Monday, September 1, 2008

रामचरित मानस में हैं आतंक से निपटने के सूत्र

घटना उस समय की है जब धनुर्धारी भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ दंडक वन में गषि विश्वामित्र के यज्ञ स्थल की रक्षा कर रहे थे। यज्ञ भंग करने के लिए वहां पर ताड़का, सुबाहु व नीच मारीच पहुंच गए। भगवान राम ने अपने बाणों के प्रचंड प्रहारों से ताड़का व सुबाहु का तो वहीं पर संहार कर दिया और मारीच पर इतना प्रबल बाण चलाया कि वह सौ योजन दूर रावण के पास जा गिरा जहां से आतंकवाद की सारी गतिविधियां चल रही थीं। तब भयभीत मारीच आतंकवाद के सरगना रावण से कहता है कि
तेहि पुनि कहा सुनहु दससीसा,
ते नररूप चराचर ईसा।
तासों तात बैर नहीं कीजै,
मारें मरिअ जिएं जीजै॥
मुनि मख राखन गयउ कुमारा,
बिनु फर सर रघुपति मोहि मारा।
सत जोजन आयउं छन माहीं,
तिन्ह सन बैर किए भल नाहीं।
अर्थात् हे रावण, वे मनुष्य के रूप में ईश्वर हैं। उनसे वैर न कीजिए। जन्म और मृत्यु उनके अधीन हैं। उनके फल के बिना बाण इतने प्रबल हैं कि मैं क्षण भर में ही यहां सौ योजन की दूरी पर आ गिरा। आपका उनसे वैर करने में भला नहीं होगा। आज जरूरत है देश में छद्म वेश में छिपे ताड़का, सुबाहु व मारीच अर्थात् आतंकवादियों को ऐसा सबक सिखाने की, जो विदेशों में बैठे लादेन, दाऊद, आई.एस.आई. रूपी रावण को समझा सकें कि भारत से वैर लेने का साहस न करें।
देश में आतंकवाद कोई नई समस्या नहीं है। यह प्राचीन समय में भी विद्यमान था। अंतर केवल इतना है कि इसका स्वरूप अलग था। ऋषि-मुनियों के आश्रमों में राक्षसों द्वारा उत्पाद मचाने, उनका संहार करने की जो घटनाएं हैं वे आतंकवाद की ही दास्तानें हैं। दु:ख की बात है कि आतंकवाद को समाप्त करने के लिए हम विश्व से सहयोग मांगते फिर रहे हैं जबकि 'रामचरितमानस' के रूप में इस समस्या का समाधान सदियों से हमारे पास है।
देश के पास न केवल समाधान बल्कि सामर्थ्य भी है कि आतंकवाद को देश से पूरी तरह नेस्तानाबूद कर दिया जाए, परन्तु कमी केवल भगवान राम जैसे कुशल नेतृत्व व महाराजा दशरथ जैसी प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति की है। 'रामचरित मानस' में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो हमें बताते हैं कि आतंकवादियों से किस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए। उक्त प्रसंग से प्रेरणा लेकर हमें अपने पड़ोस में चल रहे आतंकवादियों के अड्डों को ध्वस्त कर देना चाहिए और आतंक फैलाने वाले लोगों व उनके समर्थकों का इस निर्ममता से संहार करना चाहिए कि कोई मारीच अपने आका को जाकर समझाने को विवश हो जाए कि भारत में उनके इरादे सफल होने वाले नहीं हैं।
ऋषि विश्वामित्र जब महाराजा दशरथ के पास आतंकवाद के खिलाफ मदद लेने के लिए आए तो उनसे विरोधी विचार रखने वाले गुरु वशिष्ठ जी ने भी उनकी हां में हां मिलाई और राम लक्ष्मण को राक्षसों का संहार करने के लिए भेजने का समर्थन किया। यह बात हमें आतंकवाद के खिलाफ एकमत व एकजुट होने की सीख देती है। समाज में हमारे कितने भी राजनीतिक, वैचारिक, सामाजिक मतभेद हों परंतु आतंकवाद के खिलाफ सभी को एकजुट होना होगा।
भगवान राम का पूरा जीवन धर्म व मर्यादा का प्रतीक है परन्तु आतंकवाद की समाप्ति के लिए वे कहीं-कहीं मर्यादा का त्याग भी करने से नहीं झिझकते। रामायण में शूर्पनखा कुटिल कूटनीति की प्रतीक है परन्तु भ्राता लक्ष्मण उसकी नाक काट कर इस कूटनीति का पटापेक्ष करते हैं। आज शूर्पनखा की तरह ही हमारे देश में बैठे मानवाधिकार संगठन व आतंकवाद की मां पाकिस्तान विदेशों में भारत के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं। पाकिस्तान हमारे देश में विशेषकर कश्मीर में चल रहे आतंकवाद को स्वतंत्रता संग्राम बता रहा है तो मानवाधिकारवादी व प्रगतिशीलवादी आतंकवाद को गुजरात दंगों के साथ जोड़कर इसे तर्कसंगत ठहराने का प्रयास करते हैं। सरकार जब भी आतंकवाद के खिलाफ सख्त कानून बनाती है या इन नरपिशाचों पर सख्ती करती है तो इसके विरोध में हजारों शूर्पनखाएं खड़ीं होकर शोर मचाने लगती हैं। जरूरत है आतंकवाद समर्थित इन शक्तियों का पटाक्षेप करने की और इनकी नाक काटने की।
इसी तरह अधर्म के प्रतीक व आतंकवादी सरगना रावण के मित्र महाबली बाली को मारने के लिए भगवान राम को मजबूरीवश छिपकर वार करना पड़ता है, जो हमें प्रेरणा देता है कि आतंकवाद को समाप्त करने के लिए हमें साम, दाम, दंड, भेद, जैसी नीतियों का भी सहारा लेना पड़ता है। बाली वध के माध्यम से भगवान राम ने रावण को अपनी शक्ति का अहसास करवाया था और संदेश दिया था कि जिस बाली ने उसे अभय प्रदान किया था उसको भी मारा जा चुका है। ऐसा करके उन्होंने रावण (आतंकवादियों) को सही मार्ग पर आने का अंतिम अवसर दिया था। परन्तु रावण नहीं माना जिसके फलस्वरूप एक लाख पूत, सवा लाख नाती, महाबली भाई कुंभकरण, विशाल सेना अकाल मौत का शिकार बनी। वास्तव में आतंकवाद का अंत करने के लिए रामायण से अधिक प्रेरणादायी कोई दूसरा प्रसंग मिलना इस धरती पर शायद ही संभव हो।
भगवान राम जब दंडकारण्य में विचरण करते हैं तो गषि-मुनि उन्हें हड्डियों के ढेर दिखाते हैं। जिस प्रकार आज आतंकवादी आतंक फैलाने के लिए हत्याएं व विस्फोट करते रहते हैं उसी प्रकार राक्षसों ने भी समाज को भयभीत करने के लिए हड्डियों का ढेर लगा दिया था। तब भगवान राम, 'निसिचर हीन करुँ महि, भुज उठाई पन कीन्हं अर्थात् धरती को निशाचर विहीन (आतंकवाद मुक्त) करने की प्रतिज्ञा लेते हैं और इस समस्या से निपटने के लिए दॄढ़ संकल्प व इच्छाशक्ति का संदेश देते हैं। आतंकवाद की हर घटना के बाद दूसरों को जिम्मेवार, ठहराने, ओछी राजनीति करने, आतंकवाद से सख्ती से निपटने की औपचारिक घोषणा करने वाले भारत के राजनेता अपनी इस विरासत से मार्गदर्शन लें।
साभार पांचजन्य

भगवान महावीर स्वामी का जन्म वाचन समारोह सानन्द सम्पन्न

आष्टा 31 अगस्त (नि.सं.)। नर से नारायण बनने, पानी से परमात्मा बनने, भक्त से भगवान बनने के लिये जो मार्ग बताया गया है वह मार्ग धर्म का मार्ग है। भगवान ने जो छोड़ने योग्य बात बताई है आज निश्चित करो की उसे छोड़ेंगे। संसार में जो निंद प्रवृत्तियाँ हैं, वह जीवन में छोड़ेंगे तो लोकप्रिय बनने में देर नहीं लगेगी। उक्त उद्गार आज पर्यूषण पर्व के अन्तर्गत भगवान महावीर जी के जन्मवाचन समारोह के दौरान महावीर भवन स्थानक में विराजित महाराज साहब मधुबाला जी ने व्यक्त किये।
आज भगवान महावीर स्वामी जी का जन्म वाचन समारोह श्री श्वेताम्बर जैन समाज में दादाबाड़ी, महावीर भवन स्थानक, महावीर स्वामी जैन मंदिर गंज एवं श्री नेमिनाथ श्वेताम्बर जैन मंदिर किले पर उत्साह पूर्वक मनाया गया। प्रवचन में आज महाराज साहब ने कहा कि जो व्यक्ति जीवन में निंद प्रवृत्ति जैसे शराब सेवन, बीड़ी सिगरेट पीना, गंदे चित्र एवं फिल्म देखना, चोरी करना, सट्टा जुंआ पाउच खाना आदि का त्याग नहीं करता है उसके जीवन में इनके जो बुरे परिणाम आते हैं उसे भुगतने पड़ते हैं। व्यक्ति निंद प्रवृत्ति में पैसा भी लगाता है, खर्चा भी करता है और परिणाम केवल बर्वादी ही आता है। जो व्यक्ति निंद प्रवृत्तियों में लगा रहता है उसे हर जगह तिरस्कार ही तिरस्कार मिलता है।
आज सभी श्रावक-श्राविकाएं भगवान महावीर स्वामी का जन्म वाचन समारोह मनाने के लिये उपस्थित हुए सभी का जन्म वाचन समारोह मनाना तभी सफल होगा जब एक दूसरे के प्रति जो गांठ दिलों में लगी है आज निश्चय करें कि वो गांठ खोलकर आपस में स्नेह और प्रेम निर्मित करेंगे।
महावीर ने जो कहा उसे जीवन में उतारें। प्रवचन के पश्चात महाराज साहब ने जन्म वाचन किया। इसके पूर्व महावीर भवन स्थानक में अध्यक्ष लोकेन्द्र बनवट ने स्वागत भाषण प्रस्तुत कर सभी का स्वागत किया। यहाँ पर कुमारी सोनू देशलहरा, श्रीमति साधना रांका, श्रीमति संध्या छाजेड़ ने भजन प्रस्तुत किये। बालक अक्षत ललवानी ने एक मुक्तत प्रस्तुत किया। संचालन सुशील संचेती ने तथा आभार दिलीप सुराणा ने व्यक्त किया।
आज भगवान महावीर स्वामी का जन्म वाचन दादाबाड़ी, गंज मंदिर, किला मंदिर पर जावरा से पधारे श्रावक श्री यतीन्द्र भण्डारी ने किया। सभी मंदिरों में सपना जी, पालना जी एवं आरती की बोलियाँ लगी। इस अवसर पर सभी जगह पर प्रभावना वितरित की गई। आज समारोह में नगर पालिका अध्यक्ष कैलाश परमार विशेष रुप से उपस्थित रहे। रात्रि में गंज मंदिर एवं सुरेश धाड़ीवाल के निवास पर प्रभु भक्ति का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

त्यौहारों की झांकी में अस्थायी कनेक्शन के लिये घरेलू दर पर कनेक्शन मिलेगा

सीहोर 31 अगस्त (नि.सं.)। मध्य प्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी ने धार्मिक उत्सव समितियों और बिजली उपभोक्ताओं से अपील की है कि वे गणेश उत्सव एवं अन्य त्यौहारों के दौरान धार्मिक पंडालों एवं झांकियों में बिजली साज साा कम्पनी से नियमानुसार अस्थायी कनेक्शन लेकर करें। कंपनी ने बताया है कि विद्युत प्रदाय मीटरीकृत होगा।
विद्युत देयक की बिलिंग नियमानुसार अस्थायी कनेक्शन हेतु लागू घरेलू दर पर की जाएगी तथा तदानुसार कम्पनी में राशि जमा कराना होगी। इसके लिए आवेदन में दर्शाए अनुसार विद्युत भार के अनुरूप सुरक्षा निधि एवं अनुमानित विद्युत उपभोग की राशि अग्रिम जमा करा कर पक्की रसीद प्राप्त की जाना चाहिये। मध्यप्रदेश क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी ने कहा है कि बिजली उपभोक्ता गणेश उत्सव समितियां गणेश चतुर्थी,अनंत चतुर्दर्शी, दुर्गोउत्सव और अन्य धार्मिक त्यौहारो के मौके पर आयोजन में धार्मिक पंडालों झांकियों में विद्युत साज सजावट हेतु कम्पनी के निकटतम वितरण केंद्र सहायक अभियंता के कार्यालय में निर्धारित प्रपत्र में सही,संयोजित विद्युत भार दर्शाते हुए अस्थायी कनेक्शन हेतु आवेदन आवश्यक रूप से प्रस्तृत करें। कंपनी ने कहा है कि धार्मिक उत्सव समितियों उपभोक्ताओं को एक लिखित आश्वासन देना होगा कि आवेदित विद्युत भार अधिक का उपयोग नही करेंगे तथा लायसेंसी विद्युत ठेकेदार से ही करवायें।
उपभोक्ताओं कहा गया है पण्डाल में अच्छे प्रतिरोधक क्षमता वाले ही तारों का उपयोग करें। जोड़ो पर सही प्रकार के इन्सुलेशन टेप लगायें। तारों को परदे तथा लकडी क़ी सामग्री से दूर रखें। मध्य विद्युत वितरण कम्पनी ने आग्रह किया है कि आवेदित विद्युत भार से अधिक भार का उपयोग विद्युत साज सज्जा के लिए नही करें। निवेदन किया गया है कि अनाधिकृत तरीके से विद्युत का उपयोग नही किया जाए। मध्य प्रदेश क्षेत्र कपंनी ने संचेत किया है कि अधिक भार ट्रांसफार्मर के जलने की संभावना तथा दुर्घटना की आशंका रहती है इसी प्रकार पारेषण एवं वितरण प्रणाली पर विपरीत असर होने से अंधेरे की संभावना का खतरा रहता हैं।
त्यौहार समितियों को कहा गया है कि अनधिकृत विद्युत उपयोग करने पर इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के तहत उपयोग कर्ता एवं जिस ठेकेदार से कार्य कराया गया है, उनके विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही की जाएगी। इसी प्रकार अनधिकृत विद्युत उपयोग की दशा में संबंधित विद्युत ठेकेदार का लायसेंस भी निरस्त हो सकता है। मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के भोपाल क्षेत्र एवं ग्वालियर क्षेत्र के बिजली उपभोक्ताओं से आग्रह है कि झांकियों के निर्माण एवं विद्युत साज साा में विद्युत सुरक्षा नियमों का अनिवार्य रूप से पालन करें।

पर निंदा करने वाला खुद भी डूबता है और दूसरे को भी डूबाता है-मधुबाला जी

आष्टा 31 अगस्त (नि.प्र.)। प्रिय और लोकप्रिय बनना है तो सबसे पहले व्यक्ति को पर निन्दा को त्यागना होगा 18 पापों में निन्दा को पाप बताया है निन्दा करना और निन्दा सुनना दोनों ही पाप है पर निन्दा जो करता है वो तो स्वयं डूबता है और दूसरे को भी डूबता है वही जो व्यक्ति आत्म निन्दा करता है वो तिर जाता है। ज्ञानियों ने आत्म निन्दा को डाक्टर की तरह तथा पर निन्दा को धोबी की संज्ञा दी है।
उक्त उद्गार पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन आज पूज्य मा.सा. श्री मधुबाला जी मा.सा. ने लोकप्रिय बनने के लिए बताई गई पांच बाते पहला निन्दा का त्याग, दूसरा निन्दा प्रवृत्ति का त्याग, तीसरा दान की रूचि चौथी शीलवान एवं पांचवी विनयवान में से आज निन्दा का त्याग विषय पर प्रवचन देते हुए कहा कि पर्व का महत्व उसी के लिए है जो पर्वो की महत्ता को समझता है। गुलाब का फूल अपनी खुशबू से आस-पास के वातावरण को भी अपनी खुशबू से महका देता है ठीक उसी प्रकार पर्व जीवन में खुशबू ही खुशबू बिखेर देता है। म.सा. ने निन्दा को धोबी की उपमा देकर समझाया की जब धोबी घाट पर कपड़े कूटता है धोता है तो छींटे उसके ऊपर ही उड़ते है अर्थात निन्दा करना और सुनना दोनों ही पाप है वही मा.सा. ने बताया की आत्म निन्दा डाक्टर की तरह होती है। आत्म निन्दा के अंदर सुधरने का भाव रहता है पर निन्दा करने वाला खुद तो डूबता है दूसरे को भी डूबाता है म.सा. ने पूछा व्यक्ति निन्दा क्यों करता है इसके उत्तर में बताया की निन्दा करने के पीछेर् ईष्या का कारण रहता है। निन्दा जीवन में परिभ्रमण का कारण बनता है। उन्होंने धर्म नहीं करने वालों से कहा की जो व्यक्ति किसी भी कारण से अगर धर्म नहीं करता है तो वो कम से कम निन्दा न करें इसी प्रकार आज प्रवचन में बताया की जीभ को अग्नि की उपमा दी गई है आग उपयोगी भी हो सकती है और उसका दुरूपयोग भी हो सकता है इसलिए लोकप्रिय बनना हो तो जीवन में निन्दा का त्याग करें।
उन्होंने चुगली को उगली हुई खीर बताते हुए कहा कि उगली हुई खीर को कौन खाता है स्वयं विचार करें। निन्दा करने वालों को व्यक्ति की अच्छाई नजर नहीं आती है जिस प्रकार किसी कोरे सफेद कागज पर एक काली बिन्दी लगा दी जाये तो देखने वाले को पूरा कागज जो सफेद है नहीं दिखता उसे केवल उस पर लगी काली बिन्दी है नजर आती है दुर्गुण नकटे और निटठल्ले होते है वही सद्गुण मनुवार वाले होते है आज म.सा. ने प्रवचन में उपस्थित सभी लोगों को कहा कि सामूहिक भोज, शादी या अन्य कार्यक्रम हो तो भोज में आइटम कम से कम बनाये अधिक आयरन बनाने पर व्यर्थ जाता है सोचो कितने लोग ऐसे है जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिलती है हम झूठा छोड़ते है वही उन्होंने महिलाओं से कहा कम से कम साड़िया रखो क्योंकि कई बहने ऐसी भी है जिनके तन वो बड़ी मुश्किल से ढक पाती है उनकी चिन्ता करो। अगर आपके संघ ने गरीब के लिए सोचा और उनके लिए कुछ किया तो आपका संघ लोकप्रिय हो जायेगा समाज में उसकी मिशाल दी जायेगी। इस अवसर पर सुनीता जी म.सा. ने प्रवचन के माध्यम से कहा कि अगर तीर्थ कर भगवान पर्वो का विधान नहीं करते तो क्या आप पर्यूषण में धर्म, त्याग, तप, संवर करने आते ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप की आराधना करने से आत्मा का उत्थान होगा। आज आत्मा संसार में जो विचरण कर रही है उसका कारण भोगवृत्ति है। त्याग वृत्ति मोक्ष का कारण बनती है एक सामायिक की दलाली का लाभ 7 मेरूपर्वत के समान बताया है। सामायिक करने वाले की अनुमोदना देव भी करते है जो त्याग करता है वो पाता है। जो भोगता है उसे भुगतना पडता है।

सांई भजन संध्या सम्पन्न हुई

सीहोर 31 अगस्त (नि.सं.) स्थानीय श्री साई संस्थान सेवा समिति के तत्वाधान में निर्माणाधीन श्री सांई बाबा मंदिर चाणक्यपुरी विशाल साई भजन संध्या सम्पन्न हुई। जिसमें इंदौर भोपाल, सीहोर से गायकों के देर रात्रि तक साई भाक्तोें मंत्र मुग्ध किया श्री साई भजनों में सांध्या में इंदौर के छोटा शिर्डी धाम के मनोज पाराशर श्री साई नाथ महाराज की आरती के पश्चात सुंदर अनमोल भजन श्री प्रस्तुती श्री गणेश वंदना के साथ श्री सांई भजनों का शुभारंभ किया जिसमें मुख्य रूप से भोपाल के प्रसिद्ध भजन गायक धर्मेन्द्र सारंग इंदौर भजन गायक महेश ठाकरे एवं सिद्धपुर नगरी की लाडली भजन गायिका श्रीमति ममता गुप्ता एवं रूपाली गुप्ता से साई भक्तों को मोिहित कर दिया। मंच का संचालन मनोज रूसिया ने किया श्री साई संस्थान सेवा समिति के संस्थापक सुनील धाडी श्री साई संस्था समिति के अध्यक्ष पदम जैन साई संस्थान सेवा समिति के कोषाध्यक्ष श्री साई भजन संध्या प्रभारी राजेश राठौर ने श्री बाबा सहाब का पुष्पहारों से स्वागत किया।

धर्ममान्य मिडिया प्रभारी के अनुसार बताया गया कि प्रमुख रूप से मंदिर निर्माण दृष्टि बलवीर सिंह तोमर वरिष्ठ समाज सेवी राजेन्द्र सिंह राठौर नगर पालिका अध्यक्ष अशोक सिंह सिसोदिया एवं भाजपा महिला नेत्री श्रीमति प्रेमलता राठौर ने बाबा सहाब का पुष्पहारों से स्वागत कर आशीर्वाद लिया। भजन गायिका श्रीमति ममता गुप्ता, रूपाली गुप्ता, महेश ठाकरे धर्मेन्द्र सारंग इत्यादियों को समस्त किशन आहूजा एवं प्रकाश अग्रवाल परिवार ने स्वागत का सम्मान किया। शिर्डी धाम के प्रतिरूप में मंदिर की रूप रेखा एवं भविष्य में श्री साई भक्त परिवार के गठन कर आगे बताया कि मंदिर शिर्डी के अनुरूप बनेगा और प्रतिमा सिंघाशन धूनी चावडी द्वारकामाई मंदिर का शिखर शिर्डी महाराष्ट्र के जैसा ही तैयार होगा।

कार्यक्रम को सफल बनाने वालों में संजय जोशी, दुष्यंत समाधिया, मनोहर शर्मा, अजय शर्मा, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, संतोष रेकवार, जितेन्द्र साहू, अजय तिवारी, श्रीमति वंदना धाडी, श्रीमति चंचल जैन, मेघा जैन, श्रीमति आलोक शर्मा, प्रकाश अग्रवाल, खूश्बू जोशी, जूही जोशी, माधूरी मिश्रा, रश्मि आहूजा-राजेन्द्र सिंह राजपूत वासुदेव जादवानी, रबि चाौधरी विनोद मुगरे आदि।

वर्षा के लिए सूखी कलश यात्रा निकाली

जावर 31 अगस्त (नि.प्र.) अभी तक क्षेत्र में सामान्य से काफी कम वर्षा होने से किसानों के साथ ही आम नागरिक चिंतित होने लगा है। अभी तक जो बारिश हुई है। उससे न तो क्षेत्र के तालाब तलाई ठीक से नहीं भराये है और न ही कुछ बाउड़ी नदी नालों में भी काफी कम पानी बह रहा है बरसात नहीं होने के कारण ही फसल को भी नुकसान हो रहा है जिससे कृषक वर्ग चिंतित दिखाई देने लगा है लोगों का कहना है कि अभी से पानी के ये हाल है तो आगे चलकर क्या होगा लोग धार्मिक आयोजन कर रहे है।

शुक्रवार को ग्राम कजलास की महिलाओं ने अच्छी बरसात की कामना के लिए सूखा कलश यात्रा गांव में निकाली जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं सर पर कलाश रखे हुए शामिल थी। बाद में सभी महिलाएं गांव के बाहर जंगल में जहां इन्द्रदेवता का स्थान है वहां पहुंची जहां अच्छी बरसात की कामना को लेकर भगवान इन्द्रदेवता की पूजनप अर्चना की। जुलूस में प्रमख रूप से श्रीमति रामप्यारी बाई साधना गुप्ता, भूरी बाई, लीलाबाई, पाटीदार, तेज कुंवर बाई, मानकुंवर बाई पाटीदार शामिल थी। उक्त जानकारी सरपंच किशोर पाटीदार ने दी।

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श्री चिंतामन गणेश मंदिर सीहोर का इतिहास

भारत में स्थित स्वयं भू चिंतामन गणेश मंदिर में से एक अति प्राचिन विक्रमादित्य कालीन गणेश मंदिर सीहोर जिसका प्राचीन नाम सिद्धपुर है,में सीहोर के वायव्य पश्चिम उत्तर कोण में स्थित है जो कि आज भी कस्बा क्षेत्र में स्थित व गोपालपुरा ग्राम से लगा हुआ शकर मिल से पश्चिम में लगभग डेढ़ किलोमीटर दूरी पर है।
इसके बारे में पूर्वजों से प्राप्त जानकारी इस प्रकार है कि लगभग 2000 वर्ष पूर्व उायनी अवत्तिका के सम्राट विक्रमादित्य महाराज परमार वंश प्रति बुधवार रणथंमौर के किले में स्थित सवाई माधोपुर राजस्थान के किले में स्थित चिंतामन सिद्ध गणेश के दर्शन के लिये जाया करते थे। एक दिन राजा से गणेश जी ने स्वप् में दर्शन देकर कहा कि हे राजन तुम पार्वती नदी में शिव पार्वती के संगम स्थल पर वर्तमान में गणेश मंदिर से लगभग 10-15 किलो मीटर पश्चिम में जहॉ सीवन नदी पुराना नाम शिवनाथ पार्वती नदी में मिली है कमल पुष्प के रूप में प्रकट होऊंगा। उस पुष्प को ग्रहण कर अपने साथ ले चलो। स्वप् में दिये निर्देशानुसार राजा ने कमल पुष्प ग्रहण कर रथ में काष्ट रचित लेकर चला तभी आकाशवाणी हुई कि है राजन रात ही रात में जहां चाहो ले चलो। प्रात:काल होते ही मै वहीं रूक जाऊंगा। राजा कुछ दूर ही चले थे कि अचानक रथ के पहिये जमीन में धंस गये। राजा ने रथ के पहिये भूमि से निकालने का प्रयास किया, किन्तु रथ क्षतिग्रस्त हो गया। दूसरे रथ की व्यवस्था होते होते ऊषाकाल प्रात:कोल हो गया। पक्षीगण बोलने लगे तो कमल पुष्प गणेश जी की मूर्ति के रूप में परिवर्तन हो गया। यह मूर्ति खड़ी हुई है तथा स्वयं भू प्रतिमा है।
जैसे ही राजा ने प्रतीमा को उठावाने का प्रयास किया वैसे ही प्रतिमा जमीन में धंसने लगी,बहुत प्रयत्न करने पर प्रतिमा अपने स्थान से हिली भी नही बल्कि धंसती चली गई तब राजा ने वही उनकी स्थापना कर दी। बाद मे मंदिर का निर्माण करवाया। आज गणेश जी की प्रतिमा आधी जमीन में धुसी हुई है। मंदिर का जीर्णउद्धार एवं सभा मण्डल का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने कराया। मंदिर श्री यंत्र के कोणों पर निर्मित है।
विक्रमादित्य के पश्चात शालि वाहन शक राजा भोज कृष्णदेव राय, गोंड राजा नवलशाह आदि ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग किया नानाजी पेशवा विंचूर कर मराठा आदि समय मंदिर की ख्याति व प्रतिष्ठा में वद्धि हुई। चिंतामन सिद्ध गणेश होने व 84 सिद्धों में से तपस्वियों ने यहां सिद्धी प्राप्त की। सीहोर का नाम पूर्व में सिद्धपुर था जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। जब नवाबी शासन का प्रारंभ हुआ उस समय के पूर्व से ही प्रबंधक पं.पृथ्वी वल्लभ दुबे के पूर्वज ही पूजा व्यवस्था को संचालित करते चले आ रहे है। सन् 1911 में बेगम सुल्तान जहां, सिकन्दर जहां द्वारा प्रबंधक के पूर्वक पं.बीरबल,छोटराम गॉवठी को मंदिर पूजा व्यवस्था के अधिकार की सनद प्रदान की गई।
उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र एक मात्र वारिस उतराधिकारी पं.नेतीवल्लभ दुबे को मंदिर व भूमि के समस्त अधिकारी की नई सनद दिनांक 5.8.1945 ई.को प्रदान की गई। पं.दुबे के जीवन काल में देश आजाद हो जाने पर विलीनीकरण के बाद सभी रियासतें समाप्त कर दी गई तथा जितने जागीरदार,जमीदार व माफीदार थे,उन्हें लैण्ड रेवेन्यू एक्ट 1959 के अनुसार भारत सरकार ने भूमिस्वामी बनाकर भू अधिकार प्रदान कर दिये। तभी से स्व.पं.नेतीवल्लभ दुबेजी उक्त व्यवस्थापक व भूमि स्वामी रहे। सन् 1977 में उक्त अधिकार उनके पुत्र.पं.पृथ्वीवल्लभ दुबे व हेमंत वल्लभ दुबे के नाम नामांतरित हो गये। जो कि आज भी काबिज है। चिंतामन सिद्ध गणेश स्वयंभू प्रतिमा भारत में चार स्थानों पर है- रणथंमौर सवाई माधौपुर राजस्थान, 2.सिद्धपुर सीहोर,3.अवन्तिका उज्‍जेन ,व 4.सिद्धपुर गुजरात मे है। चारौ जगह मेला लगता है। यहां पर लगभग 150 वर्ष पूर्व मंदिर में ताला नहीं लगता था चोरो ने गणेश प्रतिमा से आंखो में लगे हीरे निकाल लिये,तब गणेश प्रतिमा की आंखो से 21 दिन पूर्व तक दूध की धार चली,तब गणेश जी ने तत्कालिन पुजारी को स्वप् देकर कहा कि तुम शोक मत करो में खण्डित नही हुआ हूं।
तुम मुझे चांदी के नेत्र लगा दो तभी से प्रतिमा को चांदी के नेत्र धारण कराये गये और विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा जन जन में उनके प्रति आस्था बढ़ी फलस्वरूप जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मेला आयोजित किया जाने लगा। जो कि निरंतर प्रतिवर्ष लगता है। आज लगभग 50 से 60 वर्ष पहले सीहोर में प्लेग की बीमारी फैली थी। तब उस समय जन हानि हुई,तब मण्डी में रहने वाले श्री गंगा प्रसाद जी साहू के पिता श्री रामलाल जी साहू ने मंदिर में गणेश जी से कामना की थी यह बीमारी समाप्त हो जावे और किसी की प्राण हानि नही होगी तो मै गणेश चतुर्थी पर भण्डारा कराऊंगा। गणेश जी ने उनकी कामना पूर्ण की तो उन्होंने भण्डारा कराया। तभी से आज तक भण्डारा होता चला आ रहा है। अब स्व श्री गंगाप्रसाद जी साहू के पुत्र गण गणेश चतुर्थी पर ब्राम्हण व संतो को भोजन कराकर इस प्रथा को जारी रखे है। यहां पर सभी लोगों की कामना पूर्ण होती है।

पं. पृथ्वीबल्लभ दुबे, सीहोर


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