Wednesday, February 20, 2008

टॉफी, पाउच और माचिस बनी भारतीय मुद्रा

जावर 19 फरवरी (फुरसत)। नगर में लम्बे समय से खुल्ले पैसे चिल्लर की समस्या बनी हुई है जिससे दुकानदार व ग्राहक दोनो परेशान हैं। खुल्ले रुपये नहीं होने के कारण कई बार तो दुकानदार व ग्राहक में तकरार तक हो जाती हैं। खुल्ले पैसे नहीं होने के कारण दुकानदार पैसे के बदले ग्राहक को ट्राफी या पाउच या फिर माचिस थमा देते हैं।
नगर में एक और दो के सिक्कों की भारी कमी है। दुकानदारों का कहना है कि बैंक वाले भी रेजगी खुल्ले पैसे की कोई व्यवस्था नहीं करते। नगर में लम्बे समय से खुल्ले पैसे चिल्लर की समस्या बनी हुई है। पहले पचास पैसे की कमी सामने आई थी लेकिन वर्तमान में तो एक व दो के सिक्के भी बाजार से गायब होने लगे तो हालात यह है कि जिनके पास खुल्ले पैसे होते हैं वह सौ रुपये के नब्बे रुपये देते हैं। इस समय नगर के व्यापारी खुल्ले पैसे चिल्लर नहीं मिलने से खासे परेशान हैं। मेडिकल संचालक पंकज जैन ने बताया कि इस समय बाजार में खुल्ले पैसे की समस्या बनी हुई है उसके बावजूद बैंक वाले खुल्ले पैसे चिल्लर की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं।
खुल्ले पैसे नहीं होने के कारण ग्राहकों को पैसे लौटाने के बजाये उन्हे टाफी, गुटखा पाउच या फिर माचिस आदि देकर समझाना पड़ता है कई जिद्दी ग्राहकों के लिये तो इधर-उधर से व्यवस्था करना पड़ती है। व्यापारी श्याम भंसाली ने बताया कि चिल्लर की समस्या से तो प्रतिदिन जूझना पड़ता है ग्राहक से एक-दो के सिक्के मांगते हैं तो उनके पास भी नहीं मिलते। कई बार तो खुल्ले पैसे नहीं होने के कारण ग्राहक को बिना सामान दिये वापस लौटा दिया जाता है। होटल संचालक दामोदर भावसार ने बताया कि खुल्ले पैसे की समस्या को देखते हुए होटल पर ट्राफी पाउच सिगरेट आदि चीजें रखना पड़ रही है। खुल्ले पैसे नहीं देने के बदले ग्राहक को गुटखा पाउच देते हैं। खुल्ले पैसे नहीं होने के कारण कई बार दुकानदार ग्राहक आपस में नाराज हो जाते हैं। खुल्ले पैसे की कमी से व्यापार पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। भाजपा व्यापारी प्रकोष्ठ के मण्डल अध्यक्ष प्रेम सिंह एवं महामंत्री राजेन्द्र सिंह सेंधव ने बैंक अधिकारी से चिल्लर की व्यवस्था करने की मांग की है।
बीस साल पहले चलते थे टोकन व्यापारी सुनील जैन ने बताया कि करीब बीस साल पहले भी नगर में खुल्ले पैसे की समस्या आई थी। तब स्थानीय व्यापारियों ने अपनी दुकान के नाम पर नगर में टोकन चलाये थे पच्चीस पचास व एक रुपये के टोकन छपवाए थे। टोकन में दुकान की मोहर व दुकान मालिक के हस्ताक्षर होते थे। खुल्ले पैसे नहीं मिलने की स्थिति में ग्राहकों का टोकन दिये जाते थे।