Tuesday, November 11, 2008

बापूलाल कांग्रेस के लिये चुन्नीलाल भाजपा के लिये परेशानी का कारण

      आष्टा 10 नवम्बर (नि.सं.)। राजनीति की बिसात बिछ गई है विभिन्न दलों को किससे कितना नुकसान हो सकता है का जोड़ा लगाने में जुट गई है। आज नाम वापसी के बाद जो तस्वीर साफ हुई है उसमें देखा जाये तो नुकसान भाजपा और कांग्रेस दोनो को नजर आ रहा है।

      भाजपा को जो नुकसान होगा वो जनशक्ति प्रत्याशी चुन्नीलाल से मिलेगा वहीं वर्तमान विधायक रधुनाथ मालवीय जिन्होने आज निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में भरा नामांकन के बाद नाम वापस तो ले लिया है लेकिन टिकिट कटने का जो दर्द उन्हे और उनके समर्थकों को हुआ है वो भी कहीं ना कहीं भाजपा को ही नुकसान पहुँचा सकता है।

      अब आष्टा में कुल 9 उम्मीद्वार मैदान में है। कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान अपनी ही पार्टी से बागी कांग्रेस छोड़ कर बसपा में जाकर प्रत्याशी बने बापूलाल मालवीय से है। 1970 से कांग्रेस में कार्य कर रहे बापूलाल मालवीय जो की जनपद पंचायत आष्टा के अध्यक्ष रहे तथा दो बार आष्टा विधानसभा चुनाव से कांग्रेस के ही टिकिट पर चुनाव लड़ चुके मालवीय का क्षेत्र में खासकर उनके समाज में अच्छी पैठ है। बसपा से खड़े होने पर उन्हे निश्चित समर्थन मिलेगा जो भी वोट मालवीय लायेंगे वो कांग्रेस के खाते से ही आयेंगे और कांग्रेस के लिये इस चुनाव में मालवीय सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं भाजश मैदान   में है।

      भाजश से खड़े हुए चुन्नीलाल मालवीय यूँ तो पुराने कांग्रेसी रहे हैं लेकिन सहकारिता में हमेशा उनका तालमेल भाजपा से ही रहा है और यही कारण रहा कि वे जिला सहकारी बैंक सीहोर के अध्यक्ष पद तक पहुँचे थे अब वे भाजश में है तथा वर्तमान में सिध्दिकगंज ग्राम पंचायत के सरपंच हैं चुन्नीलाल मालवीय इस चुनाव में जो भी वोट प्राप्त करेंगे उससे भाजपा को ही नुकसान होगा वे कितना जन समर्थन हासिल कर पाते हैं यह तो परिणाम आने पर ही नजर आयेगा।

      वहीं आष्टा विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2003 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी फूल सिंह चौहान ने लगभग 34 हजार से अधिक मतों को प्रापत कर एक रिकार्ड बनाया था। अब वे फूल सिंह चौहान तो नहीं है लेकिन उनके भाई कमल सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रसपा मैदान में है।

      फूल सिंह चौहान जो की बसपा छोड़ कर भाजपा में चले गये थे और भाजपा से फिर उन्होने प्रसपा का गठन कर लिया था। प्रसपा गठन के बाद से ही जमीन बनाने में जुटी है। लेकिन वो इतनी भी जमीन अभी नहीं बना पाई है कि इस बार 2003 जैसी तीसरी शक्ति बन सके।

      अन्य जो निर्दलीय मैदान में है वे भी दौड़ धूप कर रहे हैं। लेकिन इस बार भी आष्टा में मुख्य मुकाबला परम्परागत राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के ही बीच में है। इस बार कई नये राजनीतिक समीकरण भी बने हैं कहीं से कोई हटा है तो कोई नया जुड़ा भी है। अभी क्षेत्र में चुनावी रंग पूरी तरह से नहीं जमा है लेकिन धीरे-धीरे पूरी तरह आष्टा विधानसभा क्षेत्र राजनीति के रंग में रंगने की तैयारी में है।