Saturday, September 6, 2008

थाने में गोली चली : पर क्या जानबूझकर चली या गुस्से में

जुंआरियों को पकड़ने के बाद पुलिस वालों में हुआ विवाद ?
सीहोर 5 सितम्बर (नि.स.)। कल मण्डी थाने में दोपहर में मण्डी के कुछ सम्पन्न परिवारों के युवाओं को अचानक पुलिस ने जुंआ खेलते पकड़ा और थाने ले गई, पुलिस ने एक तरह से लम्बा हाथ मारा था।
यह खुशी थी की समाये नहीं समा रही थी और इस धरपकड़ के साथ ही शुरु हो गई इन्हे बचाने वालों तथा लगातार फोन आने का सिलसिला.... यह क्रम चल ही रहा था कि मण्डी के इन युवाओं का इजत रखते हुए कम से कम कितनी राशि जप्ती में बनाई जाये इसका विवाद खड़ा हो गया जिसे अपने अनुभवों से पुलिस ने निपटा दिया और मात्र 10 हजार के आसपास जरा-सी राशि जप्ती में बनाई। कहने वाले कहते हैं कि इतनी राशि तो इनमें से हर एक युवा हर वक्त अपनी जेब में रखता है। मतलब साफ है कि राशि बहुत अधिक मात्रा में इनसे जप्त की गई थी।
खैर जो भी हुआ इस रुपये का विवाद भी पुलिस ने सुलझा लिया लेकि न लम्बे समय बाद लम्बा हाथ मारने के साथ ही कई दिनों की प्यास बुझने की खुशी भी यहाँ मण्डी थाने में व्याप्त थी। किसका कितना हिस्सा रहेगा और किसका कितना हक बनता है इसको लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया....।
यह विवाद यूँ तो छोटा-मोटा है और रोज ही निपटाया-सुलझाया जाता है लेकिन कल विधि को कुछ और ही मंजूर था। मामला था की निपटने को तैयार ही नहीं था। सब अपना हक यादा बता रहे थे। मामला पेचीदा होता जा रहा था।
इधर बाहर जिन जुंआरियों को पकड़ा गया था उन्हे बचाने वालों का दबाव, उनके बार-बार फोन आना, कभी किसी का थाने चला आना एक नई समस्या बन गई थी। चारों तरफ से परेशान मण्डी थाने में कुछ पुलिस कर्मी खासे उखड़ने लगे थे।
लम्बे समय बाद मिली खुशी में खाना और पीना तो हुआ था लेकिन यह हजम नहीं हो पा रहा था, हजम होता भी कैसे ? कुछ यादा ही खुशी मिल गई थी।
ऐसे यह क्या रात मण्डी थाना पुलिस में आपसी विवाद इतना बढ़ गया एक पुलिस कर्मी ने अपना आपा खोते हुए गुस्से में डगमगाते धूजते हुए हाथों से बंदूक उठाई और दो फायर कर दिये ?
धांय.......धांय.....की आवाज ने एक बारगी मण्डी थाना परिसर ही नहीं बाहर तक सनसनी फैला दी। सामने बैठे जिन दीवान जी की तरफ बंदूक का मुँह था निश्चित ही उनकी किस्मत बड़ी जोरदार था। बंदूक से निकले छर्रे दीवार जा धंसे, कुछ ने यहाँ रखे वायरलेस सेटों को क्षतिग्रस्त कर दिया। क्या गोली जानबूझकर चली थी अथवा भूल से चली थी यह जांच का विषय है ? और पुलिस के जांच अधिकारी जांच कर भी रहे हैं।
लेकिन मामले में शक ? तब पैदा हो गया जब गोली चलने के बाद यहाँ कोई सौभाग्य से हताहत तो नहीं हुआ लेकिन पुलिस इस बात को फैलने से रोकने के प्रयास में जुट गई। दोपहर 5 बजे से जिन जुंआरियों को छुड़ाने के सारे प्रयास होते रहे और पुलिस ने इन्हे नहीं छोड़ा रात गोली चलने के बाद पुलिस ने यह बात फैले नहीं इसके चक्कर में तत्काल सारे जुंआरियों को थाने से बाहर खदेड़ दिया। अंधाधुंध कागजों पर हस्ताक्षर कराये, जमानत की कार्यवाहियाँ की और सबको रवाना कर दिया और वो भी बिना किसी ऊपरी सोर्स के।
एक जुंआरी को यहाँ गोली से निकले एक छर्रे के लगने की जानकारी भी मिली है। जिसका कान शून्य हो गया था। पुलिस ने इसकी कोई शिकायत दर्ज नहीं की।
दूसरी बात जिससे शक फिर खड़ा हुआ ? कि आखिर दूसरे दिन दोपहर बाद तक गोली चलने के बावजूद मामला किसी पर पंजीबध्द क्यों नहीं किया गया ? आखिर क्यों ? क्या कोई समस्या थी ? क्या मामला पंजीबध्द होता तो जांच में कुछ और बात सामने आ जाती ? यह बात भी शक पैदा करती है आखिर मामला जो ऊपर से दिख रहा है वह असल में शायद कुछ और भी हो सकता है।
शक तो इस पर भी होता है कि यदि वाकई दो गोलियाँ चली हैं तो भूल से एक गोली तो चल सकती है लेकिन दो गोली कैसे चल गई ? अगर हम इस पर विचार ना भी करें कि गोली सीधी ही क्यों चली वो नीचे या ऊपर क्यों नहीं चली ? मामले के जांच अधिकारी ने जांच शुरु कर दी है लेकिन अभी तक किसी पर मामला दर्ज नहीं है। देखते हैं मामला क्या रंग लाता है।.