Friday, July 18, 2008

नारायण बोला विद्युत थी ही नहीं....फिर कैसे लगी आग? पूरे जिले के उपपंजीयक मिलकर मिला रहे हिसाब-किताब

सीहोर 17 जुलाई (नि.सं.)। उपंपजीयक कार्यालय में लगी आग की वालाएं भले ही बुझ गई हों लेकिन इसकी दुर्गंध अभी तक खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। हर दिन नई चर्चाएं बाजार को सरगर्म कर रही है, तहसील से जुड़े कुछ खास तत्वों का मौन मामले को और गंभीर करता जा रहा है जबकि कार्यालय में पदस्थ भृत्य नारायण का स्पष्ट वक्तव्य की 'साहब अंदर तो लाईट थी ही नहीं तो फिर आग लगेगी कैसे' यह बात लोगों को अनेक विचार करने के लिये मजबूर कर रही है। उपंपजीयक श्री बसंल के पदार्पण के पूर्व आखिर यहाँ किसका प्रभार था ? आखिर वर्ष 2000 के ही कागजात पूर्ण रुपेण स्वाहा क्यों हो गये ? आखिर क्या कारण है कि श्रीमति मंगला शर्मा लोगों को देखते ही भड़क रही हैं और किसी को अंदर जाने नहीं देना चाहती है? आखिर क्यों अन्य कर्मचारियों की अपेक्षा जिले भर के उपंपजीयकों को एकत्र कर उनसे यहाँ फाईल व्यवस्थित कराई जा रही है ? क्या है राज और घटना के पीछे के क्या कारण है यह अभी स्पष्ट नहीं हो पा रहे हैं।
ऊपर से झमाझम बारिश हो रही हो, वर्षा का मौसम हो....तो ऐसे में कागजों में नमी आ जाना स्वभाविक है, यहाँ तो लकड़ी के सारे फर्नीचर ही नमी से फूलने लगते हैं लेकिन जिला उपपंजीयक कार्यालय में ऊपर हो रही बरसात के बावजूद अंदर एक कमरे विशेष में आग भड़क उठी। अंधेरी रात में 14-15 जुलाई की मध्यरात्री उपपंजीयक कार्यालय में आग लग गई और आग ने उसी स्थान पर अपना प्रभाव छोड़ा जहाँ वर्ष 2000 व इसके बाद के ताजा तरीन कागजातों का ढेर था। सारे महत्वपूर्ण और ताजे कागजात धीरे-धीरे आग में ऐसे जले की जिस अलमारी में वह रखे थे वह भी पूरी जलकर कोयला हो गई। आग आगे बढ़ती रही और धुंआ उठता रहा।
सुबह होते-होते चारों तरफ धुंआ फैला और बाद में आग बुझा दी गई।
लेकिन बैमौसम आग ने कई सवाल खड़े कर दिये। उपंपजीयक कार्यालय में उपपंजीयक के पद पर आये श्री बसंल जिनकी पदोन्नति हुई है वह मात्र एक माह पूर्व ही आये हैं। लेकिन श्री बसंल एक माह तक काम करने के बाद भी अभी तक स्वयं को इस कार्यालय से अनजान बता रहे हैं।
आज जब फुरसत से उनसे यह जानना चाहा कि क्या कार्यालय के उस कमरे में जहाँ आग लगी है वहाँ विद्युत थी या नहीं ? श्री बंसल ने कहा कि साहब मुझे नहीं मालूम, मैं अभी आया हूँ। बंसल ने कहा कि हमारा भृत्य नारायण अवश्य कह रहा है कि वहाँ लाईट नहीं थी वही बता रहा है कि टार्च से काम किया जाता था। हालांकि यही बात जिला पंजीयक श्रीमति मंगला शर्मा ने भी खुलकर कही है।
ज्ञातव्य है कि इसे पूरे कार्यालय में विद्युत व्यवस्था है लेकिन उस कमरे विशेष में जहाँ सर्वाधिक विद्युत की आवश्यकता है वहाँ विद्युत का कनेक्शन था ही नहीं। अब प्रारंभिक जांच कुछ भी हो लेकिन जब नारायण ने खुद ही कह दिया है कि वहाँ विद्युत नहीं थी तो विद्युत तारों से शार्ट-सर्किट होकर आग लगने की बात कैसे मानी जा सकती है?
रजिस्ट्रार कार्यालय की आग के पीछे के क्या कारण हो सकते हैं। असल में विशेष रुप से चूंकि वर्ष 2000 व इसके बाद के कागजात पूरी तरह जलकर खाक हो गये हैं और आग का कारण अभी तक अज्ञात है इस कारण भले ही कागजों में लगी आग बुझ गई हो लेकिन इसके पीछे किसी साजिश की दुर्गंध बहुत तेज फैलती जा रही है। आसानी से यह बात पच नहीं रही कि आखिर आग खुद कैसे लग गई ?
तो क्या आग लगाई गई है ?
उपपंजीयक कार्यालय में चल रही गतिविधियाँ, पूरे जिले भर के उपंपजीयकों को एक कमरे में बैठाकर जिस प्रकार फाईलें व्यवस्थित कराई जा रही हैं, छोटे कर्मचारियों की मदद नहीं ली जा रही और बार-बार पंजीयक श्रीमति मंगला शर्मा यहाँ चक्कर काट रही हैं, से कुछ लोग असमंजस में हैं। पूरी फाईलों को कब तक व्यवस्थित कर लिया जायेगा यह प्रश् का उत्तर कोई देने को तैयार है नहीं बल्कि विशेष रुप से कौन-सा रिकार्ड यादा जला है यह भी स्पष्टत: बताने में संकोच किया जा रहा है। जबकि मामला चूंकि पूरा संदिग्ध है तो पारदर्शिता की जानी चाहिये। यहाँ तो स्थिति यह है कि यदि कोई व्यक्ति पंजीयक कार्यालय में आ जाता है तो कहीं वह अंदर न चला जाये इसलिये शटर लगा दी जाती है। आखिर क्या कारण है ? तो चर्चाएं जो हैं उनको इन गतिविधियों स्वत: ही बल मिल रहा है।
देखते ही कह दिया
मामला गड़बड़ है...

जहाँ विद्युत मण्डल ने सिरे से अगि्काण्ड में गड़बड़ी के संकेत दे दिये हैं वहीं ऊपर से आये एक विशेष जांच दल का भी यही मानना था। उसने भी जांच के दौरान बारीकी से जांच की है, वह विद्युत तारों से आग लगने की बात को मानने को तैयार नहीं है ऐसे में आग कैसे लगी और एक अलमारी विशेष पूरी जलकर कैसे खाक हो गई यह यक्ष प्रश् माना जा रहा है। इतना ही नहीं कार्यालय की विगत वर्ष की गतिविधियाँ संदिग्ध है? यहाँ क्या हो रहा था? कितने अधिकारी कर्मचारी पदस्थ थे ? कितनों को काम से दूर रखा जा रहा था ? और संबंधित कागजात जलने से किसको फायदा हो सकता है ? यह प्रश् घूम रहे हैं।


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