Friday, October 31, 2008

वोट के भिखारियों कम से कम नुक्तों में तो राजनीतिक फायदा मत खोजों

      आष्टा 30 अक्टूबर (सुशील संचेती)। जब चुनाव आये, चुनाव लडो तो जनता के सामने-उनके बीच जाओ और उनसे वोअ मांगो राजनीति का यही धर्म है लेकिन राजनीति का यह धर्म कभी नहीं रहा है और ना ही होना चाहिये की मौत-मैय्यत, शोक निवारण, नुक्तों को भी अपनी राजनीति के लाभ -नुकसान के लिए उपयोग करो आज के नेता चाहे वे भाजपा के हो कांग्रेस के हो या अन्य दलों के हो जिस किसी भी परिवार में गमी हो जाती है उसके यहां सच्ची श्रद्धांजली अर्पित करने का उसके यहां यह दर्शाने की मंशा से जरूर जाते है कि भैय्या मैं आपके दु:ख में शामिल होने उस वक्त आया था जब आपके यहां पर गमी हुई थी अब में चुनाव के दंगल में हूं दर-दर वोट की भीख मांग रहा हूं मेरे कटोरे में आपके वोट की भीख जरूर डालना धिक्कार है ऐसे नेताओं को जो जाते तो जाते है श्रद्धांजली अर्पित करने कम ऐसे वोट के भिखारियों को समय आने पर देखना चाहिये। यह आज के मतदाताओं के लिए एक बड़ा चिन्ता का विषय होना चाहिये की राजनीति में क्या इतनी गिरावट आ गई है की आज का नेता खुशी और गमका अंतर भूल गया है उसे खुशी में क्या कहना करना चाहिये, और उसे किसी के गम में शामिल होने के लिए क्या कहना चाहिये। इन दिनों चुनाव का मौसम पांचवी ऋतु की तरह चल रहा है हर दल का नेता अपनी जमीन बनाने में जुटा है लेकिन वो इतना भी भूल गया है कि नुक्तों में वोटों की जमीन नहीं बनती है हाल ही में आष्टा तहसील के एक ग्राम में एक परिवार में दो सदस्यों की मृत्यु के बाद यहां पर शोक निवारण के रूप में बड़ा नुक्ता किया गया नुक्ते में शोकाकुल परिवार ने पूरे क्षेत्र के ही नहीं आस-पास के सगे-सम्बंधितों, नाते रिश्तेदारों को चिट्ठी   भेजी सब आये उक्त नुक्ते में पहुंचे क्योंकि उक्त नुक्ता प्रतिष्ठित परिवार में था जिस समाज के शोकाकुल परिवार के सदस्य थे वो आष्टा की राजनीति में बड़ा रोल अदा करता है इसलिए यहां नेता नुक्ते में शामिल होने की मंशा से कम वोट की राजनीति के उद्देश्य से अधिक मन से पहुंचे थे चलो वो वहां गये जाना भी चाहिये जब यहां पर नेताओं को मत आत्मा के प्रति श्रद्धांजली अर्पित करने के लिए समाज के वरिष्ठजनों को आमंत्रित किया और आये कुछ नेताओं को भी आमंत्रित किया तो उन्होंने अपनी श्रद्धांजली में मृत आत्मा के प्रति श्रद्धांजली कम राजनीति की बात अधिक कर दर्शा दिया की वो वोट की मंशा लिये आये है यह किसी एक नुक्ते में ही ऐसा हुआ है देखने में और सुनने में आता है कि क्षेत्र में जब भी कहीं ऐसे प्रसंग आते है तो वोट के भिखारी नेता वहां श्रद्धांजली कम वोट और नेतागिरी करने के उद्देश्य से अधिक पहुंचते है ऐसे आयोजनों में जो नेता नेतागिरी करते है श्रद्धांजली के बदले राजनीति की बाते करते है अब इस बात पर विस्तृत विचार और चिन्तन की आवश्यकता है अब नुक्तों को राजनीतिज्ञों की राजनीति से मुक्त करने के लिए किसी ना किसी को आगे आकर कदम उठाना होगा श्रद्धांजली के दौरान केवल श्रद्धांजली नेतागिरी नहीं का सिद्धांत लागू करना चाहिये। आष्टा में वर्षो पहले इसकी शुरु आत स्थानीय शमशान घाट से शुरु की गई और उसके परिणाम यह आये की आज आष्टा में कितने बडे से बडे या छोटे से छोटे व्यक्ति की जब मृत्यु होती है तो श्मशान घाट में पंचलकडी के पहले केवल सामूहिक मौन श्रद्धांजली अर्पित की जाती है यह परम्परा यह डल चुकी है नहीं तो इसके पहले जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती थी तो श्मशान घाट पर घंटो श्रद्धांजली देने का कार्यक्रम चलता था यहा भी कई वक्ता उस वक्त राजनीति करने से बात नहीं आते थे लेकिन उस वक्त श्मशान घाट समिति ने एक सख्त निर्णय लिया और श्रद्धांजली के नाम पर होने वाली भाषणबाजी को सिलसिता बन्द किया। ऐसा ही ठोस निर्णय ग्रामीण क्षेत्रों में नुक्तों के वक्त श्रद्धांजली कार्यक्रम में केवल श्रद्धांजली ही हो इसके लिए ग्रामीण जनों को सोचना और विचारना होगा तो ही नुक्ते राजनीति से मुक्त होकर वोट के भिखारियों के लिए नुक्ते राजनीति के अखाडे नहीं बन कर सच्ची श्रद्धांजली का एक स्थान बनेगा। कुछ नेता तो ऐसे भी देखे जाते है जिन्हें ना ही कोई चिट्ठी दी जाती है और ना ही सूचना उसके बाद भी वे बिन फेरे हम तेरे की तरह बिना बुलाये आ जाते है वैसे उनका ऐसे आना उस मायने में उचित कहा जा सकता है अब वे जहां पहुंचे सच्ची श्रद्धांजली देने के उद्देश्य से आये लेकिन अगर वो वोट की राजनीति के तहत वहां घड़ियाली आंसू बहाने पहुंचे तो ऐसो को क्या कहे........वे खुद समझे समझदार हो तो अब जब भी नुक्तों में जाये तो केवल सच्ची श्रद्धांजली अर्पित करे वोट का फायदा ना सोचे तो फायदा तो अपने आप कटोरे में आ जायेगा......