Monday, March 31, 2008

नव संवत्सर का महात्म्य

ऋग्वेद में कहा गया है कि सृष्टि के प्रारम्भ में दिन और रात अहोरात्र का युग्म बना। ऐसे दिनों से तीस दिन का चंद्र मास और बारह मास में एक संवत्सर के अनुसार कालगणना प्रारंभ हुई। यजुर्वेद में दो मासों के एक युग्म को गतु कहा गया। इस प्रकार छ: ऋतुओं बारह मासों के नाम प्राचीन वैदिक साहित्य में उल्लेखित है। चैत्र मास को हमारे यहां मधुमास की संज्ञा दी गई। वर्ष चैत्र प्रतिपदा अथवा गुड़ी पड़वा मनाये जाने का विधान हमारे वैदिक ग्रंथों में निहित है। इस दिन प्रात: भुवन भास्कर की छटा, प्रकृति की पुलकन, समीर का प्रवाह हमें आल्हादित और उल्लासित करता है।
हिमाद्री के अनुसार चैत्र मासि जगद्ब्रह्मा सगृजे प्रथमे हनि अर्थात् चैत्र मास शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा ने सृष्टि रचना आरम्भ की थी, इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सृष्टि का प्रकटोत्सव दिवस है, भास्कराचार्य ने भी सिध्दांत शिरोमणि में लिखा है कि चैत्र मास शुक्ल पक्ष के आरम्भ में रविवार के दिन, सतयुग का आरम्भ हुआ। भगवान राम का राज्याभिषेक, वरुण देव झूलेलाल का जन्म दिन, महाराजा युधिष्ठिर द्वारा संवत् का प्रारंभ, राष्ट्रीय सर्जना व नवोत्थान के प्रेरणा पुंज डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही हुआ था। उल्लेखनीय है कि सम्राट शकारि विमादित्य शकों को पराजित कर सार्वभौम सम्राट के रूप में इसी दिन सिंहासनारूढ़ हुए और विधिवत विम संवत् प्रारंभ किया। इस दृष्टि से विम संवत् भारतीय शौर्य, पराम और अस्मिता का प्रतीक भी है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रात: सरोवरों में स्नान, सूर्य को अर्घ्य देकर प्रकृति के नव कलेवर धारण किए हुए मंगलमय वातावरण में मांगलिक कार्यों के प्रारंभ का विधान है।
वर्ष प्रतिपदा से शक्ति आराधना के रूप में वासन्तिक नवरात्रि का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है। स्वास्थ्य की सुरक्षा के साथ-साथ चंचलमन की स्थिरता के लिए साधना प्रारंभ की जाती है।
आरोग्य जीवन की कामना से नीम की पत्तियों काली मिर्च, मिश्री और अजवाईन तो कहीं-कहीं धनिया, चीनी के प्रसाद वितरण के पीछे भी आयुर्विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं।
सृष्टि संवत् की कालगणना का आधार देखने पर वर्तमान में 1 अरब 97 करोड़, 64 लाख, 61 हजार, 6 सौ 68 वर्ष के रूप में भारतीय कालगणना का इतिहास किसी गौरव गाथा से कम नहीं है। दूसरी ओर 28 वें कलियुग के 5109 वर्ष या 52वीं शताब्दी अर्थात् विश्व की शेष गणनाओं से भी 31 शताब्दी आगे भारत की ऐतिहासिक परम्परा किसी गौरवगाथा से कम नहीं है।
इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की विशेषता यह रहेगी कि भारत में दो अलग-अलग दिनों में वर्ष प्रतिपदा का प्रवेश होगा। तिथि का निर्धारण खगोलीय वैज्ञानिक प्रक्रिया है, यह सूर्य तथा चन्द्रमा की गति के आधार पर तय होती है। इस स्थिति भेद के चलते भौगोलिक आधार पर भारतीय नववर्ष विम सम्वत् 2065 शालिवाहन शाके 1930 दो अलग-अलग दिन मनाया जाएगा। पश्चिमी और पूर्वी भारत में मश: प्रतिपदा क्षय एवं प्रतिपदा के सूर्योदय समय पर रहने से सूर्य और चन्द्र दो अलग-अलग राजाओं के हाथों संचालित होगा। सम्वत् 2065, 6 अप्रैल (रविवार) को प्रतिपदा प्रात: 9.27 से आरंभ होकर रविवार की रात अर्थात् सोमवार सूर्योंदय से पहले 5.11 पर समाप्त होने की स्थिति में 76 अक्षांश पहले पश्चिमी छोर की ओर से श्रीलंका के छोर को छूते हुए प्रतिपदा के क्षय रहने से रविवार को नए विम सम्वत का अभिनंदन किया जाएगा। जबकि पूर्वी भारत में 7 अप्रैल (सोमवार) को नया वर्ष मनाया जाएगा।
इस्लामाबाद से लेकर लाहौर का पश्चिम भाग, अमृतसर, जालंधर, जयपुर, बूंदी, कोटा, उदयपुर, चित्तौड़, बांसवाड़ा, सम्पूर्ण गुजरात, मंदसौर, उज्जैन, इन्दौर, झाबुआ, खरगोन, धार, पश्चिम महाराष्ट्र अकोला, पुणे, मुम्बई, सोलापुर, सांगली, कोल्हापुर, सतारा, रत्नागिरी, गोवा, बीजापुर, गुलबर्गा, हुबली, कर्नाटक व रामेश्वरम् का पश्चिम क्षेत्र छूते हुए 76 अक्षांश रेखा के पश्चिम क्षेत्रों में नूतन वर्ष का आरंभ 6 अप्रैल (रविवार) को होगा जबकि 7 अप्रैल (सोमवार) को प्रात: 6 बजकर 9 मिनट के बाद जिन स्थानों पर सूर्योदय होगा वहां पर प्रतिपदा का क्षय नहीं होने से चंडीग़ढ, अंबाला, कुरुक्षेत्र, दिगी, अलीगढ़, प्रयाग, झांसी, ग्वालियर, भोपाल, जबलपुर, छत्तीसगढ़, नागपुर, पूर्व महाराष्ट्र, कानपुर, लखनऊ, पूर्वी मद्रास, कोलकता, विशाखापट्टनम, पूर्वीबंगाल में वर्ष प्रतिपदा 7 अप्रैल (सोमवार) को होगी। युग महोत्सव व सृष्टि आरंभ का महत्वपूर्ण दिवस अलग-अलग दिन रहने से दो अलग-अलग शासकों के कारण ग्रहों के मंत्रिमंडल में भी अलग-अलग प्रभावों से देश के दोनो भागों को परिणाम झेलने पड़ेंगे। इस प्रकार की भौगोलिक स्थिति 10 व 11 अप्रैल, 2032 यानी विम सम्वत् 2089 में भी आएगी।

हत्यारे मार्क्सवादी

कन्नूर एक बार फिर दहल उठा। केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्टों की हिंसा का पर्याय बन चुका यह जिला संघ स्वयंसेवकों के विरुध्द कामरेडों के हिंसक षडयंत्रो का गवाह है। मार्च, 2008 के पहले सप्ताह में मार्क्सवादियों ने वहां अपनी पाशविकता का बर्बर चेहरा एक बार फिर से उजागर कर दिया। कन्नूर ही क्यों, राज्य के दूसरे क्षेत्रों में भी, जहां मार्क्सवादियों की थोड़ी बहुत ताकत बढ़ी है, इन हिंसक कामरेडो ने रा.स्व.संघ, भारतीय मजदूर संघ, भाजपा तथा अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनो के उन युवा कार्र्यकत्ताओं पर चुन-चुनकर योजनाबध्द हमले किए जो कभी मार्क्सवादी दल से जुड़े रहे थे और बाद में उस खोखली विचारधारा को त्यागकर हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों से जुड़े हैं। सदानंद मास्टर, के.टी.जयकृष्णन, रवीश, रविन्द्रन और इनके जैसे कितने ही युवा इन हिंसक मार्क्सवादियों के निशाने पर रहे हैं, अनेक की तो बर्बर हत्या की गई है। मार्क्सवादियों के इस हिंसक व्यवहार का एक और वीभत्स रूप पिछले दिनों कन्नूर और थलासेरी में सामने आया है। रा.स्व.संघ-भाजपा के 5 कार्र्यकत्ताओं-निखिल, संतोष, महेश, सुरेश बाबू और सुरेन्द्रन की हत्या पाशविकता की सारी सीमा लांघ गई। वैचारिक विरोधियों के विरुध्द मार्क्सवादियों का यह घिनौना व्यवहार किसी से छुपा नहीं है। ये भले ही देश के सेकुलर मीडिया और टेलीविजन चैनलों के जरिए कुछ भी तस्वीर पेश करते हो मगर असलियत यही है कि हिंसा, हत्या, उपद्रव, अशांति, अराजकता, निर्लज्जता जैसे शब्द मार्क्सवादियों के शब्दकोष में भरे पडे हैं।
कन्नूर में मार्क्सवादी अपराधी तत्वों ने 5 मार्च से 7 मार्च के बीच लगातार तीन दिनों तक खूनी खेल खेला। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांच युवा कार्र्यकत्ताओ निखिल (22), संतोष (35), महेश (31), सुरेश बाबू (34) और सुरेन्द्रन (64) पर हमला ही नहीं किया गया बल्कि उनकी बर्बर हत्या कर दी गई। अपनी बर्बरता का परिचय देते हुए लाल हत्यारो ने युवा कार्र्यकत्ताओं के शवो के टुकडे-टुकडे कर दिए। मृत देहों से कैसी पाशविकता बरती गई थी वह चित्रों में साफ देखा जा सकता है। महेश का तो सर काटकर धड से अलग कर दिया गया था। विडम्बना देखिए, इसके बाद भी मार्क्सवादी उल्टे भाजपा व संघ पर हिंसा का आरोप सेकुलर मीडिया के जरिए उछाल रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्र्यकत्ताओ पर इधर जानलेवा हमले होते रहे और उधर राज्य के गृहमंत्री कोडियरी बालाकृष्णन के अधीन पुलिस विभाग स्वाभाविक रूप से मूकदर्शक बना रहा।
केरल पुलिस मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पदाधिकारियो की प्रहरी बनकर रह गई है। ऐसे में भाजपा ने प्रत्येक जिला मुख्यालय पर 11 मार्च को धरना प्रदर्शन आयोजित किया और फैसला किया कि जब तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी हत्या की घृणित राजनीति बंद नहीं करेगी तब तक यह विरोध प्रदर्शन नहीं थमेगा।
राज्य में मई 2006 में माकपा और एलडीएफ (वाम लोकतांत्रिक मोर्चा) की सरकार बनने के बाद से अब तक भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नौ कार्र्यकत्ताओ की हत्या की जा चुकी है। मार्क्सवादी गुंडो ने 35 हिन्दू कार्र्यकत्ताओ के घर तहस-नहस कर डाले। कई युवा और साहसी कार्यकत्ताओ को जीवनभर के लिए अपाहिज बना दिया गया।
केरल में हिंसा की इन घटनाओ को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वैंकेया नायरू ने थलासेरी और राज्य के उपद्रवग्रस्त अन्य हिस्सों में त्वरित रुप से केन्द्रीय बलो को तैनात करने की मांग की। नायडू ने पूरे घटनाम को राज्य प्रायोजित हिंसा की संज्ञा दी है। केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी का मानना है कि कन्नूर हत्याकांड राज्य के गृहमंत्री बालाकृष्णन की कथित शह पर रचा गया। उन्होने ही जेल में सजा काट रहे मार्क्सवादी अपराधियो को पैरोल पर छोड़ने की अनुमति दी थी जिन्होंने संभवत: यह घृणित कांड किया है। केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रमेश चेन्नीतला ने आरोप लगाया है कि गृहमंत्री बालाकृष्णन ने हिंसा को रोकने के लिए कोई कदम ही नहीं उठाया, जबकि वे भलीभांति जानते हैं कि उनका अपना विधानसभा क्षेत्र थलासेरी सबसे ज्यादा संवेदनशील है। राज्य के पुलिस महानिदेशक ने स्वयं स्वीकार किया है कि थलासेरी में हुआ यह हत्याकांड पूर्व नियोजित था और इसके लिए बाकायदा योजना तैयार की गई थी। आश्चर्य इस बात का है कि इस जानकारी के बावजूद देशी बम बनाने वालो पर छापे की कोई कार्रवाई नहीं की गई। किसी भी आतंकी समूह को हिरासत में नहीं लिया गया। यहां तक कि पुलिस ने इलाके से अवैध हथियार भी जब्त नहीं किए।
स्वतंत्र प्रेक्षक कन्नूर में हुई हत्याओं के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राजनीतिक इतिहास और इसकी हिंसक विचारधारा को दोषी मानते हैं। उनका कहना है कि माकपा के हाथ में जब-जब सत्ता आई, उसने भारतीय जनता पार्टी और रा.स्व.संघ के कार्र्यकत्ताओं पर बेरहमी से हमले किए हैं।
प्रसिध्द समाजशास्त्री डा.के.पी. श्रीधर कहते हैं कि इस मुद्दे में साम्प्रदायिकता या वर्ग संघर्ष जैसी कोई बात नहीं है। हिंसा की मूल वजह केवल और केवल यही है कि मार्क्सवादी इलाके को अपने कब्जे में रखना चाहते हैं। कन्नूर में माकपा राज्य सचिव पिनरई विजयन, जिला सचिव कोट्टुपरम्बु से विधायक पी.जयरायन, केन्द्रीय समिति के सदस्य ई.पी.जयराजन जैसे लोग का नियंत्रण है। ये सभी अपने हिंसक आचरण के लिए जाने जाते हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी तो चाहती है कि गांव-गांव में बम बनाए जाएं और वहां से भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्र्यकत्ताओ, समर्थको को समाप्त कर दिया जाए।
जब-जब माकपा सत्ता में आती है, कन्नूर में तैनात पुलिस बल में व्यापक फेरबदल कर दिया जाता है। इसके पीछे सरकार की मंशा यही होती है कि अपने कठपुतली अफसरो को कन्नूर में बैठा दिया जाए। कामरेड किसी भी तरह इस जिले पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते हैं। बहरहाल, आज कन्नूर में भयावह सन्नाटा पसरा है। इस तरह की खबरें हैं कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता पार्टी के राज्य सम्मेलन के समाप्त होने की राह देख रहे हैं। इसके बाद वे चाहेंगे कि हिंसा में बढोत्तरी हो ताकि कन्नूर में उनके लिए 'राह' आसान हो सके। पार्टी ने इलाके के हिन्दुत्वनिष्ठ कार्र्यकत्ताओं को सताने के लिए कथित तौर पर बाकायदा एक कार्य योजना तैयार कर रखी है जिस पर, संदेह है कि, पूरी तरह से अमल किया जाना अभी बाकी है। साभार पाञ्जन्य

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आज विशाल धरना प्रदर्शन

सीहोर 30 मार्च (नि.सं.)। केरल प्रांत में संघ के पाँच स्वयं सेवकों की निर्मम हत्या के विरोध में देश भर में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना हो रही है। माकपा द्वारा आये दिन संघ के स्वयं सेवकों पर प्राण घातक हमले किये जाना तथा हाल ही में पाँच स्वयं सेवकों की हत्या किये जाने को लेकर जिला मुख्यालय पर आज कलेक्ट्रेट मैदान पर दोपहर 1 बजे धरना दिया जायेगा। संघ कार्यालय से जारी की गई विज्ञपित में संघ के पदाधिकारियों ने समाज के सभी वर्गों से धरना स्थल पर पहुँचने का आग्रह किया है आज दोपहर एक बजे कलेक्ट्रेट मैदान पर धरने का आयोजन संघ के नेतृत्व में किया गया है। कार्यक्रम में विभिन्न वक्ताओं द्वारा विचार व्यक्त किये जावंगे, तत्पश्चात जिलाधीश को महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया जायेगा।
जिला संघचालक शिवरतन पुरोहित जिला कार्यवाह बाबु सिंह ठाकुर, जिला सहकार्यवाह अनिल पालीवाल, नगर कार्यवाह कमल सिंह ठाकुर आदि ने समाज के सभी वर्ग के लोगों से इस धरना प्रदर्शन कार्यक्रम में उपस्थित रहने का अनुरोध किया है।

गुप्तदान कर पीड़ितो की सेवा में जुटे है आष्टा के कई हाथ

आष्टा 30 मार्च (नि.प्र.)। आष्टा के श्वैताम्बर जैन मंदिर किला पर विराजित पूज्य पन्यास प्रवर श्री हर्ष तिलक विजय जी म.सा. ने पीछले दिनों स्थानीय पत्रकारों से रूबरू होते हुए दान कैसे होना चाहिये और उसका कैसा फल प्राप्त होता है के बारे में कहा था कि दान जितना गुप्त होगा उसका फल उतना ही अधिक मिलता है ।
जब कोई दान करे और उसके पीछे उसकी मंशा नाम की हो तो वो दान दान नही होता है । इस युग में दान तो बहुत करते है । लेकिन कईयों की इसके पीछे मंशा नाम होना चाहिये छुपा रहता है । लेकिन आज भी आष्टा में ऐसे ऐसे दान दाता है जो पीड़ितों की सेवा के लिए खुल मन से दान के लिए हाथों को जेब में डालते है । और अपना नाम गुप्त रखते है । इसका उदाहरण है आष्टा के गंज क्षैत्र के वे पीड़ित परिवार जिनके परिवारों में बसंत पंचमी पर एक दुर्घटना के बाद परेशानियों ने अपना डेरा डाल दिया था । बसंत पंचमी पर आष्टा के गंज क्षैत्र में रहने वाले चन्द्र प्रकाश गौतम की पुत्री की शादी में परिवार व रिश्तेदार इंदौर जा रहे थे तभी उनकी गाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी जिसमें लगभग 22 लोग घायल हो गये थे इनमें से दो की मृत्यु हो गई थी ये सभी घायल परिवार इतने गरीब थे कि उनका इलाज कराना उनके बस की बात नही था लेकिन आष्टा के दानदाताओं, व्यापारियों ने खुलकर सामने आकर इलाज के लिए राशि भेजी ।
अब इन परिवार के सदस्यों के लिए भोजन सामग्री व अन्य वस्तुओं की व्यवस्था के लिए आज भी कई दान दाता बिना नाम घोषणा किये इन परिवारों की सेवा में जुटे है । गंज के समाज सेवी विनोद पटेल को गुप्त रूप से दान राशि देकर उन परिवारों की सेवा कर रहे है । पीड़ित परिवारों के घरो पर आई दान राशि से घर में खाद्य सामग्री आदि पहुंचाई जा रही है । दानदाता ऐसे कार्य में पीछे भी नही है । अगर नगर का कोई भी दानदाता इन पीड़ित परिवारों की सेवा के लिए दान राशि देना चाहे तो वे विनोद पटेल, सवाईमल बोहरा से संपर्क कर दान राशि दे सकते है । आष्टा हमेशा पीड़ितो की सेवा के मामले में अपना एक अलग ही स्थान रखता है । इसके पहले भी आष्टा से कोटिया नाला क्षैत्र में, कारगिल के शहीदों के लिए हजारों रुपये दान में यहां के दानदाताओं संगठनों ने भेजी है ।