Saturday, August 30, 2008

संकुचित विचारधारा लड़ाई-झगड़े का कारण बनती है-मधुबाला जी

आष्टा 29 सितम्बर (नि.प्र.)। बड़े ही पुण्यों से तो यह छोटी-सी जिंदगी मिली है उसमें प्रेम, स्नेह, भाईचारा, शांति के साथ जीने वाला घर के साथ बहार भी लोकप्रिय हो जाता है। दूसरे के दुख को अपना दुख समझनेवाला सभी क्षेत्रों में प्रिय हो जाता है। संकुचित विचार धारा लड़ाई झगड़े का कारण बनता है। अगर तुम योगी ना बन सको तो कम से कम उपयोगी जरुर बनो कष्ट देने में कभी भी आनंद का अनुभव मत करो ।
उक्त उद्गार महावीर भवन स्थानक में विराजित पूय म.सा. श्री मधुबाला जी ने पर्यूषण पर्व के आज दूसरे दिन मानव जीवन की महत्वकांक्षा एवं लोकप्रियता विषय को सामने रखते हुए कहे। म.सा. ने कहा कि पावन से पावन बनना है तो धर्म आराधना करो। पर्यूषण पर्व के प्राण संवत्सरी है। जिसे बाहर लोकप्रिय बनना है उसे पहले अपने घर में प्रिय बनना होगा। प्रिय वो ही व्यक्ति बन सकता है जो धीर-वीर और गंभीर हो तथा उसका हृदय विशाल हो। घर-परिवार में होने वाली छोटी-छोटी बातों-विवादों को त्यागना होगा क्योंकि छोटी-छोटी बातें ही बड़े विवाद का कारण बन जाती है और खून के रिश्तों में दिवार खड़ी हो जाती है। देखते-सुनते हैं कि एक ही छत के नीचे सब रहते हैं लेकिन उसमें रहने वाले एक दूसरे से बात तक नहीं करते हैं। महाराज श्री ने इसके लिये अणु संदेश के 17 एवं 18 नम्बर पर आचार्य श्री उमेश मुनि जी ने जो बताया उसका उल्लेख किया एवं कुछ उदाहरण से समझाया की किस प्रकार विशाल हृदय रखने से विवाद खत्म होकर प्रेम की धारा बहती है।
इस अवसर पर श्री सुनीता जी ने कहा कि यह पर्व संदेश दे रहा है कि 2 घड़ी अर्थात 48 मिनिट के प्रवचन प्रभुवाणी सुनी और हर घड़ी याद रखो आपके भाग्य में जो लिखा है उसे कोई नहीं टाल सकता है। जिस प्रकार दीपावली आने पर पुराना अटाला बेचते हो और नया सामान लाते हो उसी प्रकार जीवन में पुराने अटाले रुपी जो क्रोध, मान, माया, लोभ, इन्द्री सुख है उसे बाहर निकालकर फेंको और जीवन में प्रेम, स्नेह, दया, धर्म, मैत्री, सहजता, सरलता को लाओ विनय का स्वीकार कर अहंकार का विसर्जन करो यही आज पर्यूषण पर्व का दूसरा दिन हम सभी को संदेश देता है।
आज नेमिनाथ श्वेताम्बर जैन मंदिर किले पर पधारे श्री कवरलाल रांका मुकेश जी, यतीन्द्र जी भंडारी एवं विनोद संघवी द्वारा पर्यूषण पर्व में धर्म आराधना करवाई जा रही है। 30 अगस्त को दोपहर 1 बजे से किला मंदिर से पौथाजी का वरघोड़ा प्रारंभ होगा।


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