सीहोर 7 फरवरी (फुरसत)। मुख्यमंत्री के गृह जिले में अव्वल तो सरे आम लाल गेहूँ बिक रहा है और उस पर कोई रोक या व्यवस्था नहीं की गई है। बल्कि साल भर से हजारों क्विंटल लाल गेहूँ की कालाबाजारी करते हुए उसे सामान्य गेहूँ बनाकर बेचा जा रहा है। गरीबों का हक छीना जा रहा है। जिला खाद्य अधिकारी की मिली भगत का परिणाम है कि उपभोक्ता सेवा केन्द्र के दुकानदार गेहूँ उठाकर सीधे भरी भराई गाड़िया या बेलगाड़ी गल्ला व्यापारी को बेच देते हैं। निश्चित ही इस पूरे मामले की जांच ऊपर के अधिकारियों से कराकर यहाँ खाद्य विभाग की मिली भगत से हो रहे गोरखधंधो की गहन जांच-पड़ताल की जाना चाहिऐ। हालांकि जिलाधीश के कथित फोन से समस्या निवारण के नाटकीय घटनाक्रम में अनेकानेक शिकायतें उपभोक्ता विभाग और उपभोक्ता भंडारों के खिलाफ हो चुकी हैं लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि अब स्थानीय प्रशासन तो खाद्य विभाग के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करेगा निश्चित ही ऊपर के अधिकारी ही आकर पोलपट्टी पकड़ सकते हैं। लेकिन क्या भाजपा के शासन ऐसी कार्यवाहियों की अपेक्षा की जा सकती है?
उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह गल्ला मण्डी के एक व्यापारी के यहाँ से नायब तहसीलदार नरेन्द्र सिंह ठाकुर ने छापा मारकर करीब 434 क्विंटल गेहूँ उपभोक्ता भण्डार का पकड़ा था । इतनी बड़ी मात्रा में जब एक दुकानदार से लाल गेहूँ पकड़ाया है तो निश्चित ही यह बात स्पष्ट हो गई कि विगत वर्ष भर से ये खेल चल रहा होगा और निश्चित ही सिर्फ इस एक ही दुकानदार के यहाँ नहीं बल्कि अनेक स्थानों चक्कियों पर भी खुले आम गेहूँ बिक रहा होगा।
जिले में उपभोक्ता अधिकारी की मिली भगत से लम्बे समय से उपभोक्ता भण्डार केन्द्रों पर गड़बड़ झाला चल रहा है। अनेक दुकानों पर घांसलेट आता तो पूरा है लेकिन समय से पूर्व ही खत्म हो जाता है। इन्ही दुकानों पर जितना गेहूँ आता है उतने उपभोक्ता यहाँ गेहूँ लेने ही नहीं आते और क्या सौ प्रतिशत अनाज बिक जाता है नहीं बिकता तो फिर कहाँ जाता है ? क्योंकि बहुत बडी संख्या में लाल गेहूँ उपभोक्ता लेते ही नहीं है तो फिर उसका यह दुकानदार क्या करते है ? इसी प्रकार चावल से लेकर शक्कर भी कुछ किराना व्यापारियों द्वारा खुले आम खुले रुप से बेची जाती है। यह क्रम अनवरत जारी है।
विगत साल भर से सीहोर में लाल गेहूँ हजारों क्विंटल आया लेकिन कितना सही हाथों तक गया यह जांच का ही विषय है ? साल भर से यह गेहूँ की कट्टियाँ नगर भर की विभिन्न चक्कियों पर सीधे पिसने पहुँच जाती हैं और वहाँ फिर गेहूँ का आटा बनकर बिकता है।
नगर भर में जितना भी गेहूँ बिक रहा है उसमें या तो सीधे सीधे लाल आटा रहता हैं या फिर लाल गेहूँ और सादे गेहूँ का मिला हुआ आटा रहता है। निश्चित रुप से गल्ला मण्डी से जिस एक व्यापारी के यहाँ से बड़ी मात्रा में लाल गेहूँ मिला है तो क्या इतना ही गेहूँ यहाँ बिका होगा ।
फुरसत सूत्रों का कहना है कि दो ऐसे व्यापारी है जिनके घरों के गोदामों पर आये दिन लाल गेहूँ की बैलगाड़ियाँ उतरती देखी जाती हैं जहाँ दो सौ-ढाई सौ बोरियां आये दिन रखी रहती हैं।
उचित मूल्य दुकान संचालकों का इस पूरे मामले में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है हालांकि जिला खाद्य अधिकारी का वरद हस्त और उस पर जिला प्रशासन की मौन स्वीकृति इस पूरे घटनाक्रम को अमली जामा पहनाती है और आराम से उपभोक्ताओं को सरकार द्वारा दी जाने वाली खाद्य सामग्री सरे आम अन्य दुकानों पर महंगे दामों पर मिलती हैं।
न सिर्फ खाद्य सामग्री पर बल्कि गैस की टंकियों पर भी खाद्य विभाग का हाथ ढिल्ला ही रहता है जिसके चलते आये दिन गैस उपभोक्ताओं को तो टंकी मिलती नहीं उन्हे लम्बी-लम्बी लाईनों में लगना पड़ता है लेकिन जो ऊंचे दाम देकर टंकी लेना जानता है उसे आराम से टंकी मिल जाती है इतना ही नहीं बल्कि नगर में सरे आम गैस से कई वाहन इसी मेहरबानी से चल रहे हैं।