Monday, June 9, 2008

गंगा दशहरा : दस प्रकार के पापों से मुक्ति का पर्व

ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, हस्त नक्षत्र, बुध दिन, दशमी तिथि, गर करण, आनंद योग, व्यतीपात, कन्या राशि के चंद्रमा तथा वृष राशि के सूर्य इन दसों का संयोग महान पुण्य का कारक माना गया है। अतऱ् इन दस योगों से युक्त दशमी तिथि को गंगा स्नान और गंगा पूजन से दस प्रकार के पापों (तीन कायिक, चार वाचिक और तीन मानसिक) का हरण होता है।
इसीलिए इसे गंगा दशहरा कहते हैं। देव नदी गंगा का प्राणी मात्र के उद्धार हेतु पृथ्वी पर अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को ही हुआ था। अत इस तिथि को गंगा दशहरा के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर, गंगा जी का ध्यान करें। पूजा में दस प्रकार के गुण, धूप, दीप, सुगंध, नैवे, तांबूल एवं फल होने चाहिए तथा तिल, जौ एवं सत्तू सोलह-सोलह मुट्ठी होने चाहिए, जिन्हें दस ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित दान करना चाहिए। इस प्रकार पापों से क्षय के लिए सभी वस्तुएं दस की संख्या में होनी चाहिए। उक्त प्रकार विधि-विधान से पूर्वक पूजा करने से मनुष्य सारे पापों से मुक्त हो श्री हरि के धाम को जाता है।
एक समय अयोध्या में सगर नाम के राजा राज्य करते थे। महाराज सगर चक्रवर्ती सम्राट थे। महराज सगर की दो रानियां केशिनी एवं सुमति थी। केशिनी के असमंजस नामक पुत्र था तथा सुमति के साठ हजार पुत्र थे। राजा सगर के असमंजस सहित सभी साठ हजार पुत्र घमंडी एवं क्रूर थे, जिनसे देवता दुखी एवं भयभीत रहते थे।
कपिल मुनि का शाप....
एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और उसके लिए एक अश्व छोड़ा। राजा के दुष्ट पुत्रों को सबक सिखाने हेतु इंद्र ने अश्वमेघ यज्ञ के उस घोड़े को चुपके से कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया, जोकि उस समय तपस्या में लीन थे। घोड़े को खोजते-खोजते सगर के सभी पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुंचे। अपने अश्व को वहीं बंधा देख, वे सभी क्रोधित हो कपिल मुनि को युद्ध के लिए ललकारने लगे। अपनी तपस्या भंग होने पर क्रोधित कपिल मुनि ने शाप से उन सभी को भस्म कर दिया। अपने पुत्रों के भस्म होने की सूचना मिलने पर राजा सगर ने असमंजस के पुत्र अंशुमान, जो कि स्वभाव से धार्मिक एवं उदार स्वभाव का था, को कपिल मुनि के आश्रम भेजा। अंशुमान के अनुनय-विनय से प्रभावित हो कपिल मुनि ने उसे घोड़ा ले जाने तथा अपने पितामह को यज्ञ पूर्ण करने की आज्ञा दी। अंशुमान के आग्रह पर कपिल मुनि ने बताया कि उन सभी भस्म किए हुए सगर पुत्रों की मुक्ति तभी हो सकती है, जब गंगाजी स्वर्ग से आकर उनकी भस्म को स्वयं में समाहित कर लें। अंशुमान ने घोड़ा ले जाकर यज्ञ पूर्ण कराया तथा महाराज सगर के बाद राजा बने। अंशुमान के मन में हर समय अपने पूर्वजों की मुक्ति की चिंता बनी रहती थी। अतऱ् वे अपने पुत्र दिलीप को राज्य सौंप गंगा जी की प्रसन्नता हेतु वन में जाकर तपस्या में लीन हो गए। जहां तपस्या करते हुए उनका देहावसान हो गया।
राजा अंशुमान की मृत्यु के उपरांत महाराज दिलीप भी अपने पुत्र भगीरथ को राज्य सौंप, अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए तपस्या हेतु वन को चले गए और तपस्या करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए, किंतु वे भी गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर नहीं ला सके। महाराज दिलीप के बाद भगीरथ ने भी घोर तपस्या की। तीन पीढ़ियों की तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्मा जी ने भगीरथ को दर्शन दिए तथा वरदान मांगने को कहा। भगीरथ ने कहा हे ब्रह्मदेव आप मेरे साठ हजार पूर्वजों, जो कि कपिल मुनि केश्राप से भस्म हो गए थे, की मुक्ति के लिए गंगा जी को अपने कमंडल से पृथ्वी लोक पर भेजने की कृपा करें। ब्रह्मा जी बोले, हे भगीरथ मैं अपने कमंडल से गंगा जी को पृथ्वी पर छोड़ने के लिए तैयार हूं, किंतु गंगा जी के वेग को रोकने में यह पृथ्वी असमर्थ है। अत: तुम भगवान शिव की आराधना कर, उन्हें गंगाजी को अपनी जटाओं में धारण करने के लिए प्रेरित करो।
ब्रह्माजी के परामर्श पर राजा भगीरथ ने एक पैर पर खड़े होकर अनेक वर्षों तक भगगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न हो भगवान शिव गंगाजी को अपनी जटाओं में धारण करने के लिए सहमत हो गए। ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगाजी को पृथ्वी की ओर भेज दिया। श्री शिव ने पृथ्वी पर आने से पहले उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर लिया तथा राजा भगीरथ के पूर्वजों की मुक्ति के लिए अपनी एक जटा को पृथ्वी की ओर खोल दिया। इस प्रकार गंगाजी राजा भगीरथ के पीछे-पीछे पृथ्वी की ओर चल पड़ीं और भागीरथी के नाम से विख्यात हुईं। मार्ग में जब गंगाजी जाह्नु ऋषि के आश्रम से गुजरीं, तो ऋषि ने उनका पान कर लिया तथा भगीरथ की प्रार्थना पर गंगाजी को अपनी पुत्री बनाकर दाहिने कान से निकाल दिया। इसीलिए गंगा जी को जाह्नवी नाम से भी पुकारा जाता है। राजा भगीरथ का अनुसरण करते हुए गंगाजी कपिल मुनि के आश्रम पहुंची, जहां महाराज भगीरथ के पूर्वजों की भस्म पड़ी थी। गंगाजल के स्पर्श से वे सभी मुक्ति एवं मोक्ष को प्राप्त हो बैकुंठ को गए तथा गंगाजी अपनी यात्रा को जारी रखते हुए समुद्र में समाहित हो गईं।
गंगोत्री मंदिर उत्तरांचल में दशहरा तिथि को विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। उक्त तिथि को यहां गोमुख (जहां गंगाजी का उद्गम हुआ) दर्शन व गंगा स्नान एवं पूजन का विशेष महत्व है।

गरीबों को पट्टे दिये जायेंगे सर्वेक्षण की अंतिम तारीख 15 जून

सीहोर 8 जून (नि.सं.)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में गत 17 अप्रैल 2008 को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रदेश के नगरीय क्षेत्रों में निवास करने वाले ऐसे समस्त आवासहीन निर्धन परिवारों को आवासीय पट्टा देने का निर्णय लिया गया है जो 31 दिसम्बर 2007 की स्थिति में शासकीय नजूल अथवा नगरीय निकाय अथवा विकास प्राधिकरण की भूमि पर झुग्गी-झोपड़ी में निवास कर रहे हैं। ऐसे परिवारों को पट्टे की पात्रता की शर्तों का निर्धारण किया गया है। लेकिन सीहोर जिले में इस जानकारी को जानबूझकर छुपाया जा रहा है।
सिर्फ कुछ खास लोगों को इसका लाभ मिल सके इसके लिये प्रशासन लगा हुआ है। कई लोगों ने झोपड़े तान लिये हैं।
मंत्रिपरिषद द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार यदि व्यापक जनहित में सार्वजनिक उपयोग के लिए झुग्गी बस्तियों को वर्तमान स्थान से हटाना आवश्यक समझा जायेगा तो इन्हें अस्थाई अधिकार पत्र दिए जाकर अन्यत्र व्यवस्थापन की कार्यवाही की जा सकेगी। भूमिहीन व्यक्ति के वास्तविक अधिभोग की भूमि का व्यवस्थापन या किसी अन्य भूमि का आवंटन, जो 450 वर्गफीट से ज्यादा न हो, उसके पक्ष में किया जायेगा। किन्तु इससे अधिक भूमि होने की स्थिति में नगर पंचायत क्षेत्र में 800 वर्गफीट, नगर पालिका क्षेत्र में 600 वर्गफीट और नगर निगम क्षेत्र में 450 वर्गफीट भूमि के व्यवस्थापन की सीमा होगी। ऐसी अतिरिक्त भूमि रिक्त कराकर अन्य पात्र व्यक्ति को आंवटित की जा सकेगी या नगरीय निकाय उसका अन्य रुप में उपयोग कर सकेंगे। यह भी निर्णय लिया गया है कि व्यापक जनहित में और भावी आवश्यकतों को दृष्टिगत रखते हुए, वर्तमान झुग्गी बस्तियों को उनके स्थान से अन्यत्र व्यवस्थापित किए जाने का निर्णय राजधानी, संभागीय मुख्यालय के शहरों और जिला मुख्यालय के शहरों एवं अन्य शहरों के लिए गठित समितियों द्वारा किया जायेगा। यदि व्यापक जनहित में किसी भी समय शासन द्वारा यह आवश्यक समझा जाता है कि पट्टा प्रदाय की गई झुग्गी बस्ती की भूमि किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए आवश्यक है तो उक्त भूमि का पट्टा निरस्त कर भूमि वापिस ली जा सकेगी और पट्टेधारी को अन्यत्र उचित स्थान पर बसाने की कार्यवाही की जायेगी। यदि कोई झुग्गीवासी किरायेदार के रुप में निवास कर रहा है तब उसे भी पट्टे की पात्रता होगी परंतु झुग्गी के मालिक को पट्टा नहीं दिया जायेगा। पूर्व पट्टेधारी द्वारा पुन: पट्टा प्राप्त करने के आवेदन या गलत जानकारी देने पर उसका यह कृत्य दंडनीय होगा। आवासीय भूमि का पट्टा पति-पत्नी दोनों के संयुक्त नाम से दिया जायेगा। इस योजना के क्रियान्वयन के लिए प्रदेश के समस्त शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों में निवासरत आवासहीनों का सर्वेक्षण कराया जायेगा। यह सर्वेक्षण 15 जून 2008 तक पूर्ण कराये जाने का लक्ष्य है। इसके बाद पट्टों का आवंटन, झुग्गियों के व्यवस्थापन आदि के कार्य पूर्ण कराये जायेंगे। सर्वेक्षण के दौरान पात्र पाये गये आवासहीनों का बायोमेट्रिक सर्वे भी कराया जायेगा जिसे समय सीमा में पूर्ण करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की जायेगी जो इस संबंध में निर्णय लिए जाने हेतु अधिकृत होगी।