सीहोर 17 नवम्बर (विशेष संवाददाता)। विधानसभा चुनाव के दौरान प्रभावी नेता और ग्रामीणों पर अपना जादू बिखेरने वाले बहुजन समाजवादी पार्टी के फूल सिंह चौहान की याद बार-बार चुनाव के दौरान आ रही है। फूल सिंह चौहान की याद जितनी भारतीय जनता पार्टी को सता रही है उनके नहीं होने से कांग्रेस को उतनी ही चैन की नींद आ रही है। फूल सिंह की बसपा पर आज जिन बापूलाल मालवीय की सवारी हो चुकी है, उनकी उपस्थिति को दोनो ही पार्टी नगण्य रुप से आंक रही हैं। जिसके चलते कांग्रेस आंकड़ो के हिसाब से लाभ में नजर आती है भाजपा की स्थिति कुछ संकट में दिखाई देती है। अब आष्टा में भाजपा और कांग्रेस यह दोनो ही पार्टी प्रमुख पार्टी हैं जो विधानसभा चुनाव में दम मारेंगी और एक-दूसरे की प्रतिद्वंदी रहेंगी। लेकिन किसको विजयश्री का वरण मिलेगा यह कहना अभी मुश्किल है। कुछ नये आंकड़े और समीकरण कांग्रेस के पक्ष में बनते अवश्य दिख रहे हैं लेकिन भाजपा की मजबूत पकड़ से सब बाखबर हैं।
आष्टा के चुनाव में स्थायी तीसरी शक्ति के बढ़ते हुए बल ने पूर्ववर्ती कुछ चुनावों को हमेशा त्रिकोणीय मुकाबला बना कर रखा था। आष्टा में बहुजन समाज पार्टी की मजबूत उपस्थिति फूल सिंह चौहान के कारण हुई थी। फूल सिंह चौहान के प्रभावी भाषण जहाँ ग्रामीणों को अपनी और खींच लेते थे वहीं उन्हे बहुजन समाज के नेता के रुप में स्थापित करते जा रहे थे। फूल सिंह ने मध्य प्रदेश भर में अपनी बसपा के रुप में बड़ी पहचान बना ली थी और वह आष्टा को धीरे-धीरे अपने गढ़ के रुप में बनाते चले जा रहे थे। फूल सिंह की बढ़ती ताकत से जहाँ हर बार कांग्रेस बुरी तरह आहत हो जाती थी वहीं भाजपा का फूल हर बार खिल जाया करता था।
फूल सिंह की खाद से कमल का फूल खिल जाता था और कांग्रेस का हाथ घायल हो जाता था। वर्ष 2003 के ही चुनाव में जब उमाश्री भारती की लहर चल रही थी, तब आष्टा में कांग्रेस को तो 40 हजार 851 मत मिले ही थे लेकिन बहुजन समाज पार्टी के फूल सिंह चौहान को भी 34 हजार 395 मत मिले थे। मतलब दोनो के मिलाकर कुल 75 हजार से अधिक मत सिर्फ कांग्रेस और बसपा ने कबाड़ लिये थे। जबकि भाजपा के पक्ष में चल रही लहर के बावजूद उसे मात्र 51 हजार 503 मत मिले थे। मतलब स्पष्ट है कि यदि बसपा के फूल सिंह कांग्रेस के लिये रोड़ा नहीं बनते और 34 हजार 395 मत नहीं लेते इसके आधे भी यदि कांग्रेस की झोली में चले जाते तो निश्चित रुप से कांग्रेस को पिछले ही चुनाव में विजयश्री मिल सकती थी। बसपा के कारण ही कांग्रेस की पिछले चुनाव में हार हुई थी यह बात स्वयं सिध्द है।
आष्टा में लम्बे समय से जिस तीसरी शक्ति के रुप में बसपा और फूल सिंह चौहान को आंका जाता रहा है अब वो फूल सिंह चौहान दिवंगत हो गये हैं और उनकी बसपा से हटकर नई पार्टी प्रसपा बन चुकी है। आष्टा में प्रसपा तो बन गई और फूल सिंह चौहान के भाई ने उसे संभाल भी लिया लेकिन बसपा ने अपने नये समीकरण बनाना शुरु कर दिये और इस बार बसपा ने कांग्रेस के पूर्व हारे हुए विधानसभा प्रत्याशी रहे बापूलाल मालवीय को हाथी की सवारी के लिये बुला लिया। कुल मिलाकर प्रसपा और बसपा दोनो ही टूट हुई नजर आ रही है। प्रसपा को संभालना फूल सिंह के भाई के लिये जहाँ अस्तित्व की लड़ाई हैं वहीं बापूलाल मालवीय का बसपा में जाना अपने हक की लड़ाई है। चूंकि दोनो ही पार्टी इस बार दमदारी से चुनाव मैदान में उतरने की स्थिति में नहीं है जिस वजनदारी, लाव-लश्कर और रुपये के दम पर चुनाव लड़ा जाता है इन बातों में भी प्रसपा और बसपा कहीं दूर नजर आते हैं। कुल मिलाकर आष्टा में आज के समय किसी तीसरी वजनदार शक्ति के रुप में न तो प्रसपा को देखा जा रहा है और ना ही बसपा की ऐसी स्थिति बन सकती है।
इस दृष्टि से वर्तमान चुनाव 2008 के परिप्रेक्ष्य में मात्र भाजपा और कांग्रेस ही आमने-सामने नजर आ रहे हैं।
अब भारतीय जनता पार्टी के उम्मीद्वार रणजीत गुणवान के संदर्भ में यदि विचारा जाये तो गुणवान एक स्वच्छ छवि, सरल स्वभाव, ईमानदार व्यक्तित्व के धनि हैं और पूर्व में विधायक रहते हुए उन्होने अपना कार्यकाल बिना किसी विवाद के पूरा किया है। वह एक नरम स्वभाव के सरल नेता के रुप में जाने जाते हैं। भाजपा ने पिछली बार उन्हे टिकिट नहीं दिया था यह दीगर बात है लेकिन फि र उन्हे टिकिट मिलने से गुणवान समर्थकों का उत्साह दुगना है और वह उनके पक्ष में लगे हुए हैं। भाजपा के गढ़ के रुप में आष्टा को देखा जाता है इसलिये यहाँ भाजपा पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रही है।
अब कांग्रेस के प्रत्याशी इंजीनियर गोपाल सिंह चौहान के संदर्भ में देखें तो कांग्रेस ने एक पढ़े लिखे नौजवान को अपना प्रत्याशी चयनित किया है, जो जातिगत समीकरण के हिसाब से आष्टा में फिट बैठता ही है बल्कि रुपये की दमखम भी रखता है। पिछले दिनों से लगातार सारे धार्मिक आयोजनों, राजनीतिक आयोजनों से लेकर सामाजिक घटनाक्रमों में गोपाल सिंह सक्रिय उपस्थिति और कुछ आयोजनों में खुले हाथ से खर्च करने वाले गोपाल सिंह ने पिछले कुछ दिनों में बहुत बोया है जिसे वह काटने की तैयारी कर रहे हैं। जो बोयेगा वही काटेगा भी। इनके साथ एक वजनदार छवि कैलाश परमार की लगी हुई है जिनका राजनीतिक विरोध तो अवश्य है लेकिन काम कराने की क्षमताओं के कारण आम आदमी में पैठ बहुत अधिक है। गोपाल सिंह के पक्ष में ग्रामीण क्षेत्रों में फूल सिंह चौहान के नहीं रहने पर यह भी कहा जा रहा है कि यह भी तो चौहान ही हैं। गोपाल सिंह बलाई समाज के प्रांतीय प्रमुख भी हैं जिसके कारण बाहर से भी उनके समर्थक आकर उनके पक्ष में वातावरण बनाने में जुटे हुए हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस और उसका प्रत्याशी भी कहीं से कमतर नहीं बैठ रहा है। कुल मिलाकर कांग्रेस भाजपा दोनो के ही प्रत्याशी किसी से कमतर नहीं बैठ रहे हैं लेकिन कांग्रेस का जहाँ विद्रोह इस बार कम हो गया है वहीं भाजपा के विद्रोही मुखर हो गये हैं। आगामी दिनों में कांग्रेस और भाजपा में से कौन किसको मात देता है और आगे बढ़त बनाता है यह बात आगामी चुनावी रणनीति ही तय करेगी। अभी किसी के लिये भी स्थिति स्पष्ट नहीं कही जा सकती।
आष्टा में भाजपा और कांग्रेस दो लालों से बेहाल
सीहोर17 नवम्बर (नि.सं.)। विधानसभा चुनाव के दौरान आष्टा में कांग्रेस और भाजपा दोनो ही अपने घर के बागियों से बुरी तरह परेशान है अब बागी की ताकत पर इनकी पसीने की बूंदे बढ़ती और घटती जा रही हैं। कांग्रेस और भाजपा के बागी दोनो ही लाल हैं और इनके कारनामों से दोनो पार्टी के प्रत्याशियों के चेहरे लाल हुए जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने जिस पुराने चेहरे को वापस मैदान में उतारा है उनका विरोध तो भाजपा में ही अंदर ही अंदर जारी है, विधायक रुगनाथ मालवीय की नाराजगी अभी तक दूर नहीं हुई प्रतीत होती है लेकिन भाजपा के लिये खुलकर मैदान में खड़े जनशक्ति के चुन्नी+लाल एक समस्या हैं। भाजपा के वोट बैंक पर लम्बा हाथ साफ करने की फिराक में चुन्नीलाल ने चुन-चुनकर फूल की राह में कांटे बिछाना शुरु कर दिया है। चुन्नीलाल के लिये एक विशाल आमसभा जनशक्ति की प्रभावी नेत्री उमाश्री भारती करने वाली हैं। इसके अलावा भाजपा प्रत्याशी का विरोध कर रहे भाजपाईयों का रुझान भी जनशक्ति की और होगा जिससे चुन्नीलाल भाजपा की परेशानी का कारण बनेंगे।
हमारा ईपता - fursatma@gmail.com यदि आप कुछ कहना चाहे तो यहां अपना पत्र भेजें ।