इसके बारे में पूर्वजों से प्राप्त जानकारी इस प्रकार है कि लगभग 2000 वर्ष पूर्व उायनी अवत्तिका के सम्राट विक्रमादित्य महाराज परमार वंश प्रति बुधवार रणथंमौर के किले में स्थित सवाई माधोपुर राजस्थान के किले में स्थित चिंतामन सिद्ध गणेश के दर्शन के लिये जाया करते थे। एक दिन राजा से गणेश जी ने स्वप् में दर्शन देकर कहा कि हे राजन तुम पार्वती नदी में शिव पार्वती के संगम स्थल पर वर्तमान में गणेश मंदिर से लगभग 10-15 किलो मीटर पश्चिम में जहॉ सीवन नदी पुराना नाम शिवनाथ पार्वती नदी में मिली है कमल पुष्प के रूप में प्रकट होऊंगा। उस पुष्प को ग्रहण कर अपने साथ ले चलो। स्वप् में दिये निर्देशानुसार राजा ने कमल पुष्प ग्रहण कर रथ में काष्ट रचित लेकर चला तभी आकाशवाणी हुई कि है राजन रात ही रात में जहां चाहो ले चलो। प्रात:काल होते ही मै वहीं रूक जाऊंगा। राजा कुछ दूर ही चले थे कि अचानक रथ के पहिये जमीन में धंस गये। राजा ने रथ के पहिये भूमि से निकालने का प्रयास किया, किन्तु रथ क्षतिग्रस्त हो गया। दूसरे रथ की व्यवस्था होते होते ऊषाकाल प्रात:कोल हो गया। पक्षीगण बोलने लगे तो कमल पुष्प गणेश जी की मूर्ति के रूप में परिवर्तन हो गया। यह मूर्ति खड़ी हुई है तथा स्वयं भू प्रतिमा है।
जैसे ही राजा ने प्रतीमा को उठावाने का प्रयास किया वैसे ही प्रतिमा जमीन में धंसने लगी,बहुत प्रयत्न करने पर प्रतिमा अपने स्थान से हिली भी नही बल्कि धंसती चली गई तब राजा ने वही उनकी स्थापना कर दी। बाद मे मंदिर का निर्माण करवाया। आज गणेश जी की प्रतिमा आधी जमीन में धुसी हुई है। मंदिर का जीर्णउद्धार एवं सभा मण्डल का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने कराया। मंदिर श्री यंत्र के कोणों पर निर्मित है।
विक्रमादित्य के पश्चात शालि वाहन शक राजा भोज कृष्णदेव राय, गोंड राजा नवलशाह आदि ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग किया नानाजी पेशवा विंचूर कर मराठा आदि समय मंदिर की ख्याति व प्रतिष्ठा में वद्धि हुई। चिंतामन सिद्ध गणेश होने व 84 सिद्धों में से तपस्वियों ने यहां सिद्धी प्राप्त की। सीहोर का नाम पूर्व में सिद्धपुर था जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। जब नवाबी शासन का प्रारंभ हुआ उस समय के पूर्व से ही प्रबंधक पं.पृथ्वी वल्लभ दुबे के पूर्वज ही पूजा व्यवस्था को संचालित करते चले आ रहे है। सन् 1911 में बेगम सुल्तान जहां, सिकन्दर जहां द्वारा प्रबंधक के पूर्वक पं.बीरबल,छोटराम गॉवठी को मंदिर पूजा व्यवस्था के अधिकार की सनद प्रदान की गई।
उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र एक मात्र वारिस उतराधिकारी पं.नेतीवल्लभ दुबे को मंदिर व भूमि के समस्त अधिकारी की नई सनद दिनांक 5.8.1945 ई.को प्रदान की गई। पं.दुबे के जीवन काल में देश आजाद हो जाने पर विलीनीकरण के बाद सभी रियासतें समाप्त कर दी गई तथा जितने जागीरदार,जमीदार व माफीदार थे,उन्हें लैण्ड रेवेन्यू एक्ट 1959 के अनुसार भारत सरकार ने भूमिस्वामी बनाकर भू अधिकार प्रदान कर दिये। तभी से स्व.पं.नेतीवल्लभ दुबेजी उक्त व्यवस्थापक व भूमि स्वामी रहे। सन् 1977 में उक्त अधिकार उनके पुत्र.पं.पृथ्वीवल्लभ दुबे व हेमंत वल्लभ दुबे के नाम नामांतरित हो गये। जो कि आज भी काबिज है। चिंतामन सिद्ध गणेश स्वयंभू प्रतिमा भारत में चार स्थानों पर है- रणथंमौर सवाई माधौपुर राजस्थान, 2.सिद्धपुर सीहोर,3.अवन्तिका उज्जेन ,व 4.सिद्धपुर गुजरात मे है। चारौ जगह मेला लगता है। यहां पर लगभग 150 वर्ष पूर्व मंदिर में ताला नहीं लगता था चोरो ने गणेश प्रतिमा से आंखो में लगे हीरे निकाल लिये,तब गणेश प्रतिमा की आंखो से 21 दिन पूर्व तक दूध की धार चली,तब गणेश जी ने तत्कालिन पुजारी को स्वप् देकर कहा कि तुम शोक मत करो में खण्डित नही हुआ हूं।
तुम मुझे चांदी के नेत्र लगा दो तभी से प्रतिमा को चांदी के नेत्र धारण कराये गये और विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा जन जन में उनके प्रति आस्था बढ़ी फलस्वरूप जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मेला आयोजित किया जाने लगा। जो कि निरंतर प्रतिवर्ष लगता है। आज लगभग 50 से 60 वर्ष पहले सीहोर में प्लेग की बीमारी फैली थी। तब उस समय जन हानि हुई,तब मण्डी में रहने वाले श्री गंगा प्रसाद जी साहू के पिता श्री रामलाल जी साहू ने मंदिर में गणेश जी से कामना की थी यह बीमारी समाप्त हो जावे और किसी की प्राण हानि नही होगी तो मै गणेश चतुर्थी पर भण्डारा कराऊंगा। गणेश जी ने उनकी कामना पूर्ण की तो उन्होंने भण्डारा कराया। तभी से आज तक भण्डारा होता चला आ रहा है। अब स्व श्री गंगाप्रसाद जी साहू के पुत्र गण गणेश चतुर्थी पर ब्राम्हण व संतो को भोजन कराकर इस प्रथा को जारी रखे है। यहां पर सभी लोगों की कामना पूर्ण होती है।
पं. पृथ्वीबल्लभ दुबे, सीहोर
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