सीहोर 25 अगस्त (नि.प्र.)। जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय के सीहोर स्थित आर.ए.के. कृषि महाविद्यालय के आष्ठिाता डॉ. एस.के. श्रीवास्तव ने अपनी विज्ञप्ति में बतलाया कि वर्तमान स्थिति में सोयाबीन फसल पर आक्रमण करने वाला विषाणु जनित पीला मौजेक रोग कुछ क्षेत्रों में दिखलाई पड़ रहा है।
रोग के लक्षण पौधों की नई निकलने वाली पत्तियों पर प्रकट होते है तथा उन पर बेतरतीब से फैले बड़े-बड़े चमकीले पीले धब्बे बन जाते है। पत्ती का मुख्य शिरा के साथ पीली पट्टी सी बन जाती है व बाद में पूरी पत्ती पीली पड़ जाती है। पीले क्षेत्रों में मोर्चे के रंग के छोटे-छोटे भूरे धब्बे बन जाते है रोगी पौधों में फलिया कम लगती है व बीज की संख्या व आकार घट जाता है। यदि रोग का आक्रमण फूल आने से पहले हो जाता है तो उपज में भारी 60 से 80 प्रतिशत तक कमी आती है। फूल व फली बनने के बाद आक्रमण होने की स्थिति में हानि कम 15 से 25 प्रतिशत रहती है। इस रोग के विषाणु को रस चूसने वाली सफेद मक्खी रोगी पौधों से स्वस्थ पौधों पर फैलाती है। यह रोग बीज के द्वारा नहीं फैलता है।
रोगी की वर्तमान स्थिति को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है कि अपनी फसल का नियमित निरीक्षण करें एवं प्रारंभ में जब रोग 5 से 10 प्रतिशत पौधों तक सीमित हो रोगी पौधे को उखाड़ कर जमीन में दबाकर नष्ट कर दें तथा वाहक कीट, सफेद मक्खी को नियंत्रित करने हेतु कीटनाशक दवाओं, इथोफेन प्राक्स ई.सी. का 1.0 लीटर या इथियान 50 ई.सी. धानुमिट या फासमिट या मिट 1.5 लीटर या एसीटामाप्रिड 20 एस.पी. धनप्रीत, प्राइड, रेकार्ड 200-250 ग्राम प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें व 15 दिनों के अंतर से पुन: छिड़काव करें यह दवाएं उपलब्ध न होने पर मिथइल डिमेटान 25 ई.सी. मेटासिस्टाक्स दवा का 1 लीटर प्रति हेक्टर की दर से 15 दिनों पर नियमित छिड़काव करें।
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