सीहोर 30 दिसम्बर (नि.सं.)। जिला शिक्षा विभाग में व्याप्त अव्यवस्थाओं का आलम देखिये की सीहोर में बाल फिल्म महोत्सव दो दिन से जारी है और सीहोर के एक भी विद्यालय को इसकी सूचना पहले से नहीं दी गई। दो दिन से तय छविग्रहों में सुबह 8 बजे से फिल्म लेकर टाकीज संचालक बैठे रहते हैं लेकिन एक भी बच्चा फिल्म देखने नहीं पहुँचा। कल उत्सव समाप्त हो जायेगा और अब जाकर खानापूर्ति करते हुए कुछ विद्यालयों को बाल फिल्म महोत्सव की सूचनाएं भेजी गई हैं। इतनी बड़ी अव्यवस्था इसके पूर्व कभी देखने को नहीं मिली। शिक्षा विभाग में वो अधिकारी भारी लेन-देन करके यहाँ जमे बैठे हैं उनकी कार्यक्षमता अब जगजाहिर हो गई है। तेजतर्रार कर्तव्यनिष्ठ जिलाधीश डीपी आहूजा से उम्मीद की जाना लाजमी है कि ऐसी मक्कारी आखिर क्यों हुई और उस पर क्या उचित कार्यवाही वह करते हैं।
जिला स्तरीय बाल फिल्म महोत्सव के चलते सीहोर में दो छविग्रहों में फिल्मों का प्रसारण किया जाना तय था। फिल्म मल्ली यहाँ बच्चों के लिये आई थी। यह बाल फिल्म पूर्व में नहीं आई है। विगत दो दिनों से महोत्सव शुरु हो चुका है लेकिन यहाँ विभिन्न विद्यालयों को इसकी सूचना नहीं दी गई है, इसलिये कोई भी बच्चा फिल्म देखने के लिये नहीं पहुँच रहा है।
जिला शिक्षा अधिकारी और उनकी मण्डली के अधिकारीगणों निकम्मापन इस बात से ही जाहिर हो गया कि बाल फिल्म महोत्सव जिन बच्चों के लिये आयोजित किया गया है उनको सूचित ही नहीं किया जा सका है। आश्चर्य की बात है कि फिल्म महोत्सव की जब सूचना नहीं भेजी जा सकी थी तो इसकी तिथि आगे क्यों नहीं बढ़ाई गई।
इधर छविग्रहों को जबरिया दादागिरी से जो फिल्म दिखाने के आदेश दिये जाते हैं उसके तहत दो दिनों छविग्रह के कर्मचारी सुबह बच्चों के लिये बकायदा तैयारी के साथ बैठते हैं, उनके पीने के पानी की व्यवस्था से लेकर अन्य व्यवस्थाएं की जाती हैं पर पता चलता है कि बच्चे यहाँ आते ही नहीं। किसी भी स्कूल के बच्चे जब छविग्रह नहीं पहुँचते मजबूरन यहाँ फिल्म का प्रसारण नहीं हो पाता।
अब सूत्रों का कहना है कि जिला शिक्षा अधिकारी ने दो दिन बाद जब मामला उछलना शुरु हुआ तब आज अचानक सारे विद्यालयों को सूचना भेजी है कि वह बाल फिल्म महोत्सव में अपने विद्यालय के बच्चों को फिल्म दिखाने लेकर आयें। हो सकता है एक-दो विद्यालय इसमें शामिल हो भी जायें लेकिन संभावना नगण्य ही है। साथ ही शासन की इस महती योजना को सरेआम सिर्फ खानापूर्ति करते हुए भी लाखों रुपये के घोटालों में डूबा शिक्षा विभाग जरा भी घबराहट में नहीं है। ऊपर से सेटिंग करके, नेताओं को खुश करके और सरकार के मंत्रियों के मुँह पर रुपया फेंककर कुर्सी पर बैठे हुए शिक्षा विभाग के अधिकारियों को पूरा विश्वास है कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।