आष्टा 2 सितम्बर (नि.प्र.) लोकप्रिय बनने के लिए जिस प्रकार निन्दा का त्याग, निन्द प्रवृत्ति का त्याग दान की रूचि आदि कारण प्रमुख है उसमें शीलवान बनना भी लोकप्रिय बनने का एक कारण है। जब शीलवान की बात चलती है तो याद आता है सुश्रावक विजय कुंवर और सुश्रविका विजय गौरी जिन्होंने ऐसा शीलव्रत पालन किया की उन्हें याद कर जब शीलव्रत की बात चलती है तो इनका उदाहरण दिया जाता है ब्रह्ाचर्य व्रत आत्मा को अमर बना देता है उक्त उद्गार पर्यूषण पर्व के अन्तर्गत महावीर भवन स्थानक में विराजित पूज्य म.सा. श्री मधुबाला जी ने प्रवचन में कहे महाराज साहब ने कहा कि व्यक्ति को अपनी पत्नि से संतोष होना चाहिये तथा पर स्त्री को मां बहन के रूप में देखना चाहिये पर पत्नि में रूचि रखने वाले की आत्मा के तत्व नष्ट होते है। महिला या पुरुष कितना ही श्रृंगार कर ले लेकिन उसका असली श्रृंगार शील ही होता है जो व्यक्ति पर स्त्री गमन में रूचि रखते है उनके घरों में रोजाना महाभारत होती है घरों के हाल बेहाल है यह सब देखने और सुनने को मिलते है चिन्तन करो जो शीलवान नहीं होता है उसके क्या हाल होते है पूज्य म.सा. श्री सुनीता जी ने अपने प्रवचन में कहा कि तीर्थकर भगवान हम पर जो उपकार कर गये है उन उपकारों से हम उऋण नहीं हो सकते है। जहां पर श्रद्धा का भाव होता है वहीं पर समर्पण की भावना भी होती है।
पर्व जब आते है वे सभी के लिए ही आते है लेकिन विरले ही होते है जो पर्वो में आहार का त्याग कर व्रत उपवास आदि करते है। पर्वो में धर्म का आराधना करने से कार्यो का क्षय किया जा सकता है।