लम्बे समय से सीहोर निरन्तर बर्वादी की नई सीढ़ी चढ़ता नजर आ रहा है...मालवा के कोने पर बसा और भोपाल से सटा सीहोर, न घर सुरक्षित रख सका ना घांट। अंग्रेजों ने जिसे अपनी छावनी बनाया और जो सीहोर, भोपाल का भी जिला था, आज उस जिले में समृध्दि की कोई वस्तु नजर नहीं आती। शहरयार हायर सेकेण्डरी स्कूल हो जहाँ भोपाल के सभ्यघरानों के बच्चे पढने आते हों या प्रदेश का ख्यातिलब्ध कृषि महाविद्यालय दोनो बर्वाद हो चुके हैं। शिक्षा के नाम पर लूट-खसोट और अपसंस्कृति को बढ़ावा देते शिक्षण संस्थान ही हमारे पाले में हैं....आवासीय खुला भी तो किसी ने ध्यान नहीं दिया, सबकी निगाह सिर्फ उसके केन्टीन के ठेके पर ही रही व्यवस्थाओं पर नहीं...धीरे-धीरे यह विशेष संस्थान गंभीर बीमारी की चपेट में आ चुका है।
रोजगार के हजारों अवसर उपलब्ध कराती और शान बढ़ाती फेक्ट्रियों को तो हम सबने मिलकर ही बर्वाद कर लिया। पेपर मिल को नोच-नोचकर खत्म कर दिया गया। हालांकि असुरक्षित पडी बेशकीमति सामान की चोरी नहीं होगी तो और क्या होगा। जो भी हो किसी समाजसेवी या राजनेता ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया था, आज भी संरक्षण देकर बचा-खुचा सामान चोरी कराया जाना चालू है। शकर कारखाने के लिये कोई आंदोलन करने नहीं आया, सोयाबीन प्लांट से किसी ने रिश्ता बनाने का प्रयास ही नहीं किया, जबकि यह प्लांट रांगोली तेल बनाकर पूरे प्रदेश में हमारी नाक ऊंची कर रहा था, जगमानक साल्वेंट प्लांट की याद तो कोई करने को ही तैयार नहीं है...गौचारे के प्लांट के विकास की किसी को चिंता ही नहीं है...मण्डी का ओद्योगिक क्षेत्र क्यों उजड़ रहा है किसी को मतलब नहीं....और थूना के पास स्थित ओद्योगिक जमीन पर कोई उद्योग कैसे लग सकता है ऐसा विचार किसी को आता ही नहीं...यहाँ एक व्यापारी बर्वाद होने की स्थिति में आता है तो हर एक खुशी मनाता है...राजनेता यादा खुश होते हैं।
तीसरा महायुध्द पानी को लेकर होगा यह बात अटल जी कई बार कह चुके और आज हम देखने भी लगे हैं...आपसी द्वंद सिर्फ पानी को लेकर हो रहा है...अब जो कुछ पानी को लेकर मारपीट, हत्या, लड़ाई-झगडे हमारे यहाँ हो चुके उससे यादा इस अगले वर्ष के सूखे में होने की संभावना है...सीवन गहरीकरण जब हो रहा था तब कोई नेता सामने नजर नहीं आता था, सारे समाजसेवी अवश्य लगे हुए थे...काहिरी बंधान के लिये आज तक किसी ने कुछ नहीं किया...पार्वती का दूसरा चरण 10 साल से अटका पड़ा है किसी को फिक्र नहीं है....आज हम चुपचाप 10 दिन में एक बार नल आता देखते हैं और हर दिन के हिसाब से नगर पालिका में भुगतान करते हैं...सीवन साल में चार बार सूखती है...नाले पर अतिक्रमण इतना हो चुका है कि नाला अब गटर मलमूत्र और नगर के कचरे का कचराघर बन गया...।
जिस सीहोर की चार दिशाओं में भोपाल नबाव ने चार बड़े तालाब खुदवाये थे ताकि सीहोर को पानी की कमी न रहे, जमोनिया तालाब, भगवानपुरा तालाब, कोनाझिर तालाब सब हमारे लिये हैं...लेकिन इनके संरक्षण की तरफ किसने ध्यान दिया...? किसी का दिमाग चला भी तो उसकी फूटी खोपड़ी से निकला कि गंज के पीछे के फूटे तालाब को सही किया जाये...रुपये भी बर्वाद हुए और पानी भी नहीं रुक सका। जलाभिषेक के रुपये आये तो एक ठेकेदार ने पं.दीनदयाल नगर हाउसिंग बोर्ड में एक तालाब बना दिया (ढूंढो तो जाने)....।
आज हमारे पास ना पानी है....न फेक्ट्री उद्योग धंधा है और ना ही शिक्षा है...। तीन तरफा बर्वादी हुई है जैसे किसी का श्राप लग गया हो या फिर उच्चकोटि की राजनीति के माध्यम से यह सब बर्वादी हुई हो...जो भी हुआ हो हम बर्वाद हो चुके हैं...।
आज मतदान है...कर्तव्य के साथ अपने भविष्य को संवारने की ताकत आज हमारे पास है, सोच-समझकर, बहुत सोच-विचारकर हमें मतदान करना होगा...किसी से संबंध या रिश्ते होने के कारण दबने की जरुरत नहीं...खूब विचारें...तीन विकल्प हैं....कौन क्या कर सकता है यह सोचें...किसने आज तक क्या किया यह सोचें...आगे कौन क्या कर सकता है...किसके पास उर्जा है...शक्ति है...इच्छा है...आपके हाथ में आपका भविष्य है...। मतदान अवश्य करें।
आनन्द भैया