महिला बाल विकास विभाग में 30 लाख रुपये के मासिक भ्रष्टाचार का सनसनीखेज मामला....
सीहोर 13 फरवरी (आनन्द भैया फुरसत)। बच्चों के पोषण आहार पर डाका डालने वालों की कहानी तो फुरसत पहले ही प्रकाशित कर चुका है लेकिन अब पोषण आहार बनने के पहले ही आई नगद रुपयों की राशि में आपसी लेन-देने कर 30 लाख रुपये बनाने का सनसनीखेज मामला भी सामने आ गया है। जहाँ हजारों नियमों की धमकी देते आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से खुले आम जांच अधिकारी रुपये वसूलते हैं और फिर वरिष्ठ अधिकारियों की जेब में रुपया चला जाता है।
जिले में 1000 से अधिक आंगनबाड़ियों में आ रही लाखों रुपयों की राशि में से भारी भरकम राशि क्या वाकई जांच अधिकारियों की जेब में जा रही है ? क्यों होती है हर बार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के खिलाफ कार्यवाही और बच जाता है जांच अधिकारी ? पहले परियोजना अधिकारी के रुप में कार्य चुकी वर्तमान महिला बाल विकास अधिकारी आखिर कैसे वापस सीहोर आ गई ? और क्या-क्या गुल खिल रहे हैं महिला बाल विकास विभाग में ? इन सब पर पढ़िये फुरसत की एक नजर।
महिला बाल विकास में आने वाली करोड़ो रुपयों की सैकड़ों योजनाओं का अता-पता यूँ तो वैसे भी आम जनता को नहीं हो पाता। सीहोर में महिला बाल विकास विभाग द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ वर्षों से उससे संबंध्द लोग और संस्था में कार्यरत अधिकारी कर्मचारियों के परिजन या रिश्तेदार ही उठाते दिखते नजर आते हैं। ऐसे में सुस्पष्ट है कि शासन की योजनाएं असल व्यक्तियों के पास तक पहुँच ही नहीं पाती हैं। और आपस में ही मिलजुल कर यह लोग चाहे जितना लाभ उठाते हैं। जिन योजनाओं का प्रसार-प्रचार नहीं होता निश्चित ही उनमें यादा गाले होते हैं और जिनमें राशि यादा आती हैं उसमें तो फिर वारे-न्यारे ही होते हैं।
पूर्व में परियोजना अधिकारी के रुप में कार्य कर चुकी वर्तमान महिला बाल विकास अधिकारी को आखिर सीहोर ही क्यों पसंद आया यह तो राम जाने लेकिन इन दिनों महिला बाल विकास में चल रही खुसुर-फुसुर पर ध्यान दें तो यहाँ बहुत गड़बड़ झाला चल रहा है।
कैसे होता है काम - महिला बाल विकास अधिकारी के नीचे परियोजना अधिकारी का पद होता है जिनके नीचे सुपरवाईजर होते हैं और फिर इनके नीचे आंगनबाड़ी विभाग में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता होती हैं। अब चूंकी जिले में हजार से यादा आंगनबाड़ियाँ हैं तो इस दृष्टि से उन पर निगाह रखना भी जरुरी होता है ? क्योंकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका बकायदा काम कर रही हैं या नहीं ? वह रुपयों का हेरफेर तो नहीं कर रही ? वह बच्चों को नियमित बुलाकर पढ़ा रही हैं या नहीं ? वह आंगनबाड़ी खोलती भी है या नहीं ? वह बच्चों को खाने के लिये आने वाला पोषण देती भी हैं या नहीं ? और ऐसी ही अनेक बातों पर निगाह रखने के लिये करीब 20-25 आंगनबाड़ियों के ऊपर एक सुपरवाईजर को रख दिया जाता है। ऐसे सुपरवाईजर बारीकी से निगाह रखते हैं कि हर एक आंगनबाड़ी क्या सही काम कर रही है या नहीं ?
फिर क्या होता है- आंगन बाड़ी केन्द्रों पर जिनकी नियुक्ति हुई है उनमें से अनेक तो अपनी राजनीतिक पहुँच के कारण यहाँ तक पहुँच सकी हैं और कुछ रुपयों के कारण। यहाँ सबसे महत्वपूर्ण चर्चा यह है कि विगत दिवस जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की नियुक्तियाँ हुई थी उसमें भारी भ्रष्टाचार और रुपयों का लेन-देन हुआ था इसकी चर्चाएं न सिर्फ पूरे जिले में बल्कि प्रदेश स्तर तक पहुँची थी। इस संबंध में अनेक प्रकरण भी बने थे जो जिलाधीश के समक्ष से लेकर कमिश्र भोपाल तक चल रहे हैं। तो होता यह है कि ऐसी नियुक्ति प्रक्रिया के बाद जिनकी नियुक्ति हुई है उनमें से कितनी ही कार्यकर्ता व सहायिकाएं बहुत से महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर पाती हैं। नियमों की खानापूर्ति तो दूर वह ठीक से बच्चों को एकत्र करके बैठा भी नहीं पाती हैं। तो फिर सारी कार्यवाही, उन्हे बनाकर खिलाना पिलाना और उनकी पढ़ाई की तरफ ध्यान देना तो दीगर बात है। जबकि बड़ी संख्या में बहुत अच्छी आंगनबाड़ियाँ भी यहाँ संचालित दिखती हैं लेकिन कहीं न कहीं कुछ न कु छ कमी तो जांच अधिकारी निकाल ही सकते हैं।
जांच अधिकारी की बलिहारी- ऐसे में जांच अधिकारी हर एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाओं पर यह दबाव बनाकर रखते हैं कि वह काम सही नहीं करेंगे तो उन्हे हटा दिया जायेगा ? अब काम तो कितना ही सही कर लो पूरा व्यवस्थित होने से तो रहा ? क्योंकि नियम इतने हैं कि उन्हे पूरा करना हाथ की घट्टी में आटा पीसने जितना भारी है और उसके बाद भी यहाँ कोई न कोई कमी तो रह ही जाती है। ऐसे में जांच अधिकारी मतलब सुपरवाईजरों की दादागिरी खुलकर चलती है। वह स्पष्ट कहते हैं कि यदि हम चाहें तो तुम्हे एक झटके में पद से हटवा सकते हैं? इसलिये हमें खुश करना तुम्हारी नैतिक मजबूरी है। इसी में तुम्हारी भी खुशी है। वह इसके लिये बहाना बनाती हैं कि हमें भी ऊपर के अधिकारियों को खुश करना पड़ता है।
जांच क्या होती है - यदि सही मायने में जांच की जाये तो हर एक आंगनबाड़ी में अनियमितता देखने को मिल सकती है लेकिन सांठगांठ के चलते ऐसा नहीं होता ।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका डरी-सहमी - बहुत बड़ी संख्या में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाएं इन्ही जांच अधिकारियों के डर से डरी व सहमी हुई होती हैं क्योंकि यह हमेशा डरा कर रखती हैं कि कभी भी तुम्हारे केन्द्र की जांच हो सकती है, तुम्हे भगा दिया जायेगा। जांच अधिकारी कहते हैं कि मुझे ऊपर हर माह तुम्हारे आंगनबाड़ी केन्द्र की जानकारी अपनी जिम्मेदारी पर सही भेजनी पड़ती है यदि जांच हो जायेगी तो मुझे भी दिक्कत आयेगी और तुम्हारी तो नौकरी ही चली जायेगी। मैं तुम्हारे लिये खतरा क्यों लूँ या फिर केन्द्र की गड़बड़ जानकारी ऊपर के अधिकारियों को बता दूँ तो तुम्हारी नौकरी चल जायेगी ? इसी प्रकार की अबूझ धमकियाँ उन्हे दी जाती हैं।
क्यों हर बार कार्यकर्ता पर टूटता है कहर - यहाँ वर्षों से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के खिलाफ या सहायिकाओं पर कार्यवाही होती देखी जाती हैं जबकि जिन क्षेत्रों में आंगनबाड़ी सही नहीं चलती वहाँ की न सुपरवाईजर पर कुछ कार्यवाही होती है ना परियोजना अधिकारी का कुछ बिगड़ता है ना ही महिला बाल विकास अधिकारी से कोई कुछ पूछने वाला रहता है। कुल मिलाकर ऊपर के अधिकारी सब मिले हुए लगते हैं और नीचे वाला पिस जाता है।
वर्तमान में कितना रुपया आता रहा है- यहाँ आंगनबाड़ी केन्द्रों पर इन दिनों हर माह 4-5 हजार से अधिक की राशि नवीन पोषण आहार के नाम से आती है जिसके तहत दूध, गजक, मुरमुरे से लेकर अनेक नई ताजा खाद्य सामग्री खरीदकर बच्चों के पोषण के लिये आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका खरीदती हैं। अंदाजा स्वयं लगाया जा सकता है कि इस भारी भरकम राशि में से कितनी कहाँ जाती होगी। नगर में इन दिनों चल रही चर्चाओं के आधार पर कुछेक आंगनबाड़ी की आधी से अधिक राशि जांच अधिकारी जांच नहीं करने के नाम पर ले लेते हैं। यह राशि ऊपर तक पहुँचती है और सबकी जेब गर्म कर देती है। कुल मिलाकर लगभग 30 लाख रुपये एक झटके में गायब हो जाते हैं जिसकी जानकारी भी किसी को पता नहीं चलती ।
यहाँ उल्लेखनीय है कि हाल ही में ब्रिजिसनगर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से 2-2 हजार रुपये छीनने की घटना एक सुपर वाईजर द्वारा की जाने का मामला तूल पकड़े हुए हैं जिसके तहत मंत्री करण सिंह वर्मा, जिलाधीश को ज्ञापन तक सौंपा गया था बल्कि जिला महिला बाल विकास अधिकारी रमा चौहान द्वारा अभी तक उस सुपरवाईजर को नहीं हटाया गया है जिसके खिलाफ 2 हजार रुपये छीनने का मामला तूल पकड़े हुए हैं। निश्चित रुप से कार्यवाही सिर्फ नीचे के लोगों पर ही होने की परम्परा यहाँ दिख रही है और बहुत कुछ अनकहा इससे झलक रहा है। यहाँ वर्षों से कई सुपरवाईजर जमी हुई हैं जिनका न तो स्थानान्तरण किया जाता है ना ही उनका कार्यक्षेत्र बदला जाता है यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है। सुपरवाईजरों की गेंग ने दी धमकी- असल में चर्चा यह है कि जिस सुपरवाइजर ने 2-2 हजार रुपये उगाये थे उसके पक्ष में सुपरवाईजरों की एक गेंग सक्रिय हो गई जिसका कहना है कि यदि उसे हटा दिया गया तो हम जो रुपया उगाते हैं उसमें दिक्कत आयेगी और कल को हम पर भी कार्यवाही होगी। चर्चा है कि इनकी ही धमकी से अभी तक कार्यवाही रोकी गई है। जिला अधिकारी ने मामले में यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि कार्यवाही करने का अधिकार जिलाधीश को है। fursat sehore
जिले में 1000 से अधिक आंगनबाड़ियों में आ रही लाखों रुपयों की राशि में से भारी भरकम राशि क्या वाकई जांच अधिकारियों की जेब में जा रही है ? क्यों होती है हर बार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के खिलाफ कार्यवाही और बच जाता है जांच अधिकारी ? पहले परियोजना अधिकारी के रुप में कार्य चुकी वर्तमान महिला बाल विकास अधिकारी आखिर कैसे वापस सीहोर आ गई ? और क्या-क्या गुल खिल रहे हैं महिला बाल विकास विभाग में ? इन सब पर पढ़िये फुरसत की एक नजर।
महिला बाल विकास में आने वाली करोड़ो रुपयों की सैकड़ों योजनाओं का अता-पता यूँ तो वैसे भी आम जनता को नहीं हो पाता। सीहोर में महिला बाल विकास विभाग द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ वर्षों से उससे संबंध्द लोग और संस्था में कार्यरत अधिकारी कर्मचारियों के परिजन या रिश्तेदार ही उठाते दिखते नजर आते हैं। ऐसे में सुस्पष्ट है कि शासन की योजनाएं असल व्यक्तियों के पास तक पहुँच ही नहीं पाती हैं। और आपस में ही मिलजुल कर यह लोग चाहे जितना लाभ उठाते हैं। जिन योजनाओं का प्रसार-प्रचार नहीं होता निश्चित ही उनमें यादा गाले होते हैं और जिनमें राशि यादा आती हैं उसमें तो फिर वारे-न्यारे ही होते हैं।
पूर्व में परियोजना अधिकारी के रुप में कार्य कर चुकी वर्तमान महिला बाल विकास अधिकारी को आखिर सीहोर ही क्यों पसंद आया यह तो राम जाने लेकिन इन दिनों महिला बाल विकास में चल रही खुसुर-फुसुर पर ध्यान दें तो यहाँ बहुत गड़बड़ झाला चल रहा है।
कैसे होता है काम - महिला बाल विकास अधिकारी के नीचे परियोजना अधिकारी का पद होता है जिनके नीचे सुपरवाईजर होते हैं और फिर इनके नीचे आंगनबाड़ी विभाग में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता होती हैं। अब चूंकी जिले में हजार से यादा आंगनबाड़ियाँ हैं तो इस दृष्टि से उन पर निगाह रखना भी जरुरी होता है ? क्योंकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका बकायदा काम कर रही हैं या नहीं ? वह रुपयों का हेरफेर तो नहीं कर रही ? वह बच्चों को नियमित बुलाकर पढ़ा रही हैं या नहीं ? वह आंगनबाड़ी खोलती भी है या नहीं ? वह बच्चों को खाने के लिये आने वाला पोषण देती भी हैं या नहीं ? और ऐसी ही अनेक बातों पर निगाह रखने के लिये करीब 20-25 आंगनबाड़ियों के ऊपर एक सुपरवाईजर को रख दिया जाता है। ऐसे सुपरवाईजर बारीकी से निगाह रखते हैं कि हर एक आंगनबाड़ी क्या सही काम कर रही है या नहीं ?
फिर क्या होता है- आंगन बाड़ी केन्द्रों पर जिनकी नियुक्ति हुई है उनमें से अनेक तो अपनी राजनीतिक पहुँच के कारण यहाँ तक पहुँच सकी हैं और कुछ रुपयों के कारण। यहाँ सबसे महत्वपूर्ण चर्चा यह है कि विगत दिवस जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की नियुक्तियाँ हुई थी उसमें भारी भ्रष्टाचार और रुपयों का लेन-देन हुआ था इसकी चर्चाएं न सिर्फ पूरे जिले में बल्कि प्रदेश स्तर तक पहुँची थी। इस संबंध में अनेक प्रकरण भी बने थे जो जिलाधीश के समक्ष से लेकर कमिश्र भोपाल तक चल रहे हैं। तो होता यह है कि ऐसी नियुक्ति प्रक्रिया के बाद जिनकी नियुक्ति हुई है उनमें से कितनी ही कार्यकर्ता व सहायिकाएं बहुत से महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर पाती हैं। नियमों की खानापूर्ति तो दूर वह ठीक से बच्चों को एकत्र करके बैठा भी नहीं पाती हैं। तो फिर सारी कार्यवाही, उन्हे बनाकर खिलाना पिलाना और उनकी पढ़ाई की तरफ ध्यान देना तो दीगर बात है। जबकि बड़ी संख्या में बहुत अच्छी आंगनबाड़ियाँ भी यहाँ संचालित दिखती हैं लेकिन कहीं न कहीं कुछ न कु छ कमी तो जांच अधिकारी निकाल ही सकते हैं।
जांच अधिकारी की बलिहारी- ऐसे में जांच अधिकारी हर एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाओं पर यह दबाव बनाकर रखते हैं कि वह काम सही नहीं करेंगे तो उन्हे हटा दिया जायेगा ? अब काम तो कितना ही सही कर लो पूरा व्यवस्थित होने से तो रहा ? क्योंकि नियम इतने हैं कि उन्हे पूरा करना हाथ की घट्टी में आटा पीसने जितना भारी है और उसके बाद भी यहाँ कोई न कोई कमी तो रह ही जाती है। ऐसे में जांच अधिकारी मतलब सुपरवाईजरों की दादागिरी खुलकर चलती है। वह स्पष्ट कहते हैं कि यदि हम चाहें तो तुम्हे एक झटके में पद से हटवा सकते हैं? इसलिये हमें खुश करना तुम्हारी नैतिक मजबूरी है। इसी में तुम्हारी भी खुशी है। वह इसके लिये बहाना बनाती हैं कि हमें भी ऊपर के अधिकारियों को खुश करना पड़ता है।
जांच क्या होती है - यदि सही मायने में जांच की जाये तो हर एक आंगनबाड़ी में अनियमितता देखने को मिल सकती है लेकिन सांठगांठ के चलते ऐसा नहीं होता ।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका डरी-सहमी - बहुत बड़ी संख्या में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाएं इन्ही जांच अधिकारियों के डर से डरी व सहमी हुई होती हैं क्योंकि यह हमेशा डरा कर रखती हैं कि कभी भी तुम्हारे केन्द्र की जांच हो सकती है, तुम्हे भगा दिया जायेगा। जांच अधिकारी कहते हैं कि मुझे ऊपर हर माह तुम्हारे आंगनबाड़ी केन्द्र की जानकारी अपनी जिम्मेदारी पर सही भेजनी पड़ती है यदि जांच हो जायेगी तो मुझे भी दिक्कत आयेगी और तुम्हारी तो नौकरी ही चली जायेगी। मैं तुम्हारे लिये खतरा क्यों लूँ या फिर केन्द्र की गड़बड़ जानकारी ऊपर के अधिकारियों को बता दूँ तो तुम्हारी नौकरी चल जायेगी ? इसी प्रकार की अबूझ धमकियाँ उन्हे दी जाती हैं।
क्यों हर बार कार्यकर्ता पर टूटता है कहर - यहाँ वर्षों से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के खिलाफ या सहायिकाओं पर कार्यवाही होती देखी जाती हैं जबकि जिन क्षेत्रों में आंगनबाड़ी सही नहीं चलती वहाँ की न सुपरवाईजर पर कुछ कार्यवाही होती है ना परियोजना अधिकारी का कुछ बिगड़ता है ना ही महिला बाल विकास अधिकारी से कोई कुछ पूछने वाला रहता है। कुल मिलाकर ऊपर के अधिकारी सब मिले हुए लगते हैं और नीचे वाला पिस जाता है।
वर्तमान में कितना रुपया आता रहा है- यहाँ आंगनबाड़ी केन्द्रों पर इन दिनों हर माह 4-5 हजार से अधिक की राशि नवीन पोषण आहार के नाम से आती है जिसके तहत दूध, गजक, मुरमुरे से लेकर अनेक नई ताजा खाद्य सामग्री खरीदकर बच्चों के पोषण के लिये आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका खरीदती हैं। अंदाजा स्वयं लगाया जा सकता है कि इस भारी भरकम राशि में से कितनी कहाँ जाती होगी। नगर में इन दिनों चल रही चर्चाओं के आधार पर कुछेक आंगनबाड़ी की आधी से अधिक राशि जांच अधिकारी जांच नहीं करने के नाम पर ले लेते हैं। यह राशि ऊपर तक पहुँचती है और सबकी जेब गर्म कर देती है। कुल मिलाकर लगभग 30 लाख रुपये एक झटके में गायब हो जाते हैं जिसकी जानकारी भी किसी को पता नहीं चलती ।
यहाँ उल्लेखनीय है कि हाल ही में ब्रिजिसनगर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से 2-2 हजार रुपये छीनने की घटना एक सुपर वाईजर द्वारा की जाने का मामला तूल पकड़े हुए हैं जिसके तहत मंत्री करण सिंह वर्मा, जिलाधीश को ज्ञापन तक सौंपा गया था बल्कि जिला महिला बाल विकास अधिकारी रमा चौहान द्वारा अभी तक उस सुपरवाईजर को नहीं हटाया गया है जिसके खिलाफ 2 हजार रुपये छीनने का मामला तूल पकड़े हुए हैं। निश्चित रुप से कार्यवाही सिर्फ नीचे के लोगों पर ही होने की परम्परा यहाँ दिख रही है और बहुत कुछ अनकहा इससे झलक रहा है। यहाँ वर्षों से कई सुपरवाईजर जमी हुई हैं जिनका न तो स्थानान्तरण किया जाता है ना ही उनका कार्यक्षेत्र बदला जाता है यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है। सुपरवाईजरों की गेंग ने दी धमकी- असल में चर्चा यह है कि जिस सुपरवाइजर ने 2-2 हजार रुपये उगाये थे उसके पक्ष में सुपरवाईजरों की एक गेंग सक्रिय हो गई जिसका कहना है कि यदि उसे हटा दिया गया तो हम जो रुपया उगाते हैं उसमें दिक्कत आयेगी और कल को हम पर भी कार्यवाही होगी। चर्चा है कि इनकी ही धमकी से अभी तक कार्यवाही रोकी गई है। जिला अधिकारी ने मामले में यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि कार्यवाही करने का अधिकार जिलाधीश को है। fursat sehore