Tuesday, February 26, 2008

रिश्ता तोड़ गया मोहन

मोहन! मोह न किया किसी का, छोड़ गये जग तुम क्षण में ।
किया विचार नही किंचित भी, क्या सोचा तुमने मन में ॥
इतने समझदार होकर भी, ये क्या तुमने कर डाला।
देते थे उपदेश सभी को, नियम नही तुमने पाला॥
नेह का धागा बांधा तुमने, तोड़ दिया क्यों एक पल में ।
मोहन! मोह न किया किसी का, छोड़ गये जग तुम क्षण में ॥
सच्चा नेही, श्रोता, वक्ता, स्पष्टबात, प्यारी प्यारी ।
प्रेम सिन्धु थे, सरल हृदय थे, पढ़ने की ध्वनि थी न्यारी ॥
मंच की शोभा गई आज तो, चर्चा है यह जनजन में ।
मोहन! मोह न किया किसी का छोड़ गये जग तुम क्षण में ॥
जनता का विश्वास दीर्घ था, क्यों अघवर ही छोड़ गये ।
होनहार कवि थे नगरी के, सबकी आशा तोड़ गये ॥
भोली भोली हंसमुख मूरत धूमें सबकी आंखन में ।
मोहन ! मोह न किया किसी का छोड़ गये जग तुम क्षण में ॥
हरी इच्छा बलवान है मित्रो, जन का दोष नही इसमें ।
सत्य किसी ने कहा किसी के काल नही होता बस में ॥
होनहार बलवान पढ़ा था, विद्वानों के ग्रन्थन में ।
मोहन ! मोह न किया किसी का छोड़ गये जग तुम क्षण में ॥
मेरी श्रद्धांजली समर्पित, करलो तुम स्वीकार सखे।
सर्व सांत्वना दे जगदीश्वर, सुखी रहे परिवार सखे॥
आंसू सूखे, पीर मिटे भर जाये साहस तन-मन में ।
मोहन! मोह न किया किसी का, छोड़ गये जग तुम क्षण में ॥

कृष्णहरि पचौरी
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