Sunday, July 20, 2008

चमत्कार के नाम पर केवल छल कपट और प्रपंच -मधुबाला जी

आष्टा 19 जुलाई (नि.प्र.)। आज दुनिया केवल चमत्कार को ही नमस्कार क रती है और इसी और भाग रही है लेकिन इस चमत्कार को नमस्कार में दल, कपट, प्रपंच अधिक नजर आता है जो इसके पीदे भागने वाले को समझ में आती है तो वो पश्चाताप करता है जबकी देव गुरु धर्म की साधना, आराधना और इसके प्रति दृंढ श्रध्दा रखो चमत्कार के साक्षात दर्शन होंगे।
उक्त उद्गार साध्वी मधुबाला जी ने आज अपने प्रवचन में कहे उन्होने कहा की कई बार पढ़ा सुना की सोना दुगना, नोट दुगने करने का चमत्कार बताने वालों के चक्कर में व्यक्ति आकर सबकुछ लुटा जाता है अगर ऐसा होता तो करने वाला खुद अपने घर में क्यों नहीं करता लेकिन कोई समझे तब ना। जब लुटा जाता है जब पश्चाताप करता है ऐसे चमत्कारों के पीछे मत भागो जहाँ सच्चा चमत्कार है वहाँ जाते नहीं हो। नवकार मंत्र के बारे में महाराजश्री ने बताया कि यह सब मंत्रों में श्रेष्ठ सिध्द मंत्र है। इसी मंत्र की महिमा थी कि सुली सिंहासन बन गया था उन्होने कहा कि धर्म मन, वचन, काया को शुध्द बना देता है धर्म अगर जीवन में नहीं उतर रहा है तो सब बेकार है।
पूय साध्वी सुनीता जी ने अपने प्रवचन में कहा कि नवकार मंत्र के पाँच पद हैं अरिहंत, सिध्द, आचार्य, उपाध्याय और साधु अरिहंत पापों से मुक्त है सिध्द कर्मों से मुक्त हैं एवं आचार्य, उपाध्याय एवं साधु हमारे लिये प्रत्यक्ष, पूयनी, वंदनीय इष्ट हैं। इसी प्रकार नवकार मंत्र सभी मंत्रों में श्रेष्ट मंत्र है। आज हम कुछ भी करते हैं तो यह इच्छा रखते हैं आज किया और कल ही इसका मुझे फल मिल जाये लेकिन बताये आम खाने के लिये इंतजार करना पड़ता है पेड़ लगाते ही आम नहीं लग जाते हैं वहीं दूसरी और बबुल का पेड़ है जिसमें बहुत जल्दी कांटे आ जाते हैं अर्थात श्रेष्ठ फल पाने के लिये आम की तरह लम्बा इंतजार करना पड़ता है।
फल पाना है तो धीरज रखना होगा। नवकार मंत्र की आराधना जो श्रावक सच्चे मन से दृंढ श्रध्दा भक्ति और निष्काम भाव से करता है उसे निश्चित श्रेष्ठ फल मिलता है।


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