Monday, September 1, 2008

पर निंदा करने वाला खुद भी डूबता है और दूसरे को भी डूबाता है-मधुबाला जी

आष्टा 31 अगस्त (नि.प्र.)। प्रिय और लोकप्रिय बनना है तो सबसे पहले व्यक्ति को पर निन्दा को त्यागना होगा 18 पापों में निन्दा को पाप बताया है निन्दा करना और निन्दा सुनना दोनों ही पाप है पर निन्दा जो करता है वो तो स्वयं डूबता है और दूसरे को भी डूबता है वही जो व्यक्ति आत्म निन्दा करता है वो तिर जाता है। ज्ञानियों ने आत्म निन्दा को डाक्टर की तरह तथा पर निन्दा को धोबी की संज्ञा दी है।
उक्त उद्गार पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन आज पूज्य मा.सा. श्री मधुबाला जी मा.सा. ने लोकप्रिय बनने के लिए बताई गई पांच बाते पहला निन्दा का त्याग, दूसरा निन्दा प्रवृत्ति का त्याग, तीसरा दान की रूचि चौथी शीलवान एवं पांचवी विनयवान में से आज निन्दा का त्याग विषय पर प्रवचन देते हुए कहा कि पर्व का महत्व उसी के लिए है जो पर्वो की महत्ता को समझता है। गुलाब का फूल अपनी खुशबू से आस-पास के वातावरण को भी अपनी खुशबू से महका देता है ठीक उसी प्रकार पर्व जीवन में खुशबू ही खुशबू बिखेर देता है। म.सा. ने निन्दा को धोबी की उपमा देकर समझाया की जब धोबी घाट पर कपड़े कूटता है धोता है तो छींटे उसके ऊपर ही उड़ते है अर्थात निन्दा करना और सुनना दोनों ही पाप है वही मा.सा. ने बताया की आत्म निन्दा डाक्टर की तरह होती है। आत्म निन्दा के अंदर सुधरने का भाव रहता है पर निन्दा करने वाला खुद तो डूबता है दूसरे को भी डूबाता है म.सा. ने पूछा व्यक्ति निन्दा क्यों करता है इसके उत्तर में बताया की निन्दा करने के पीछेर् ईष्या का कारण रहता है। निन्दा जीवन में परिभ्रमण का कारण बनता है। उन्होंने धर्म नहीं करने वालों से कहा की जो व्यक्ति किसी भी कारण से अगर धर्म नहीं करता है तो वो कम से कम निन्दा न करें इसी प्रकार आज प्रवचन में बताया की जीभ को अग्नि की उपमा दी गई है आग उपयोगी भी हो सकती है और उसका दुरूपयोग भी हो सकता है इसलिए लोकप्रिय बनना हो तो जीवन में निन्दा का त्याग करें।
उन्होंने चुगली को उगली हुई खीर बताते हुए कहा कि उगली हुई खीर को कौन खाता है स्वयं विचार करें। निन्दा करने वालों को व्यक्ति की अच्छाई नजर नहीं आती है जिस प्रकार किसी कोरे सफेद कागज पर एक काली बिन्दी लगा दी जाये तो देखने वाले को पूरा कागज जो सफेद है नहीं दिखता उसे केवल उस पर लगी काली बिन्दी है नजर आती है दुर्गुण नकटे और निटठल्ले होते है वही सद्गुण मनुवार वाले होते है आज म.सा. ने प्रवचन में उपस्थित सभी लोगों को कहा कि सामूहिक भोज, शादी या अन्य कार्यक्रम हो तो भोज में आइटम कम से कम बनाये अधिक आयरन बनाने पर व्यर्थ जाता है सोचो कितने लोग ऐसे है जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिलती है हम झूठा छोड़ते है वही उन्होंने महिलाओं से कहा कम से कम साड़िया रखो क्योंकि कई बहने ऐसी भी है जिनके तन वो बड़ी मुश्किल से ढक पाती है उनकी चिन्ता करो। अगर आपके संघ ने गरीब के लिए सोचा और उनके लिए कुछ किया तो आपका संघ लोकप्रिय हो जायेगा समाज में उसकी मिशाल दी जायेगी। इस अवसर पर सुनीता जी म.सा. ने प्रवचन के माध्यम से कहा कि अगर तीर्थ कर भगवान पर्वो का विधान नहीं करते तो क्या आप पर्यूषण में धर्म, त्याग, तप, संवर करने आते ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप की आराधना करने से आत्मा का उत्थान होगा। आज आत्मा संसार में जो विचरण कर रही है उसका कारण भोगवृत्ति है। त्याग वृत्ति मोक्ष का कारण बनती है एक सामायिक की दलाली का लाभ 7 मेरूपर्वत के समान बताया है। सामायिक करने वाले की अनुमोदना देव भी करते है जो त्याग करता है वो पाता है। जो भोगता है उसे भुगतना पडता है।