आष्टा 9 जनवरी (फुरसत)। हमारी भारतीय संस्कृति का मूल रूप अर्पण, तर्पण और समर्पण रहा है। यह संस्कृति संग्रहण और संचय करना नहीं सिखाती। आपको यहॉ पर जो मिला है- ज्ञान, धन, सम्मान उसे अर्पण करना सीखो। अपने पूर्वजो का तर्पण करना, इसीलिए श्राध्द पक्ष आता है। और अंतिम संमर्पण करना। स्वयं को संत को, गुरू को सौंपना सीखो। मृत्यु आने से पूर्व अगर आपने अर्पण, तर्पण और समर्पण करना सीख लिया तो जीवन धन्य हो जायेगा। वर्तमान समय रूचि प्रधान बनता जा रहा है। पदार्थो, परिधानो और एश्वर्यगामी वस्तुओ के प्रति रूचि बढ़ती ही जा रही है। जब जीवन रूचि के अधीन हो जाता है तब नीति खो जाती है।
उक्त प्रखर विचार स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज ने कथा पॉडाल में भागवत् कथा में मंत्र की महिमा, ध्रुव की तपस्या और भगवान ऋषभ देव आख्यान एवं लोकहित के लिए दधिची के अर्पण प्रसंगो का सारगर्भित उल्लेख करते हुए व्यक्त किये। स्वामी जी ने कहा कि जल, अन्न और समय का बड़ा महत्व है। जल की एक-एक बूद और अन्न का प्रत्येक कण समय के हर क्षण अमूल्य है। इसको किसी भी कीमत पर बर्बाद नही करना चाहिए। एक अन्न का कण भी वेदो के अनुसार बड़ी लड़ाई का कारण बना था। दुर्योधन द्वारा दुर्वासा ऋषि और उनके 10 हजार शिष्यों की बड़ी आव भगत करने पर प्रसन्न दुर्वासा ऋषि ने दुर्योधन को वर मॉगने को कहा तब दुर्योधन ने यही कहा कि वह अपने षिष्यों के साथ दोपहर बाद पॉडवों के घर जाकर भोजन मॉगे। द्रोपदी के भोजन करने के पूर्व पात्र की यह विषेषता थी कि उससे जितना चाहे भोजन निकाला जा सकता था लेकिन द्रोपदी के भोजन करने के बाद नही और यहॉ पर भगवान कृष्ण ने द्रोपदी के पात्र से एक चावल को ग्रहण कर संपूर्ण संसार की भूख मिटा दी थी और दुर्वासा ऋषि शिष्यो के साथ भोजन करने नही पहुचें। यही है समपर्ण की षिक्षा की द्रोपदी भगवान कृष्ण से कहा कि इस एक चावल से खुद का भी पेट भरिये और हमारी भी लाज रखिए। उसी तरह जल की बुद और समय के क्षण महत्वपूर्ण है जिस तरह मरने वाले के लिए एक-एक सॉस। धुव, प्रहलाद नाम जपकर भवसागर पार उतर गये। भगवान के नाम की महिमा है। नाम, धाम, लीला और सहचर्य। नाम में ही भगवान, ईश्वर और गुरू छिपे है, इनके निरंतर ध्यान से इनकी प्राप्ती होती है। धुव अपनी सच्ची संकल्प शक्ति के बल पर ध्यान के लिए जंगल गया और नारद द्वारा दिये गये मंत्र ओम नमो: भगवते वासुदेव: का जाप करने लगा। जब धुव ने ऑखे मूदकर, सॉस थाम कर सच्चे मन से उपासना की तब षिव का डमरू अनायास ही बजने लगा, ब्रहमांड डगमगाने लगा। इन्द्र की सभा सुधरमा में नृत्य कर रही मेनका, उर्वषी की ताल और लय आड़ी-तेड़ी हो गई। भगवान विष्णु स्वयं धुव से मिलने चले आये। स्वामी जी ने कहा कि सच्चे संत, सच्चे फकीर बड़ी कठनाई से मिलते है। गीता में अर्जुन ने कृष्ण को बताया है कि सच्चे फकीर की प्राप्ती बड़ी दुर्लभ है। इसीलिए जब संत आपको ज्ञान करादें, प्रकाश का अनुभव करादें तब भी योग, पूजा, उपासना युक्ति नही छोड़ना। स्वामी जी ने भागवत के पंचम स्कंध का उल्लेख करते हुए राजा प्रियवृत से उत्पन्न संतान ऋषभ देव का संस्मरण सुनाया जिनके 100 पुत्र थे। किस तरह से उन्होने अंतिम पुत्र भरत को राज्य सौंपा, पहले पुत्र को अपने नैत्रो से षिक्षा दी, नौ पुत्रो को कर्म-काण्ड सिखाया, 36 पुत्रो को संकल्प शक्ति दिलवायी और किस तरीके से वानप्रस्थ का उन्होने अनुसरण किया। स्वामी जी ने कहा कि प्रभू को पाने के तीन उपाय है भक्ति, ज्ञान और कर्म। भक्ति उस बिल्ली की तरह होना चाहिए जिस तरह से वह बच्चो को जन्म देने के बाद अपनी मुह मे दबाकर सात घर बदलती है ठीक उसी तरह से आप स्वयं को गुरू को समर्पित करोगे तभी जीवन सफल होगा।
स्वामी जी ने सीख दी कि उच्च व्यक्तियो , शीर्ष व्यक्तियों को और बड़े व्यक्तियों को अपने से छोटे , दीन-हीन और दरिद्र लोगो के साथ अपने की भूमिका निभाना चाहिए, अपने साथ लेकर चलना चाहिए। वनस्पतियों के साथ भी हमे अनुशासित और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। सूखी लकड़ियो को बिना अनुमति के उपयोग में लाया जा सकता है लेकिन वृक्षों की डालियों, पत्तों आदि को बिना प्रणाम किये नही तोड़ना चाहिए।
इसके पूर्व स्वामी जी ने आष्टा नगरी की भूरी-भूरी प्रंषसा करते हुए कहा कि जब धरती के नवद्रव्य, जल की आद्रता, आकाष की क्षितिजता और अग्नि की पावनता, आनंद विभोर वातावरण का निर्माण कर रही हो। तब आध्यात्मिक माहौल बन ही जाता है। आध्यात्मिक वातावरण में समुची धरती, प्रकृति शांत, संयत और हर्षित दिखती है।
इसके पूर्व दीप प्रज्जवलन अंतराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी मीर रंजन नैगी , भोपाल के डॉ. गोयनका, ललित अग्रवाल, अजीत जैन, दिलीप सुराणा, ने किया। स्वामी जी के चरणो में पुष्प गुच्छ भेंट करने वालो में रामेश्वर खंडेलवाल, मांगीलाल साहू, विजय देशलहरा, सुरेष पालीवाल, सुधीर पाठक, मांगीलाल पटेल भॅवरा ,प्रेमबंधू शर्मा सीहोर जबकि आरती में एस.डी.ओ (पुलिस)मनु व्यास, कैलाश सोनी अंलकार, दिगम्बर जैन महिला मंडल, मु.न.पा. अधिकारी दीपक राय, रामेष्वर खंडेलवाल, श्रीमति पार्वती सोनी, विनित सिंगी, राजाराम कसौटिया, सी.बी.परमार आदि शामिल थे।
मुख्य बातें
- गंगा का स्नान, यमुना का पान और नर्मदा के दर्शन बराबर पुण्य लाभ देते है।
- तंत्र 6 प्रकार के होते है मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन और विद्वेषण
- जल की एक-एक बूद, अन्न का प्रत्येक कण और समय का हर क्षण मूल्यवान है।
- ईश्वर की उपासना के लिए किसी विधान या सुझाव की जरूरत नही होती।
- प्रभू प्राप्ती के तीन उपाय है, भक्ति, ज्ञान, और कर्म ।
Friday, January 11, 2008
356 शहीद क्रांतिकारियों की जीर्ण-शीर्ण समाधियों की तरफ शासन का ध्यान नहीं
हम कैसे भूल जायें उन शहीदों को...
सीहोर 9 जनवरी । स्वतंत्रता संग्राम के गौरवमयी इतिहास में पूरे मध्य भारत का सबसे समृध्द इतिहास यदि किसी क्षेत्र का है तो वह सीहोर है। यहाँ अंग्रेज सैनिकों की छावनी थी। सन् 1857 के इतिहास के पन्नों में सीहोर में हुई सैनिक क्रांति दर्ज तो है लेकिन आज तक इसे स्थानीय स्तर पर ही शासन द्वारा महत्व नहीं मिल सका। अनेक ऐतिहासिक पुस्तकों में सीहोर के इतिहास की दास्तां लिखी है। सिपाही बहादुर सरकार के गठन से लेकर उसकेजाबांज 356 सैनिकों के जनरल ह्यूरोज द्वारा कराये गये सामुहिक हत्याकाण्ड तक का घटनाक्रम हम कैसे भूल जायें.....अपने इतिहास से सीहोर अनजान रह गया। इन शहीदों की समाधियाँ जीर्ण-शीर्ण शेष रह गई हैं जिसके आसपास जमीन पर कब्जा कर लोग अपनी खेती बाड़ी कर रहे हैं। लेकिन इनकी तरफ मध्य प्रदेश शासन और स्थानीय जिला प्रशासन व पुरातत्व विभाग का कोई ध्यान नहीं है।
देश की स्वतंत्रता के 60 साल बीत जाने के बाद भी सीहोर का गौरवमयी स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास धूल की पर्तो में दबा हुआ है। हम कैसे भूल जायें कि सीहोर की वीर धरती पर भारत का पहला स्वतंत्रता आंदोलन सबसे दमदारी के साथ लड़ा गया था। हम कैसे भुला दें कि 6 अगस्त 1857 से लेकर 14 जनवरी 1858 तक पूरे 6 माह हम पूरे सीहोरवासी देश में एकमात्र स्वतंत्र थे इस गौरव को हम कैसे भूल सकते हैं....? हम कैसे भूल जायें कि यहाँ अंग्रेजों की छावनी में ही भारतीयों ने सारे अंग्रेजों को खदेड़कर भगा दिया था और सीहोर आजाद करा लिया था....? हम कैसे भूल जायें कि महावीर कोठ नामक क्रांतिकारी के नाम पर सीहोर में छ: माह तक महावीर कौंसिल के नाम से शासन हुआ और अंग्रेजों के झण्डे को उतारकर निशाने मोहम्मदी व निशाने महावीरी नामक दो झण्डे पूरे 6 माह तक हर दिन स्वतंत्रता की गौरवगाथा गाते हुए लहराते रहे....।
हम कैसे भूल जायें कि सीहोर में सिपाही बहादुर सरकार महावीर कौंसिल के संस्थापकों ने अंग्रेजों को मार-मारकर खदेड दिया था, मुगल सल्तनत व अंग्रेजों के झण्डे उखाड़ दिये थे...उन वीरों का स्मरण करना क्या आज भारतीयों का, हमारा कर्तव्य नहीं है।
14 जनवरी 1858 के कुछ दिनों पूर्व जनरल ह्यूरोज (जिसने झांसी की रानी लक्ष्मी से युध्द किया था) ने सीहोर आकर यहाँ की सिपाही बहादुर सरकार के वीर सिपाहियों को चारों तरफ घेर लिया था। उन्हे भोपाल की सिकन्दर जहाँ बेगम (खूनी बेगम)की सहायता से बंदी बना लिया गया और अंतत: उन्हे कैद में डाल दिया गया। फिर मांफी मांगने को कहा गया....।
लेकिन किसी भी वीर क्रांतिकारी ने अंग्रेजो से माफी नहीं मांगी। यह क्रांतिकारी कोई 3-4 या 10-12 नहीं थे वरन पूरे 356 से अधिक थे जिन्होने एक साथ कह दिया कि चाहे इस भारत माँ की गोद में सो जायेंगे लेकिन माफी नहीं मागेंगे....अपने धर्म से विमुख नहीं होंगे....(मांस लगे कारतूसों के खिलाफ) और क्रांतिकारियों ने सामुहिक रुप से माफी लिखकर नहीं मांगी अंतत: मजबूर होकर ह्यूरोज ने इतने अधिक लोगों को एक साथ मारने का फैसला करते हुए 14 जनवरी 1858 को 356 क्रांतिकारियों को गोलियों से भुनवा दिया.....। पूरे भारत में इससे बड़ा हत्याकाण्ड कभी नहीं घटा था।
कहा जाता है कि कुछ लोगों को सामुहिक रुप से फांसी भी दी गई क्योंकि ह्यूरोज को फांसी पर लटके क्रांतिकारियों के शव देखने में मजा आता था। एक साथ 356 सैनिकों के शवों का अंतिम संस्कार सीहोर की जनता ने फिर यहीं सीवन नदी के किनारे अलग-अलग स्थान पर करते हुए उनकी समाधियाँ बना दी। यही समाधियाँ आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में स्थित हैं।
उन वीर सपूतों की शहादत को भूल गया है सीहोर। आजादी के बाद आये शासन ने स्वतंत्रता संग्राम के इन वीरों को सम्मान देने, उनका स्मरण करने की जहमत नहीं उठाई। हालांकि मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग, स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा सिपाही बहादुर के नाम से सीहोर की आजादी का स्वर्णिम इतिहास प्रकाशित कराया गया है लेकिन इसके बावजूद शासन ने इस तरफ गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। जिला प्रशासन सीहोर की पुरातत्व शाखा ने भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। जबकि पुरातत्व का एक संग्रहालय यहाँ बना हुआ है। विभाग बकायदा इसकी देखभाल करता है लेकिन इन जीर्ण-शीर्ण समाधियों की तरफ इसका ध्यान नहीं है। यहाँ शासन स्तर पर कोई भी स्मरांजली तक नहीं होती है।
देश की स्वतंत्रता के 60 साल बीत जाने के बाद भी सीहोर का गौरवमयी स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास धूल की पर्तो में दबा हुआ है। हम कैसे भूल जायें कि सीहोर की वीर धरती पर भारत का पहला स्वतंत्रता आंदोलन सबसे दमदारी के साथ लड़ा गया था। हम कैसे भुला दें कि 6 अगस्त 1857 से लेकर 14 जनवरी 1858 तक पूरे 6 माह हम पूरे सीहोरवासी देश में एकमात्र स्वतंत्र थे इस गौरव को हम कैसे भूल सकते हैं....? हम कैसे भूल जायें कि यहाँ अंग्रेजों की छावनी में ही भारतीयों ने सारे अंग्रेजों को खदेड़कर भगा दिया था और सीहोर आजाद करा लिया था....? हम कैसे भूल जायें कि महावीर कोठ नामक क्रांतिकारी के नाम पर सीहोर में छ: माह तक महावीर कौंसिल के नाम से शासन हुआ और अंग्रेजों के झण्डे को उतारकर निशाने मोहम्मदी व निशाने महावीरी नामक दो झण्डे पूरे 6 माह तक हर दिन स्वतंत्रता की गौरवगाथा गाते हुए लहराते रहे....।
हम कैसे भूल जायें कि सीहोर में सिपाही बहादुर सरकार महावीर कौंसिल के संस्थापकों ने अंग्रेजों को मार-मारकर खदेड दिया था, मुगल सल्तनत व अंग्रेजों के झण्डे उखाड़ दिये थे...उन वीरों का स्मरण करना क्या आज भारतीयों का, हमारा कर्तव्य नहीं है।
14 जनवरी 1858 के कुछ दिनों पूर्व जनरल ह्यूरोज (जिसने झांसी की रानी लक्ष्मी से युध्द किया था) ने सीहोर आकर यहाँ की सिपाही बहादुर सरकार के वीर सिपाहियों को चारों तरफ घेर लिया था। उन्हे भोपाल की सिकन्दर जहाँ बेगम (खूनी बेगम)की सहायता से बंदी बना लिया गया और अंतत: उन्हे कैद में डाल दिया गया। फिर मांफी मांगने को कहा गया....।
लेकिन किसी भी वीर क्रांतिकारी ने अंग्रेजो से माफी नहीं मांगी। यह क्रांतिकारी कोई 3-4 या 10-12 नहीं थे वरन पूरे 356 से अधिक थे जिन्होने एक साथ कह दिया कि चाहे इस भारत माँ की गोद में सो जायेंगे लेकिन माफी नहीं मागेंगे....अपने धर्म से विमुख नहीं होंगे....(मांस लगे कारतूसों के खिलाफ) और क्रांतिकारियों ने सामुहिक रुप से माफी लिखकर नहीं मांगी अंतत: मजबूर होकर ह्यूरोज ने इतने अधिक लोगों को एक साथ मारने का फैसला करते हुए 14 जनवरी 1858 को 356 क्रांतिकारियों को गोलियों से भुनवा दिया.....। पूरे भारत में इससे बड़ा हत्याकाण्ड कभी नहीं घटा था।
कहा जाता है कि कुछ लोगों को सामुहिक रुप से फांसी भी दी गई क्योंकि ह्यूरोज को फांसी पर लटके क्रांतिकारियों के शव देखने में मजा आता था। एक साथ 356 सैनिकों के शवों का अंतिम संस्कार सीहोर की जनता ने फिर यहीं सीवन नदी के किनारे अलग-अलग स्थान पर करते हुए उनकी समाधियाँ बना दी। यही समाधियाँ आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में स्थित हैं।
उन वीर सपूतों की शहादत को भूल गया है सीहोर। आजादी के बाद आये शासन ने स्वतंत्रता संग्राम के इन वीरों को सम्मान देने, उनका स्मरण करने की जहमत नहीं उठाई। हालांकि मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग, स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा सिपाही बहादुर के नाम से सीहोर की आजादी का स्वर्णिम इतिहास प्रकाशित कराया गया है लेकिन इसके बावजूद शासन ने इस तरफ गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। जिला प्रशासन सीहोर की पुरातत्व शाखा ने भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। जबकि पुरातत्व का एक संग्रहालय यहाँ बना हुआ है। विभाग बकायदा इसकी देखभाल करता है लेकिन इन जीर्ण-शीर्ण समाधियों की तरफ इसका ध्यान नहीं है। यहाँ शासन स्तर पर कोई भी स्मरांजली तक नहीं होती है।
मामूली बात पर जानलेवा हमला
सीहोर 9 जनवरी (फुरसत)। साधारण बात पर किये गये जानलेवा हमले में दो भाई गंभीर रूप से घायल हो गये जिन्हें हमीदिया अस्पताल भोपाल में भर्ती कराया गया है। आष्टा थाना पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर जांच पड़ताल शुरू कर दी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 6 जनवरी की शाम आष्टा थाने के ग्राम रूपेटा में साधारण सी बात को लेकर गजराज सिंह एवं उसके बड़े भाई रामप्रसाद के साथ कुल्हाड़ी से प्रहार कर जानलेवा हमले की घटना घटित की गई । बताया जाता है कि 6 जनवरी की शाम चार बजे ग्राम रूपेटा निवासी गजराज अपने खेत पर गया था जहां उसका बड़ा भाई रामप्रसाद पहले से मौजूद था । गजराज ने देखा कि उसके गेहूं के खेत में नायलोन का पाइप पड़ा था जो गांव के ही मांगीलाल तथा चैनसिंह ने अपने गेहूं के खेत में पानी ले जाने हेतू डाला था। गजराज द्वारा चेनसिंह से यह कहने पर कि उसके खेत में पाइप क्यों डाला इस पर चैनसिंह गाली गलौच करने लगा गजराज द्वारा गाली देने से मना करने पर चैनसिंह एवं पिन्टू कुल्हाड़ी लेकर आये और गजराज के सिर में मार दी जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया तभी गजराज का बड़ा भाई रामप्रसाद उसे बचाने दौडा जिसे मांगीलाल व राजेन्द्र ने पकड़ कर खेत की मेड़ पर रोक लिया और उस पर भी चैनसिंह और पिन्टु ने कुल्हाड़ी से प्रहार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। दोनों भाईयों को गंभीर अवस्था में इलाज के लिये आष्टा अस्प. लाया गया जहां से उन्हें हमीदिया अस्प. भोपाल भेजा गया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 6 जनवरी की शाम आष्टा थाने के ग्राम रूपेटा में साधारण सी बात को लेकर गजराज सिंह एवं उसके बड़े भाई रामप्रसाद के साथ कुल्हाड़ी से प्रहार कर जानलेवा हमले की घटना घटित की गई । बताया जाता है कि 6 जनवरी की शाम चार बजे ग्राम रूपेटा निवासी गजराज अपने खेत पर गया था जहां उसका बड़ा भाई रामप्रसाद पहले से मौजूद था । गजराज ने देखा कि उसके गेहूं के खेत में नायलोन का पाइप पड़ा था जो गांव के ही मांगीलाल तथा चैनसिंह ने अपने गेहूं के खेत में पानी ले जाने हेतू डाला था। गजराज द्वारा चेनसिंह से यह कहने पर कि उसके खेत में पाइप क्यों डाला इस पर चैनसिंह गाली गलौच करने लगा गजराज द्वारा गाली देने से मना करने पर चैनसिंह एवं पिन्टू कुल्हाड़ी लेकर आये और गजराज के सिर में मार दी जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया तभी गजराज का बड़ा भाई रामप्रसाद उसे बचाने दौडा जिसे मांगीलाल व राजेन्द्र ने पकड़ कर खेत की मेड़ पर रोक लिया और उस पर भी चैनसिंह और पिन्टु ने कुल्हाड़ी से प्रहार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। दोनों भाईयों को गंभीर अवस्था में इलाज के लिये आष्टा अस्प. लाया गया जहां से उन्हें हमीदिया अस्प. भोपाल भेजा गया।
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