Wednesday, July 9, 2008

आज लोगों ने शरीर स्थिर कर लिया और मन चला रहे हैं

सीहोर 8 जुलाई (नि.सं.)। जब श्रध्दा जागेगी तब ज्ञान जागेगा और ज्ञान मोक्ष के मार्ग पर ले जायेगा। इसलिये श्रीमद्भागवत कथा के पूर्व इसका महात्म्य बताने का विधान है, ताकि इसके प्रति श्रध्दा जागे। मनुष्य मोक्ष चाहता है। आद्य शंकराचार्य ने कहा है कि मनुष्य के लिये 3 चीजें दुर्लभ हैं मनुष्यत्व, दूसरा मुमुक्षुत्व अर्थात मोक्ष की इच्छा और तीसरा सद्गुरुओं का सत्संग मिलना। आप लोग परम सौभाग्यशाली हैं जो मनुष्य भी हैं, मोक्ष की इच्छा भी रखते हैं और भागवत कथा श्रवण का सत्संग भी कर रहे हैं।
उक्त प्रवचन विदूषी 16 वर्षीय कथाकार ऋचा गोस्वामी ने श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिन यहाँ कृषि उपज मण्डी प्रांगण में दिये। आपके साथ बाल विद्वान ऋषभदेव जी भी व्यासगादी पर विराजित हैं। दोनो ही बाल विद्वानो के मुख से आज से भागवत कथा प्रारंभ हो गई। इसके पूर्व एक छोटी शोभायात्रा निकली। आज पूजा विधान व मंत्रोच्चारण के बाद भागवत शुरु हुई। शुरुआत में बाल विदुषी ऋचा जी ने गोविंद जय जय मेरो गोपाल जय जय का सुमधुर भजन उपस्थित भक्तों से कराया।
उन्होने कथा का महात्म्य प्रतिपादित करते हुए कहा कि इससे श्रध्दा जागती है श्रध्दा जागने पर ज्ञान जाग जाता है। मोक्ष का मतलब दुखों से पूर्ण निवृत्ति और परमानंद की प्राप्ति है। सभी अनंत सुख चाहते हैं अनंत सुख सिर्फ मोक्ष में ही है। वेद कहते हैं कि ज्ञान से ही केवलज्ञान मोक्ष प्राप्त होता है। श्रध्दावान लभते ज्ञानं, अर्थात श्रध्दावान को ज्ञान और ज्ञानी को मोक्ष मिलता है।
भगवान को सच्चिदानंदस्वरुपाय हैं। सत से मतलब सत्ता से है, जिनकी सत्ता तीनों काल भूत, भविष्य और वर्तमान में बनी रहे, जो सदा आनन्द मूर्ति रहें जो अविनाशी हों जो सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति करते हैं वह सच्चिदानंद स्वरुप हैं। जिनके नेत्र खोलने मात्र से श्रृष्टि बन जाती है, वो मुस्कुरा देते हैं तो पालन हो जाता है। और वो हमारे प्रभु इतने कोमल सुकुमार हैं कि इतने ही वह थक जाते हैं और आंखे बंद हो जाती है तो संहार हो जाता है।
ऋचा जी ने कहा कि थोड़े-थोड़े सब दुखी है। दुख भी तीन प्रकार के हैं आध्यात्मिक जहाँ शारीरिक व मानसिक दुख है, आदिदैविक और आदिभौतिक इन तीनों प्रकार के ताप कष्ट का निवारण करने का काम भगवान श्री कृष्ण ही करते हैं इसलिये उनका नाम कृष्ण पड़ा है। जो ताप पाप चुराले वह कृष्ण है। जब 88 हजार ऋषियों ने देखा की कलियुग आने वाला है सब पाप कर्मो में प्रवृत्त हो जायेंगे तो वे ब्रह्माजी के पास गये व पूछने लगे कि हम कहाँ जायें जब ब्रह्मा ने एक चक्र उत्पन्न किया जो चलने लगा। ब्रह्मा जी ने कहा कि यह चक्र जहाँ रुक जाये वहीं कलयुग का प्रभाव नहीं होगा। चक्र चलता रहा ऋषि उसके पीछे जाते रहे। नेमिशारण्य में वह चक्र जमीन पर गिरा और सीधे पाताल में चला गया जहाँ जमीन के छेद होने से एक पानी का कुण्ड बन गया जिसे चक्रतीर्थ कुण्ड कहा जाने लगा। यही ऋषिगण रुके और यहीं यज्ञ के दौरान सूत जी से सत्संग प्रारंभ हुआ।
भागवत कथा का महात्म्य सिध्द करते हुए ऋचा जी ने बताया कि स्वर्ग में समस्त अमूल्य वस्तुएं हैं लेकिन जब सुद्योमणी ऋषि के पास देवगणों ने भागवत देखी तो वह उसे भी लेने पहुँच गये। वह अपने साथ एक अमृत कलश ले गये और बोले यह अमृत कलश ले लीजिये और परीक्षित को पिला दीजिये लेकिन यह भागवत हमें दे दीजिये। इस पर ऋषि ने कहा कि यह अमरता और अभयता दोनो देती है। कथा खरीदी-बेची नहीं जाती इसे हाथ जोड़कर श्रवण, वितरण किया जा सकता है। देवगण चुपचाप चले गये। इस प्रकार भागवत देवताओं को भी दुर्लभ है। जब कथा श्रवण करते परीक्षित 7 दिन में मुक्त हो गये तो ब्रह्मा जी भी आश्चर्य कर गये। उन्होने भागवत जी को एक तराजू पर तौलने के लिये तराजू के एक तरफ सारे कल्याण के साधन रखें ओर दूसरी तरफ सिर्फ भागवत जी जैसे ही रखी वो पलड़ा अपने आप झुक गया।
भागवत को आधुनिक संदर्भ से जोड़ते हुए ऋचा जी ने कहा कि नारद जी अस्थिर माने गये हैं लेकिन 'अ' शब्द में स्वयं विष्णु विराजित हैं इसका मतलब देवर्षि भगवान में स्थिर हैं। दूसरी तरफ आज विज्ञान भी कहने लगा है कि चलने फिरने से शरीर स्वस्थ रहता है लेकिन बिडंवना यह है कि लोग शरीर को तो स्थिर किये हुए हैं और मन को अस्थिर कर लिया है। नारद जी आचरण पर यदि चलते फिरते रहेंगे तो कहीं लगाव नहीं होगा। बहता पानी निर्मल होता है। वैसे ही निर्मल बन जायेंगे।
पहले ही दिन ऋचा जी के प्रवचनों ने श्रोताओं को बांधे रखा। आश्चर्य जनक ढंग से अनेकानेक बार संस्कृत श्लोकों का उच्चारण करते हुए उनके समझाने का सरल ढंग और प्रवचन में धारा प्रवाह के परिणामस्वरुप श्रोता बंध गये थे। आज मण्डी व्यापारी संघ के अध्यक्ष अजय खण्डेवाल ने ऋचा जी का एवं ऋषभ देवी का माल्यार्पण कर स्वागत किया।