सीहोर 2 दिसम्बर (नि.सं.)। मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुदनी के ग्राम खटपुरा में आज अचानक स्थानीय प्रशासन ने करीब 50 एकड़ जमीन पर खड़ी तुअर दाल की फसल को रोंद दिया और वर्षो से जिस वनभूमि पर ग्रामीणों का कब्जा था उसे हटवा दिया। इन्ही ग्रामीणों ने गत वर्ष मुख्यमंत्री के सामने धरना देकर यह मांग भी की थी कि इस जमीन पर उनका वर्षों से कब्जा होने के कारण उन्हे पट्टा दिया जाये। लेकिन आज पट्टा तो नहीं मिला बल्कि जमीन पर उनकी सत्ता जरुर छीन ली गई। मंहगाई के इस दौर में कम मूल्य पर तुअर दाल बांटने चले मुख्यमंत्री तुअर दाल तो नहीं बंटवा पाये लेकिन उनके ही प्रशासन ने करीब 50 लाख की तुअर अवश्य उजाड़ दी।
एक तरफ तो तुअर की दाल के भाव सातवे आसमान को छू रहे हैं, गरीबों की दाल कहलाने वाली दाल आज करीब ढाई गुना मंहगी हो चुकी है। कल 32-34 रुपये किलो बिकने वाली तुअर दाल 85 रुपये किलो से भी अधिक भाव में बिक रही है। ऐसे में आज अचानक करीब 50 लाख रुपये मूल्य की तुअर दाल फसल पर जो 50 एकड़ जमीन पर ग्रामीणों ने बोई थी उसे जिला प्रशासन द्वारा नष्ट करवा दिया गया है। यह घटना स्वयं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र में घटी है जहाँ ग्राम खटपुरा में ग्रामीणों ने वनभूमि पर यह फसल बोई थी।
ज्ञातव्य है कि ग्राम खटपुरा में पिछले कई वर्षों से वनभूमि पर ग्रामीणों ने कब्जा कर रखा है और वह भूमि पर फसल भी लेते हैं। पिछले कई वर्षों से यहां इनका कब्जा है। गत वर्ष जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह आदेश निकाला था कि जिस जमीन पर वर्षों से लोगों ने कब्जा कर रखा है, उन्हे पट्टे दिये जायेंगे तो उस समय यहां के ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के सामने धरना देकर उन्हे भी जमीन का पट्टा दिये जाने की मांग रखी थी। लेकिन तब उन्हे पट्टा नहीं दिया गया था।
अब आज अचानक ग्राम खटपुरा में स्थानीय तहसीलदार आकाश श्रीवास्तव सादल बल के साथ पहुँचे। वहां उन्होने जिस वनभूमि पर ग्रामीणों ने फसल बोई हुई थी उस जमीन पर से कब्जा हटाने की कार्यवाही शुरु कर दी। कब्जा हटाने के लिये शासन ने वहां फसल को ही नष्ट करना उचित समझा। यहां पूरे 50 एकड़ जमीन पर तुअर की दाल बोई गई थी जिसे नष्ट कर दिया गया है। इस पर यहां ग्रामीणों का कब्जा हटा दिया गया है।
क्या प्रशासन की हडबड़ाहट पूर्ण साजिश है ?
असल में खटपुरा ग्राम में करीब 15 साल से अधिक समय से ग्रामीणों को 100 एकड़ से अधिक वनभूमि पर कब्जा है। उधर केन्द्र सरकार ने यह घोषणा की है कि 1995 से पूर्व जिन लोगों का वनभूमि पर कब्जा है उन्हे वन अधिकार प्रमाण पत्र दिया जायेगा और उसके बाद उनका कब्जा स्थायी हो जायेगा। उनका कब्जा नहीं हटाया जायेगा। इसके विपरीत प्रदेश शासन के कारिंदों ने आखिर क्यों केन्द्र सरकार की योजना के विपरीत वनभूमि को खाली करा लिया। जबकि यहां ग्रामीणों का कब्जा व्यवस्थित कराया जाना था। ऐसा लगता है कि शासन ने हड़बड़ाहट में यह कदम उठाया है, ताकि ग्रामीणों का नियमानुसार यहाँ स्थायी कब्जा ना हो जाये।