Saturday, April 5, 2008

सीहोर में बड़े-बड़े दावों की पोल खुली, नगर में मच रही पानी को लेकर हायतौबा

सीहोर 4 अप्रैल (नि.सं.)। बड़े-बड़े दावों के साथ स्थानीय प्रशासन जिला प्रशासन और स्वयं विधायक सीहोर आये दिन शहर के नागरिकों को शुध्द पेयजल उपलब्ध कराने की बात तो कर रहे है। नगर पालिका अध्यक्ष क्षेत्र में प्रति सप्ताह एक बार पानी मुहैया कराने के लिये नलों से पानी सप्लाय करने की बात कह रहे हैं वहीं विधायक सक्सेना की और से आये दिन पेयजल संकट से वाशिंदों को निजात दिलाने के लिये भारी भरकर विज्ञप्तियों का प्रसारण किया जा रहा है तो जिला प्रशासन टैंकरों से नागरिकों को पानी प्रदाय करने के दावे करने में थक नहीं रहा है।
जबकि दूसरी और शहर का आम आदमी पानी के लिये स्वयं ही जद्दोजहद कर रहा है। किसी नागरिक के घर टयूबवेल आज अच्छी स्थित में है तो क्षेत्र के रहवासियों की भीड़ वहाँ टूटती दिखाई देती है। आराकस मोहल्ले में एक स्थान पर टयूबवेल में पानी होने से उस क्षेत्र के नागरिक वहाँ से पानी लेकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने लगे हैं।
जिस व्यक्ति का यह टयूबवेल है वह भी इसे अपना कर्तव्य समझकर लोगों की प्यास बुझाने में सहयोग कर रहा है। इस स्थान पर सायं होते ही 400 से अधिक केन लाईन से रखी हुई दिखाई देती हैं। अमूमन यह नजारा प्रतिदिन शहर के कई हिस्सों में दिखाई देता है।
पानी की हायतौबा और दो केन पानी के लिये जद्दोजहद से अब्दुरहीम खानखाना की यह पंक्तियाँ बरबस होठों पर आ जाती हैं, रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून, जिला मुख्यालय पर पानी की किल्लत को देखते हुए नागरिकों को शुध्द पेयजल उपलब्ध कराने के सारे दावे थोथे दिखाई देने लगे हैं।
कहीं पानी के लिये भीड़-भाड़ तो कहीं पानी के लिये लट्ठम-लट्ठा जैसे हालात होने लगे हैं। विगत दिवस नमक चौराहे पर पानी भरने की बात पर विवाद इतना बड़ा की बात मारपीट पर पहुँच गई। वाद में मामला पुलिस तक भी पहुँचा। कार्यवाही क्या हुई इसका किसी को पता नहीं।
कल कस्बे के अंदर एक क्षेत्र में सार्वजनिक हेण्डपंप पर पानी भर रहे दो बच्चों के बर्तन उठाकर दो स्थानीय दादा किस्म के पहलवानों ने फेंक दिये। इसके बाद यहाँ तनाव बन गया। इस हेण्डपंप पर भी इनका एक तरह से कब्जा हो गया है। उनकी मर्जी के बिना कोई पानी भर नहीं सकता।
गंज में विगत कुछेक वर्ष से कुछ स्थानों पर हेण्डपंप में ताले लगाने की प्रथा भी विद्यमान हो ही चुकी है, जहाँ सर्वाधिक तनाव रहता है तो सिर्फ पानी भरने को लेकर। पानी के लिये यह तो आगाज है अंजाम ऊपर वाला ही जाने। विगत वर्षों इसी शहर में पानी बंदूकों के साये में वितरित करने के लिये प्रशासन को मजबूर होना पड़ा था और सीहोर सम्पूर्ण देश में प्रचारित भी हुआ था।
प्रशासन कहता है कि जरुरत मंदों को उनके क्षेत्र में टैंकर से पानी भेज रहे हैं लेकिन टैंकर तो प्रभावशाली लोगों के क्षेत्र में ही पहुँच कर अपनी सेवाएं दे रहे हैं जबकि पानी के लिये भटकते गरीब तबके के लोग परिवार सहित जिंदा जल स्त्रोतों की तलाश में अपनी सायकिल हाथ ठेलों पर पानी की कुप्पी लटकाये भटकते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं। शहर में जल संकट समाप्त करने की कवायद में अभी तक तीन-चार जगह विधायक के प्रयासो से हाइड्रोलिक बोर कराए जा चुके हैं। कहते हैं इन कराए गए वोरों में 3 से 5 इंच पानी भरपूर मात्रा में निकला है तो इसके बाद भी जल संकट बदस्तूर क्यों जारी है। यह बोर जिन क्षेत्रों में कराए गए हैं वहाँ के रहने वाले क्याें ? इधर-उधर से पानी की जुगाड़ कर रहे हैं यह विचारणीय प्रश् है जो व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।