आष्टा 3 सितम्बर (नि.प्र.)। जैन धर्म विश्व के महान धर्मों में से एक है। विभिन्न पंथों में बंटे होने के बावजूद भगवान ऋषभ देव से लेकर भगवान महावीर तक के चौबीस तीर्थंकरों की आराधना और नवकार मंत्र की आराधना को लेकर इस धर्म के अनुयायी की आज भी निष्ठा एक है। जैनप धर्म के मानवीय हितों से जुड़े हुए तीन ऐसे सिद्धांत दिए गए है, जिन्हें विश्व के हर कौने में फैलाने की आवश्यकता है।
उक्त बातें अमलाहा ग्राम में श्री दिगम्बर जैन मुश्री श्री विजय सागर जी ने धर्मसभा के दौरान कही। आपने कहा कि भगवान महावीर ने तीन सिद्धांत अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत के धर्म रूपी महल को खड़ा किया है। भगवान महावीर के सिद्धांतों को हर धर्म ने किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है। अहिंसा और मानवता की सभी को आवश्यकता है। इन्हीं सिद्धांतों पर भगवान महावीर ने मुक्ति पाई है। महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाई, अहिंसा के पथ से। गीता से लेकर कुरआन तक हर शास्त्र का सार अहिंसा है।
अहिंसा अपने लिए चाहते हो वह सभी के लिए चाहो और जो अपने लिए नहीं चाहते, वह किसी के लिए मत करो और न ही चाहो, यही अहिंसा का ह्दय तुम्हारे हाथ में सौ लोगों को मारने की क्षमता है, पर व्यक्ति उस समय कितना असहाय हो जाता है जब सौ हाथ मिलकर भी किसी एक को न बचा पाए। मुनि विजय सागर जी ने ईश्वर से कामना की कि धरती पर अहिंसा का इतना विस्तार हो जाए कि हर व्यक्ति अभयदाता बने और हर प्राणी भय मुक्त जीवन जिए।
आपने कहा कि अहिंसा का अर्थ मात्र इतना ही नहीं है कि हमें किसी की हिंसा नहीं करें, अपितु अपनी ओर से मानवता के लिए समर्पित की जाने वाली सेवाएं ही अहिंसा का निवर्हन है।
बड़े ही दु:ख की बात है कि अहिंसा पर चर्चा तो बहुत होती है, किन्तु अहिंसा का अनुपालन कम होती जा रही है। वे लोग भी अपने आप को हिंसा से बचा हुआ कैसे कह सकते है, जिनके पांवों में जूते, कमर में बेल्ट और हाथ में पर्स चमड़े का होता है। पांव में चमड़े के जूते किस बात का चूक है। वे आपके अहिंसक होने पर प्रश्चिन्ह खड़ा नहीं कर सकें। हम जुलूस-शोभायात्रा में अहिंसा परमोधर्म के बैनर दिखाने व जयकारा करने के बजाय अपने आचरण के द्वारा अहिंसा को जन-जन में प्रतिष्ठित करें। प्रवचन की जानकारी पूर्व सरपंच दीपक जायसवाल ने एक विज्ञप्ति में दी।