सीहोर 27 अगस्त (नि.सं.)। भगवान ने कहा है कि वे भक्तों के केवल गुण ही देखते हैं और गुणों को ही ग्रहण करते हैं। जो गुणग्राही होते हैं वे दूसरों के गुण देखकर उनसे प्रेरणा लेते हैं जबकि दोषग्राही होते हैं वे दूसरों के दोषों को ही देखते रहते हैं। हमें मोह-आपत्ति में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिये, बुध्दि संकुचित नहीं रखना चाहिए, जल की तरह शीतल और मधुर रहना चाहिये, जहाँ क्रोध की बहुत आवश्यकता हो वहीं क्रोध करना चाहिये अन्यथा शांत रहना चाहिए। मन की निर्मलता और वाणी में मधुरता रखनी चाहिए तभी आप भगवान के प्रिय भक्त बन सकेंगे।
उक्त आशय के उद्गार स्थानीय बड़ा बाजार में श्री रामानुज मण्डल के तत्वाधान में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में आज सातवें दिन कथा समापन के अवसर पर उजैन से पधारे परम पूयनीय संत प्रवर 1008 श्री स्वामी रंगनाथाचार्य जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य श्री रामानुज कोट उजैन ने अपनी ओजस्वी एवं अमृतमयी वाणी से बड़ी संख्या में उपस्थित श्रध्दालुजनों को कथामृत का पान कराते हुए व्यक्त किये। स्वामी जी ने कहा कि शरीर के भीतर जो आत्म तत्व है उसका निरन्तर चिंतन करना चाहिए। आत्म तत्व न बढ़ता है न घटता है। आत्म तत्व के चिंतन से ही परमात्मा से साक्षात्कार हो सकता है। उन्होने कहा कि भगवान ने हमें दो हाथ, दो आंख, दो कान, दो पैर दिये हैं, नाक में भी दो छिद्र दिए हैं किंतु जीभ एक ही दी है। जीभ खाने और बोलने का काम करती है, वाणी और आहार पर संयम रखने के लिये ही जीभ हमें भगवान ने एक दी है। वाणी और आहार पर संयम रखने से हमारी सारी इन्द्रियों पर हम आसानी से काबू पा सकते हैं। जीभ से यह भी शिक्षा मिलती है कि जीभ नरम होती है इसलिये उसकी सत्ता मरने दम तक रहती है। जबकि दांत कठोर होते हैं इसलिये वे पहले ही गिर जाते हैं। इसलिये हमें नम्रता का स्वभाव अपनाना चाहिए।
स्वामी जी ने कहा कि भगवान का अवतार भक्तों की रक्षा के लिये, दुर्जनों के विनाश के लिये और धर्म की स्थापना के लिये हुआ था। हालांकि भगवान तो संकल्प मात्र से भी दुर्जनों का नाश कर सकते थे किन्तु उनकी लीलआें का भक्त आनंद ले सकें इसलिये उन्होने अवतार लिया। उन्होने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी दैनिक नित्य नियमों का पालन करना चाहिए, कभी दैनिक नित्य क्रियाएं नहीं छोड़ना चाहिये नहीं तो असंयमित दिनचर्या हो जायेगी।
उन्होने कहा कि कलियुग में भी सतयुग आता है। उन्होने बताया कि प्रात: 3 बजे से 6 बजे तक सतयुग, 6 से रात्रि 9 बजे तक त्रेतायुग, 9 बजे से 12 बजे तक द्वापर युग और 12 बजे से 3 बजे तक कलियुग रहता है। रात्रि में भी 12 से 3 बजे तक कलियुग रहता है। इसी में सारे बुरे काम होते हैं। उन्होने कहा कि प्रतिदिन यदि सतयुग के समय पूजा-अर्चना की जाये तो उसका अत्याधिक फल मिलता है। प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में उठने से पूरे दिन शरीर में उर्जा रहती है। आज स्वामी जी ने प्रभुजी मेरी लागी लगन मत छोड़ना और छोड़ बैठा है, सारा जमाना मुझे नाथ अब आप ही दें ठिकाना मुझे तथा चरणों में रहूं हरदम, हे नाथ कृपा कर दो, जैसे सुमधुर भजन गाए तो श्रोतागण मंत्रमुग्ध होकर नृत्य करने लगे।
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