मैने तो इंटरनेट कनेक्शन ही इसके लिये ले लिया है-साबू
सीहोर 13 अप्रैल (नि.सं.)। जिले के पहले स्थानीय दैनिक अखबार दैनिक फुरसत के अंत:स्थल इंटरनेट पर बेवसाईट चिट्ठा बनाये जाने के बाद से ही लगातार पाठकों की बधाईयाँ मिल रही हैं। अनेक लोगों ने अपने परिचितों को सीहोर के इस चिट्ठे बेवसाईट का पता दे दिया है ताकि वह इंटरनेट पर सीहोर के ताजा समाचार पढ़ सकें। ऐसे सीहोर के बाहर रह रहे अनेक लोगों के संदेश लगातार फुरसत को मिल रहे हैं जिन्हे प्रकाशित किया जायेगा। सीहोर के स्थानीय लोगों ने भी फुरसत के चिट्ठे को लेकर प्रसन्नता व्यक्त की है।
लोकप्रिय पूर्व विधायक और आंचलिक पत्रकार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शंकरलाल साबू ने फुरसत परिवार को शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि वाकई सीहोर के लिये यह गौरव की बात है। उन्होने कहा कि यदि इंटरनेट की दुनिया में सीहोर की हर एक खबर छाने लगी है और जैसा की बताया है कि सर्च इंजनों में भी फुरसत सबसे आगे है तो निश्चित ही यह खुशी की बात है। अब तो सीहोर से जुड़े लोग विश्व के किसी भी कोने में बैठकर सीहोर की ताजा घटनाओं को पढ़ सकेंगे। श्री साबू ने कहा कि मैं लम्बे समय से भोपाल रह रहा हूँ लेकिन नियमित मेरे लिये सीहोर से अखबार भोपाल बस में रखाकर आते हैं। मुझे फुरसत नहीं मिलता है तो काफी परेशानी होती है पूछना पढ़ता है कि आज क्या छपा है। लेकिन अब सारी समस्या ही हल हो गई है, कम्प्यूटर तो मेरे कार्यालय में है ही कल ही मैने फुरसत के इंटरनेट पर आ जाने के कारण इंटरनेट कनेक्शन भी शुरु करवा लिया है। अब मुझे घर बैठे आराम से फुरसत की ताजा खबरें पढ़ने को मिल जायेंगी। श्री साबू ने पुराने दिनों की पत्रकारिता से लेकर आज के दौर तक की बातें करते हुए फुरसत के संपादक विभाग को बधाई दी कि उन्होने न सिर्फ सीहोर के बल्कि अपने दूरस्थ पाठकों की भी सुविधाओं का ध्यान रखा यही एक अच्छे संपादक की पहचान है।
सीहोर के ही बालक यमंक वशिष्ठ पुत्र श्री के.बी. वशिष्ठ जो हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहते हैं बालक यमंक वर्ष 2003 में अगस्त माह से सीहोर से चैन्नई गया हुआ है। चैन्नई में यमंक एक बड़ी कम्पनी एम.एन.सी. में कार्यरत है और एक इंजीनियर के पद पर हैं। सीहोर के सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़े यमंक वशिष्ठ चैन्नई में अपनी साफ्टवेयर कम्पनी में लगभग दिनभर कम्प्यूटर पर बैठते हैं ऐसे में सीहोर की ताजा खबरें जानने और सीहोर के हालचाल की उन्हे सदा उत्सुकता बनी रहती है। यमंक ने गूगल सर्च पर जब सीहोर के समाचार देखें और उन्हे पता चला कि फुरसत का एक चिट्ठा बेवसाईट शुरु हो गई है जिस पर प्रतिदिन सीहोर के ताजा समाचार प्रकाशित किया जा रहे हैं तो उन्होने इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए फुरसत परिवार को इसके लिये धन्यवाद प्रेषित किया है। यमंक ने कहा कि लगता है कि सीधे सीहोर से जुड़ गया हूँ। उन्होने सीहोर में पड़ रही पानी के समस्या को लेकर चिंता भी जाहिर की ।
इसी प्रकार आष्टा से वरिष्ठ चिकित्सक और बी.एम.ओ. डॉ. श्री आर.सी. गुप्ता ने अणुडाक ईमेल से एक पत्र लिखकर फुरसत को बधाई प्रेषित करते हुए कहा है कि फुरसत के इंटरनेट संस्करण के लिये फुरसत को बधाई, अब यह अंतराष्ट्रीय हो गया है, यह खुशी की बात है।
समाजसेवी व नव योति संगठन के संरक्षक श्री हरीश अग्रवाल ने फुरसत की इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा है कि निश्चित सीहोर से बाहर रहने वाले लोगों को इससे लाभ होगा। उन्होने फुरसत निरन्तर विकास करे इसकी शुभकामनाएं भी दी।
भारत अग्रवाल कर्मचारी ने अपने पत्र के माध्यम से कहा है कि जिले का लोकप्रिय फुरसत आज विश्व पटल पर दस्तक दे चुका है। निश्चित ही यह फुरसत परिवार के अलावा नगर सीहोर के लिये भी सुखद अनुभूति है। फुरसत की साईक्लोस्टाइल पेटर्न से हुई शुरुआत ने दिन प्रतिदिन इतनी उन्नति की कि आज वह नम्बर एक हो गया है। इसके पीछे फुरसत का निरन्तर पाठकों के हृदय पर अपनी अमिट छाप का ही परिणाम है। श्री अग्रवाल ने पत्र में आगे लिखा है कि हम सीहोरवासी गौरवान्वित हैं कि विश्व स्तर पर फुरसत ने जो कीर्ति पताका फहराई है उसके लिये संपादक जी एवं उनके सहयोगीजनों को अन्तर्मत की गहराईयों से अनेको बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष नौशाद खान का कहना है कि फुरसत ने जो सुविधा उपलब्ध कराई है वह सम्मान के योग्य है। इसके लिये फुरसत का हम सम्मान करना चाहते हैं।
पं. हरीश तिवारी कस्बा ने एक अणुडाक ईमेल करके फुरसत को प्रसन्नता पूर्वक लिखा है कि यह आपने क्या कर दिया? इतनी खूबसूरत बेवसाईट बनाई गई है कि उसमें किसी प्रकार की कोई कमी की गुंजाईश ही शेष नहीं है, न सिर्फ तारीख के अनुसार हम समाचार देख सकते हैं बल्कि अपनी इच्छा के अनुसार विषयवार भी समाचार पढ सकते हैं। वाकई यह कमाल की बात है। अन्य अखबारों की बेवसाईटों की तुलना भी यह यादा सुविधाजनक है। अब तो न सिर्फ सीहोर में बल्कि हमें हर जगह फुरसत मिल जायेगा। पहले जब बाहर जाते थे तो वापस आने पर घर में फुरसत पूरे नहीं मिल पाते थे। 7-8 दिन के अखबार एक साथ नहीं मिलने से कई खबरे छूट जाती थी लेकिन अब ऐसी दिक्कत नहीं आयेगी। अब तो हमे पूरे महिने बल्कि पूरे साल के तारीखवार अखबार इंटरनेट पर उपलब्ध है। इस सुविधा के लिये धन्यवाद।
भारतीय नववर्ष पर फुरसत के कम्प्यूटर संस्करण शुरु होने की खबर पढ़ने से प्रसन्नता होने की बात मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल खाचरौद में पदस्थ कनिष्ठ यंत्री अरविन्द्र कुमार सीठा ने की है। श्री सीठा ने एक शुभकामना पत्र भेजकर फुरसत की प्रगति की कामना की है। श्री सीठा ने बताया कि वह फुरसत के नियमित पाठक हैं और उसमें आने वाली रोचक व खोजी खबरों से काफी प्रभावित हैं। निश्चित ही अब पूरे विश्व में फुरसत के खबरें पढ़कर अनेक पाठक प्रसन्न हो सकेंगे।
Monday, April 14, 2008
त्याग और आदर्श का अनुपम उदाहरण राम
प्रभु श्री राम का लौकिक जीवन त्याग और आदर्श का अनुपम उदाहरण है। उन्होंने स्वयं उस आचरण का वरण किया, जो आम जीवन में प्रचलित थे या जिन्हें सामाजिक-नैतिक दायित्वों की तरह निभाने की परंपरा थी। श्री राम के बनवास का प्रसंग याद करें। मानस में उस पूरे दृश्य को इतना कारुणिक और जीवंतता से वर्णन किया गया है कि भला वह कौन होगा, जिसकी आंखों से अश्रुधार न बहे।
एक तरफ माता कैकेयी का हठ, राजा दशरथ की प्रतिज्ञा, व्यथा और पश्चाताप। माता कौशल्या की वेदना और माता सीता के प्रभु के साथ वनगमन जाने की बात कहने पर श्रीराम का उन्हें समझाना।
वनगमन का प्रसंग एक साथ कई भावनात्मक अभिव्य1तियों की परिणति ही तो है। माता कैकेयी राम के प्रति दुर्भावना नहीं रखती थीं। यहां तक कि श्री राम के बनवास का वर मांगने के बावजूद उनके वात्सल्य में कहीं कोई कमी नहीं थी। राम के बनवास का उनका वर मांगना उनके अतिशय पुत्रमोह का ज्ञोतक है, जहां वह एक आम मानवीय माता की भांति दिखाई पड़ती हैं। राजा दशरथ द्वारा राम के राज्याभिषेक की घोषणा के बाद से ही उनका मन कातर हो गया था। वह अपने पुत्र भरत के भविष्य के प्रति शंकालु हो गयी थीं। उनके मन में यह डर था कि राजा बनने के बाद राम कहीं उनके पुत्र भरत को उपेक्षित न कर दें। श्री राम ने वनगमन का रास्ता चुनकर दो बातें साबित कीं। पहली बात यह कि पिता का वचन व्यर्थ न जाए और दूसरी बात यह कि पिता केद्वारा दिया गया वचन का एक पुत्र से उल्लंघन भी न हो। यह मध्यम मार्ग था, जिसमें 14 साल का बनवास का रास्ता चुन राम ने राजाज्ञा से उपजी समूची पीड़ा खुद पर ओढ़ ली। इससे निर्मल और उदात्त चरित केदर्शन भला और कहां होंगे? बनवास का मार्ग सहर्ष चुनने की प्रभु राम की इच्छा का अतिरेक है रावण का संहार। अगर वह बनवास नहीं जाते, तो रावण के संहार की स्थिति कैसे बनती?
उधर माता सीता ने भी वनगमन का रास्ता चुन अपना पातिव्रत्य धर्म ही तो निभाया। प्रभु श्रीराम की संगिनी होने केसाथ जन्म-जन्मांतर का नाता जुड़ा था। विपरीत परिस्थितियों में भी पत्नी अगर पति का साथ न दे, तो फिर वह कैसा दांपत्य होता? सो माता जानकी ने अपने नाजुक पैरों से मार्ग के शरों पर निस्पृह भाव से चलना स्वीकार किया और प्रभु को इसकी भनक भी न लगने दी कि उन्हें किसी किस्म की पीड़ा भी है। भाई भरत का चरित तो और भी आदर्श है। वह तो प्रभु श्री राम को अयोध्या की सीमा तक छोड़ने गए और उनका खड़ाऊं लेकर ही लौटे। राजधर्म से ऐसी वितृष्णा हुई कि उनकी चरणपादुका की सेवा और रक्षा ही अपना राजधर्म मान लिया। धन्य है वह भाई, जो अपने भाई के वास्तविक अधिकार की रक्षा करता रहा 14 साल तक, खुद संन्यासी बन, जबकि उसे तो राजा दशरथ ने राजगद्दी सौंप ही दी थी। वनगमन का प्रसंग त्याग और मानवीय मूल्यों के निर्वहन का एक संपुट दृष्टांत है, जिसे हर काल में महसूस कर राम के उदात्त चरित्र के साथ चित्रित किया जा सकता है। श्रीराम के साथ लखन, भाई भरत और शत्रुघ्न समेत उनके बनवास काल में जितने भी चरित्र उभर कर आए हैं, सबमें एक अतुल्य मूल्यबोध और आदर्श का पुट है।
एक तरफ माता कैकेयी का हठ, राजा दशरथ की प्रतिज्ञा, व्यथा और पश्चाताप। माता कौशल्या की वेदना और माता सीता के प्रभु के साथ वनगमन जाने की बात कहने पर श्रीराम का उन्हें समझाना।
वनगमन का प्रसंग एक साथ कई भावनात्मक अभिव्य1तियों की परिणति ही तो है। माता कैकेयी राम के प्रति दुर्भावना नहीं रखती थीं। यहां तक कि श्री राम के बनवास का वर मांगने के बावजूद उनके वात्सल्य में कहीं कोई कमी नहीं थी। राम के बनवास का उनका वर मांगना उनके अतिशय पुत्रमोह का ज्ञोतक है, जहां वह एक आम मानवीय माता की भांति दिखाई पड़ती हैं। राजा दशरथ द्वारा राम के राज्याभिषेक की घोषणा के बाद से ही उनका मन कातर हो गया था। वह अपने पुत्र भरत के भविष्य के प्रति शंकालु हो गयी थीं। उनके मन में यह डर था कि राजा बनने के बाद राम कहीं उनके पुत्र भरत को उपेक्षित न कर दें। श्री राम ने वनगमन का रास्ता चुनकर दो बातें साबित कीं। पहली बात यह कि पिता का वचन व्यर्थ न जाए और दूसरी बात यह कि पिता केद्वारा दिया गया वचन का एक पुत्र से उल्लंघन भी न हो। यह मध्यम मार्ग था, जिसमें 14 साल का बनवास का रास्ता चुन राम ने राजाज्ञा से उपजी समूची पीड़ा खुद पर ओढ़ ली। इससे निर्मल और उदात्त चरित केदर्शन भला और कहां होंगे? बनवास का मार्ग सहर्ष चुनने की प्रभु राम की इच्छा का अतिरेक है रावण का संहार। अगर वह बनवास नहीं जाते, तो रावण के संहार की स्थिति कैसे बनती?
उधर माता सीता ने भी वनगमन का रास्ता चुन अपना पातिव्रत्य धर्म ही तो निभाया। प्रभु श्रीराम की संगिनी होने केसाथ जन्म-जन्मांतर का नाता जुड़ा था। विपरीत परिस्थितियों में भी पत्नी अगर पति का साथ न दे, तो फिर वह कैसा दांपत्य होता? सो माता जानकी ने अपने नाजुक पैरों से मार्ग के शरों पर निस्पृह भाव से चलना स्वीकार किया और प्रभु को इसकी भनक भी न लगने दी कि उन्हें किसी किस्म की पीड़ा भी है। भाई भरत का चरित तो और भी आदर्श है। वह तो प्रभु श्री राम को अयोध्या की सीमा तक छोड़ने गए और उनका खड़ाऊं लेकर ही लौटे। राजधर्म से ऐसी वितृष्णा हुई कि उनकी चरणपादुका की सेवा और रक्षा ही अपना राजधर्म मान लिया। धन्य है वह भाई, जो अपने भाई के वास्तविक अधिकार की रक्षा करता रहा 14 साल तक, खुद संन्यासी बन, जबकि उसे तो राजा दशरथ ने राजगद्दी सौंप ही दी थी। वनगमन का प्रसंग त्याग और मानवीय मूल्यों के निर्वहन का एक संपुट दृष्टांत है, जिसे हर काल में महसूस कर राम के उदात्त चरित्र के साथ चित्रित किया जा सकता है। श्रीराम के साथ लखन, भाई भरत और शत्रुघ्न समेत उनके बनवास काल में जितने भी चरित्र उभर कर आए हैं, सबमें एक अतुल्य मूल्यबोध और आदर्श का पुट है।
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