आष्टा 20 सितम्बर (नि.सं.)। व्यक्ति के जीवन में यदि विनय होता है तो चरम लक्ष्य मोक्ष तक ले जा सकता है। विनय वान व्यक्ति में सहिष्णुता, सहन शीलता, नम्रता आदि गुण स्वत: ही आ जाते है। जीवन पानीय बन जाता है।
उक्त बातें साध्वी मधुबाला जी महाराज सा. ने स्थानक में प्रवचन के दौरान कहीं। आपने कहा कि विनयवान बनने से मिला लाभ अर्जुन और दुर्योधन कहीं। श्रीकृष्ण के पास आराम कर रहे थे। दुर्योधन सिराहने बैठ गए ओर अर्जुन चरणों में बैठ गए। दोनों सहायता के लिए गए थे। जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन का साथ दिया और वे विजयी हुए और अहंकार की हार हुई। आपने कहा कि संसार में सबसे श्रेष्ठ सिद्ध दशा बताई, जो कर्म मेल से रहित होता है। वह इस दशा में प्राप्त कर सकता है। सिद्ध दशा का स्थान ज्योति से परिपूर्ण वह स्थान खत्म नहीं होता।
मधुबाला जी ने कहा कि मानव अपनी आत्मा का हित करना चाहता है तो उसे विनयशील बनना होगा। वह व्यक्ति पूज्ीय भी बन जाता है। राधा में विनय का गुण था तो वह कृष्ण की पत्नि बनी। उनकी बाकी रानिया द्वेष रखती थी। राधा विनयदान थी जो जो कार्य उसे भाता करने लग जाती थी। सभी के मन में राधा के प्रतिर् ईष्या, द्वेष की भावना थी।
उनकी इस भावना को बताने के लिए नारद ने कहा कि कृष्ण जी सिर दुख रहा है और जो भी इनके सिर पर लात रखेगा वहां से सभी रानिया चली गई सिर्फ राधा ही वहां रूकी उसने कहा कि मैं लात रखूंगी भले ही मुझे नरक में क्यों न जाना पड़े। पति का सिर तो ठीक होगा। जैसे ही राधा कृष्ण के सिर पर पैर रखने के लिए आगे बड़ी तो नारद जी ने रोका और कहा कि विनयवान होता है वह ही दूसरे के कष्ट भी झेलता है।
निस्वार्थ भाव से सूर्य की तरह रोशनी करो साध्वी सुनीता जी श्रावक के गुण बताऐ है उन्हें सिर्फ सुनना ही नहीं है बल्कि आचरण में भी लाऐं यदि स्वार्थ की परिधि में रहेंगे ले सदगुण जीवन में लाने वाले नहीं। जिस प्रकार सूर्य नि: स्वार्थ भाव से सभी को प्रकाश देता हैं, उसी तरह मानव की भावना निस्वार्थ रहना चाहिए। उक्त बाते साध्वी सुनील जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कही। आज व्यक्ति को सांप से भय लगता है पाप से नहीं आपने कहा कि सांप का विष तो इसी भाव तक रहेगा किन्तु 18 पाप तो भव-भव तक चलते रहते है।