
इस संबंध में नगर के वरिष्ठ योतिषाचार्य, वास्तुविद्वान, पंडित पृथ्वी बल्लभ जी दुबे ने फुरसत को बताया है कि जिस सार्वजनिक भवन में किसी व्यक्ति की असामायिक मौत हो जाये, तो उसकी आत्मा उस भवन में मंडराती रहती है और भवन के मुखिया के साथ हमेशा साये की तरह बनी रहती है। यह कोई शुभ संकेत नहीं है। दुखी आत्मा की उपस्थिति से भवन में रहने वाले सभी लोग दुखी और पीड़ित रहने लगते हैं। उन्होने इसका हल बताया कि यहाँ कुछ जप-तप और हवन आदि शुध्दता से कमाई हुई पूंजी से कराने पर लाभ हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पूर्व कोतवाली में एक व्यक्ति की मृत्यु होने के बाद लगातार यहाँ गड़बड़ी जारी है। मजे की बात यह है कि कोतवाली में आने वाले सारे कर्मचारी अधिकारी सुबह हस्ताक्षर करने के बाद पहले पुरानी कोतवाली में जाते हैं और वहां स्थापित हनुमान जी को मारे भय के नमन करते हैं ताकि किसी भी तरह की अला-बला से बचे रहें।