Tuesday, August 26, 2008

पाँचवा वेद कहा गया है श्रीमद भागवत को-स्वामी रंगनाथाचार्य जी

सीहोर 25 अगस्त (नि.सं.)। चार वेद तो सभी को पता है किंतु कलियुग में मनुष्यों के लिये अत्यंत सरल भाष में उन्ही वेदों की ऋचाओं, मंत्रों को सुन्दर उपाख्यानों, सरल उदाहरणों के द्वारा समझाने के लिये वेद व्यास जी ने श्रीमद भागवत जी की रचना की है ताकि जीवन भक्तिमय, प्रेममय और समर्पणमय बन सके। श्रीमद भागवत को पांचवा वेद कहा गया है चारों वेदों में जो ऋचाएं हैं, जो मंत्र हैं, वे सब वैदिक व्याकरण में हैं और वैदिक व्याकरण समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती, इसको केवल वैदिक व्याकरण का ज्ञान रखने वाले ही समझ पाते हैं किं तु श्रीमद भागवत जी से वेदों को पढ़ने की ही भांति ज्ञान और भक्ति की प्राप्ति होती है।
उक्त आशय के उद्गार स्थानीय बड़ा बाजार में श्री रामानुज मंडल के तत्वाधान में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव के पांचवे दिन उजैन से पधारे परम पूयनीय संत प्रवर 1008 श्री स्वामी रंगनाथाचार्य जी महाराज व्याकरण वेदांताचार्य श्री रामानुज कोट उजैन ने अपनी ओजस्वी एवं अमृतमयी वाणी से बड़ी संख्या में उपस्थित श्रध्दालुजनों को कथामृत का पान कराते हुए व्यक्त किये। स्वामी जी ने कहा कि लोग कहते हैं कि हमने मन ही मन भगवान का नाम ले लिया इसलिये अब पूजा अर्चना करने की या मंदिर जाकर भगवान की सेवा करने की जरुरत नहीं है किन्तु क्या वे लोग मन ही मन भोजन भी कर सकते हैं। जिस प्रकार बाहरी पदार्थ खाने से ही भूख मिटती है उसी प्रकार आंतरिक पूजा के साथ बाहरी पूजा भी आवश्यक है।
उन्होने कहा कि जब भगवान श्री कृष्ण ने कारागार में जन्म लिया तो वासुदेव जी उन्हे छोड़ने के लिये गोकुल गए, उस समय उनकी सारी बेड़ियां अपने आप खुल गई, कारागार के द्वार खुल गऐ, बाद में वापिस अपने पर पुन: द्वार बंद हो गये और बेड़िया फिर से लग गई। इसके पीछे रहस्य यह है कि जब वासुदेव जी कारागार से चले थे तब उनके साथ भगवान थे, जिसके साथ भगवान हो उसे कोई सोने-चाँदी या लोहे की बेड़ी नहीं बांध सकती और उसके लिये मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं किन्तु जब वासुदेव जी लौटे तब उनके साथ भगवान की योगमाया थी, जिसके साथ भगवान की माया हो, वह संसार के बंधनों में जकड़ जाता है और मोक्ष का द्वार नहीं खुल पाता। स्वामी जी ने कहा कि यदि कोई स्त्री बाहरी शरीर से सुन्दर हो लेकिन उसका व्यवहार खराब हो तो वह पूतना के समान है क्योंकि जब पूतना भगवान को मारने गई तब उसने भी अत्यंत सुंदर रुप धारण किया था किन्तु जब भगवान ने उसके प्राण खींचे तब उसका विकराल रुप सामने आ गया। स्वामी जी ने कहा कि चूंकि भगवान ने पूतना के स्तनों से दूध पीने के बहाने उसके प्राण खींचे थे, इसलिये उन्होने उसे अपने परमधाम में स्थान दिया। उन्होने कहा कि यदि बच्चों को नजर लग जाये तो पूतना प्रसंग के छह श्लोक हैं, जिन्हे पूतनाष्टक कहा जाता है, उससे बच्चें की नजर उतारी जा सकती है। स्वामी जी ने बताया कि जन्माष्टमी लगातार तीन दिन से मनाई जा रही है उन्होने जानकादी दी कि चूंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था और आज भी रोहिणी नक्षत्र उदयाकाल में था इसलिये आज भी जन्माष्टमी मानी जा रही है। उन्होने जानकारी दी कि उदयाकाल यानी सूर्योदय के समय में जो भी नक्षत्र होता है उसी नक्षत्र को चौबीस घंटे माना जाता है। स्वामी जी ने पालने में झूले नं दलाल, झूला हल्के से दी जो जैसे अत्यंत सुंदर भजन समेत अन्य भजन सुनाए। जिससे श्रोतागण आंनद मग्न हो गये। श्रीमद भागवत कथा को सुनने पूरे शहर भर के लोग एकत्रित हो रहे हैं। महिलाओं की संख्या श्रोताओं में सर्वाधित रहती है। श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव के मुख्य यजमान विधायक रमेश सक्सेना ने सभी श्रध्दालुजनों से अधिक से अधिक संख्या में भाग लेकर पुण्यलाभ प्राप्त करें।


हमारा ईपता - fursatma@gmail.com यदि आप कुछ कहना चाहे तो यहां अपना पत्र भेजें ।