सीहोर 26 दिसम्बर (नि.सं.)। सीवन नदी की सफाई के साथ ही वह पत्रकार भी सक्रिय हो गये थे और नदी के कीचड़ के साथ अपने पाप भी धोने की तैयारी में जुट गये थे जो अपनी नई-नई आदतों से कभी कभार चर्चा में आ जाते हैं। सीवन के किनारों ने कईयों को पार लगाया है, घर बैठे मक्खी मारने वाले लोग इसी सीवन से निकले कीचड़ में स्वयं को कमल बनाने में सफल हुए हैं....सीवन के इन्ही किनारों ने कईयों के बुझे हुए दीप जलाये हैं... सीवन के किनारों ने कईयों की कला को प्रखर किया है और ऊँचाईयाँ दी है....चंदा की किरणों में गोते लगाने का दुस्साहस भी सीवन के किनारे चलने वाली ठंडी हवाओं ने ही दिया....। जब-जब सीवन की सफाई हुई तब-तब नगर के कई लोगों की प्रशासनिक दूरियाँ नजदीकियों में बदली है।
लेकिन लम्बे समय से ना तो यहाँ कोई सीवन के प्रति सोच रखने वाला आया और ना ही इस बहाने अधिकारियों से करीबी बनने का कोई सेतु बन सका। यह दीगर बात है कि सीवन के घांट पर ऐसे लोग अकेले में ही जाकर टहल आते हैं और कई बार उन पुरानी यादों में खो जाते हैं जब सीवन सफाई अभियान के साथ ही उनकी प्रशासनिक अधिकारियों से करीबी बनी थी....और बड़े अधिकारी से होने वाली गुप्तगु को देखने वाले कई छोटे अधिकारियों की निगाह में वह कुछ खास हो गये थे...कैसे उनकी चल पड़ी थी...हर अधिकारी उन्हे सम्मान से देखता था...हर तरफ वही मियां सूरमा बने हुए थे...।
अब हाल ही में जब सीवन सफाई का अभियान फिर साहब की उपस्थिति में प्रारंभ हुआ तो कईयों के मुँह पानी आ गया.....वह वापस ख्वाब देखने लगे जैसे-जैसे सीवन का कीचड़ हटेगा वैसे-वैसे उनकी नजदीकियाँ साहब से बनने लगेगी।
इसी क्रम में सबसे पहले मचले एक पत्रकार ने पहले ही दिन साहब के सामने सीवन सफाई को प्रदेश भर में ख्याति दिलाने का छोटा-सा लालच देते हुए कैमरा आगे कर दिया और उनसे पूछा कि सीवन नदी की सफाई के विषय में आप क्या कहना चाहते हैं ? यह प्रेरणा आपको कैसे मिली ? आदि आदि। लेकिन यह क्या........?
साहब तो एकदम अलग ही अंदाज में नजर आये....उन्होने सीधे कह दिया कि हटाईये यह कै मरा, चलिये दूर हटिये, मैं कोई नेता नहीं हूँ। जो हो रहा देख लीजिये....। उफ् यह क्या हो गया.... पत्रकार साहब बड़े मायूस हो गये। नजदीकियों के वह स्वप्न चूर-चूर हो गये...साहब की वाणी ने उन्हे दिन में ही तारे दिखा दिये।
दूसरे नम्बर पर एक नये-नये पत्रकार साहब ने दाव लगाया....। काफी सोच-विचारकर इन्होने साहब को घापे में लेने के लिये, और अधिकारियों पर रंगदारी दिखाने के लिये एक ऐसा स्थान चुना जहाँ मामला जम ही जाये। यह साहब के पास पहुँचे पहले तो खडे रहे और अपनी जबरिया फीकी मुस्कुराहट बिखेरते रहे...बातों ही बातों में हाँ-हूँ के बाद यह एकदम पास पहुँचकर अपनी एक कथित महत्वपूर्ण राय देने के अंदाज में साहब के कान में अंदर अपना मुँह घुसाने लगे....और अपनी एक राय भी दे बैठे।