सीहोर। विधानसभा चुनाव 2008 के लिये मतदान करने का समय अब सन्निकट आ चुका है, लेकिन आज तलक स्थिति बजाये सुधरने के लगातार असमंजस पूर्ण होती जा रही है। कांग्रेस, भाजपा यदि यह दोनो पार्टियाँ ही आमने-सामने होती तो निश्चित रुप से कुछ और बात होती लेकिन इस बार चूंकि भाजपा की बहन जनशक्ति भी मैदान में आ गई है इसलिये स्थिति बहुत ही गुत्थम-गुत्थे की हो गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने थे तब भाजपा को 51 हजार और कांग्रेस को 40 हजार के लगभग मत मिले थे। लेकिन इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले स्थिति एकदम भिन्न हो गई है। जहाँ पिछले चुनाव में कांग्रेस के विरोध की लहर थी वहीं इस चुनाव में भाजपा के विरोध की लहर है। जहाँ पिछले चुनाव में कांग्रेस के विरोध के साथ-साथ कांग्रेस प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह का विरोध और बगावती उम्मीद्वार जसपाल सिंह अरोरा के खड़े होने से स्थिति विषम हो गई वहीं भाजपा से किसी तरह की बगावत नहीं हुई थी बल्कि उमाश्री भारती की शक्ति भाजपा के लिये चट्टान का काम कर रही थी। इस दृष्टि से पिछले चुनाव को सामने रखकर विश्लेषण किया जाना कुछ मुश्किल लग रहा है। पिछले चुनाव और इस चुनाव में दो ही समान बातें नजर आ रही है एक तो विरोध की लहर इस बार भी है बस लहर भाजपा प्रत्याशी पर पलट गई है और दूसरा बगावती प्रत्याशी इस बार भी है लेकिन वह भाजपा का हो गया है। फिर भी चुनावी रणनीति में कुशल भाजपा इन दोनो ही विपरीत स्थितियों में भी अपने प्रत्याशी रमेश सक्सेना के कारण कमजोर नहीं मानी जा रही है। कांग्रेस अंतिम समय तक आक्रामक शैली नहीं पकड़ पाई है।
शिवराज का मुखौटा
ऐसी असमंजस पूर्ण स्थिति में आखिर कौन जीतेगा ? कौन हारेगा ? जनता क्या करेगी यह कहना सिर्फ खयाली बातें ही हो सकती है। अभी तक यह कहा जाना मुश्किल हो रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों का रुख और शहरी मतदाता किस और झुकेगा। भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्रों में शिवराज सिंह का मुखौटा आगे कर दिया है और शिवराज के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं।
यह विरोधी हैं इसलिये पर वो कम नहीं...
इस बार एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी के भी पक्ष में लहर नहीं दिख रही है, जनशक्ति के पक्ष में लहर इसलिये नजर आ रही है क्योंकि उनके साथ विद्रोही और नाराज लोगों का नया जमावड़ा है, नये लोग तो वैसे ही आकर्षण का केन्द्र होते हैं। हालांकि अखिलेश राय का आकर्षण किसी से छुपा नहीं है, पिछले दो-तीन दिनों में ऐसा कई बार हुआ कि अखलेश राय कहीं गये और उनके आसपास भीड़ जमा होते-होते बड़ा हुजूम लग गया। लेकिन जिस तरह से दो दिन पूर्व शाम के समय विधायक रमेश सक्सेना ने सभाएं ली थी उस समय भी भीड़ का बड़ा हुजूम भोपाली फाटक पर लग गया था। जनसम्पर्क के समय की भीड़ भी तीनों ही प्रत्याशियों की सामान्य नजर आई। कोई विशेष बात नहीं दिखी।
आंकड़ो की गणित में भाजपा-कांग्रेस बहुत आगे
आकड़ो से समझा जाये तो भाजपा के पास मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग है जब रमेश सक्सेना निर्दलीय लड़े थे तब भी भाजपा के पास 26 हजार वोट गिरे थे और जब वह निर्दलीय लड़कर चुनाव जीते थे तब भी भाजपा 26 हजार वोट लाई थी कुल मिलाकर भाजपा अपनी झोली में 26 हजार वोट मानती है। भाजपा का मानना है कि हमारी शुरुआत 26 हजार से होगी।
इसके बाद कांग्रेस की बात की जाये तो कांग्रेस भी एक-दो नहीं बल्कि मुस्लिम मतदाताओं के बड़े समूह को अपने पक्ष में मानते हुए चलती है और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बढ़कर 27 हजार के लगभग हो चुकी है जिसमें से 22 हजार मत तो गिरते ही हैं के आधार पर 22 हजार मुस्लिम वोट से कांग्रेस की शुरुआत होगी और कांग्रेसी मतों के आधार को लेकर कम से कम आंका जाये तो भी 26 हजार के लगभग वोट तो कांग्रेस के पास भी सुरक्षित ही हैं।
लेकिन उमाश्री भारती की जनशक्ति के पास कितने वोट हैं यह कहना बड़ा मुश्किल है। जनशक्ति की शुरुआत है इसलिये जनशक्ति की झोली में सिर्फ 1 ही वोट माना जा सकता है। हालांकि जनशक्ति ने हजारों लोगों को सदस्यता दिला दी है इसलिये कम से कम 2 से 4 हजार वोट जनशक्ति की झोली में माना भी जा सकता है। इस दृष्टि से जनशक्ति को सर्वाधिक मेहनत करने की जरुरत प्रतीत होती है।
जनशक्ति सिर्फ भाजपा पर केन्द्रित
मतों के विभाजन की बात करें तो चाहे कांग्रेस का कोई बागी हो या भाजपा को बगावती। जब कभी वह लड़ता है तो यह सही कि लम्बे समय से जिस विचारधारा से वह जुड़ा होता है उसके साथ उस विचारधारा के लोग जुड़ते हैं लेकिन यह भी सही है कि दूसरी विचारधारा के लोगों को भी वह अपनी तरफ झुकाता है। लेकिन सीहोर में मामला कुछ पेचीदा है। जनशक्ति की उमाश्री भारती लगातार यह कह रही हैं कि हमारी भाजपा से बुराई नहीं है, लेकिन कांग्रेस को तो हम आने ही नहीं देंगे। वह यह भी कह रही है कि सारे भाजपाई अब हमारी असली भाजपा में आ जाओ, जनशक्ति के प्रत्याशी सन्नी महाजन ने भी जब कभी कुछ शब्द मुँह से बोले हैं तो सिर्फ भाजपा के खिलाफ ही वह बोले हैं, और भाजपाईयों को ही अपनी तरफ झुकाने का प्रयास किया है। इस दृष्टि से देखा जाये तो वह लगातार भाजपा को तोड़ने और उसके वोट बटोरने के प्रयास कर रहे हैं।
भाजपा का वोट बैंक तोड़ना और पलट देना सबसे दुरुह कार्य माना जाता है, इसलिये ही उमाश्री भाजपा के खिलाफ नहीं बोलतीं बल्कि हर कार्यालय में, कार्यक्रम में, सभा स्थल पर बार-बार दीनदयाल जी से लेकर तरह-तरह के भाजपा के पुराने नेताओं के फोटो लगाये जाते हैं ताकि भाजपा का मतदाता उधर आकर्षित हो सके। कुल मिलाकर भाजपा के मतदाताओं को रिझाने का प्रयास जारी है। हालांकि जनशक्ति का प्रत्याशी नया चेहरा नहीं होने से हर तरफ अपनी बढ़त बनायेगा, कांग्रेसियों को भी तोड़ेगा लेकिन वह भाजपा को ही नुकसान पहुँचाना चाहता है इसलिये उसे ही पहुँचायेगा ऐसा लगता है।
जैसा की खुद विधायक रमेश सक्सेना ने निर्दलीय चुनाव जब लड़ा था तब जीतने के बाद भी उनका यही कहना था कि भाजपा के वोट उन्हे नहीं मिले बल्कि कांग्रेस के ही वोट मिले थे, जब दूसरी बार मुस्लिम मतदाताओं ने उन्हे मत दिया तो वह जीत गये। रमेश सक्सेना उस समय कांग्रेस के बागी कहलाते थे। और इस बार सन्नी भाजपा का बागी है।
क्या जनशक्ति कांग्रेस को नुकसान पहुँचा सकेगी ?
एक और विचारणीय स्थिति है कि क्या कसम खाकर भाजपा के पीछे पड़ी जनशक्ति कांग्रेस को कभी नुकसान पहुँचा सकती है ? क्या सीहोर में जनशक्ति कांग्रेस को हानि पहुँचायेगी यह भी विचारणीय प्रश् है क्योंकि अभी तक जनशक्ति ने कांग्रेस के वोट बैंक को विशेष रुप से प्रभावित नहीं किया है, तो क्या जनशक्ति के पक्ष में बिना मेहनत के ही कांग्रेसी मत झुकेगा या नहीं झुकेगा। और यदि कांग्रेस का कुछ वोट उमाभारती की जनशक्ति के पक्ष में झुका तो कितना अधिक झुक पायेगा। कितने कांग्रेस के मत इनकी झोली में गिरेंगे।
अब बात सक्सेना की, उन्होने क्या-क्या किया
इन सारी गणितों को छोड़कर सिर्फ हम राजनीति के धुरंधर और महापंडित माने जाने वाले रमेश सक्सेना की चुनावी गतिविधियों की तरफ ध्यान दें तो शायद कुछ बातें हमारे सामने आ सकें। एक तो इस बार सक्सेना ने भाजपा कार्यकर्ताओं की बैठकों का क्रम बहुत प्रभावी ढंग से चलाया, संगठन में शक्ति है के सूत्र को उन्होने आत्मसात किया और संगठन में उर्जा भरने के लिये नामांकन दाखिले के पूर्व नहीं बल्कि 11 नवम्बर के बाद युध्द स्तर पर भिड़ गये। 4 दिन तक लगातार एक-एक मतदान केन्द्र के आसपास अपने कार्यकर्ताओं की छोटी-छोटी बैठकें उन्होने ली और उर्जा का संचार किया। नगर में जनसम्पर्क हो या माहौल बनाने के लिये सभाएं हो वह सब आम बातें हैं लेकिन कोलार के पानी की बात और नये उद्योग लगाने की बात के साथ सक्सेना ने सन्नी और स्वदेश पर प्रहार भी शुरु किये।
फिर कर दी तोड़-फोड़
इसके बाद उन्होने सीधे कांग्रेस में तोड़-फोड़ करना शुरु कर दिया। मौलिक रुप से कांग्रेस के प्रमुख नेता माने जाने वाले जसपाल उनकी ही स्वीकृति से भाजपा में आये, उनका उपयोग भी शुरु हुआ, फिर एक मुस्लिम नेता आरिफ बेग को लाया गया, सतीश यादव भी आये, कांग्रेस में टूट-फूट के साथ ही विधायक ने खुलकर कहा कि कांग्रेस में आज भी उनके साथी हैं जो उनके लिये काम कर रहे हैं, इसके बाद उनकी तीसरी प्रमुख कार्यवाही यह रही कि उन्होने लम्बे समय बाद एक बार फिर मुस्लिम मतदाताओं की तरफ मुखरता से रुझान दिखाया और चाहे सराय चौराहा हो या फिर भोपाली फाटक, गाड़ी अड्डा यहाँ आमसभाएं लेकर मुस्लिम मतदाताओं से कहा कि विकास का सबसे बड़ा मतलब है कि क्षेत्र में साम्प्रदायिक तनाव या दंगे ना हो, और पिछले 15 साल में ऐसा नहीं हुआ है, इसके पूर्व ही उन्होने मुस्लिम क्षेत्रों के आसपास जसपाल को आगे रखकर कई कार्यालय भी खोले। कुल मिलाकर कांग्रेस की मुस्लिम मतदाताओं वाली शक्ति पर लगातार प्रहार हुए।
तो निष्कर्ष निकलता है कि कांग्रेस
को ही प्रमुख प्रतिद्वंदी माना सक्सेना ने
अब हम सक्सेना की गतिविधियों को बिना यादा सोचे-विचारे देखें तो लगेगा कि उन्होने कहीं ना कहीं लगातार कांग्रेस को कमजोर करने का प्रयास किया, उसके मुस्लिम वोट बैंक को प्रभावित करने के सारे उपक्रम किये और माहौल बनाया। उन्होने सन्नी को महत्व नहीं दिया, वह लगातार कांग्रेस को कमजोर करते हुए नजर आये जैसे की उनका सामना सीधे-सीधे कांग्रेस से ही है। उन्होने संगठन को संभालने का भी प्रयास किया, इससे प्रतीत होता है कि कहीं वह कुछ आशंकित थे कि संगठन के कार्यकर्ता इधर-उधर ना हो इसलिये उन्होने हर कार्यकर्ता से खुलकर बातचीत की। सीधे-सीधे शब्दों में उन्होने अपनी सुरक्षा तो की ही बल्कि कांग्रेस को भी कमजोर किया।
दूसरे शब्दों में इसी बात को कहें तो लगता है सन्नी के होने से उन्हे कहीं कांग्रेस की मजबूती नजर आई और उन्होने उस पर अपने ढंग से प्रहार भी किये।
लेकिन कहीं भी उन्होने सन्नी को कमजोर करने के प्रयास नहीं किये, मतलब सक्सेना के लिये जनशक्ति का महत्व ही नहीं है। अगर वह चाहते तो जनशक्ति में भी बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन उन्होने कुछ नहीं किया। कुल मिलाकर उन्होने अपने सामने कांग्रेस को लक्ष्य रखा और उसे कमजोर करने में ही उर्जा लगाई।
अब कांग्रेस की रणनीति समझें
अब हम कांग्रेस द्वारा की गई गतिविधियों पर ध्यान दें तो अखलेश राय ने पहले ही दिन कांग्रेस के सारे लोगों को विरोध के बावजूद एक मंच पर लाकर 7 नवम्बर को आवेदन भरा। इसके बाद कांग्रेस में हुई टूट-फूट की तरफ उन्होने ध्यान नहीं दिया और फिर मुस्लिम मतदाताओं को जोड़ने के लिये कई बार मुस्लिम बस्तियों में कार्यक्रम हुए, राजबब्बर आये तो उनकी सभा भी सराय चौराहे पर कराई गई। कुल मिलाकर कांग्रेस ने किसी दूसरे पर ध्यान न देते हुए सिर्फ खुद के मतदाताओं की सुरक्षा पर ध्यान दिया। कांग्रेस किसी बड़े भाजपा नेता को अथवा जनशक्ति के किसी व्यक्ति को तोड़ने में भी सक्रिय नहीं दिखी, वह सिर्फ खुद को सुरक्षित करती नजर आई। कांग्रेस ने भाजपा पर निशाना भी नहीं साधा, जनशक्ति के लिये भी वह कुछ नहीं बोली। वरना भाजपा के खिलाफ मुखर होकर कई कैसेटें चलवाई जा सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। एक पत्रकार वार्ता में अवश्य अखलेश स्वदेश राय ने विधायक कार्यकाल के संबंध में कई बातें मुखरता से कही। कुल मिलाकर कांग्रेस ने सिर्फ सुरक्षा के रुप में अपनी पूरी रणनीति बनाई और वह अंतिम दिन तक कायम रही।
इस प्रकार विश्लेषणात्मक रुप से तीनों ही प्रत्याशियों की तीन बातें सामने आती है। सन्नी सिर्फ भाजपा के वोट खाने के प्रयास में है, भाजपा वोट की सुरक्षा के साथ ही प्रमुख रुप से कांग्रेस के वोट बैंक को तोड़ने के प्रयास में लगी है और कांग्रेस सिर्फ अपनी सुरक्षा में लगी हुई है। दोनो ही दृष्टि से भाजपा और कांग्रेस, जनशक्ति से वजनदार नजर आती है। क्योंकि भाजपा कांग्रेस के वोट तो अपने पक्ष में कर रही है और वोट बढ़ा रही है जबकि कांग्रेस सुरक्षा कर रही है मतलब उसे अलग से वोट नहीं चाहिये सिर्फ उसके वोट ही उसे मिल जायें वह इसकी फिक्र कर रही है। राजनीतिक पंडितों की भी यदि मानी जाये तो वह कांग्रेस को शुरु से मजबूत मानकर चल रहे हैं और भाजपा के दो फाड़ हो जाने से कमजोर आंक रहे हैं।
इन सारे फेक्टरों को छोड़कर यदि वर्षो से पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं को आधार माने तो कांग्रेस का कार्यकर्ता भाजपा में तो जाने से रहा और क्या वह उमाश्री से अचानक प्रभावित हुआ होगा ऐसा भी होना मुश्किल लगता है, हाँ जनशक्ति के प्रत्याशी सन्नी के आकर्षण से अवश्य कांग्रेसी प्रभावित हुए होंगे इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
जनशक्ति के लिये सबसे वजनदार बात सिर्फ यही हो सकती है कि उसके पास भाजपा और कांग्रेस के अलावा वह मतदाता भी सामने आ गया है जो हमेशा सुप्त रहता है, जिसे किसी को वोट देने की इच्छा नहीं रहती है ऐसा भी एक बड़ा वर्ग होता है इसलिये नये लोग भी सन्नी के साथ नजर आ रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी के विरोध का लाभ तो सन्नी ले ही रहे हैं। कुल मिलाकर सन्नी दोनो तरफ हाथ मार रहे हैं भाजपा में बहुत यादा और कांग्रेस में थोड़ा-बहुत । इसलिये जनशक्ति भी ठीक-ठाक नजर आ रही है।
वो क्या करें जो असमंजस में हैं...
कुल मिलाकर ऐसी असमंजस पूर्ण स्थिति बन गई है कि मतदाताओं को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करें। मुख्यमंत्री को देखते हैं सब भूलकर सिर्फ कमल नजर आता है, विधायक जी को देखते हैं मन में कुछ नाराजगी नजर आती है और फिर विकल्प सन्नी नजर आता है, कांग्रेस को देखते हैं तो नायक अखलेश राय नजर आता है, जिससे कुछ अपेक्षाएं जुड़ी हैं यूं तो सन्नी से भी कई अपेक्षाएं हैं। अपेक्षाएं तो नये व्यक्ति से ही हो सकती है क्योंकि वह आजमाया हुआ नहीं होता...। कुल मिलाकर असमंजस पूर्ण स्थिति है।
जो हराना चाहते हैं वह भी परेशान है...क्या करें
बेचारे सटोरियों को तो इस महिने भर में इतना तनाव हो गया कि उनके सिर के बाल पकने लगे हैं क्या करें ? कैसे लाभ उठायें ? कौन जीतेगा ? कौन हारेगा ? उनके पल्ले ही नहीं पड़ रही। कांग्रेस जीत के प्रति आश्वस्त नजर आती है, भाजपा 21 हजार से जीत बताती है और जनशक्ति की हुल्लड़ उनकी नींद छीन लेती है। करें तो क्या करें....? भाजपा को हराने वाले भी यह नहीं समझ पा रहे कि वह किधर जाये...सन्नी को वोट देकर उनका हल निकलेगा या कांग्रेस का हाथ मजबूत करेंगे तो भाजपा हारेगी। कांग्रेस से खफा लोग खुलकर भाजपा में आ गये हैं लेकिन भाजपा से खफा बेचारे जनशक्ति में जा रहे हैं।