सीहोर 11 नवम्बर (नि.सं.)। जो बड़े-बड़े स्वप्न संजोयेगा उसे मुंगेरीलाल ना कहें तो क्या कहें। करीब दो माह पूर्व से जब चुनावी सरगर्मियाँ बढ़ना शुरु हुई थी छावनी के एक मुंगेरीलाल लगातार सपने देख रहे थे। उनके सपनों को हकीकत कर देने की बातें उनके आसपास की चौकड़ी दिन भर किया करती थी। मुंगेरीलाल के हसीन सपना था कि भाजपा उन्हे टिकिट देगी और वह एक तरफा विजय का सहरा बांधेंगे.....जब यह सपना परवान चढ़ा तो मुंगेरीलाल की जेब पर भार पड़ा....और जब जेब पर भार पडा तो उनके घर में कोहराम भी मचने लगा....। पहले तो मुंगेरीलाल को उनके मित्रों ने सपने दिखाये की तुम ही वो व्यक्ति हो जो मुकाबला कर सकते हो....तुम में ही जबा है....रुपया है ताकत है तो ईमानदार छवि भी है....एकदम ईमानदार...वर्षों हो गई तुम्हे भाजपा का काम करते-करते...। धीरे-धीरे जब मुंगेरीलाल के सपने परवान चढ़ने लगे तो उन्हे मित्रों ने समझाया कि तुम विधानसभा का टिकिट मांगो आराम से मिलेगा हम सब तुम्हारे साथ हैं....फिर जो लोग साथ थे उन्होने समझाया कि तुम्हारे भाजपा नेताओं से संबंध है, उनसे टिकिट मांगो....कुछ ट्रिक बताई...कुछ और गणित समझाई...धीरे-धीरे मुंगेरीलाल ने भाजपा नेताओं से बातचीत शुरु की तो वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि ठीक है तुम्हारी इच्छा है तो देखेंगे....।
इसके बाद तो छावनी के मुंगेरीलाल को उनके साथियों ने समझा दिया कि तुम्हारी झोली में ही टिकिट समझो...बस तुम तो लोगों से बातचीत करना शुरु कर दो...मुंगेरीलाल को अपना सपना साकार दिखाई देने लगा....उसने कई लोगों से पूछ लिया कि भईया भाजपा टिकिट लूँ या नहीं लूं....(जैसे टिकिट इनकी जेब में रखा हो)।
इस दौरान अपने सपने को साकार करने के लिये मुंगेरीलाल ने अपने मित्रों पर जमकर खर्च भी किया। कई पार्टियाँ उन्होने दे डाली...यहाँ तक की दान पुण्य तक किया....बल्कि सामाजिक आयोजनों में खर्च कर डाला....।
लेकिन धीरे-धीरे जब चुनाव की तिथियाँ नजदीक आने लगी तो मुंगेरीलाल के सारे मित्र उनसे छिटकने लगे...अब मुंगेरीलाल ठंडे हो गये हैं....और अपने सपनों को याद किया करते हैं।