Wednesday, January 14, 2009

सर्वधर्म समिति अच्छा काम कर रही, लेकिन हिन्दु उत्सवों के लिये भी समिति चाहिये

साम्प्रदायिकता आड़ में होने वाली राजनीति पूरे विश्व में गलत ढंग से देखी जाती है, फिर भी इस देश में अक्सर धर्म के नाम पर राजनीति करने से कुछ लोग बचते नहीं, बल्कि आगे आ जाते हैं....धार्मिक आयोजनों में चेहरा दिखाकर राजनीति करने का शोक तो कई राजनेताओं को है....सीहोर में ऐसे ही कई लोग भी हैं जो धार्मिक नेता बनने के चक्कर में किसी भी सम्प्रदाय वर्ग विशेष के कार्यक्रमों की समितियों में दखल देकर स्वयं को प्रसन्न महसूस करते हैं।

      इस मामले में ईसाई धर्म कुछ बचा हुआ है जहाँ धर्म के मामले में राजनीति बहुत कम देखने को मिलती है। यहाँ बाहरी तत्व आकर जरुर जबरिया घुसपैठ करते हैं....मुस्लिम त्यौहार कमेटियाँ तो खैर खुलकर काम करती है लेकिन इसमें भी अखबारों में छपास की भड़ास हो, ऐसा कहीं प्रतीत नहीं होता....सिर्फ त्यौहार व्यवस्थित मन जाये यही मुस्लिम त्यौहार समितियों का उद्देश्य रहता है।

      हिन्दु धर्म में अनेक ऐसे महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसे पूरा देश मनाता है। लेकिन कई समस्याएं ऐसी रह जाती हैं कि जिनकी पूर्ति या ध्यान नहीं दिये जाने से और राजनीति करने से मामला गड़बड़ हो जाता है।

      नवरात्रि को दुर्गा उत्सव समितियाँ भले शांति पूर्वक मना लेती हों लेकिन पूरे नौ दिन विद्युत मण्डल का डर सताते रहता है...गणेश उत्सव की गरिमा निरन्तर घट रही है...झांकियाँ हर वर्ष घटती हैं लेकिन सिर्फ स्वागत मंच बनाकर लोग झांकी वालों के स्वागत की आड़ में अपने फोटो छपवाने को महत्व देते हैं, अनन्त चतुर्दशी पर लगातार आसपास के ग्रामों से आने वाली भीड़ कम हो रही है क्योंकि अनेक अव्यवस्था इस उत्सव में विद्यमान है, जो किसी एक स्वागत मंच पर रातभर बैठे रहने से कभी नहीं दिख सकती। डोल ग्यारस पर डोलों की व्यवस्था सिर्फ पुलिस के हाथ में है, और पुलिस भी जब चाहे जैसे पुजारियों को बुलाकर डरा-धमका देती है अपने अनुसार काम करा लेती है, नदी में पानी की व्यवस्था नहीं रहती, घांट की सफाई अच्छे से नहीं होती, लेकिन इस मामले में भी कोई हिन्दु नेता सक्रिय नजर नहीं आता। सिख समाज के अनेक उत्सव आते हैं और चले जाते हैं लेकिन ना तो गुरुद्वारा साहब मार्ग की सड़क व्यवस्थित होती है और ना ही इस हिन्दु रक्षक कौम के किसी कार्यक्रम में हिन्दु समाज के प्रमुख लोग पहँचते हैं। वर्ष में एक बार निकलने वाले हनुमान जी के झण्डे में ही इस बार समिति के सदस्यों के अलावा कोई विशेष नजर नहीं आया, सिर्फ आंतरिक राजनीति के कारण इस उत्सव में लोगों को आने से रोका जाता रहा।

      जैन समाज के पर्यूषण पर्व कब आ जाते हैं कब चले जाते हैं उनकी तरफ सिर्फ जैन समाज के अलावा किसी अन्य का ध्यान कभी नहीं जाता, फिर भले ही महावीर जयंती पर सरेआम मांस बिकता रहे किसी को कोई मतलब नहीं रहता क्योंकि यहाँ राजनीति नहीं हो पाती। यही हालत विश्वकर्मा जयंती, अजमीढ़ जयंती, सहस्त्रबाहु जयंती, नामदेव जयंती, अग्रसेन जयंती, गुरुनानक जयंती, गोगा पंचमी, वाल्मिकी जयंती, झूलेलाल जयंती, कबीर जयंती, रविदास जयंती  की रहती है जहाँ किसी की राजनीति नहीं हो पाती इसलिये संबंधित समाज के लोग अपने-अपने स्तर पर जैसी भी हो जयंती मनाते रहे उनसे किसी को मतलब नहीं रहता।

      महाशिवरात्रि पर एक ईसाई मिशनरी का स्कूल जबरिया बच्चों को बुलाता है लेकिन कोई ऐसा व्यक्ति सामने नहीं आता जो इस महापर्व पर बच्चों की छुट्टी करा दे,  क्योंकि यहाँ राजनीतिक रोटियाँ नहीं सिकतीं। बछबारस पर गौमाता की पूजन करने के लिये महिलाओं को गौमाता ढूंढने पर नजर नहीं आती, दीपावली पर रांगोली मनाने के लिये या लक्ष्मी पूजन के लिये गोबर नहीं मिल पाता, लेकिन क्या यह व्यवस्था भी किसी अन्य को करना पड़ेगी या उसे करना चाहिये, अभी इस पर चिंतन-मनन शेष है। नागपंचमी पर सपेरों को परेशान किया जाता रहे इसकी किसी को चिंता नहीं।

      कृष्ण जन्माष्टमी हो या फिर सांईनाथ जयंती, रंगपंचमी का जुलूस हो ऐसे कार्यक्रम में अवश्य राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाले सक्रिय हो जाते हैं, मालाएं पहनते हैं साफा बंधवाते हैं, हाथ जोड़ते जुलूस में चलते हैं, मतलब यही उत्सव धर्मिता है। होली जैसे त्यौहार पर जनता पानी के लिये परेशान होती रहे, पुलिस डंडे चलाकर हुरियारों को घर में घुसेड़ने का प्रयास करे, प्रशासन मुख्य होली के दिन दूज पर जानबूझकर स्थानीय अवकाश नहीं रखे, लकड़ी महंगी मिले या होली का डांडा नहीं मिलने से चौराहे पर ना लग सके... उससे किसी को कोई मतलब नहीं, उन्हे तो सिर्फ रंगपंचमी के जुलूस में माला पहनकर फोटो खिंचाने से मतलब है।

      असल में परम्पराओं और संस्कृति से हटकर यदि किसी खर्चीले त्यौहार मनाने में ही ऐसे राजनेता सक्रिय रहेंगे, किसी मंचीय कार्यक्रमों के नाम पोस्टर पम्पलेट छपवायेंगे, होर्डिंग लगवायेंगे, क्रिसमस की ईसाईयों को बधाई देंगे अथवा मोहर्रम पर मुबारकबाद देकर हरे साफे बांधेंगे और खूब फोटो खिंचवाकर अखबारों में छपवायेंगे तो ऐसी राजनीति सर्वधर्म राजनीति तो हो सकती है लेकिन इस सबसे हिन्दुओं के त्यौहारों का कोई भला होने वाला नहीं है।

      तथैव सीहोर में एक अदद हिन्दुओं के त्यौहारों के लिये समाज के सक्रिय लोगों की किसी समिति की आवश्यकता अवश्य बनी हुई है....क्योंकि सर्वधर्म समितियाँ तो यहाँ ढेर सारी हैं जो ईसाई त्यौहार भी याद रखती हैं, मोहर्रम मनाने के साथ समय-समय पर दरगाहों पर चादरें भी चढ़ाती हैं और बड़े-बड़े हिन्दु त्यौहारों पर भी स्वागत आदि कर देती हैं लेकिन इससे हिन्दुओं के उत्सवों की रौनक बढ़ने में कोई सहूलियत नहीं मिलती। .
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