Thursday, September 4, 2008

अहं के रहते हुए जीवन में अर्हम की प्राप्ति संभव नहीं

आष्टा 3 सितम्बर (नि.सं.)। वृक्ष का मूल मजबूत होगा वृक्ष मजबूत होगा, मकान की नींव मजबूत होगी तो मकान मजबूत होगा इसी प्रकार जीवन का मूल विनय को बताया है जिसके जीवन में विनय का भाव रहता है उसका जीवन मजबूत होगा। विनय की हर स्ािान पर महत्ता बताई है। जीवन में अगर अहं होगा तो उस जीवन में अर्हम की प्राप्ति संभव नहीं है।
उक्त उद्गार पूय म.सा. मधुबाला जी ने आज लोकप्रिय बनने के प्रमुख कारणों में से एक कारण विनयवान की व्याख्या करते हुए कहे। म.सा. ने कहा कि आज गणेश चतुर्थी है जगह-जगह उनकी स्थापना होगी वर्षों से स्थापना कर रहे हैं लेकिन कभी किसी ने गणेश जी की मूर्ति को देखकर वो जो संदेश देती है उन संदेशों को क्या ग्रहण किया है ? शायद नहीं क्योंकि उनकी मूर्ति जो संदेश देती है उसे समझा ही नहीं। सूंड उनकी लम्बी होती जिससे हमें सीखना चाहिये कि हमारी साख, प्रतिष्ठा, इात लम्बी हो, पेट संदेश देता है जीवन में कोई भी बात हो उसे पचाना सीखो, उछालना नहीं, इसी व्यवहार जगत में जो व्यक्ति बातों को पचा लेता है उसे बड़ा पेट वाला कहते हैं।
बड़ी प्रतिमा में छोटी आंखे संदेश देती है कि दृष्टि को नजदीक रखो ताकि जीवों पर दया हो सके। गणेश के कान बड़े होते हैं उनकी जीभ नजर नहीं आती दोनो ही संदेश हैं कि यादा सुना और कम बोलो। गणेश की सवारी छोटा सा चूहा है जो संदेश देता है कि चाहे व्यक्ति कितना ही बड़ा हो छोटे व्यक्ति को भी साथ लेकर चलना चाहिये, किसी को छोटा-बड़ा नहीं समझना चाहिये। इसलिये गणेश की मूर्ति से संदेश ग्रहण कर जीवन में उतारो। म.सा. ने इसके बाद अपने प्रवचन में कहा कि विनय से जीवन में सतगुण आते हैं इसलिये कहा है जो नमता है वह गमता है। जीवन में अहंकार का त्याग करो और विनयवान बनो। फलदार वृक्ष भी पेड़ पर फल लगते हैं झुक जाते हैं, कल संवत्सरी का महापर्व है, एक-दूसरे के प्रति जो बैर की लड़ाई, झगड़े या किसी कारण अगर गांठ बंध गई हो तो उससे विनय भाव से क्षमा याचना करना है। इस अवसर पर सुनीता जी म.सा. ने कहा कि श्रध्दा परम दुर्लभ है सासांरिक जीव की श्रध्दा 4 प्रकार की होती है बाह्य प्रकार की, नैतिक, दैविक शक्ति की आस्था एवं वीतराग दर्शन में आस्था। बिना आस्था श्रध्दा के जीवन में कोई कार्य नहीं हो सकता। प्रथम दो श्रध्दा व्यवहार जीवन से संबंध रखती है तथा देव और भगवान में मोटे तौर पर अंतर है। देव जो है वो सरागी होते हैं और भगवान वीतरागी होते हैं। कई बार समय-समय पर व कुछ पर्व पर जो मूक पशुओं की बलि दी जाती है महाराज साहब ने कहा कि जो बलि चढ़ाते हैं वह बतायें इन मूक पशुओं की क्या गलती है जो इनकी बलि चढ़ाई जाती है।