Friday, February 15, 2008

जब रावण से युध्द करते राम जी पीछे हट गये, और यह सुन हनुमान नाराज हुए

सीहोर 14 फरवरी (फुरसत)। जो ज्ञान परमात्मा का ज्ञान न कराए, वह व्यर्थ है। ज्ञान तो मुक्ति के द्वार खोल देता है, यदि ज्ञान के द्वार हम मुक्ति का मार्ग न खोज पाएं तो उस ज्ञान का कोई अर्थ नहीं है। परमात्मा पर भरोसा करो तो पूरी श्रध्दा के साथ करना, कोई संशय नहीं रखना। जब तक परमात्मा पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहोगे, वह आपकी मदद उतनी तत्परता से नहीं करेगा इसलिये संशय रुपी विचार को परमात्मा की भक्ति के समय अपने मन से हटाने में ही कल्याण है।
इस आशय के उद्गार काशी से पधारे स्वामी रामकमल दास जी महाराज ने विधायक रमेश सक्सेना के गृहग्राम में लगातार 27 वीं बार मानस प्रचार समिति बरखेड़ाहसन के तत्वाधान में हो रही संगीतमय श्रीराम कथा के दूसरे दिन बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। स्वामी जी ने कहा कि हनुमान जी और वाल्मिकी जी के बीच हुए प्रसंग को रोचक तरीके से सुनाते हुए कहा कि वाल्मिकी जी ने अपनी रामायण में लिखा है कि राम-रावण युध्द में रामजी ने एक बार अपने कदम पीछे हटाए थे, जब यह हनुमान जी ने पढ़ा तो उन्होने वाल्मिकी जी से इस लाईन को हटाने की बात कही और कहा कि मैं राम जी के साथ पग-पग पर था उन्होने कभी अपने कदम पीछे नहीं हटाए। जब वाल्मिकी जी ने कहा कि यह रामायण मैने अपनी समाधि स्थिति में लिखी है इसलिये गलत नहीं हो सकती तब यह मामला श्रीराम दरबार में पहुँचा तब श्रीराम ने कहा कि दोनो ही अपनी-अपनी जगह सही हैं क्योंकि जब मेरा और रावण का युध्द हो रहा था तब हम दोनो लड़ते-लड़ते इतने नजदीक आ गए कि हमारी छातियाँ टकराने लगीं तब धनुष की प्रत्यंचा पर वाण को चढ़ाने के लिये मुझे एक कदम पीछे रखना पड़ा इसलिये हनुमान जी जो कह रहे हैं वह भावनात्मक सत्य है और जो वाल्मिकी जी ने कहा वह तथ्यात्मक सत्य है इसलिये दोनो ही अपनी जगह सही हैं।
स्वामी जी ने कहा कि भगवान श्री राम ने सुतीक्ष्ण, शबीरी और केवट जो ज्ञानी भक्त नहीं थे, उन्हे बिना मांगे अपनी अविरल भक्ति प्रदान की है जब ज्ञानी भक्ति करते हैं तो उसमें उतना भाव नहीं आ पाता और वे किनतु परन्तु करते हैं। इसलिये अज्ञानी भक्त को भगवान की प्राप्ति अधिक सुलभ है। उन्होने कहा कि लेकिन, किंतु, परंतु और अंग्रेजी भाषा के वट शब्द ने आज पूरे संसार को नचा रखा है इसलिये भक्ति में शंका नहीं करें। उन्होने हनुमान जी के शिक्षाग्रहण की बात कहते हुए प्रसंग सुनाया और कहा कि उनसे कठिन शिष्य अभी तक कोई नहीं हुआ जिस तरह उन्होने शिक्षा ग्रहण की वह अद्भुत है। स्वामी जी ने बताया कि विश्व में कुल 226 लोगों द्वारा लिखी गई रामायण मौजूद हैं। कथा के बीच में स्वामी जी ने कई सुमधुर भजनों का रसास्वादन भी कराया। कथा स्थल पर व्यापक तैयारियाँ कर इसे भव्य स्वरुप प्रदान किया गया। दो दिन से लगातार बरखेड़ाहसन में श्रीरामरस की गंगा बह रही है। विधायक रमेश सक्सेना ने सभी धर्मप्रेमियों से श्रीरामकथा में उपसिथत होने का अनुरोध किया है। fursat sehore