Thursday, January 15, 2009

व्यवस्थापन अवकाश के लिये स्वीकृति दें...

1998 से प्रारंभ फुरसत आज ग्यारहवें वर्ष में जब प्रवेश कर चुका है तब इस लम्बे सफर में भी निरन्तर आपके प्यार-दुलार में इसके प्रति कोई कमी नहीं आई है, बल्कि वह और बढ़ गया है। शुरुआत के समय से आज एक सदी बदल गई, समाचार-पत्र जगत में आमूल-चूल परिवर्तन आ गये, हर अखबार के स्थानीय कार्यालय खुल गये, आज समाचारों की कमी नहीं रही फिर भी इस नन्हे से अखबार के प्रति आपका स्नेह निरन्तर एक समान ही बना रहा।

      इस दौरान हमनें वह सारे प्रयास किये जिससे फुरसत को और सुधारा जा सके....उसके समाचारों की रोचकता बनाई जा सके, अधिक पठनीय बनाया जा सके....साथ ही अधिक से अधिक समाचार आप तक पहुँचाये जा सकें.... लेकिन हम स्वयं को कभी संतुष्ट नहीं कर पाये हैं... ऊपर से मंहगी छपाई की मार ने, विज्ञापनों की कमी ने, व्यवस्थाओं के अभाव ने इसके सुधार में रोड़े अटकायें हैं।

      आपको मालूम होगा कि आपका फुरसत मध्य प्रदेश शासन के विज्ञापनों के लिये अधिकृत नहीं है.... क्योंकि उसके लिये जितनी खानापूर्ति आड़े आ रही है... वह फुरसत जैसा छोटा अखबार के लिये मुश्किल है...फिर भी हमारा फुरसत पाठक परिवार पूरे भारत देश का एकमात्र ऐसा अखबार निकाल रहा है जो पिछले 10 साल से निरन्तर बिना किसी शासकिय विज्ञापन के सहारे स्वयं के दम-खम पर चल रहा है...इसके निरन्तर चलते रहने पर कई बड़े अखबारों के प्रबंधन भी आश्चर्य करते हैं,  लेकिन यह संभव है तो सिर्फ आपके स्नेह और प्यार के दम पर।

      क्योंकि फुरसत जब कभी घाटे में होता है तो फिर आप-हम मिलकर कुछ विज्ञापनों के सहारे इसकी घाटापूर्ति हमेशा कर लिया करते हैं।

      फुरसत के निरन्तर प्रकाशन के कारण कुछ व्यवस्थाएं जो इसके लिये आवश्यक है उन्हे हम पूर्ण नहीं कर पाते...तथैव आज ऐसी आवश्यकता आन पड़ी है कि हमें उन व्यवस्थाओं को संभालने और दुरुस्त करने के लिये, फुरसत के ही विकास के लिये कुछ दिनों का अवकाश लेना पड़ रहा है। यह अवकाश अल्प समय का ही रहेगा। 

      शीघ्र ही आपका फुरसत फिर एक नई उर्जा, संकल्प के साथ संभावित परिवर्तनों के साथ फिर आपके हाथ में होगा.... इस दौरान हम प्रयास करेंगे की हर महत्वपूर्ण खबर फुरसत की बेवसाईट पर प्रकाशित करते रहें, किन्ही महत्वपूर्ण विषयों पर आप बेवसाईट पर भी समाचार, विशेष सम्पादकीय व टिप्पणी इस दौरान पढ़  सकें ऐसा प्रयास रहेगा।

      पाठकवृंद कृपया फुरसत प्रबंधन को अवकाश देने की कृपा  करें...।
 आनन्द भैया गाँधी.
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बसंत उत्सव आयोजन समिति के आव्हान पर 356 शहीद क्रांतिकारियों की समाधि पर श्रद्धांजली हुई

सीहोर 14 जनवरी (नि.प्र.)। नगर के गौरवमयी 1857-1858 के स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हुए जिन 356 शहीदों को 14 जनवरी 1858 को सामूहिक रुप से गोली मार दी गई थी उनका स्मरण करते हुए आज बसंत उत्सव आयोजन समिति के आव्हान पर आयोजित श्रद्धांजली समारोह में नगर के गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित हुए।  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वयोवृध्द स्वतंत्रता संग्राम सैनानी गोपाल जी राठौर व विधायक रमेश सक्सेना थे।  नगर पालिका अध्यक्ष राकेश राय विशेष अतिथि के रुप में उपस्थित थे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता बसंत उत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रमोद जोशी गुंजन ने की।

      बसंत उत्सव आयोजन समिति के आव्हान पर सैकड़ाखेड़ी मार्ग स्थित ऐतिहासिक समाधि पर श्रद्धांजली सभा का आयोजन रखा गया था। प्रात: 10.00 बजे कार्यक्रम स्थल पर बज रहे देशभक्ति गीतों ने वातावरण में राष्ट्रीय भावना का ओज भर दिया था। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए मुख्य अतिथि स्वतंत्रता संग्राम सैनानी गोपाल जी राठौर व समस्त स्वतंत्रता संग्राम सैनानीगण केसरीमल गिरोठिया, उदय सिंह जी आर्य, भगवान दास जी अग्रवाल, बेनी प्रसाद राठौर, विधायक रमेश सक्सेना आदि ने भारत माता के चित्र के समक्ष समाधि पर दीप प्रवलित किया और कार्यक्रम की अनौपचारिक शुरुआत की। इसके बाद सभी उपस्थित जन ने समाधि स्थल पर पुष्पांजली अर्पित कर शहीदों को नमन किया।

      सिपाही बहादुर सरकार के गौरवमयी इतिहास और समाधियों की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में  बसंत उत्सव समिति अध्यक्ष प्रमोद जोशी गुंजन ने प्रस्तावना रखते हुए कहा कि 1857 का महासंग्राम एक रणनीति पूर्वक किया गया स्वतंत्रता आंदोलन था जिसमें न सिर्फ देश राजा-रजवाड़े प्रमुखता से जुड़े हुए थे बल्कि सारे भारतीय सैनिकों ने भी इसमें पूरा सहयोग किया, जिसमें सीहोर के क्रांतिकारी सैनिकों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर संघर्ष किया। जनरल ह्यूरोज ने सीहोर में क्रांतिकारियों का कत्ले आम करते हुए 356 क्रांतिकारियों को एक साथ गोलियों से भुनवा दिया था। आज भी उन्ही की समाधियाँ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़ी हुई हैं। श्री जोशी ने कहा कि यहाँ एक उद्यान का निर्माण हो, टेसू के फूलों का एक विशाल बगीचा लगे और शासन इसे संरक्षित करे ।

      कार्यक्रम को विधायक रमेश सक्सेना ने संबोधित करते हुए कहा कि मैं उन क्रांतिकारियों को नमन करता हूँ साथ ही यह आश्वासन देता हूँ कि समिति जो भी यहाँ विकास के लिये निर्णय लेगी उसमें सहयोग करुंगा, शासन स्तर के लिये कोई योजना हो तो बना ली जाये क्या हो सकता है वह हम शासन से बात करके यहाँ के विकास की रुपरेखा तय करायेंगे।

      नगर पालिका अध्यक्ष राकेश राय ने कहा कि शासन स्तर पर यहाँ विकास कार्य होना चाहिये, नगर पालिका से भी जो सहयोग हो सकेगा किया जायेगा। वरिष्ठ पत्रकार अम्बादत्त भारतीय ने इस अवसर पर कहा कि जनरल ह्यूरोज ने आज ही के दिन 1858 में क्रांतिकारियों को एक साथ गोलियों से कत्लेआम करवा था यह बात हम नहीं करते बल्कि गजेटियर में उल्लेखित है, और सैकड़ो इतिहास की पुस्तकों में भी इसका उल्लेख है। जलियावाला बाग तो बहुत बाद में घटा लेकिन उसके बहुत पहले सीहोर में जलियावाला बाग जैसी घटना घट गई थी। बाबा ने कहा कि जनरल ह्यूरोज नरसंहार करके ऐसा घबराया था कि 15 अगस्त को सुबह 4 बजे से ही सीहोर छोड़कर रवाना हो चुका था।

      कार्यक्रम संचालक पंकज पुरोहित सुबीर ने 356 क्रांतिकारियों की शौर्य और वीरता के संबंध जिन इतिहास की पुस्तको हयाते सिकन्दरी, भोपाल गजेटियर तथा मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग की पुस्तक सिपाही बहादुर में उल्लेख मिलता है की सविस्तार जानकारी दी तथा साथ ही सैकड़खेड़ी मार्ग पर अंग्रेजाें के जमाने के शेष रह गये अवशेषों की जानकारी देते हुए स्पष्ट किया कि किस प्रकार यहाँ चाँदमारी होती थी और जनरल ह्यूरोज ने एक साथ 356 क्रांतिकारियों को खड़ा कर चांदमारी के स्थान पर गोलियों से भून दिया।

      बसंत उत्सव आयोजन समिति की और से कार्यक्रम का आभार व्यक्त करते हुए आनन्द गाँधी ने सभी उपस्थित जनों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में बहुत बड़ी संख्या में नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित हुए और उन्होने श्रध्दांजली अर्पित की। अनेक संगठनों ने भी आज यहाँ श्रध्दांजली कार्यक्रम किया।

      आज देश के विख्यात समाचार चैनल आजतक की तेजतर्रार पत्रकार दीप्ति चौरसिया ने भी उपस्थित होकर श्रध्दांजली दी तथा यहाँ समाधि स्थल का एक समाचार संकलित किया। .
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      आष्टा। कल रात्रि में लगभग साढ़े सात बजे ग्राम खाचरोद में कलाली के सामने से अज्ञात चोर कमल सिंह पुत्र उमराव सिंह जाति बलाई की मोटर साईकिल क्रमांक एमपी 37 एमए 3214 सिटी 100 को अज्ञात चोर चुरा ले गये।

 

 

मोटर साईकिल उठा ले गये

      आष्टा। कल रात्रि में पिछले दिनो खाचरोद वन विभाग द्वारा एक मोटर साईकिल जप्त की गई थी जिसे कल रात्रि में सईद, मकबूल और कल्लू निवासी आमखेड़ी आदि रात्रि में खाचरौद से उठा लाये। जिस पर डिप्टी रेंजर रविन्द्र नाथ दुबे ने खाचरोद थाने में शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर जांच शुरु की है।.
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रेत के अवैध परिवहन करते तीन ट्रक जप्त

      सीहोर 14 जनवरी (नि.सं.)। नर्मदा रेत के अवैध परिवहन करते तीन ट्रकों को खनिज विभाग द्वारा जप्त कर अमलाहा पुलिस चोकी की सुपुर्दगी में सौंपा है। गौरतलब है कि कलेक्टर  डी.पी. आहूजा द्वारा किए गए निर्देशों के मुताबिक जिले में खजिन के अवैध रूप से उत्खनन एवं परिवहन के विरूद्ध खनिज विभाग द्वारा अभियान चलाकर सख्ती से कार्यवाही की जा रही है। खनिज विभाग के अमले द्वारा मंगलवार को आष्टा मार्ग पर अवैध रूप से रेत ले जा रहे तीन ट्रकों को पकड़ा गया। इनमें ट्रक क्रमांक एमपी 09 केसी 4527, एमपी-04 8104 और ट्रक क्रमांक एमपी-04 जीए 2191 शामिल थे। इन तीनों ट्रकों को जप्त कर इनके मालिकों के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है। खनिज अमले द्वारा खनिज निरीक्षक श्री विनोद मुग्रे के नेतृत्व में कार्यवाही को अंजाम दिया गया।

 

उपचार के दौरान विवाहिता की मौत

      सीहोर । अज्ञात कारणों के चलते जहरीला पदार्थ सेवन करने वाली एक विवाहिता की उपचार के दौरान मोत हो गई। सूचना पर पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार सिद्धिकगंज थाना अंतर्गत आने वाले ग्राम तिल्लौद निवासी जितेन्द्र की 25 वर्षीय पत्नी सुमित्राबाई गत दिनों जहरीले पदार्थ का सेवन कर ली थी जिसे उपचार हेतु हमीदिया अस्पताल भोपाल दाखिल कराया गया था जहां पर उसकी मोत हो गई।.
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इंदिरा आवासों के लिए पोने दो करोड़ राशि जारी

      सीहोर 14 जनवरी (नि.सं.)। इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत वर्ष 2008-09 के लिए जिले की 249 ग्राम पंचायतों को नवीन एवं उन्नयन इंदिरा आवास के लिए एक करोड़ 85 लाख 88 हजार 750 रूपयों की राशि जिला पंचायत द्वारा जारी की गई है। इस सिलसिले में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी अरूण कुमार तोमर द्वारा भुगतान स्वीकृति आदेश जारी कर दिए गए है। योजना के नियम कायदों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया गया है।

      जारी ओदश में दिए गए निर्देशों और शर्तो के मुताबिक हितग्राहियों का चयन वर्ष 2002-03 के सर्वे के आधार पर तैयार ग्राम पंचायत वार स्थायी प्रतिक्षा सूची से किया जाएगा और ग्राम पंचायत की दीवार पर लिखे नामों के क्रमानुसार किया जाएगा। सभी आवासों में शौचालय एवं उन्नत चूल्हों का निर्माण अनिवार्यत: किया जाएगा। इंदिरा आवास के शौचालय का निर्माण समग्र स्वच्छता अभियान के तहत किया जावेगा। ग्राम पंचायतों को राशि प्राप्त होने के सात दिवस के भीतर संबंधित हितग्राही के खाते में क्रास चैक द्वारा नवीन आवास के लिए प्रथम किश्त की राशि 17 हजार 500 तथा उन्नयन आवास की राशि 7 हजार 500 अंतरित की जायगी। द्वितीय चरण के आवास 45 दिवस में पूर्ण कराना, लक्ष्य में से साठ फीसदी अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के परिवारों को लाभान्वित किया जाना तथा द्वितीय चरण में प्रदाय राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र एवं कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र 20 जनवरी 09 तक प्रस्तुत किया जाना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए है।

      जिले में नवीन ओर उन्नयन आवासों के लिए जारी राशि के मुताबिक सीहोर विकासखण्ड की 72 ग्राम पंचायतों के लिए 79 लाख 65 हजार, आष्टा विकासखण्ड की 67 ग्राम पंचायतों के लिए 46 लाख 46 हजार 250, इछावर विकास खण्ड की 35 ग्राम पंचायतों के लिए 14 लाख 81 हजार 250, बधनी विकासखण्ड की 31 ग्राम पंचायतों के लिए 13 लाख 57 हजार 500 तथा नसरूल्लागंज विकासखण्ड की 44 ग्राम पंचायतों के लिए 31 लाख 38 हजार 750 रूपयों की राशि नवीन और उन्नयन आवासों के लिए उपलब्ध कराई गई है। .
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गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूसों ने सीहोर में इंकलाब का नारा बुलंद किया था

स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक पृष्ठों पर अंकित सिपाही बहादुर सरकार के क्रांतिकारियों को भूल गया सीहोर

      स्वतंत्रता संग्राम के लिये सीहोर के बहादुर सैनिकों के अमिट योगदान को कौन भुला सकता है। अंग्रेजों को खदेड़ने के लिये सन् 6 अगस्त 1857 को गठित 'सिपाही बहादुर सरकार' ने सीहोर, भोपाल में अपनी बहादुरी के झण्डे गाड़ दिये थे और यहाँ से अंग्रेजों को खदेड़कर बाहर कर दिया था। लेकिन बाद में भोपाल बेगम की सहायता और बाहरी फौजों के आ जाने से सिपाही बहादुर सरकार के सभी प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों को पकड लिया गया और उन्हे सामुहिक रूप से भून डाला गया।

      स्वतंत्रता संग्राम के समृध्द इतिहास को अपने गर्भ में संजोये सीहोर को लेकर मध्य प्रदेश शासन और स्थानीय प्रशासन ने कभी कोई गंभीर कदम नहीं उठाये। यहाँ ऐतिहासिक स्मारकों और जीर्ण-शीर्ण हो रही समाधियों की देखरेख आज तक नहीं की गई।

      स्वयं मध्य प्रदेश माध्यम भोपाल शासन द्वारा मुद्रित, स्वराज संस्थान संचालनालय रवीन्द्र भवन परिसर, भोपाल द्वारा प्रकाशित और मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रविन्द्रनाथ टैगोर मार्ग, बाणगंगा भोपाल द्वारा वितरित की गई स्वर्गीय लेखक असल उगा खाँ द्वारा लिखी पुस्तक ''सिपाही बहादुर'' में स्पष्ट रूप से सीहोर की इस सिपाही बहादुर सरकार द्वारा जंगे आजादी के लिये किये गये सारे कारनामों का सिलसिलेवार उगेख है। इस प्रकार मध्य प्रदेश शासन द्वारा इस बात को मान्यता दी गई है कि सीहोर का गौरवमयी इतिहास और यहाँ स्वतंत्रता संग्राम सैनानी में सिपाही बहादुर सरकार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन आज तक स्थानीय जिला प्रशासन ने इसको लेकर कभी कोई गंभीर कदम नहीं उठाये हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में शासन द्वारा प्रकाशित कराई गई 'सिपाही बहादुर' किताब में स्पष्ट उगेख है कि ''6 अगस्त 1857 को सीहोर में अंग्रेजी-राज के विरुध्द सिपाही बहादुर सरकार स्थापित की थी जिसका मूल्य तीन सौ छप्पन से अधिक जॉबाज वतन परस्तों ने सामुहिक रूप से सजा-ए-मौत पाकर चुकाया'' । इसी सिपाही बहादुर किताब के पृष्ठ मांक 7 पर चर्बी वाले कारतूसों की शिकायत शीर्षक से स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि ''मेरठ की तरह सीहोर के फौज़ियों की भी एक शिकायत यह भी थी कि जो नये कारतूस फौज में उपयोग किये जा रहे हैं उनमें गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। सिपाहियों का विचार था कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों की दीन-ईमान को खराब कर देना चाहते हैं। इस अवसर पर किसी ने फौज में यह अफवाह फैला दी कि सिकन्दर बेगम अंग्रेजों को खुश करने के लिये छुपकर ईसाई हो गई हैं। इन अफवाहों से फौज में रोष व्याप्त हो गया। भोपाल नगर के लिये छुपकर स्टिान 'ईसाई' हो गई हैं जब ये अफवाह सिकन्दर बेगम तक पहुँची तो उन्होने रियासत के वकील मुंशी भवानी प्रसाद से कहा जिस पर भवानी प्रसाद ने उन्हे खामोश रहने और बर्दाश्त करने को कहा। कारतूसों में चर्बी के उपयोग की शिकायत की जाँच फौज के बख्शी साहब की उपस्थिति में सीहोर के हथियार खाने में की गई। इस जांच में छ: पेटी में से दो पेटी संदेहास्पद पाई गई, जिन्हे अलग कर दिया गया और ये आदेश दिये गये कि संदेह वाले कारतूसों को तोड़कर तोपों के गोला बारुद में उपयोग में लाय जाये। परन्तु इस आदेश के पश्चात भी बागियों के शक में कोई कमी नहीं हुई बल्कि उन्हे यकीन हो गया कि नये कारतूसों में अवश्य ही गाय और सुअर की चर्बी उपयोग की जा रही है। इस प्रकार फौज के एक बडे वर्ग में बगावत फैल गई।''

      मध्य प्रदेश शासन के मध्य प्रदेश स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा प्रकाशित 'सिपाही बहादुर' किताब के पृष्ठ मांक 56 में सिपाही बहादुर का खात्मा शीर्षक के अन्तर्गत लिखा है कि ''सिपाही बहादुर सरकार जिसकी स्थापना 6 अगस्त 1857 को सीहोर में हुई थी, 31 जनवरी 1858 को उस दिन समाप्त हो गई जब फाज़िल मोहम्मद खाँ को राहतगढ़ किले के दरवाजे पर जनरल रोज़ के आदेश से मृत्यु दण्ड दिया जाकर फांसी पर लटका दिया गया। बगावत असफल होने के पश्चात भी सीहोर के बागी जिन्होने सिपाही बहादुर सरकार गठित की थी किसी न किसी प्रकार अपना आंदोलन चलाते रहे परन्तु व्यापक स्तर पर उनकी गिरफ्तारियों, देश निकाले और कई सजाओं ने उनके दमखम तोड़ दिये, इसे उस समय भारी क्षति उठानी पडी जब उसके राष्ट्रभक्त सिपाहियों को 14 जनवरी 1858 को सीहोर में जनरल रोज़ के आदेश से सामुहिक हत्याकाण्ड के द्वारा मार डाला गया। इस सामुहिक कत्लेआम ने सिपाही बहादुर की कमर तोड़ दी।'' किताब के पृष्ठ मांक 50 पर सीहोर में इंकलाबियों का कत्ले आम शीर्षक से स्पष्ट लिखा है कि ''14 जनवरी 1858 को सीहोर के सैकडो राष्ट्रवादी कैदियों को जेल से निकाला गया और एक मैदान में लाकर ख़डाकर दिया गया । यहाँ उनकी छोटी-छोटी टुकड़ियाँ बनाकर गोलियों से भून डाला गया । इस प्रकार 356 कैदियों को बिना किसी नियमित जांच के गोलियों से उडा दिया गया।''इस संदर्भ में हयाते सिकन्दरी किताब में उल्लेख है ।

      दुर्भाग्य से आज तक सीहोर के इन शहीदों का स्मरण न तो सीहोर ने किया और ना ही मध्य प्रदेश शासन ने इस व्यवस्थित इतिहास को आवश्यक रूप से शिक्षा विभाग के पाठय पुस्तकों में ही कोई स्थान दिलाया। आज भी इन शहीदों के समाधियाँ सैकड़ाखेड़ी मार्ग पर स्थित हैं जहाँ विगत कुछ वर्षों से बसंत उत्सव आयोजन समिति द्वारा एक पुष्पांजली कार्यम भर ही किया जाता है जबकि शासन द्वारा न तो इन अवशेषों के संरक्षण के लिये कोई प्रयास किया जा रहा है न ही इस दिन विशेष छुट्टी आदि रखी जाती है।
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सीहोर का गौरवमयी स्वर्णिम स्वतंत्रता आंदोलन...13 जून को बगावती चपातियाँ सीहोर आईं थीं

        भारत मे बाहरी सत्ता के विरुद्ध मई 635 में जो सशस्त्र बगावत हुई थी उसने उत्तर भारत को भी चपेट ले लिया था। बगावत की चिंगारी मालवा व ग्वालियर में पहुँची थी। मालवा क्षेत्र में संगठित बगावत शुरु होने के लगभग 6 माह पूर्व से ही सीहोर भोपाल रियासत में बगावत की तैयारी होने लगी थी। 13 जून 1857 के आसपास सीहोर के कुछ देहाती क्षेत्रों में भी बगावती चपातियाँ पहुँची थीं। इस क्षेत्र में ये चपातियाँ एक गांव से दूसरे गांव भेजी जाती थी, जो इस बात की परिचायक समझी जाती थीं कि इन देहातों के रहने वाले बग़ावत से सहमत हैं। सीहोर के देहाती क्षेत्रों में इन चपातियों के पहुँचने से ये नतीजा निकलता है कि यहाँ रहने वाले बहुत पहले से अंग्रेजी राज को समाप्त करने की तैयारी में जुटे थे। हालाँकि इन चपातियों के आने और जाने को बग़ावत के कार्यों में शामिल नहीं किया जाता था फिर भी चपातियाँ बगावत की तैयारी का प्रतीक समझी जा सकती हैं। (स्त्रोत हयाते सिकन्दरी नवाब सुल्तान जहाँ बेगम)

सीहोर में बंटे बगावती पर्चे

      1 मई 1857 को भोपाल में एक बाग़ियाना पोस्टर की पाँच सौ कापियाँ भोपाल सैना में वितरित की गईं थीं। इस पोस्टर में अन्य बातों के साथ लिखा था कि बरतानवी हुकूमत हिन्दुस्तानियों के धार्मिक मामलों में भी मदाखलत कर रही है इसलिये इस सरकार को खत्म कर  देना चाहिये। इसे पढक़र फौजियों में बांगियाना जज्बात पैदा हो गये और कुछ सिपाहियों ने तय कर लिया था कि देहली जाकर गदर आंदोलन में साथ देंगे। भोपाल सैना का एक व्यक्ति 'मामा कहार खाँ' रियासत भोपाल के पहले आदमी थे जिन्होने अपना वेतन और नौकरी दोनो को छोड़कर देहली जाने का फैसला कर लिया। उनकी देखा-देखी सिपाहियों ने वेतन लेने से इंकार कर दिया। इस पर सिकन्दर बेगम भोपाल ने मामा कहार खाँ को मनाने के प्रयास किये लेकिन वह राजी नहीं हुए। इस पर उस पोस्टर का एक जबावी पोस्टर 4 जून 1857 को सिकन्दर प्रेस में छपवाया जाकर सिपाहियों में वितरित किया गया। बगावती पोस्टर बाहर से छपकर आये थे जिन्हे यहाँ शिवलाल सूबेदार ने बंटवाये थे। जिससे सिद्ध होता है कि भोपाल से देश के अन्य क्रांतियों की नजदीकी थी।

देशभक्त मोहम्मद खाँ ने जब इन्दौर से अंग्रेजों को भगाया

      जून 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन गदर से पूरा मालवा आंदोलित था। ग्वालियर, माहिदपुर, महू, मंदसौर, इन्दौर में क्रांति की ज्वाला भड़क गई थी। उस समय महाराज ग्वालियर जीवाजीराव ने अंग्रेजों को शरण दी। इन बगावतों के समय सीहोर की सैनिक छावनी से 300 जवान इन्दौर रेजीडेंसी की सुरक्षा के लिये तैनात किये गये। इन्दौर की बंगावत प्रारंभ होने के पहले भोपाल के एक बागी वारिस मोहम्मद खाँ इन्दौर में मौजूद थे। इन्ही मोहम्मद खाँ और सआदत मोहम्मद खाँ के नेतृत्व में 1 जुलाई 1857 की सुबह इन्दौर की छावनी में रेजीडेंसी की इमारतों पर हमला किया था। इन इमारतों की सुरक्षा के लिये सीहोर की सैनिक कम्पनी तैनात थी। लेकिन बागियों के आगे सबने हथियार डाल दिये।

      हमले में लगभग 50 अंग्रेज मारे गये। उस समय कार्यवाहक गवर्नर जनरल कर्नल डयूरेंट वहीं था जो भाग कर अन्य जगह चला गया और भोपाल सिकन्दर बेगम से मदद मांगी। इस पर बेगम ने उन्हे उनके अंग्रेज साथियों के साथ सीहोर तक सुरक्षित लाने की व्यवस्था कर दी जिसके लिये सीहोर की ही फौज के कुछ वफादार सिपाहियों को भेजा गया। इन सिपाहियों ने 4 जुलाई को सीहोर छावनी जनरल डयूरेंट को पहुँचाया। इसके बाद डयूरेंट तो होशंगाबाद चला गया लेकिन सिकन्दर बेगम की अंग्रेजो को दी गई मदद से सीहोर की सैनिक छावनी में बगावती लहर पैदा हो गई।

10 जुलाई 1857 को सारे अंग्रेज भाग गये

      सीहोर की फौज के जो सिपाही इन्दौर व महू में तैनात किये गये थे उनमें से 14 बागी सिपाही बिना अनुमति के 7 जुलाई को सीहोर वापस आ गये और उन्होने यहॉ आते ही सीहोर सैनिक छावनी में बगावत की तैयारी शुरु कर दी। सीहोर सैनिक छावनी के तेवर बिगड़ने से पॉलिटिकिल एजेन्ट मेजर हेनरी विलियम रिकार्डरस घबरा गये। इसलिये उन्होने और उनके अंग्रेज स्टाफ ने फौरन सीहोर छोड़ देने का फैसला कर लिया। उन्होने सिकन्दर बेगम से बातचीत के बाद होशंगाबाद जाने का निर्णय लिया और 10 जुलाई 1857 को पॉलिटिकिल एजेन्ट और उनके सभी अंग्रेज अपने परिवार (पत्नि-बच्चे) सहित होशंगाबाद चले गये। उस समय जाने के पहले 9 जुलाई को सीहोर फौज का पूर्ण चार्ज भोपाल रियासत को दे दिया था। उस समय सीहोर की फौज में 737 पैदल, 363 सवार, 113 तोपखाने के आदमी थे। रियासत की और से इस फौज का चार्ज भोपाल आर्मी के कमांडर इन चींफ बख्शी मुरव्वत मोहम्मद खाँ ने लिया था। इस प्रकार 10 जुलाई 1857 के बाद डर के मारे सीहोर छावनी में एक भी अंग्रेज बाकी नहीं रहा था।

      यहॉ उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों को होशंगाबाद छुड़वाने के लिये सिकन्दर बेगम ने सिपाहियों को भेजा था उन सिपाहियों को ही फौज से निकालने की मांग सीहोर के बागी सिपाहियों ने कर दी थी। जिसे बख्शी ने मानने से इंकार कर दिया था।

घी और शक्कर में मिलावट की शिकायत कोतवाल भागे

      11 जुलाई 1857 को सीहोर के कुछ सिपाहियों ने ये शिकायत की थी कि बाजार में जो घी और शक्कर बेची जा रही है और जो यहॉ फौज को भी सप्लाई की जा रही है उसमें मिलावट की जा रही है। खाद्य सामग्री में मिलावट की यह शिकायत सीहोर में नई बात थी। इस अफवाह की वजह से सभी फौजियों में गुस्से की लहर फैल गई। कुछ जोशीले और भडक़ीले सिपाहियों ने दुकानदारों तक को सबक सिखा दिया था। सिपाही मिलावट के लिये सरकार को दोषी मान रहे हैं। उस समय इन अफवाहों से सीहोर के अन्दर इतनी बैचेनी फैल गई थी कि यहॉ के कोतवाल लाला रामदीन को ये अंदेशा हो गया था कि बांगी कहीं उन पर भी हमला न कर दें। इस बदहवासी की हालत में वो अपनी जान बचाने के लिये सीहोर से भाग खड़े हुए। सरकार ने उनकी जगह पर इमदाद अली को तैनात किया परन्तु वह भी घबराहट में डयूटी ज्वाईन करने के बाद छुप गये।
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