियम ने, जो उस दौर की घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी थे, 1868 में छपी अपनी पुस्तक सिपॉय वार इन इंडिया में माना, 'सच तो यह है कि हिंदुस्तान में हमारी सत्ता की पुनर्स्थापना का सेहरा हमारे हिंदुस्तानी समर्थकों के सिर है, जिनकी हिम्मत और बहादुरी ने हिंदुस्तान को अपने हमवतनों से छीनकर हमारे हवाले कर दिया। स्वाधीनता के पहले संग्राम के बारे में हमारे इतिहास की पाठयपुस्तकों में जो जानकारी मिलती है, वह अधूरी है। इस संग्राम का सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतना बड़ा देश मुट्ठी भर अंगरेज फौजियों से आखिर कैसे हार गया?
' विलियम रसल लंदन से छपने वाले अखबार द टाइम्स के युध्द संवाददाता के तौर पर युध्द का हाल बताने के लिए भारत भेजे गए थे। रसल ने 9 मई, 1857 को भेजी अपनी एक रपट में लिखा, 'दिल्ली की हमारी घेराबंदी बिल्कुल नामुमकिन होती, अगर पटियाला और जींद के राजा हमारे मित्र नहीं होते और अगर सिखों ने हमारी बटालियनों के लिए भरती नहीं की होती...।' रसल ने अपनी कई रपटों में इस सचाई को भी स्वीकारा कि अगर लखनऊ और दिल्ली के मोरचों पर नेपाल के राजा के गोरखा सैनिक नहीं पहुंचते, तो अंगरेजों की जीत असंभव थी।
यह संग्राम किस वजह से हारा गया, इसका मार्मिक वर्णन इस संग्राम के एक प्रमुख सेनापति नाना साहब के उस अंतिम पत्र में मिलता है, जो उन्होंने 1858 में देशवासियों के नाम लिखा था। 'यह पराजय मेरे अकेले की नहीं, बल्कि पूरे देश की है। इस पराजय का मुंह हमें गोरखों, सिखों और राजाओं की सेनाओं की वजह से देखना पड़ा। मैं जीवन भर देश की आजादी के लिए लड़ा और लड़ता रहूंगा। शैतान रजवाड़ों ने अपने स्वार्थ के लिए इस देश को अंगरेजों के हवाले कर दिया, जबकि अंगरेजों की हमारे सामने कोई हैसियत नहीं थी।' यहां यह याद रखना जरूरी है कि रसल और नाना साहब जब सिखों की बात करते हैं, तो उसका मतलब आम सिख नहीं, बल्कि सिख रजवाड़े हैं। सिख किसानों ने तो इस संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और दिल्ली को अंगरेजों से बचाने में सैकड़ों सिख इंकलाबी सैनिकों ने अपनी जानें कुरबान की थीं।
20 सितंबर, 1857 को अंगरेज दिल्ली शहर पर एक बार फिर कब्जा करने में सफ ल हुए। फि रंगी उन हिंदुस्तानी गद्दारों की वजह से सफ ल हो सके, जो चांदी के चंद टुकड़ों के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। इन गद्दारों की एक लंबी सूची है। इनके द्वारा अंगरेज आकाओं को लिखे पत्रों से इस सचाई का पता लगता है कि जिस समय दिल्ली के मोरचे पर इंकलाबी सैनिक अंगरेज सेनाओं के दांत खट्टे कर रहे थे, उसी दौरान 7 अगस्त, 1857 को इंकलाबियों के एक बहुत बडे बारूद के जखीरे में आग लग गई। उस विस्फोट में 500 से ज्यादा इंकलाबी शहीद हुए और इंकलाबियों को गोला-बारू द के लाले पड़ गए। यह कारनामा दरअसल रजबअली का था, जो न केवल बादशाह की परामर्शदात्री समिति का सदस्य बनने में सफल हुआ था, बल्कि बारूदखाने का दरोगा भी बन बैठा था।
एक और गद्दार मुंशी जीवनलाल, जिसे 'रायबहादुर' की उपाधि भी मिली, कंपनी में मुख्य मुंशी था और बहादुरशाह जफर और उनके परिवार पर चलाए गए मुकदमे में अंगरेजों के पक्ष में मुख्य भूमिका निभाने वाला रहा। कंपनी के एक इतिहासकार केव ब्राउन ने अपनी किताब पंजाब ऐंड देहली इन 1857 में इसकी चर्चा करते हुए लिखा, 'वे दिल्ली के बीचोंबीच रहते हुए शहर में मौजूद विद्रोहियों से संबंधित हर वह सूचना, जिसका जानना हमारे लिए जरूरी था, कागज की परचियों पर लिखकर चपातियों की परतों में, जूतों के तलों में, पगड़ियों की तहों में, सिखों के बालों के जूड़ों में छिपा-छिपाकर हम तक पहुंचाते रहे।'
'अंगरेजों को मध्य भारत में इंकलाबी सेनाओं के हाथों बार-बार पराजय का सामना करना पड़ा था।' मध्य भारत के अंगरेज मुख्य प्रशासक ने अपने संस्मरणों में यह लिखा है। दिल्ली और लखनऊ पर अंगरेजों का कब्जा करवाने में कश्मीर और पटियाला के महाराजाओं की सेनाओं ने जबरदस्त मदद की थी। ये राजपरिवार आजादी के बाद भी सत्ता में रहे। जिन विद्रोही राजपरिवारों का इस संग्राम में हिस्सेदारी की वजह से विनाश हुआ था, उनको न आजादी के समय और न ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शत वार्षिकी पर इंसाफ मिल सका था। कितना अच्छा हो, अगर इस महान संग्राम की 150वीं वर्षगांठ पर मुल्क के लिए मर मिट जाने वाले वीरों की मौजूदा पीढ़ियों को इंसाफ और सम्मान मिल सके।
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