सीहोर 26 अगस्त (नि.सं.)। प्रेम अंत:करण की आध्यात्मिक प्यास होती है। भगवान का आपके प्रति प्रेम है तो उसे महसूस करें लेकिन किसी से कहें नहीं। यदि किसी को बताओगे कि भगवान के प्रेम का तुम अनुभव कर रहे हों तो भगवान का प्रेम कम हो जाता है। जैसे दीपक घर के अंदर जलता है किन्तु घर की देहरी पर रखते ही उसकी लौ बिगड़ने लगती है, यदि बाहर रख दें तो दीपक बुझ जाता है इसी प्रकार हमें अपने ह्दय के मंदिर में भगवान के प्रेम रूपी दीपक को रखना चाहिए। यह दीपक सिर्फ भगवान और भक्त के बीच ही जलना चाहिए यदि इसे बाहर निकाला तो प्रेम का दिया बुझ जाएगा।
उक्त आशय के उद्गार स्थानीय बड़ा बाजार में श्री रामानुज मंडल के तत्वाधान में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में छठवें दिन उौन से पधारे परम पूजनीय संत प्रवर 1008 श्री स्वामी रंगनाथाचार्य जी महाराज, व्याकरण वेदान्ताचार्य श्री रामानुज कोट उौन ने अपनी ओजस्वी एवं अमृतमयी वाणी से बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुजनों को कथामृत का पान कराते हुए व्यक्त किए। स्वामी जी ने कहा कि हर व्यक्ति प्रेम चाहता हैद्व ह्दय की निर्मल अनुभूति का नाम है, प्रेम। प्रेम मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी चाहते हैं। किन्तु इस स्वाभाविक वृत्ति का वर्णन नहीं किया जा सकता बस इसे महसूस किया जा सकता है। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की रासलीला का सुंदर चित्रण करते हुए कहा कि भगवान ने साक्षात आनन्द के रूप में जन्म लिया था, इसलिए कहा जाता है कि नंद घर आनन्द भयो जय कन्हैयालाल की, यह नहीं कहा जाता कि नंद घर छोरा भयो, जय कन्हैयालाल की। जब भगवान ने पूर्व जन्म की तपस्या के आधार पर गोपी रूप में आए ऋषि-मुनियों के साथ महारासलीला की तब भगवान शिव भी उसका आनन्द लेने के लिए गोपी का रूप धरकर आए और उन्हें गोपेश्वर महादेव भी कहा गया। स्वामी जी ने कहा कि वे लोग भाग्य शाली हैं जो लौकिक जगत की वस्तुओं को प्राप्त करते हैं लेकिन वे लोग महाभाग्यशाली हैं जिन्हें भगवान से प्रेम प्राप्त होता है। स्वामी जी ने कहा कि भगवान ने पहले ब्रह्मा जी का फिर इन्द्र का और फिर वरूण और तत्पश्चात कामदेव का भी अहंकार अपनी लीलाओं से दूर किया। गोपियां भी जब अहंकार हुआ कि भगवान श्री कृष्ण हमें छोडकर जा ही नहीं सकते तब उन्होंने गोपियों को भी अपने वियोग का अहसास करा दिया। स्वामी जी ने कहा कि भगवान की प्रतिज्ञा वाले वाक्यों को अपने घर में रखना चाहिए ताकि जब मोह-ममता सताए तो उसको पढ़ लें। चीरहरण प्रसंग का भी जिक्र करते हुए स्वामी ने कहा कि चीरहरण का अधिकार भी उसी को है जिसमें चीर बढ़ाने की शक्ति हो। भगवान ने केवल जीवात्मा को परमात्मा के बीच पर्दा हटाने के लिए चीरहरण किया था किन्तु उन्होंने जरूरत पड़ने पर चीर बढ़ाया भी था।
स्वामी जी ने जब आए श्याम सरकार, नंद में राधाजी के साथ तो घुंघरू बाज उठे जैसे अत्यंत सुंदर भजन समेत अन्य भजन सुनाए जिससे श्रोतागण आनन्द मग् होकर नृत्य करने लगे। आज महिलाओं ने जमकर भजनों पर नृत्य किया। श्रीमद भागवत कथा को सुनने पूरे शहर भर से लोग एकत्रित हो रहे हैं। महिलाओं की संख्या श्रोताओं में सर्वाधिक रहती है। श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव के मुख्य यजमान विधायक रमेश सक्सेना ने सभी श्रद्धालुजनों से अधिक से अधिक संख्या में भाग लेकर पुण्यलाभ प्राप्त करें।
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