सीहोर 13 जून (नि.सं.)। नेहरु कालोनी में आज एक व्यक्ति के घर के सामने बड़ा बंदर किसी कारण से सुबह मृत अवस्था में पड़ा हुआ दिखाई दिया। मरे हुए बंदर को देखकर कई लोग यहाँ एकत्र हो गये। भीड़ लग गई। बंदर का क्या करें और सड़क पर इसे कब तक पड़ा रहने दे सोचकर जिस व्यक्ति दिवाकर सिंह के घर के सामने यह पड़ा हुआ था उसने इसकी जानकारी संबंधित विभाग को देने का फैसला किया।
वह सीधे नगर पालिका में गया और वहाँ स्वास्थ्य अधिकारी को यह सूचना दी की हमारे घर के सामने एक मृत बंदर पड़ा हुआ है कृपया उसे उठवा दीजिये....? यहाँ नगर पालिका में इसको टाल दिया गया कि नहीं हम बंदर को हाथ भी नहीं लगायेंगे यह वन विभाग का मामला है।
इस पर दिवाकर सीधे वन विभाग कार्यालय मण्डी रेल्वे लाईन के पास पहुँचा तो वहाँ से उसे टाल दिया गया और कहा गया कि जो हमारा स्थानीय कार्यालय है वहाँ जाईये। इन्दौर नाका पर वह स्थित वहाँ किसी अधिकारी से बात करिये।
इस पर दिवाकर मण्डी से सीधे इन्दौर नाका बकरी पुल के पास पहुँचा। यहाँ कार्यालय में गया तो वन कर्मियों ने इस कार्य के लिये खुद को अयोग्य बता दिया। उन्होने कहा कि यह काम हमारा नहीं है यह काम तो नगर पालिका का है, और नगर पालिका ही इसे करती है। इस पर दिवाकर ने कहा भी की नगर पालिका कह रही है कि बंदर वन्य प्राणी है वह वन विभाग ही उठाता है लेकिन वन कर्मियों ने बात नहीं मानी उन्होने कहा कि यह हम नहीं करते नगर पालिका ही मृतक जीवों को उठाती है, उससे ही जाकर कहो।
अंतत: मजबूरन दिवाकर एक बार फिर नगर पालिका आया और उसने यहाँ सारे प्रयास किये की किसी तरह यहाँ अधिकारी मान जायें लेकिन अधिकारियों ने नई कहानी इसे सुना दी। उन्होने कहा कि एक बार पूर्व में हमने एक बंदर को ही हाथ लगा लिया था जिस पर वन विभाग के अधिकारियों ने हमें नोटिस भेज दिया था और हमें जबरन न्यायालय तक घसीटा गया था इसलिये वन विभाग के मामले में हम पड़ते ही नहीं है। वन विभाग में ही तुम्हे जाना पड़ेगा वहीं कुछ हो सकता है। हम तो नहीं करेंगे........।
अंतत: दिवाकर ठाकुर ने सोचा कि एक बारगी खादी ग्रामोद्योग से भी बात कर ली जाये मजबूरन वह खादी ग्रामोद्योग जिला पंचायत के सामने गया और निवेदन किया की साहब एक बड़ा बंदर आज सुबह से उसके घर के सामने मरा पड़ा है उसे कोई उठा नहीं रहा। आपका विभाग एक मृत पशुओं को उठाता है कृपया इस बंदर को भी उठवा दीजिये। इस पर खादी ग्रामोद्योग के अधिकारी कर्मचारी आश्चर्य में पड़ गये की यह कौन-सी नई बात आ गई। उन्होने समझाया कि भैया हमारा काम यह नहीं है हूम तो सिर्फ बड़े पशु ही उठाते हैं। गाय-ढोर उठाने का हमारा काम है उन्हे उठाकर हम फेंक आते हैं इसके लिये तो आप नगर पालिका या वन विभाग ही जाओ।
हैरान-परेशान दिवाकर ने सोचा की अब क्यों बंदर भ्रष्टाचारी राय में भ्रष्टाचारी ढंग से ही काम किया जाये। उसने नगर पालिका में जाकर चुपचाप एक सफाई कामगार से बातचीत की और उस बंदर को उठाने का निवेदन किया तो सफाई कामगार ने भी मौके का पूरा-पूरा लाभ उठाया। उसने कहा भैया अलबत तो हम ऐसा काम करते नहीं लेकिन कम से कम 50 रुपये दो तो करें। 50 रुपये लूंगा तो उठाऊंगा। मरता क्या ना करता एक बंदर की बात थी और वो भी मोहल्ले में घर के सामने ही था, उसका उठाया जाना भी जरुरी था और फिर सारे विभाग नगर पालिका, वन विभाग ने मुँह मोड़ लिया था मजबूर होकर दिवाकर ने सफाई कामगार को घर का पता बताया और वह घर को चल दिया। थक हारकर जब दिवाकर घर पहुँचा तो यहाँ पता चला एक कुत्ता इस बंदर से झूम रहा था और वही उसे घसीट-घसीट कर दूर ले गया। जब कुत्ता देखा तो कहीं नजर नहीं आया और बंदर की मृत देह भी कहीं नजर नहीं आई। मोहल्ले में इसकी दुर्गंध भी नहीं मिली । इस प्रकार जो कार्य नगर पालिका, वन विभाग, खादी ग्रामोद्योग और सफाई कामगार नहीं कर पाया उसे मोहल्ले के कुत्ते ने कर दिखाया।