सीहोर 16 नवम्बर (विशेष संवाददाता)। विशाल विधानसभा क्षेत्र में ग्रामीण क्षेत्रों में फतह हासिल करने और झण्डे गाड़ने के लिये हर पार्टी का मुख्य प्रत्याशी ही अकेला कुछ नहीं कर सकता। इसके लिये ग्रामीण क्षेत्र के प्रभावी क्षेत्रज्ञ का उपयोग भी पार्टी प्रत्याशी करने को मजबूर रहते हैं। कांग्रेस और भाजपा के अलावा इस बार जनशक्ति के पास भी ऐसे ही ग्रामीण क्षेत्रों के जानकार का महत्व बड़ा हुआ है। यही लोग ग्रामीण क्षेत्रों में क्षेत्ररक्षण करते हुए पाल बांधने और गढ़ सुरक्षित करने का काम कर रहे हैं। लेकिन विगत चार दिनों से कांग्रेस के कद्दावर नेता सुरेन्द्र सिंह ठाकुर की ग्रामीण क्षेत्रों में उपस्थिति ने भाजपा और उसकी बहन जनशक्ति को परेशानी में डाल दिया है। धीरे-धीरे ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस भी मजबूत होने की स्थिति में आने लगी है। विधानसभा चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली सेंधमारी ही सर्वाधिक प्रभाव डालती है। हालांकि अभी शुरुआत है लेकिन आगामी 10 दिनों में कौन क्या करता है किस ग्राम का रुख किस और बढ़ता है....। भाजपा, कांग्रेस और जनशक्ति के भेजे गये यह नेता अपने पक्ष में कितना प्रभाव जमा पाते हैं यह समय आने पर ही पता चल सकेगा....।
पिछले विधानसभा चुनाव में जिस कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह ठाकुर ने अपनी कुशल रणनीतिक कला और स्वयं के समर्पित विशाल कार्यकर्ताओं बाहुबलि फौज के दम पर पूरे ग्रामीण क्षेत्रों में अपना प्रभाव बहुत अल्प समय में बना लिया था और बहुत लम्बे समय बाद ग्रामीण क्षेत्रों से भी कांग्रेस अच्छे मत लेकर आई थी उन्ही सुरेन्द्र सिंह ठाकुर ने अचानक कांग्रेस प्रत्याशी अखलेश स्वदेश राय के पक्ष में अपनी वापसी करते हुए मैदान संभाल लिया है। विधानसभा चुनाव में शहरी क्षेत्र की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्र की मजबूती भी एक महत्वपूर्ण मायने रखती है जिसमें प्रारंभ से ही भाजपा प्रत्याशी रमेश सक्सेना का एक तरह से वर्चस्व रहा है लेकिन पिछले चुनाव में जिस ढंग से सुरेन्द्र सिंह ठाकुर ने सेंधमारी की थी उससे सक्सेना को परेशानी आ गई थी। पिछले ही चुनाव में सक्सेना को पसीने आ गये थे और उन्हे अत्याधिक कड़ी मेहनत ग्रामीण क्षेत्रों में करना पड़ गई थी।
हालांकि सक्सेना के पक्ष में यह अच्छी बात थी कि वह सत्ता के विरोध में भाजपा प्रत्याशी थे और कांग्रेस के विरोध में ग्रामीण क्षेत्रों तक लहर चल रही थी उस पर पूरे मध्य प्रदेश में उमाश्री भारती की छत्रछाया भी कायम थी जिसके चलते भाजपा की लहर अंत तक चलती रही और ग्रामीण क्षेत्रों से कांग्रेस प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह द्वारा मतदाताओं की भारी तोड़-फोड़ कर लिये जाने के बावजूद भाजपा की जीत हो गई थी हालांकि वह जीत का अंतर इतना कम था कि भाजपा प्रत्याशी ने सार्वजनिक रुप से इसे स्वीकारते हुए कहा कि आश्चर्य है कि हम 5-5 साल तक ग्रामीण क्षेत्रों में हर दिन जाते हैं और एक बाहरी प्रत्याशी 6 माह पूर्व से आकर इतने अधिक मत ले जाता है। निश्चित रुप से सुरेन्द्र सिंह ठाकुर की कुशलता पर सवालिया निशान लगाना मुश्किल बात है। ऐसे में अब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी द्वारा सीहोर के लिये कद्दावर नेता सुरेन्द्र सिंह ठाकुर को अपने साथ उड़नखटोले में लाकर ससम्मान सीहोर के लिये काम करने का कहना कहीं ना कहीं ठाकुर के लिये तो उत्साहित करने वाली बात है ही बल्कि कांग्रेस में भी इसने नई जान फूंक दी है। अब कांग्रेस का ग्रामीण क्षेत्र का दारोमदार सुरेन्द्र सिंह ठाकुर के नेतृत्व में चल रहा है।
इधर भारतीय जनता पार्टी के बाहुबलि विधायक रमेश सक्सेना की ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच से इंकार करना ही बेमानी है। पिछले दिनों नामांकन दाखिले के समय निकले उनके रेले इस बात को सिध्द भी कर दिया था लेकिन ग्रामीण क्षेत्राें का दारोमदार उनके जिस भतीजे देवेन्द्र सक्सेना के हवाले माना जा रहा है, और देवेन्द्र ने जिन ग्रामों में डेरा डाल लिया है वह वहाँ इस बार कितना प्रभाव डाल पाता है इसको स्पष्ट कहना अभी मुश्किल है। सक्सेना के पक्ष वाले ग्रामाें में ही देवेन्द्र अपने डेरे को डाले हुए है, देवेन्द्र के स्वभाव के आगे सुरेन्द्र सिंह ठाकुर का वजनदार व्यक्ति बहुत मायने रखता है वहीं देवेन्द्र इस चूंकि जनपद अध्यक्ष रहते हुए अपनी कार्यप्रणाली से बहुत कम लोगों को खुश रख सके ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के लिये भाजपा द्वारा छोड़ दिये देवेन्द्र की क्या स्थिति बनाकर लाते हैं यह स्पष्ट कहना मुश्किल है। लेकिन यह बात सही है कि देवेन्द्र सक्सेना ग्रामीण क्षेत्रों में लम्बे समय से सक्रिय रहते हैं। अब देखते हैं वह अपने वोट बैंक को सुरक्षित रख पाते हैं अथवा अंत में खुद विधायक रमेश सक्सेना को ही ग्रामीण क्षेत्रों की और कूच करना पड़ेगा। असल में लम्बे समय से ग्रामीणों में यह अफवाह लम्बे समय से प्रचलित होने लगी है कि देवेन्द्र को रमेश सक्सेना ने ग्रामीणों के लिये छोड़ देते हैं क्योंकि देवेन्द्र ग्रामीणों को सही तरह से हांक कर, डरा-धमका कर मनचाहे वोट ले सकते हैं, इस अफवाह का देवेन्द्र के कार्य पर विपरीत असर भी पड़ता है लेकिन जो भी हो भाजपा ने अभी देवेन्द्र को ही तिलक लगाकर ग्रामीण क्षेत्रों में फतह हासिल करने के लिये छोड़ा है, यह बात सर्वविदित है।
इधर भाजपा से कुपित ग्रामीणों पर लम्बी सेंध मारने की फिराक में जनशक्ति ने विगत दो-ढाई साल से धीरे-धीरे कछुआ चाल से ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाना शुरु कर दी थी। बहन उमाश्री भारती के दुख-दर्द को समझाकर उनके पक्ष में बहुत धीमे-धीमें ग्रामीणों को मोड़ते हुए चुनाव की तैयारी में जनशक्ति के नेता लोकेन्द्र मेवाड़ा लगे हुए थे। लोकेन्द्र मेवाड़ा भी ग्रामीण नेता हैं और पूर्व में चूंकि वह सक्सेना के साथ लम्बे समय तक रहे हैं इसलिये ग्रामीण क्षेत्रों कहाँ कैसे सेंधमारी करना है और किस कला का उपयोग किया जाना है यह उन्हे बखूवी आता है।
जनशक्ति के लिये आज भी लोकेन्द्र मेवाड़ा ग्रामीण क्षेत्रों की पूरी व्यवस्था संभाले हुए हैं लेकिन इनके लिये भी कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रत्याशी सुरेन्द्र ठाकुर का आ जाना एक विशेष समस्या बन गया है। जनशक्ति ने भाजपा विरोधियों पर डोरे डाले थे ठाकुर के आ जाने से वापस यह विरोधी ठाकुर के पाले में जाते हुए नजर आने लगे हैं। ठाकुर ने आते ही बहुत तेज गति से पाल बांधना शुरु कर दी है।
कांग्रेस के सुर, भाजपा के देव और जनशक्ति के लोक यह तीनों ही इन्द्र, इस समय इन्द्रशक्ति के रुप में तीनों के लिये अमृत का काम करने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस के सुर+इन्द्र ने आते ही प्रभाव दिखाया है, भाजपा के देव+इन्द्र का वज्र प्रभावी है और भयाक्रांत करता है तथा जनशक्ति लोक+इन्द्र ऐरावत पर सवार शांति का दूत बनकर उमाश्री के लिये आशीष मांगता नजर आ रहा है। तीनों ही इन्द्र अपनी-अपनी अलग कलाएं ग्रामीणों पर आजमा रहे हैं।
कौन-कितना जादू बिखेरता है...कौन कितना प्रभाव जमाता है...कौन क्षेत्ररक्षण में कुशलता दिखाता है.....कौन चक्रव्यूह रचकर दूसरे का प्रवेश रोकता है....कौन मोहिनी डाल पाता है... यह तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन तीनाें ही प्रमुख पार्टियों के तीन इन्द्र इस समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य में जुटे हुए हैं और इन पर पार्टी का महत्वपूर्ण दारोमदार भी टिका है।
कांग्रेस के लिये जोधाराम गुर्जर और भाजपा के लिये कमलछाप कांग्रेसी का भी महत्व...
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