पर्यावरण प्रदूषण का रखा जायेगा ध्यान, प्लास्टिक के बोर्ड-बैनर पर रहेगी चुनाव आयोग की पैनी नजर
सीहोर 24 अक्टूबर (विशेष संवाददाता)। चुनाव के दौरान प्रचार-प्रसार के लिये बहुतायत में आजकल प्लास्टिक पर छपी हुई प्रचार सामग्री का उपयोग बहुत बड़ी मात्रा में होने लगा है। जिसके चलते केन्द्रिय चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान होने वाले इस पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिये सख्त आदेश दे डाले हैं। चुनाव आयोग के इन सख्त निर्देशों का पालन कराने के लिये जिला प्रशासन ने भी कमर कस ली है। साथ ही बारीकी के साथ अब प्रचार सामग्री पर भी निगाह रखी जायेगी।
भारतीय चुनाव आयोग ने वर्ष 2008 में होने जा रहे चुनावों को लेकर नियमों की लम्बी सूची बनाई है। चुनाव प्रचार के तरीकों को लेकर चुनाव आयोग ने सर्वाधिक ध्यान दिया है। चुनाव प्रचार के तरीके भी चुनाव आयोग ने तय कर दिये हैं। पूर्व में उपयोग किये जाने वाले तरीकों से जिस तरह का ध्वनि प्रदूषण और पर्यावरण प्रदूषण फैलता था उसके लिये चुनाव आयोग ने सख्ती से कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
निर्माण कार्यों को लेकर भी चुनाव आयोग ने स्पष्ट कह दिया है कि आचार संहिता लागू होने के पहले जो काम शुरु हो चुके थे सिर्फ उन्हे ही आचार संहिता लागू होने के बाद भी जारी रखा जा सकता है। जबकि नये कार्य शुरु करने अथवा किसी नये कार्य को उसका भुगतान निकालने की स्वीकृति भी इस दौरान नहीं दी गई है।
इसी प्रकार प्रत्याशियों द्वारा चुनाव प्रचार के लिये जिन साधनों का उपयोग किया जाता है उन्हे भी ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने सख्त निर्देश दिये हैं कि कोई भी राजनीतिक दल प्रचार के सिलसिले में प्लास्टिक वाले पोस्टर एवं बैनरों का इस्तेमाल न करें। ज्ञातव्य है कि पिछले चुनावों के दौरान बहुत बड़ी संख्या में प्लास्टिक के फ्लेक्स वाले बोर्ड और बैनर बनवाये गये थे। अब चुनाव के दौरान इस तरह के प्लास्टिक वाले बोर्ड नहीं बनवाये जा सकेंगे। साथ ही बैनर और अन्य प्रचार सामग्री झण्डे आदि पर भी चुनाव आयोग की बारीक नजरें काम करेगी।
यूँ तो चुनाव आयोग का ध्यान चुनाव के दौरान प्रतिद्वंदी भी दिलाया करते हैं लेकिन इस बार खुद ध्यान देने के लिये जिला निर्वाचन अधिकारी ने विशेष दस्ता गठित कर रखा है जो बार-बार इस बात पर ध्यान देता रहेगा कि आखिर प्रचार किस तरह की सामग्री से किस प्रकार किया जा रहा है।
उम्मीद्वारों के समर्थक की भी आफत रहेगी। पूर्ववर्ती चुनावों में ऐसे समर्थक बहुत बड़ी तादात में प्लास्टिक वाले बोर्ड बनवा दिया करते थे और बड़ी मात्रा में उन्हे पूरे नगर में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लगा देते थे। जिधर निगाह पड़ती थी ऐसे समर्थकों के रंगीन बोर्ड टंगे नजर आते थे। जिसमें प्रत्याशी के चित्र हाथ जोड़े मुस्कुराते हुए दिखते थे। लेकिन इस बार समर्थकों के बोर्ड-बैनरों पर भी चुनाव आयोग की पैनी नजर रहेगी। आयोग के सख्त रवैये के चलते हो सकता है कि चुनाव आयोग के निर्देशन का पालन नहीं करने वाले प्रत्याशियों के खिलाफ आयोग कड़े कदम उठाये। सिर्फ प्लास्टिक वाले बोर्ड के चक्कर में हो सकता है किसी प्रत्याशी का आवेदन निरस्त न हो जाये अथवा वह चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित ना हो जायें।
उल्लेखनीय है कि पूर्व वर्षों में चुनाव प्रचार के लिये जहाँ कागजी प्रचार सामग्री का उपयोग किया जाता था वहीं अखबारों में विज्ञापन भी एक अच्छा माध्यम थे। इसके साथ ही पारम्परिक रुप से बोर्ड बनवाये जाते थे जिन्हे पेंटर लिखकर देते थे। कपड़ो के बैनर भी बहुतायत से लगवाये जाते थे लेकिन अब समर्थकों द्वारा भी खुद का फोटो दिखाने के चक्कर में रंगीन प्लास्टिक वाले बोर्ड-बैनर बनवाये जाने लगे हैं।
देखते हैं आगामी चुनाव के दौरान किस प्रकार की प्रचार सामग्री उपयोग होती है और चुनाव आयोग क्या कार्यवाही करता है।