सीहोर 30 जून (नि.सं.)। किसी भी प्रशासनिक अधिकारी की चमचागिरी में माहिर और घुटने-घुटने तक उनके आगे झुके रहने वाले कुछ ऐय्यार तो ऐसे हैं कि जो भी अधिकारी नया आता है उसके पास किसी भी बहाने से पहुँच ही जाते हैं और फिर चमचागिरी की वह मिसाल पेश करते हैं कि अधिकारी जरा-भी कमजोर दिल का हो, अनुभवहीन हो तो समझ लो गया बेचारा। और उसके बाद ऐसे ऐय्यार उस अधिकारी के नाम का दोहन कर-कर करके क्या-क्या मजे लेते हैं यह किसी से छुपा नहीं है। ऐसे ऐय्यारों से सीहोर नगर पिछले एक दशक से खासा पीड़ित है।
कल ही एक नेताजी शाम हाथ मे एक बड़ा-सा गुलदस्ता लेकर जिलाधीश निवास की तरफ जाते दिखे। उन्होने जिलाधीश निवास पर पहुँचकर संदेशा भिजवाया कि बस भेंट करके गुलदस्ता देना है और सीहोर पधारने पर स्वागत करना है...। संदेश वाहक संदेशा लेकर भी गया। पर यह क्या उन्हे उचित जबाव जो मिला वह यह था कि यदि मिलना ही है तो कृपया कल कार्यालयीन समय पर आयें, यह निवास है यहाँ कोई मेल-मुलाकात नहीं होती। आफिस का काम आफिस में ही होगा। सीधी-सीधी बात सीधे-सीधे ढंग से कह दी गई है। अब यह घटना धीरे-धीरे नगर में फैलती जा रही है कि साहब काम पसंद करते हैं....फालतू की मेल-मुलाकात से परहेज करते हैं।
लेकिन इसके साथ ही यह चर्चाएं भी चल पड़ी हैं कि अब उन बेचारों का क्या होगा ? जो सुबह से साहब के बंगले पहुँचने की फिराक में रहते हैं और शाम जब तक साहब सो न जाये तब तक डयूटी बजाना अपना धर्म समझते हैं अथवा उनका क्या होगा जो बिना साहब के करीबी बने खुद को असहाय महसूस करते हैं। गुलदस्ता पृथा वालों को भी दिक्कत हो गई है बेचारे अब नया फार्मूला इजाद करने में लगे हैं।