जावर 17 अप्रैल (नि.प्र.)। ऐसी किवदंती है प्राचीन समय में जावर से होकर बहने वाली नेवज नदी में दूध की धार बहती थी । देवबड़ला से निकल कर राजस्थान तक बहने वाली यह पवित्र नदी जिसमें दूध की जगह अब पानी भी नही मिलता हो लेकिन इसके तट पर बने ऐतिहासिक पुरातात्विक महत्व के स्थल इसकी महत्ता को आज भी प्रतिपादित करते है ।
ऐसा ही चीनी यात्री व्हेन सांग की भोपाल और इसके आसपास लगे क्षैत्रों में भ्रमण के विवरण है, उसमें जैन इतिहास की दृष्टि से चंवर नाम से पुकारा जाने वाला जावर अपभ्रंशवश जावर हो गया । उस काल में यहां भव्य जैन मंदिर रहा है । इस बात की पुष्टि चौथे काल की भगवान आदिनाथ की दस फुट ऊंची श्यामवर्ण की सुंदर एवं मूर्ति कला की उत्कृ ष्ट रचना को निरूपित करती है । खुदाई में प्राप्त यह मूर्ति है । इसी के साथ अष्ट धातू की भगवान पार्श्व नाथ की प्रतिमा भी प्राप्त हुई थी । जैन समाज के पूर्व न.पा.अध्यक्ष नूतन कुमार जैन का कहना है कि मूर्ति प्राप्ति के बाद प्रतिमा को स्थानीय जैन मंदिर में स्थापित किया गया । उस समय कई चमत्कारिक धटनाएं भी घटित हुई । प्रतिमा के प्राचीन ऐतिहासिक महत्व के कारण ही यह अतिशय क्षैत्र कहलाता है । भगवान बाहुवली और भरत जी की श्वेत संगमरमर की सुंदर प्रतिमाओं क मध्य यह दिव्य प्रतिमा अपनी एक झलक में ही, अहिंसा, सस्य, अस्तेय, संयम के रत्नों से परिपूर्ण कर देती है । नेवज के तट से दो प्रतिमाएं और प्राप्त हुई थी उनको भी मंदिर में ही स्थापित किया गया । महावीर जंयती पर जैन समाज द्वारा भव्य जुलुस निकाल जाता है । जिसमें सभी लोग सहयोग करते है । मंदि में दर्शन के लिए दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है ।
इसी प्रकार नेवज नदी के तट पर उत्तर की और कुछ दूरी पर खेड़ापति हनुमान मंदिर है । जिसमें ऐतिहासिक प्राचीन ग्यारह फिट ऊंची प्रतिमा महावीर हनुमान जी की विराजित है । पं. राम चन्द्र शर्मा पुजारी बताते है कि यह प्रतिमा आधी से अधिक जमीन के अंदर थी जिसे खुदाई करने पर भव्य रूप में प्राप्त होने पर यज्ञ अनुष्ठान के साथ स्थापित किया गया । लेखन एवं सामाजिक कार्यकर्ता जयनारायण राठौर का कहना है कि शिल्प एवं मूर्तिकला का अद्वितीय दिग्दर्शन इस प्रतिमा में है । हनुमान जी के सीता जी की खोज में लंका प्रस्थान के समय लंकिनी से युद्धरत, भाव भंगिमा लिए हुए सौन्दर्य को प्रस्तुत करती यह प्रतिमा है । शेष नाग धारण कर रूद्रावता को प्रकट करती प्रतिमा पर हाथों में भुजबंध, गले में मोतियों की माला, कमर में कटार, लंगोट, हाथ में गदा, लंकिनी के दिव्य युद्धरत रूप को पैर से दबाए, कमर में कमर बंद पहने यह प्रतिमा मनोहारी एवं अद्वितीय है । तुलसीदास जी की यह चौपाई, आगे जाई लंकिनी रोका, मारेहु लात गईसुर लोका, यह प्रासंगिक है । चमत्कारी इस प्रतिमा के दर्शन कर तत्कालीन जिलाधीश राय सा. भी बहुत अधिक प्रभावित होकर जीर्णोद्वार हेतू राशि स्वीकृत की थी । हनुमान जयंती पर प्रतिवर्ष कन्या भोजन भी होता है ।
मंदिर से जुड़े अनिल अजमेरा एवं कुमेर सिंह मामू ने बताया कि इस वर्ष भी कन्या भोजन होगा । हनुमान जयंती पर हिन्दू उत्सव समिति द्वारा चल समारोह निकालकर ध्वज चढ़ाया जाता है । नगर में स्थित श्रीराम मंदिर में भी हनुमान जी की प्रतिमा चैतन्य एवं शीध्र मनोकामना पूर्ण करने वाली है । यहां समय समय पर भक्तों को दर्शन का आभास भी हुआ है । जावर जोड़ पर भी सिद्ध प्रतिमा है। नगर में एक और अहिंसा के प्रतिक भगवान आदिनाथ महावीर है वही असुरो को दमन करने वाले महावीर हनुमान की प्रतिमाएं चैतन्य रूप में प्रतिष्ठित है । जो हर प्रकार से रक्षा करने वाली है ।