Friday, April 25, 2008

अब वो जनरेटर का किस्सा है कि थमने का नाम नहीं ले रहा (खबर ही तो है..)

सीहोर 24 अप्रैल (नि.सं.)। नगर पालिका ने 8-10 जनरेटर खरीदे हैं ? क्या आपको विश्वास हो रहा है इस बात पर ? नहीं ना लेकिन क्या करें नगर के चौराहों पर लम्बे समय से जब से जल संकट छाया है तभी से यह जनरेटर का किस्सा आम होता जा रहा है। कहा जाता है कि अचानक नगर पालिका ने अपने किराये वाली पध्दति को त्यागकर अब सीधे जनरेटर खरीद लिये जाने का नया फार्मूला उपयोग किया है। लेकिन इसमें चर्चा जैसा क्या है ? यही सोच रहे होंगे आप अरे भाई इसमें चर्चा का विषय और क्या हो सकता है सिवाय इसके कि इसके ठेकेदार से लेकर जनरेटर की गुणवत्ता और क्या वह नये हैं या पुराने-सुराने हैं यह बात हो। बस यही चर्चाएं आम हो रही हैं। अब जो भी नगर पालिका चाहे तो इसको स्पष्ट कर सकती है। या फिर चाहे तो छोड़ नगर में तो वैसे भी चर्चाएं होती रहती हैं कब तक ध्यान देगी बेचारी नगर पालिका।
अबके एक नया काम हो गया है। बिल्कुल नया। यह ठीक वैसे ही है जैसे नगर में नर्वदा का पानी आ जाये तो बेचारी नगर पालिका के कर्ताधर्ताओं की आंखो से तो आंसू ही छलक आयेंगे मारे खुशी के (अरे भाई सारे पानी संबंधी ठेके जो बंद हो जायेंगे)। असल में पूर्व हमेशा जब भी जल संकट आता था तो तरह-तरह के नये-नये साधन खोलकर एक पिटारा लाता था जिसमें तरह-तरह के ठेके होते थे, तरह-तरह के काम होते थे, इस पिटारे में कई लोगों को अपनी-अपनी पसंद के काम सामान मिल जाते थे ।
इन्ही कामों एक काम होता था जनरेटर का। भाई जल संकट के साथ ही चूंकि बिजली का संकट भी खड़ा हो जाता है इसलिये कुछ नेताजी जनरेटर का ठेका ले लेते थे जो नगर पालिका के लिये काहिरी-खारपा डाल पर डीजल जलाता था और रुपयों के बंडल के बंडल खत्म हो जाते थे, डीजल के कारण। गत वर्षों में ऐसा ही होता था और जनरेटर के मूल्य से कई गुना अधिक किराया नगर पालिका का लग जाता था। लेकिन इस बार बिल्कुल नया काम हो गया। हालांकि नगर के एकमात्र स्थानीय दैनिक अखबार में इसको लेकर किसी तरह की निविदा आदि प्रकाशित नहीं हुई थी, हो सकता इसके लिये किसी भी तरह की निविदा प्रकाशित ही नहीं हुई हो अथवा फिर किसी पसंदीदा साप्ताहिक अखबार में उसे प्रकाशित कराया गया हो। लेकिन हाँ इस वर्ष नगर पालिका में कुछ जनरेटर खरीद लिये जाने की चर्चाएं आम हैं। लोग तो सीहोर टाकीज के पास एक दुकान का नाम भी ले-लेकर कह रहे हैं कि वहीं से यह जनरेटर जुगाड़ किये गये हैं। अफवाहों के इस शहर में आखिर किसे समझाया जाये और कुछ कहा जाये यहाँ सिर्फ चुपचाप हर रोज नई अफवाहे सुनना पड़ती हैं।
नगर पालिका के कर्ताधर्ताओं के सबसे पसंदीदा ठेकेदार के नाम को लेकर नगर के चौराहों पर चर्चा है कि उन्होने कुछ यही कोई 8-10 जनरेटर नगर पालिका में दिये हैं लेकिन चर्चा इसके साथ यह है कि उन्होने पुराने-सुराने जनरेटर पर रंग करवाकर ग्रीस-आईल कराकर उन्हे सौंप दिया है। बताईये आप क्या ऐसा भी हो सकता है लेकिन अफवाहों का क्या किया जा सकता है। नगर सीहोर अफवाहों का शहर है और अफवाहें तो यहाँ सुबह से शाम तक तरह-तरह की उड़ती रहती हैं। जनरेटर को पुतवाकर बेच देने की यह अफवाह वाकई थमने का नाम नहीं ले रही है। लोग इसके साथ तरह-तरह के किस्से और जोड़ने लगे हैं। कोई कहता है कि यह जानबूझकर खरीदे गये हैं कोई कहता है कि यह जानबूझकर एक ही स्थान लाकर पटक दिये गये हैं। फुरसत सूत्रों का इस संबंध में बस इतना ही कहना है कि कुछ जनरेटर करीब 3-4 एक साथ अधिग्रहित किये गये एक निजी नलकूप पर रख दिये गये हैं जहाँ सिर्फ एक ही आवश्यकता है वहाँ आखिर 3 क्यों रखे गये हैं इसमें जरुर कुछ गाला हो सकता है। क्योंकि अन्य जगह भी इनका उपयोग हो सकता है लेकिन यहीं यह रखे गये हैं और अलग ढंग से उपयोग भी हो रहे हैं। अधिग्रहित स्थानों पर कितनी बिजली जा रही है और कितना डीजल यह जनरेटर पी रहे हैं और कितना कागजों पर अंकित हो रहा है इसकी जांच करने की आवश्यकता है। क्योंकि एक ही जगह रखे तीन जनरेटर ने भी अब अपने किस्से बनाना शुरु कर दिये हैं। इनको लेकर भी तरह-तरह की अफवाहें नगर के चौराहों पर रहने लगी है कि आखिर उन्हे उसी जगह पर क्यों रखा गया है ?
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